Friday, 6 April 2018

इंदिरा प्रिदार्शिनी

इंदिरा गांधी की मौत पे बीबीसी में रेहान फ़ज़ल की रपट पढ़ी, तब से बेचैन था। भला ये कैसे हो सकता है कि एक प्रधानमंत्री ने ऑपरेशन ब्लू स्टार चलाकर धर्मभीरू सिखों को आहत कर दिया हो और जब खुफिया रिपोर्ट उनकी टेबल पे आए कि सिख सुरक्षाकर्मी उनकी जान के लिए खतरा हो सकते हैं तो प्रधानमंत्री उस फाइल पर सिर्फ तीन शब्द लिखें- Aren't we secular?
इतना बड़ा दिल, इतनी हिम्मत और देश की संस्कृति और इसके मिजाज के समझने का ऐसा नजरिया सिर्फ इंदिरा गांधी के पास हो सकता था, जिन्होंने अपना बचपन बापू के साए में बिताया था. वो जानती थीं कि अगर धर्म के नाम पर उन्होंने सिख सुरक्षाकर्मियों को अपनी सिक्योरिटी से हटाया तो इतिहास हमेशा ये लिखेगा कि देश के प्रधानमंत्री ने धर्म के नाम पर अपने सुरक्षा गार्डों से भेदभाव किया. ये जानते हुए कि तत्कालीन परिस्थितियों में उनकी जान को गंभीर खतरा है, उन्होंने राजधर्म का पालन किया. ये मामूली बात नहीं है.
आज जब छोटे से छोटा टुटपुजिया राजनेता ओछी राजनीति के लिए धर्म का खुलेआम बेजा इस्तेमाल करता है और धर्म के नाम पर जनता में जहर बोता है और फिर अपनी सुरक्षा में सैकड़ों जवान लिए घूमता है कि कहीं कोई उनको मार ना दे, इस भीड़ में इंदिरा जी एक मिसाल थीं, आदर्श थीं. और अपने आदर्श के लिए उन्होंने अपनी जान तक की परवाह नहीं की.
आज मैं ये कहने का साहस कर रहा हूं कि स्वर्गीय इंदिरा गांधी की हत्या नहीं की गई थी. उन्होंने आत्महत्या की थी, देश की एकता और अखंडता के लिए. ये कोई सोच भी सकता है भला कि प्रधानमंत्री को उन्हीं की सुरक्षा में तैनात जवान 28-30 गोली मार के उनके जिस्म को छलनी-छलनी कर सकते हैं??!! वो भी तब जब सैकड़ों सिक्युरिटी लेयर से गुजरने के बाद इन जवानों को प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति की सुरक्षा में लगाया जाता है. इंदिरा गांधी के लिए बहुत आसान था कि ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद वो सिख सुरक्षाकर्मियों को अपनी सिक्योरिटी से हटा देतीं, वो भी तब जब इस बाबत खुफिया रिपोर्ट उनकी टेबल पर थी, पर उन्होंने ऐसा नहीं किया.
आगे की कहानी तो और दर्दनाक है. खून से लथपथ प्रधानमंत्री को एम्स ले जाया जा रहा है और उनका सिर बहू सोनिया गांधी की गोद में है. सोनिया का पूरा गाउन इंदिरा के खून से सनकर लाल हो चुका है. उस दृश्य की जी रही सोनिया के दिलोदिमाग पर क्या असर पड़ा होगा, ये बस अंदाजा ही लगाया जा सकता है. फिर जब मृतप्राय इंदिरा जी को लेकर कार एम्स पहुंची तो पता चला कि देश के प्रधानमंत्री को गोलियों से छलनी करने की खबर किसी ने एम्स को नहीं दी ताकि स्टैंड बाई में उनके लिए डॉक्टर और इमरजेंसी सेवाएं खड़ी रहतीं. सिर्फ गेट खुलवाने में 3-4 मिनट का कीमती समय बर्बाद हो गया. इतनी सादगी, इतना समर्पण !!! वो देश की सबसे ताकतवर और लोकप्रिय प्रधानमंत्री थीं, जिसने पाकिस्तान के दो टुकड़े कर दिए. कोई मजाक नहीं था. और जब वो जिंदगी मौत से जूझ रही थीं तो देश की राजधानी में उन तक इमरजेंसी मेडिकल सर्विस भी वक्त तक नहीं पहुंचीं, बहुत अफसोसनाक है ये सब कुछ.
और इस हृदय विदारक हादसे से गुजरने के बाद सोनिया गांधी ने अपने पति की लाश के टुकड़े देखे होंगे तो उन पे क्या एहसास गुजरा होगा, ये क्लपनातीत है. घर के दोनों बच्चे प्रियंका और राहुल ने ये सब अपनी आंखों के सामने घटते देखा और इनकी स्मृतियां उनके मस्तिष्क पर कैसी उभरी होंगी, किसी को नहीं मालूम. ठीक उसी तरह जब आज दुनिया को मालूम चल रहा है कि राहुल गांधी ने चुपचाप निर्भया के भाई को पायलट बनाने में मदद की और उनके पिता की टेम्परेरी नौकरी पक्की करवाई पर सख्त हिदायत दी कि इसका ढिंढोरा ना पीटा जाए. ये संस्कार हैं, जो इन्हें परिवार से मिले हैं.
सो मेरे लिए आज के बाद राहुल गांधी ना तो पप्पू हैं और ना बाबा. वो एक मैच्योर युवा हैं, जिनको पता है कि देश के हालात आज क्या हैं और अब वो इसे अपनी अगुुवाई में हैंडल करने के आतुर दिखते हैं. परिवार में दो-दो क्रूर हत्याएं देखने के बाद सत्ता संभालने की जो हिचक सोनिया-राहुल में दिखती थी, वो अब मुझे नहीं दिखती. सत्ता के शीर्ष पर होकर दो-दो जानें देश के लिए कुर्बान करने की ये मिसाल मुझे दुनिया में कहीं नहीं दिखतीं. अगर राहुल में कोई कमी है तो वो धीरे-धीरे सीख जाएंगे पर अब मुझे इस बात में कोई संदेह नहीं कि राहुल को एक बार देश की कमान सौंपकर आजमाने का वक्त आ गया है.
सो लोकतंत्र के यज्ञ में देश की जनता राहुल को लिए आहुति देगी या नहीं, ये तो उसे तय करन है

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