आजादी के तराने (जप्त शुदा )-३ विश्व नाथ शर्मा ..१९३०
मित्रो आपने विजयी विश्व तिरंगा प्यारा पढ़ा था अब आज पदिये एक ऐसा तराना जो मुर्दे को भी खड़ा करदेता था ,जरा इसकी भाषा पर भी ध्यान दीजिये गा यही हमारे स्वतंत्रता संग्राम की भाषा थी .यही उर्दू है जो देवनागरी में लिखी जाती थी ....
कौम के खादिम की है जागीर वन्दे मातरम
मुल्क के है वास्ते अकसीर वन्दे मातरम /
जालिमो को है उधर बन्दूक अपनी पर गुरुर
है इधर हम बे कसों का तीर बन्दे मातरम /
कत्ल कर हमको न कातिल तू हमारे खून से
तेग पर हो जायेगा तहरीर वन्दे मातरम /
जुल्म से गर कर दिया खामोश मुझको देखना
बोल उट्ठे गी मेरी तस्बीर वन्दे मातरम /
सरजमी इंग्लैण्ड की हिल जाएगी दो रोज में
गर दिखायेगी कभी तासीर वन्दे मातरम /
संतरी भी मुज्तारिब है जब की हर झंकार से
बोलती है जेल में जंजीर वन्दे मातरम /जय हिंद .वन्दे मातरम
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