पानी बीच बताशा भैया तन का यही तमाशा है
क्या ले आया क्या ले जायगा क्या बैठा पछताता है
मुट्ठी बांधे आया बन्दे हाथ पसारे जाता है
किसकी नारी कौन पुरुष है कहाँ से लगता नाता है
बड़े बिहाल खबर न तन की बिरही लहर बुझाता है
एक दिन जीना, दस दिन जीना ,जीना बरस पचासा है
अंत काल बीसा सो जीना फिर मरने की आशा है
ज्यों ज्यों पांव धरो धरती मेंत्यों त्यों यम नियराता है
कहै कबीर सुनो भाई संतो गाफिल गोता खाता है
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