Wednesday, 30 November 2011
महाभारत काल में है हम
भारतीय समाज के नियंता महाभारत काल में पहुँच गए है जहाँ सबके सब आधे- अधूरे , पाखंडी ,अपनी .अपनी कुंठा में गले तक डूबे भीतर से घाघ ,बुनावट से कांईयां
सत्ता लोलुप, सोच से बीमार हैं /इनका कमान प्रोग्राम है /अपने दंभ में अंधे इनको देश कंही दिखता ही नहीं,हमने चमगादड़ को देखा हैउलता लटके उसी मुंह से खाते उसी मुंह से उगलते ,हने सियार को रंग बदलते देखा है ,पर बात बदलने और चरित्र की ब्याख्या करने में हमारे नियंता सभी को मत दे रहे है /सत्याव्तार हजारे ,रामदेव और बिपक्ष तीनो ने रंग बदलने का मुहाबरा छोटा कर दिया ,थोड़े से पांडव एक दो कृष्ण नहीं पूरी
दुनिया मिलकर /कुछ नहीं कर सकते ,देश को हलाल कर दिया ,अब तो भगवन ही मालिक है हजारे खुद को उनसे भी बड़ा कहेगा तीन बडबोले नाटक के साथ
Monday, 28 November 2011
Role of college /universiti teachers
*conserned with facilitating the range of online activities that are supportive of student learning
*works with learners on an individual basis offering advice /counselling to help them get the most out of their engagement with the course .
*Concerned with providing grades feed back and validation of learners work.
*Concerned with engagement in production of new knowledge of relevance to the content areas being taught
*Conserned directly with facilitating the learner growing understanding of course content.
*making or helping to make technological choices that improve the environment available to learners .
*Concerned with designing worthwhile online learning tasks
*Concerned with issues of learner registration securty record keeping and so on ..
competences required for teachers...to be contd...
*works with learners on an individual basis offering advice /counselling to help them get the most out of their engagement with the course .
*Concerned with providing grades feed back and validation of learners work.
*Concerned with engagement in production of new knowledge of relevance to the content areas being taught
*Conserned directly with facilitating the learner growing understanding of course content.
*making or helping to make technological choices that improve the environment available to learners .
*Concerned with designing worthwhile online learning tasks
*Concerned with issues of learner registration securty record keeping and so on ..
competences required for teachers...to be contd...
अगिन कथा यह पेट की
अगिन कथा यह पेट की
माथा पीटे जनम निहाई
हवा न आये रास
मन के भरम हथौड़ा कूटे
नव बिहान की आस /
... खाल धौंकनी साँसे भरती
चटके चिनगी भाग
कोयला जले लोहार भट्ठी में
लोहा तापे आग/
सूखी आँखों उमर घोंसला
लटका जैसे लत्ता
खुरपी छीले करम कमाई
प्यास बढ़ी अलबत्ता /
पोतना लीपे भूख पेट में
संडसी फोड़े आँख
राख़ चढ़ी अंगारों ऊपर
चिमटा पलटें भाग /
दोनों हांथों थाम्हे लोढ़ा
कूटें हल्दी गांठ
जस जस हल्दी पिसे सिलौटी
सरसों फूले बाट /See More
माथा पीटे जनम निहाई
हवा न आये रास
मन के भरम हथौड़ा कूटे
नव बिहान की आस /
... खाल धौंकनी साँसे भरती
चटके चिनगी भाग
कोयला जले लोहार भट्ठी में
लोहा तापे आग/
सूखी आँखों उमर घोंसला
लटका जैसे लत्ता
खुरपी छीले करम कमाई
प्यास बढ़ी अलबत्ता /
पोतना लीपे भूख पेट में
संडसी फोड़े आँख
राख़ चढ़ी अंगारों ऊपर
चिमटा पलटें भाग /
दोनों हांथों थाम्हे लोढ़ा
कूटें हल्दी गांठ
जस जस हल्दी पिसे सिलौटी
सरसों फूले बाट /See More
TheRoal of university/college teachers
The Era Globalization has brought out changes at all levels viz primary to tertlary lavelof education .The reality in
the most of the institution is that one can find large lecture rooms centre-staged with discipline experts ,continue to transmit theoretical knowledge in big -sized chunks for passive learners to receive and consume.collaboration is not encouraged or required.The approach taken by teachers today is simply a result of the way they were taught.Typically university education has been a place to learn theoretical knowledge devoid of context.The teachers transmit the facts and skills that they are required to absorb and regurgitate on exams.Text books and lecture notes are the main resources for study ,with the practice of retention and transfer of knowledge was assumed but rarely assessed.In this era of globalization the teachers have to change their roles to support the learning needs of students at higher level.The online delivery of units and courses has now become central to institutions strategic planning Internet has become a top- down ,policy- driven push rather than a bottom-diffusion of good educational innovation and practice.
the most of the institution is that one can find large lecture rooms centre-staged with discipline experts ,continue to transmit theoretical knowledge in big -sized chunks for passive learners to receive and consume.collaboration is not encouraged or required.The approach taken by teachers today is simply a result of the way they were taught.Typically university education has been a place to learn theoretical knowledge devoid of context.The teachers transmit the facts and skills that they are required to absorb and regurgitate on exams.Text books and lecture notes are the main resources for study ,with the practice of retention and transfer of knowledge was assumed but rarely assessed.In this era of globalization the teachers have to change their roles to support the learning needs of students at higher level.The online delivery of units and courses has now become central to institutions strategic planning Internet has become a top- down ,policy- driven push rather than a bottom-diffusion of good educational innovation and practice.
Sunday, 27 November 2011
जो है उससे बेहतर चाहिए ;सन्दर्भ स्त्री समाज
जो है उससे बेहतर चाहिए ;सन्दर्भ स्त्री समाज
आधुनिक औद्दोगिक युग ने हमें विचार धाराएँ दीं,विश्वयुद्ध भी दिए , हमारी ब्यवस्था जागरूक होकर सोचने लगी और मनुष्य विरोधी विचार धारा का विरोध होने लगा/ ,आज हम उत्तर -आधुनिक समाज कहला रहे हैं, गरीब, विकासशील देश इंडस्ट्री की स्टेज पर हैं ,विकसित इलेक्ट्रानिक क्रांति से गुजर कर कन्स्मंसा के रहस्यों को खोलते हुए एक बनावटी ग्लोबलाईजेसन की बात कर रहे हैं ,विज्ञान और टेक्नालोजी के सफलतम चरम पर एक एंटीक्लाइमेक्स सवाल तो पूरी बैस्विक मानवीय परिस्थितियां उठा रहीं हैं कि ग्लोबलिजेसन दरअसल किसका है,गरीबी का, अन्याय का, या युद्ध का/ सारे तथ्य एक सच्चाई तो बयान कर ही रहे हैं कि रंग, जाति, नस्ल और स्त्री समुदाय को लेकर हम अभी भी कबीलाई ही हैं, और आधुनिकता जो कि खुद ही एक विचार है,उसकी संस्कृति पैदा नहीं हुई ,वह परीक्षण के दौर से गुजर रहा है/हमारा सम्पूर्ण
विकास, विनाश कि शक्ल में सामने खड़ा है / भारत जैसे विकाश- शील और बहुवच- नीय समाज के सन्दर्भ में यह सच्चाई और भी खतरनाक है ,जाति, धर्म, सप्पम्प्र्दय के झगड़ों पर न्यायपालिका हस्तक्षेप करती है किन्तु स्त्रीयों के शोषण , दोहन, प्रतारणा के प्रकरण हमारी रूढिगत मानसिकता के कारण अँधेरे में ही हैं / इस बीच स्त्री जादा उच्सृन्खल भी हुई है ,मिडिया ओरिएनटेड इस दौर में मिलने वाली खबरें बर्बरता से होड़ ले रहीं हैं /क्या करना होगा,
आधुनिक औद्दोगिक युग ने हमें विचार धाराएँ दीं,विश्वयुद्ध भी दिए , हमारी ब्यवस्था जागरूक होकर सोचने लगी और मनुष्य विरोधी विचार धारा का विरोध होने लगा/ ,आज हम उत्तर -आधुनिक समाज कहला रहे हैं, गरीब, विकासशील देश इंडस्ट्री की स्टेज पर हैं ,विकसित इलेक्ट्रानिक क्रांति से गुजर कर कन्स्मंसा के रहस्यों को खोलते हुए एक बनावटी ग्लोबलाईजेसन की बात कर रहे हैं ,विज्ञान और टेक्नालोजी के सफलतम चरम पर एक एंटीक्लाइमेक्स सवाल तो पूरी बैस्विक मानवीय परिस्थितियां उठा रहीं हैं कि ग्लोबलिजेसन दरअसल किसका है,गरीबी का, अन्याय का, या युद्ध का/ सारे तथ्य एक सच्चाई तो बयान कर ही रहे हैं कि रंग, जाति, नस्ल और स्त्री समुदाय को लेकर हम अभी भी कबीलाई ही हैं, और आधुनिकता जो कि खुद ही एक विचार है,उसकी संस्कृति पैदा नहीं हुई ,वह परीक्षण के दौर से गुजर रहा है/हमारा सम्पूर्ण
विकास, विनाश कि शक्ल में सामने खड़ा है / भारत जैसे विकाश- शील और बहुवच- नीय समाज के सन्दर्भ में यह सच्चाई और भी खतरनाक है ,जाति, धर्म, सप्पम्प्र्दय के झगड़ों पर न्यायपालिका हस्तक्षेप करती है किन्तु स्त्रीयों के शोषण , दोहन, प्रतारणा के प्रकरण हमारी रूढिगत मानसिकता के कारण अँधेरे में ही हैं / इस बीच स्त्री जादा उच्सृन्खल भी हुई है ,मिडिया ओरिएनटेड इस दौर में मिलने वाली खबरें बर्बरता से होड़ ले रहीं हैं /क्या करना होगा,
Saturday, 26 November 2011
हिंदी की जगह अंग्रजी का फैलाव एवं प्रसार प्रचार का तर्क शाश्त
हिंदी की जगह अंग्रजी का फैलाव एवं प्रसार प्रचार का तर्क शाश्त्र
इस बहंस की जड़ आज की राजनीति या समय में ही नहीं आज की जरूरत में भी है अंग्रेजी कुछ वर्षों में बहुत तेजी से फैली है /
कुछ राज्यों ने इसे प्राथमिक स्तर पर अनिवार्य भी कर दिया है / यह सब उदारी करन की नीति का परिणाम है /पश्चिम का मॉल
,पश्चिम की पूँजी,पश्चिम की संस्कृति जब देश में आयेगी तो पश्चिम की भाषा भी आएगी/अंग्रेजी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की जरुरत है /यह ग्लोबलाईजेसन की भाषा है , इसी से देश की नई पीढ़ी में आधुनिकता आ रही है ,भारत जैसे विशाल देश में उन्हें अपना मॉल बेंचना है
तो नई पीढ़ी को अंग्रेजियत के रंग में रंगना उनकी जरूरत है और वे ऐसा कर रहे हैं /हमारी सर्कार ही नहीं हम सब उनके आगे नतमस्तक हैं /कालमार्क्स ने कहा था जो वर्ग समाज का सत्ताधारी भोतिक शक्ति होता है वही उसकी बौद्धिक शक्ति भी होता है /ब्यवस्था के हाथ में ही सरे संसाधन होते है मिडिया पर भी उसी का नियंत्रण होता है /वह हमारी रुचियाँ तक बदल देता है /आज अंग्रेजी पढने से नौकरी मिलती है
भारतीय भाषाएँ पढने से नौकरी मिलने लगे तो लोग उसी की मांग करने लगेंगे /गाँधी जी ने कहा था क़ि...अगर मेरे हांथों में ताना सही सत्ता हो तो मैआज से ही विदेशी भाषा में दी जाने वाली शिक्षा बंद कर दूं /मै पाठ्य पुस्तकों क़ी तयारी का इंतजार नहीं करूंगा वे तो माध्यम के पीछे चलीं आएँगी /इस बुरे का तुरंत इलाज होना चाहिए.../अंग्रजी शोषक -शासक वर्ग तथा ब्यूरोक्रेट्स क़ी भाषा है ,भारतीय भाष्य जन भाषा हैं/आम जनता को हक तभी मिलेगा जबुसकी भाषा में प्तियोगी परीक्षा आयोजित होंगी /
इस बहंस की जड़ आज की राजनीति या समय में ही नहीं आज की जरूरत में भी है अंग्रेजी कुछ वर्षों में बहुत तेजी से फैली है /
कुछ राज्यों ने इसे प्राथमिक स्तर पर अनिवार्य भी कर दिया है / यह सब उदारी करन की नीति का परिणाम है /पश्चिम का मॉल
,पश्चिम की पूँजी,पश्चिम की संस्कृति जब देश में आयेगी तो पश्चिम की भाषा भी आएगी/अंग्रेजी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की जरुरत है /यह ग्लोबलाईजेसन की भाषा है , इसी से देश की नई पीढ़ी में आधुनिकता आ रही है ,भारत जैसे विशाल देश में उन्हें अपना मॉल बेंचना है
तो नई पीढ़ी को अंग्रेजियत के रंग में रंगना उनकी जरूरत है और वे ऐसा कर रहे हैं /हमारी सर्कार ही नहीं हम सब उनके आगे नतमस्तक हैं /कालमार्क्स ने कहा था जो वर्ग समाज का सत्ताधारी भोतिक शक्ति होता है वही उसकी बौद्धिक शक्ति भी होता है /ब्यवस्था के हाथ में ही सरे संसाधन होते है मिडिया पर भी उसी का नियंत्रण होता है /वह हमारी रुचियाँ तक बदल देता है /आज अंग्रेजी पढने से नौकरी मिलती है
भारतीय भाषाएँ पढने से नौकरी मिलने लगे तो लोग उसी की मांग करने लगेंगे /गाँधी जी ने कहा था क़ि...अगर मेरे हांथों में ताना सही सत्ता हो तो मैआज से ही विदेशी भाषा में दी जाने वाली शिक्षा बंद कर दूं /मै पाठ्य पुस्तकों क़ी तयारी का इंतजार नहीं करूंगा वे तो माध्यम के पीछे चलीं आएँगी /इस बुरे का तुरंत इलाज होना चाहिए.../अंग्रजी शोषक -शासक वर्ग तथा ब्यूरोक्रेट्स क़ी भाषा है ,भारतीय भाष्य जन भाषा हैं/आम जनता को हक तभी मिलेगा जबुसकी भाषा में प्तियोगी परीक्षा आयोजित होंगी /
हिंदी की जगह अंग्रजी का फैलाव एवं प्रसार प्रचार का तर्क शाश्त
हिंदी की जगह अंग्रजी का फैलाव एवं प्रसार प्रचार का तर्क शाश्त्र
इस बहंस की जड़ आज की राजनीति या समय में ही नहीं आज की जरूरत में भी है अंग्रेजी कुछ वर्षों में बहुत तेजी से फैली है /
कुछ राज्यों ने इसे प्राथमिक स्तर पर अनिवार्य भी कर दिया है / यह सब उदारी करन की नीति का परिणाम है /पश्चिम का मॉल
,पश्चिम की पूँजी,पश्चिम की संस्कृति जब देश में आयेगी तो पश्चिम की भाषा भी आएगी/अंग्रेजी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की जरुरत है /यह ग्लोबलाईजेसन की भाषा है , इसी से देश की नई पीढ़ी में आधुनिकता आ रही है ,भारत जैसे विशाल देश में उन्हें अपना मॉल बेंचना है
तो नई पीढ़ी को अंग्रेजियत के रंग में रंगना उनकी जरूरत है और वे ऐसा कर रहे हैं /हमारी सर्कार ही नहीं हम सब उनके आगे नतमस्तक हैं /कालमार्क्स ने कहा था जो वर्ग समाज का सत्ताधारी भोतिक शक्ति होता है वही उसकी बौद्धिक शक्ति भी होता है /ब्यवस्था के हाथ में ही सरे संसाधन होते है मिडिया पर भी उसी का नियंत्रण होता है /वह हमारी रुचियाँ तक बदल देता है /आज अंग्रेजी पढने से नौकरी मिलती है
भारतीय भाषाएँ पढने से नौकरी मिलने लगे तो लोग उसी की मांग करने लगेंगे /गाँधी जी ने कहा था क़ि...अगर मेरे हांथों में ताना सही सत्ता हो तो मैआज से ही विदेशी भाषा में दी जाने वाली शिक्षा बंद कर दूं /मै पाठ्य पुस्तकों क़ी तयारी का इंतजार नहीं करूंगा वे तो माध्यम के पीछे चलीं आएँगी /इस बुरे का तुरंत इलाज होना चाहिए.../अंग्रजी शोषक -शासक वर्ग तथा ब्यूरोक्रेट्स क़ी भाषा है ,भारतीय भाष्य जन भाषा हैं/आम जनता को हक तभी मिलेगा जबुसकी भाषा में प्तियोगी परीक्षा आयोजित होंगी /
इस बहंस की जड़ आज की राजनीति या समय में ही नहीं आज की जरूरत में भी है अंग्रेजी कुछ वर्षों में बहुत तेजी से फैली है /
कुछ राज्यों ने इसे प्राथमिक स्तर पर अनिवार्य भी कर दिया है / यह सब उदारी करन की नीति का परिणाम है /पश्चिम का मॉल
,पश्चिम की पूँजी,पश्चिम की संस्कृति जब देश में आयेगी तो पश्चिम की भाषा भी आएगी/अंग्रेजी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की जरुरत है /यह ग्लोबलाईजेसन की भाषा है , इसी से देश की नई पीढ़ी में आधुनिकता आ रही है ,भारत जैसे विशाल देश में उन्हें अपना मॉल बेंचना है
तो नई पीढ़ी को अंग्रेजियत के रंग में रंगना उनकी जरूरत है और वे ऐसा कर रहे हैं /हमारी सर्कार ही नहीं हम सब उनके आगे नतमस्तक हैं /कालमार्क्स ने कहा था जो वर्ग समाज का सत्ताधारी भोतिक शक्ति होता है वही उसकी बौद्धिक शक्ति भी होता है /ब्यवस्था के हाथ में ही सरे संसाधन होते है मिडिया पर भी उसी का नियंत्रण होता है /वह हमारी रुचियाँ तक बदल देता है /आज अंग्रेजी पढने से नौकरी मिलती है
भारतीय भाषाएँ पढने से नौकरी मिलने लगे तो लोग उसी की मांग करने लगेंगे /गाँधी जी ने कहा था क़ि...अगर मेरे हांथों में ताना सही सत्ता हो तो मैआज से ही विदेशी भाषा में दी जाने वाली शिक्षा बंद कर दूं /मै पाठ्य पुस्तकों क़ी तयारी का इंतजार नहीं करूंगा वे तो माध्यम के पीछे चलीं आएँगी /इस बुरे का तुरंत इलाज होना चाहिए.../अंग्रजी शोषक -शासक वर्ग तथा ब्यूरोक्रेट्स क़ी भाषा है ,भारतीय भाष्य जन भाषा हैं/आम जनता को हक तभी मिलेगा जबुसकी भाषा में प्तियोगी परीक्षा आयोजित होंगी /
Thursday, 24 November 2011
kauaa mama
कौवा मामा आम गिरावो हम तुम दोनों खायेंगे
चलो बजार लायेंगे दुल्हन कोने में बैठाएंगे /
कौवा बैठा पेड़ पर फुलवा पहुंची दौड़ कर
बड़ी चाव से खड़ी निहारे देवता पुरखा सभी पुकारे
मनोभाव की सरबस मारआँखों से टपकती लार
... हाथ जोड़ कर बोली फुलवा कौवा मामा आम गिरावो
हम तुम दोनों खायेंगे चलो बजार लायेंगे दुल्हन
कोने में बैठाएंगे /
पना अमावट सपन भये सब कोइलासी नही मिलती
गिरी कटुहिली बदा न होती मुनियाँ दिन भर रोती
मंहगा महंगा आम बिक रहा कैसे हम चख पायें
दस बीघा का सोन बगीचा एक आम नहीं खाए
कौवा मामा आम गिरावो हम तुम दोनों खायेंगे
चलो बजार लायेंगे दुलहन कोने में बैठाएंगे
एक कटुहिली चोंच दबाये कौवा था कुछ ऐंठा
बड़े शान से निरख रहा था एक दल पर बैठा
सहज भाव से बोली फुलवा मामा कुछ तो बोलो
टुकुर टुकुर क्या देख रहे हो अपना मुह तो खोलो
अपनी इस गुमसुम चुप्पी काराज कोई बतलाओ
तुम्हरी बोली बड़ी मधुर है कोई गीत सुनाओ
कांव कांव कर बोला कौवा आम गिरा धरती पर
झट से लेकर भागी फलवा पैर धरे निज सर पर
भाग रही थी ऐसे जैसे सरबस मिला सहज था
थी प्रसन्न कुछ ऐसे जैसे जीवन सफल हुआ था
जोर जोर चिल्लाई फुलवा कौवा मामा आम गिरावो
हम तुम दोनों खायेंगे चलो बजार लायेंगे दुलहन ............../See More
चलो बजार लायेंगे दुल्हन कोने में बैठाएंगे /
कौवा बैठा पेड़ पर फुलवा पहुंची दौड़ कर
बड़ी चाव से खड़ी निहारे देवता पुरखा सभी पुकारे
मनोभाव की सरबस मारआँखों से टपकती लार
... हाथ जोड़ कर बोली फुलवा कौवा मामा आम गिरावो
हम तुम दोनों खायेंगे चलो बजार लायेंगे दुल्हन
कोने में बैठाएंगे /
पना अमावट सपन भये सब कोइलासी नही मिलती
गिरी कटुहिली बदा न होती मुनियाँ दिन भर रोती
मंहगा महंगा आम बिक रहा कैसे हम चख पायें
दस बीघा का सोन बगीचा एक आम नहीं खाए
कौवा मामा आम गिरावो हम तुम दोनों खायेंगे
चलो बजार लायेंगे दुलहन कोने में बैठाएंगे
एक कटुहिली चोंच दबाये कौवा था कुछ ऐंठा
बड़े शान से निरख रहा था एक दल पर बैठा
सहज भाव से बोली फुलवा मामा कुछ तो बोलो
टुकुर टुकुर क्या देख रहे हो अपना मुह तो खोलो
अपनी इस गुमसुम चुप्पी काराज कोई बतलाओ
तुम्हरी बोली बड़ी मधुर है कोई गीत सुनाओ
कांव कांव कर बोला कौवा आम गिरा धरती पर
झट से लेकर भागी फलवा पैर धरे निज सर पर
भाग रही थी ऐसे जैसे सरबस मिला सहज था
थी प्रसन्न कुछ ऐसे जैसे जीवन सफल हुआ था
जोर जोर चिल्लाई फुलवा कौवा मामा आम गिरावो
हम तुम दोनों खायेंगे चलो बजार लायेंगे दुलहन ............../See More
मन दर्पण गया टूट /
कोल्हू घानी सरसों पानी
कहता सब की राम कहानी
करलो मन मजबूत /
स्नेह घरोंदा हरपल ढहता
इक्षा चना भर में भुन्जता
करम पछोरे सूप /
रद्दा रद्दाजमा अँधेरा
उजड़ा कैसे रैन बसेरा
आशा गूलर फूल/
बीता बीता धूप सरकती
संशय मकड़ी जाला बुनती
कंही हो गयी चूक /
मद्धिम मद्धिम दाह सुलगता
घर के भीतर का घर ढहता
कंहाँ हो गई चूक /
बरसों की यह कठिन तपस्या
प्यार समर्पण बनी समस्या
कैसे हो गई चूक /
कैसे कोई खुशियाँ बांटें
करनी भरनी काटें छांटे
थक कर हो गया चूर/
इक बंजारा ब्यथित खड़ा है
खेल नियति का जटिल बड़ा है
दुःख का तक्षक नित प्रति डंसता
ओंठ न कोई ऐसा दिखता
जहर जो लेता चूस /
धीर पुरनिया कटता लुटता
अपने आँगन रोज घिसटता
हिल गई उसकी चूल /
पत्ता पत्ता पीला पड़ गया
अंजुरी चेहरा थाम्हे रह गया
मन दर्पण गया टूट /
कहता सब की राम कहानी
करलो मन मजबूत /
स्नेह घरोंदा हरपल ढहता
इक्षा चना भर में भुन्जता
करम पछोरे सूप /
रद्दा रद्दाजमा अँधेरा
उजड़ा कैसे रैन बसेरा
आशा गूलर फूल/
बीता बीता धूप सरकती
संशय मकड़ी जाला बुनती
कंही हो गयी चूक /
मद्धिम मद्धिम दाह सुलगता
घर के भीतर का घर ढहता
कंहाँ हो गई चूक /
बरसों की यह कठिन तपस्या
प्यार समर्पण बनी समस्या
कैसे हो गई चूक /
कैसे कोई खुशियाँ बांटें
करनी भरनी काटें छांटे
थक कर हो गया चूर/
इक बंजारा ब्यथित खड़ा है
खेल नियति का जटिल बड़ा है
दुःख का तक्षक नित प्रति डंसता
ओंठ न कोई ऐसा दिखता
जहर जो लेता चूस /
धीर पुरनिया कटता लुटता
अपने आँगन रोज घिसटता
हिल गई उसकी चूल /
पत्ता पत्ता पीला पड़ गया
अंजुरी चेहरा थाम्हे रह गया
मन दर्पण गया टूट /
Wednesday, 23 November 2011
ह डरा हुआ है इन दिनों
एक कद्दावर पेड़ है वह
और अपने काठ से डरा हुआ है
वह एक समुद्र है
उसे पानी से बेहद डर लगता है इन दिनों.
ऊँचाई से डरा हुआ
एक पहाड़ है वो.
जो चीज़े जितनी सरल दिखती थीं
शुरू में उसे
वही उसकी
सबसे मुश्किल पहेलियां हैं अब
जैसे नींद जैसे चिड़ियां
जैसे स्त्रियां जैसे प्रेम जैसे हँसी.
जिसकी धार में वह उतर गया था
बिना कुछ पूछे
उस नदी को ही
अब नहीं था उस पर भरोसा.
जिनका गहना था वो
वही अब परखना चाह रहे थे उसका खरापन
नये सिरे से.
जिन्होंने काजल की तरह आँजा था बरसों उसे
उन्हें अब उसके
काले रंग पर था एतराज़.
जिनका सपना था वह
एक कद्दावर पेड़ है वह
और अपने काठ से डरा हुआ है
वह एक समुद्र है
उसे पानी से बेहद डर लगता है इन दिनों.
ऊँचाई से डरा हुआ
एक पहाड़ है वो.
जो चीज़े जितनी सरल दिखती थीं
शुरू में उसे
वही उसकी
सबसे मुश्किल पहेलियां हैं अब
जैसे नींद जैसे चिड़ियां
जैसे स्त्रियां जैसे प्रेम जैसे हँसी.
जिसकी धार में वह उतर गया था
बिना कुछ पूछे
उस नदी को ही
अब नहीं था उस पर भरोसा.
जिनका गहना था वो
वही अब परखना चाह रहे थे उसका खरापन
नये सिरे से.
जिन्होंने काजल की तरह आँजा था बरसों उसे
उन्हें अब उसके
काले रंग पर था एतराज़.
जिनका सपना था वह
मै अपनी ही परछाहीं पर उकुडू हूँ परछाहीं की तरह
मै अपनी ही परछाहीं पर उकुडू हूँ परछाहीं की तरह
उतना बहर नहीं हूँ बाहर जितना अपने बहार है
उतना ही खली हूँ बाहर जितना भीतर खली है
अंधकार में फैलते हुए अंधकार का फैलाव है
उसी में फैलता हुआ मै अपनी परछाहीं पर झुकी
अपनी पीठ पर टिका घुटनों में सर दिए
समझना चाहता हूँ प्रयोजन अपने होने का
मेरा सारा अस्तित्व मेरे ऊपर जहर रहा है /
एक सपना टूट कर विक्षत जीवन सा विखरा है
उसी मे से बिन कर इक्षाएं ,अपनी फटी जेबों में ठूंस कर
जनाचाहता हूँ हर दिशा में--
जाने की हर दिशा बंद है ,हर बंद दिशा का दरवाजा मै हूँ
अकेले मै हूँ अपने सिवाय ,यह मै कौन हूँ जो मै नहीं हूँ /
अपने ही बारे में मै गड़बड़ा गया हूँ /
उतना बहर नहीं हूँ बाहर जितना अपने बहार है
उतना ही खली हूँ बाहर जितना भीतर खली है
अंधकार में फैलते हुए अंधकार का फैलाव है
उसी में फैलता हुआ मै अपनी परछाहीं पर झुकी
अपनी पीठ पर टिका घुटनों में सर दिए
समझना चाहता हूँ प्रयोजन अपने होने का
मेरा सारा अस्तित्व मेरे ऊपर जहर रहा है /
एक सपना टूट कर विक्षत जीवन सा विखरा है
उसी मे से बिन कर इक्षाएं ,अपनी फटी जेबों में ठूंस कर
जनाचाहता हूँ हर दिशा में--
जाने की हर दिशा बंद है ,हर बंद दिशा का दरवाजा मै हूँ
अकेले मै हूँ अपने सिवाय ,यह मै कौन हूँ जो मै नहीं हूँ /
अपने ही बारे में मै गड़बड़ा गया हूँ /
Tuesday, 22 November 2011
मै अपने गाँव लौटूंगा
मै अपने गाँव लौटूंगा
झरवेरियों और बंसवारियों में उलझे
पंखो को बटोरते ,वंही कंही छूट गया बचपन
समेट लूँगा ,पहन लूँगा मोर पंख //
कोरी आँखों के सपने बिखरे होंगे ,वहीँ
उड़ रही होंगी तितलियाँ
चुन लूँगा, बटोर लूँगा बीर बहूटियाँ/
मेरे चले आने के बाद
खलिहान में पुआलों की खरही के नीचे
छिपा कर रखे मेरे कंचे
सुबक रहे होंगे/भर लूँगा अपनी फटी जेबों में /
बांसों के झुरमुट में फंसी ,कहीं पड़ी होगी
मेरी कपडे की गेंद ,मेरे लौटने की प्रतीक्षा में
आँखे बिछाए बाट विसूरते ,तर तर हो रही होगी /
मेरी सिंकियाई धमनियां वहीं कहीं
गहूं के गांजों के बीच ,फिर से पा लेंगी
अपने लहू का आवेग /
मंदिर के बावली के किनारे
सिमटते चरागाह से सटी अमराई में
आकाश से उतर करसपनो जैसे सुग्गे
मुझे खोज रहे होंगे / धुंध से घिरे गन्ना और मकई के
लहलहाते खेतों के टेढ़े मेढ़े मेड़ों के मुजौटों के बीच
सावन की तेज बंवछारों में गदराये सांवाँ के बन्दर पुच्छी
बालों से झरते ,अक्षरों को समेट कर
अपने भीतर का स्वर मै पा लूँगा
मै अपने गाँव लौटूंगा/
झरवेरियों और बंसवारियों में उलझे
पंखो को बटोरते ,वंही कंही छूट गया बचपन
समेट लूँगा ,पहन लूँगा मोर पंख //
कोरी आँखों के सपने बिखरे होंगे ,वहीँ
उड़ रही होंगी तितलियाँ
चुन लूँगा, बटोर लूँगा बीर बहूटियाँ/
मेरे चले आने के बाद
खलिहान में पुआलों की खरही के नीचे
छिपा कर रखे मेरे कंचे
सुबक रहे होंगे/भर लूँगा अपनी फटी जेबों में /
बांसों के झुरमुट में फंसी ,कहीं पड़ी होगी
मेरी कपडे की गेंद ,मेरे लौटने की प्रतीक्षा में
आँखे बिछाए बाट विसूरते ,तर तर हो रही होगी /
मेरी सिंकियाई धमनियां वहीं कहीं
गहूं के गांजों के बीच ,फिर से पा लेंगी
अपने लहू का आवेग /
मंदिर के बावली के किनारे
सिमटते चरागाह से सटी अमराई में
आकाश से उतर करसपनो जैसे सुग्गे
मुझे खोज रहे होंगे / धुंध से घिरे गन्ना और मकई के
लहलहाते खेतों के टेढ़े मेढ़े मेड़ों के मुजौटों के बीच
सावन की तेज बंवछारों में गदराये सांवाँ के बन्दर पुच्छी
बालों से झरते ,अक्षरों को समेट कर
अपने भीतर का स्वर मै पा लूँगा
मै अपने गाँव लौटूंगा/
बादल
बादल
अम्मा जरा देख तो ऊपर, चले आ रहे हैं बादल/
भांति भांति के रूप सजाये, धौंरे कजरारे बदल /
हर किसान की मधुर कल्पना ,पपीहे की पुकार बदल /
दौड़ लगाते हैं आकाश में ,चढ़े हवा के रथ बादल /
पुरवैया पर झूला झूलें , शोर मचाते ये बादल/
धूम धड़का कड़क तड़क कर ,हमे डरते ये बादल/
हरी हो रही सूखी धरती, खुशियों की बहार बादल/
नन्ही नन्ही जल की बूंदे, लेकर आये ये बादल /
ताल तलैया सब भर जाये ,जम कर जब बरसे बादल/
झड़ी झर रही बीर बहूटी ,मोती बिखरते बादल /,
नाप डालते नभ का कोना, जब सर पट भागें बादल/
इंद्र धनुष की छटा बिखेरें, सतरंगी प्यारे बादल/
जलती और तपती धरती की, प्यास बुझायें ये बादल/
नियति नटी की नवल कल्पना .खुशियों की फुहार बादल/
गवरैया के नवल घोसलें में चूँ चूँ चीं चीं बादल /
झूम रहे हैं बाग़ बगीचे ,हरा हो गया है सिवान/
गली गली और गाँव गाँव में खुशियाँ बिखराते बादल /
अम्मा जरा देख तो ऊपर, कैसे नट खट ये बादल /
अम्मा जरा देख तो ऊपर, चले आ रहे हैं बादल/
भांति भांति के रूप सजाये, धौंरे कजरारे बदल /
हर किसान की मधुर कल्पना ,पपीहे की पुकार बदल /
दौड़ लगाते हैं आकाश में ,चढ़े हवा के रथ बादल /
पुरवैया पर झूला झूलें , शोर मचाते ये बादल/
धूम धड़का कड़क तड़क कर ,हमे डरते ये बादल/
हरी हो रही सूखी धरती, खुशियों की बहार बादल/
नन्ही नन्ही जल की बूंदे, लेकर आये ये बादल /
ताल तलैया सब भर जाये ,जम कर जब बरसे बादल/
झड़ी झर रही बीर बहूटी ,मोती बिखरते बादल /,
नाप डालते नभ का कोना, जब सर पट भागें बादल/
इंद्र धनुष की छटा बिखेरें, सतरंगी प्यारे बादल/
जलती और तपती धरती की, प्यास बुझायें ये बादल/
नियति नटी की नवल कल्पना .खुशियों की फुहार बादल/
गवरैया के नवल घोसलें में चूँ चूँ चीं चीं बादल /
झूम रहे हैं बाग़ बगीचे ,हरा हो गया है सिवान/
गली गली और गाँव गाँव में खुशियाँ बिखराते बादल /
अम्मा जरा देख तो ऊपर, कैसे नट खट ये बादल /
Monday, 21 November 2011
chalo sunaye ek kahani suni sunsi amma se
चलिए मित्रों एक कहानी सुनाता हूँ /माँ से सुनी थी /सरयू नदी के उस पार अयोध्या में बड़ी रौनक और चहल पहल थी ,लोग उत्साहित थे /इस पार जंगल में हिरन का एक जोड़ा घास चार रहा था /अचानक हिरनी का ध्यान अयोध्या के चहल पहल की तरफ जाता है /उसे समझते देर नहीं लगती की कोई उत्सव है/हिरनी हिरन से कहती है --प्रिय चलो जंगल में भीतर चले अयोध्या में उत्सव है -अभी कोई आएगा और आप का शिकार कर लेगा ,इनका कोई भी उत्सव... मृगया के बिना नहीं होता /हिरन कुछ समझता की उसके पहले ही उसे एक बान लगा, वह तो ढेर हो गया/शिकारी हिरन को
अयोध्या की ओर ले चले ,हिरनी उनके पीछे चली /राज भवन जा कर हिरनी ने
कौशल्या को अपने बिधवा होने की कथा सुनाई और कहा की, हे रानी हिरन का मांस आप निकल कर उस की ख़ाल मुझे वापस दें दें तो कृपा होगी/तुम ख़ाल का क्या करोगी-रानी ने पूछा /जंगल में किसी ठूंठ पर लटका कर उसके इर्द गिर्द चरूंगी इस एहसास के साथ की मेरा पति मेरे पास है /रानी द्रवित हुईं और ख़ाल देने को तैयार होगई /किन्तु अचानक मुकर गईं/बोलीं- जाहू हिरनी घर अपने खलरिया न देबई हो, मैया खलरी क खंझरी मढ़ाइब बजैहैं राजा रघुबर --हिरनी निराश वापस होती है यहीं से लोक गीत शुरू होता है ---जब जब बाजेई खझरिया त हिरनी बिसूरई हो ललना ---
पूरा गीत फिर --/
Sunday, 20 November 2011
मै अपने गाँव लौटूंगा
मै अपने गाँव लौटूंगा
अपनी पुस्तैनी देहरी पर माथा झुकाऊ गा
नन्ही बिटिया को देहरी का मर्म और देहरी लांघने का अर्थ समझाऊंगा
तुलसी के चौरे पर रोज संध्या संझौती लेसे गी मेरी पुत्र बधू
टिमटिमाते देये की लव माँ अँधेरे की शास्वत सत्ता को पिघलते मै जी भर के देखूँगा
अपनी पुस्तैनी देहरी पर माथा झुकाऊ गा
नन्ही बिटिया को देहरी का मर्म और देहरी लांघने का अर्थ समझाऊंगा
तुलसी के चौरे पर रोज संध्या संझौती लेसे गी मेरी पुत्र बधू
टिमटिमाते देये की लव माँ अँधेरे की शास्वत सत्ता को पिघलते मै जी भर के देखूँगा
Saturday, 19 November 2011
फिर चुनाव का बिगुल बज गया
दूरंदाजी तीर ऐसी बंगला कार मेबैठे समझें सब की पीर
कितनी समझ बढ़ गयी /
चढ़ा चुनावी रंग पड़ी है हर कूएं में भंग
भागते नेता चारो ओर मचाते ताल मेल का शोर
दांव पर कुर्सी लग गई /
बो रहे झूठ बँटाते फूट चल रहे कपट नीति के कूट
दिन करे नैतिकता की बात तोड़ते मर्यादा हर रात
झूठ परवान चढ़ गई /
धर्म की ब्याख्या करते रोज नोचते नैतिकता को खोज
जाति की राजनीति बेजोड़ राष्ट्र की निष्ठा डाले तोड़
शर्म बेशर्म हो गई /
फिर चुनाव का बिगुल बज गया
दूरंदाजी तीर ऐसी बंगला कार मेबैठे समझें सब की पीर
कितनी समझ बढ़ गयी /
चढ़ा चुनावी रंग पड़ी है हर कूएं में भंग
भागते नेता चारो ओर मचाते ताल मेल का शोर
दांव पर कुर्सी लग गई /
बो रहे झूठ बँटाते फूट चल रहे कपट नीति के कूट
दिन करे नैतिकता की बात तोड़ते मर्यादा हर रात
झूठ परवान चढ़ गई /
धर्म की ब्याख्या करते रोज नोचते नैतिकता को खोज
जाति की राजनीति बेजोड़ राष्ट्र की निष्ठा डाले तोड़
शर्म बेशर्म हो गई /
दूरंदाजी तीर ऐसी बंगला कार मेबैठे समझें सब की पीर
कितनी समझ बढ़ गयी /
चढ़ा चुनावी रंग पड़ी है हर कूएं में भंग
भागते नेता चारो ओर मचाते ताल मेल का शोर
दांव पर कुर्सी लग गई /
बो रहे झूठ बँटाते फूट चल रहे कपट नीति के कूट
दिन करे नैतिकता की बात तोड़ते मर्यादा हर रात
झूठ परवान चढ़ गई /
धर्म की ब्याख्या करते रोज नोचते नैतिकता को खोज
जाति की राजनीति बेजोड़ राष्ट्र की निष्ठा डाले तोड़
शर्म बेशर्म हो गई /
फिर चुनाव का बिगुल बज गया
दूरंदाजी तीर ऐसी बंगला कार मेबैठे समझें सब की पीर
कितनी समझ बढ़ गयी /
चढ़ा चुनावी रंग पड़ी है हर कूएं में भंग
भागते नेता चारो ओर मचाते ताल मेल का शोर
दांव पर कुर्सी लग गई /
बो रहे झूठ बँटाते फूट चल रहे कपट नीति के कूट
दिन करे नैतिकता की बात तोड़ते मर्यादा हर रात
झूठ परवान चढ़ गई /
धर्म की ब्याख्या करते रोज नोचते नैतिकता को खोज
जाति की राजनीति बेजोड़ राष्ट्र की निष्ठा डाले तोड़
शर्म बेशर्म हो गई /
आज भारतीय पुरातत्व विभाग के रायपुर कार्यालय द्वारा
आयोजित विश्व प्रदाय संरक्षण सप्ताह के कार्य कर्मो का प्रारंभ रतनपुर के
एतिहासिक स्थल हाथीकिला के विशाल परिसर में संपन्न हुआ /आयोजन ब्यवस्थित
.तथा सुरुचि पूर्ण था ,मकसद था भावी पीढ़ी को अपने धरोहरों से परिचित करना
और उनके संरक्षण की भावना से जोड़ना, मुझे मुख्य वक्ता के रूप में बच्चो तथा
उपस्थित जन को संबोधित करने का अवसर मिला /अपनी धरोहर को हम दो तरीके से
संरक्षित करने में सहायता कर सकते कई ,सक्रियता से/और तटस्थता से /हम दूसरो
को संरक्षण करने केलिए भी प्रेरित कर सकते है /या फिर कम से कम इतना तो कर
ही सकते है की कोई नुकसान हम खुद न करे,/पुरातत्वधरोहरोंकी रक्षा की
कहानी ,,कल आज और कल की कहानी है /हम कल नहीं थे कल नहीं रहेंगे /हमारी
धरोहर भी कल थे कल नहीं रहेंगे किन्तु यदि आज उनका संरक्षण करदिया जाय तो
संस्कृति को बिलुप्त होने से बचाया जा सकता है /आयोजम अपने मकसद में सफल
रहा ,प्रदर्शनी पाँच दिन चलेगी /
Friday, 18 November 2011
आपस में हम हुए अजनवी कलह कपट गहराया ,आत्मीयता हुई पराई भोला मन भरमाया /
अविश्वास इतना गहराया कड़ी हुईं दीवारें, मर्यादा की ख़त खड़ी है बहे विकृति पवनारे/
अपने प्रति ही बढ़ता संशय ऐसी चुकी आस्था ,सम्बेदना और जड़ हो गई ऐसी बनी ब्यवस्था /
राजनीतिकी घृणित कुटिलता कितनी हम को खलती ,पीड़ा की यह पराकास्ठाकैसे तुम्हे दिखाएँ
रोटी बहन,बिलखती माता जलती बहु सुलगता भ्राता,शेष नही कुछ भी रस धर्मी फैले चारो ओर बिधर्मी /
स्वार्थ और कुंठा में डूबी मृगतृष्णा सी छद्म जिन्दगी ,जो कुछ था वह भी खो डाले कहाँ रमरमी कहाँ बंदगी /
कृत्रिमता की खोल चढ़ायेअहम बोलता रहता हर क्षण ,घुटन और मुस्कान लपेटे हर जीत में फंसी जिन्दगी /
स्नेह प्रेम अपनापन भोगे बीत गया है बरसों ,तपेदिक्क सी कठिन जिन्दगी बीते नही बिताये /
कहीं मिले वसुधा में यदि तो अब की तुम ले आना ,जिसकी हमको बहुत जरूरत वही तत्व बरसना /
लाना स्नेह मात्र मुट्ठी भर अगर कहीं मिलजाए ,फैलाना भीगी धरती में जिस से वह उगआये /
अंजुरी भर अपनापन लाना बड़े जतन से बोना ,तरस रहाहै अपने पण को देश का हर एक कोना /
अगर कहीं मिलता होगा तो मुट्ठी भर ले आना प्यार ,मत्री स्नेह का चुकता निर्झर निश्चित भरना अबकी बार /
इसका चूकना कितना खलता कैसे तुम्हे बताएं, यह उधार की पस्त जिन्दगी और जिया नहीं जाये/
अविश्वास इतना गहराया कड़ी हुईं दीवारें, मर्यादा की ख़त खड़ी है बहे विकृति पवनारे/
अपने प्रति ही बढ़ता संशय ऐसी चुकी आस्था ,सम्बेदना और जड़ हो गई ऐसी बनी ब्यवस्था /
राजनीतिकी घृणित कुटिलता कितनी हम को खलती ,पीड़ा की यह पराकास्ठाकैसे तुम्हे दिखाएँ
रोटी बहन,बिलखती माता जलती बहु सुलगता भ्राता,शेष नही कुछ भी रस धर्मी फैले चारो ओर बिधर्मी /
स्वार्थ और कुंठा में डूबी मृगतृष्णा सी छद्म जिन्दगी ,जो कुछ था वह भी खो डाले कहाँ रमरमी कहाँ बंदगी /
कृत्रिमता की खोल चढ़ायेअहम बोलता रहता हर क्षण ,घुटन और मुस्कान लपेटे हर जीत में फंसी जिन्दगी /
स्नेह प्रेम अपनापन भोगे बीत गया है बरसों ,तपेदिक्क सी कठिन जिन्दगी बीते नही बिताये /
कहीं मिले वसुधा में यदि तो अब की तुम ले आना ,जिसकी हमको बहुत जरूरत वही तत्व बरसना /
लाना स्नेह मात्र मुट्ठी भर अगर कहीं मिलजाए ,फैलाना भीगी धरती में जिस से वह उगआये /
अंजुरी भर अपनापन लाना बड़े जतन से बोना ,तरस रहाहै अपने पण को देश का हर एक कोना /
अगर कहीं मिलता होगा तो मुट्ठी भर ले आना प्यार ,मत्री स्नेह का चुकता निर्झर निश्चित भरना अबकी बार /
इसका चूकना कितना खलता कैसे तुम्हे बताएं, यह उधार की पस्त जिन्दगी और जिया नहीं जाये/
Thursday, 17 November 2011
गाँव के दो चित्र
#
प्रात के फैले गुलाबी धुप के संग
चहचहाते बुलबुलों के कई जोड़े
पूर्व की बंसवारियों के झुरमुटों में
मुक्त चंचल फुदकते निर्द्वन्द
देखती थी रोज ललचाई सुरेखा
फाड़ कर दींदे बड़ी उत्फुल्लता से
बज रही होतीं हैं मंगल घंटियाँ
पास के ही मंदिरों के गर्भ की
दौड़ने लगता है सारा गाँव
#
एक कोने बिछी गुदड़ी में समाये
एक दूजी बांह का तकिया लगाये
सो रहा है एक दम्पति
झोपडी से जहर रही होती सफेदी चांदनी की
दमकता है रूप जीवन संगिनी का
झांकता है फटे वस्त्रों से अभावों में बिलम्बित क्षुब्ध यौवन
फिर समर्पण स्नेह का इतिहास लिखता
स्वप्न में खोया समूचा गाँव
#
प्रात के फैले गुलाबी धुप के संग
चहचहाते बुलबुलों के कई जोड़े
पूर्व की बंसवारियों के झुरमुटों में
मुक्त चंचल फुदकते निर्द्वन्द
देखती थी रोज ललचाई सुरेखा
फाड़ कर दींदे बड़ी उत्फुल्लता से
बज रही होतीं हैं मंगल घंटियाँ
पास के ही मंदिरों के गर्भ की
दौड़ने लगता है सारा गाँव
#
एक कोने बिछी गुदड़ी में समाये
एक दूजी बांह का तकिया लगाये
सो रहा है एक दम्पति
झोपडी से जहर रही होती सफेदी चांदनी की
दमकता है रूप जीवन संगिनी का
झांकता है फटे वस्त्रों से अभावों में बिलम्बित क्षुब्ध यौवन
फिर समर्पण स्नेह का इतिहास लिखता
स्वप्न में खोया समूचा गाँव
गायत्री मन्त्र ; ओंउम भूर्भुवः स्व;
तत्सवितुर्वारेन्यम भर्गो देवस्य धीमहि
धियो यो न; प्रचोदयात
अर्थ - सत चित आनंद जगतोत्पादक दिव्य गुणयुक्त
ईश्वर के उस ग्रहण करने वालेशुद्ध स्वरूप को हम धारण करें
जो हमारी बुद्धियों को प्रेरित करे
मन्त्र ; ओं नम; शम्भवाय च, मयोभवाय च
नम;शंकराय च, मयस्कराय च
नम;शिवाय च, शिवतराय च
अर्थ उस आनंद मय,आनंद स्वरूप कल्याणकारी सुखदाता
मंगल स्वरूप अत्यंत आनद दाता को नमस्कार
the gayatri mantr is th supreme mantra of vedas ,it is a powerful invocation of surya ,the sun
it is said as there is no city to equal kashi there is no invocation to equalthe gayatri.
traslation--Osplendid and playful sun we offer this prayer to thee.Enlighten thiscraving mind
be our protectoe /May the divine rular guide our destiny .Wise mensalute your magnificence with
obligations and wordsof praise
shantipathh nex day contd...
ॐ भुर्भूःस्वःतत्सवितुरवरेण्यम भर्गो देवस्य धीमहि धियोइयोनह प्रचोदयात
ॐ सन्नोदेवी राभिश्ठय आपोभवंतुपीताये संयो रभिस्र्वन्तुनह
ॐ वाक वाक़,ॐ चक्षु; चक्षु; ,ॐ प्राण ; प्राण ; ॐ हृदय ; ,ॐ कंठ ;ॐ शिर ;
ॐ बहुभ्याम यशोबलम करतल कर्पिश्ठ्ये ॐ भु; पुनात सिरशी
ॐ भुवह पुनात नेत्रयो ओमस्वह पुनात कंठे ॐ भुवः पुनात पुनह सिरशी
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः....
ॐ सन्नोदेवी राभिश्ठय आपोभवंतुपीताये संयो रभिस्र्वन्तुनह
ॐ वाक वाक़,ॐ चक्षु; चक्षु; ,ॐ प्राण ; प्राण ; ॐ हृदय ; ,ॐ कंठ ;ॐ शिर ;
ॐ बहुभ्याम यशोबलम करतल कर्पिश्ठ्ये ॐ भु; पुनात सिरशी
ॐ भुवह पुनात नेत्रयो ओमस्वह पुनात कंठे ॐ भुवः पुनात पुनह सिरशी
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः....
Wednesday, 16 November 2011
हिंदी की जगह अंग्रजी का फैलाव एवं प्रसार प्रचार का तर्क शाश्त्र
इस बहंस की जड़ आज की राजनीति या समय में ही नहीं आज की जरूरत में भी है अंग्रेजी कुछ वर्षों में बहुत तेजी से फैली है /
कुछ राज्यों ने इसे प्राथमिक स्तर पर अनिवार्य भी कर दिया है / यह सब उदारी करन की नीति का परिणाम है /पश्चिम का मॉल
,पश्चिम की पूँजी,पश्चिम की संस्कृति जब देश में आयेगी तो पश्चिम की भाषा भी आएगी/अंग्रेजी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की जरुरत है /यह ग्लोबलाईजेसन की भाषा है , इसी से देश की नई पीढ़ी में आधुनिकता आ रही है ,भारत जैसे विशाल देश में उन्हें अपना मॉल बेंचना है
तो नई पीढ़ी को अंग्रेजियत के रंग में रंगना उनकी जरूरत है और वे ऐसा कर रहे हैं /हमारी सर्कार ही नहीं हम सब उनके आगे नतमस्तक हैं /कालमार्क्स ने कहा था जो वर्ग समाज का सत्ताधारी भोतिक शक्ति होता है वही उसकी बौद्धिक शक्ति भी होता है /ब्यवस्था के हाथ में ही सरे संसाधन होते है मिडिया पर भी उसी का नियंत्रण होता है /वह हमारी रुचियाँ तक बदल देता है /आज अंग्रेजी पढने से नौकरी मिलती है
भारतीय भाषाएँ पढने से नौकरी मिलने लगे तो लोग उसी की मांग करने लगेंगे /गाँधी जी ने कहा था क़ि...अगर मेरे हांथों में ताना सही सत्ता हो तो मैआज से ही विदेशी भाषा में दी जाने वाली शिक्षा बंद कर दूं /मै पाठ्य पुस्तकों क़ी तयारी का इंतजार नहीं करूंगा वे तो माध्यम के पीछे चलीं आएँगी /इस बुरे का तुरंत इलाज होना चाहिए.../अंग्रजी शोषक -शासक वर्ग तथा ब्यूरोक्रेट्स क़ी भाषा है ,भारतीय भाष्य जन भाषा हैं/आम जनता को हक तभी मिलेगा जबुसकी भाषा में प्तियोगी परीक्षा आयोजित होंगी /
इस बहंस की जड़ आज की राजनीति या समय में ही नहीं आज की जरूरत में भी है अंग्रेजी कुछ वर्षों में बहुत तेजी से फैली है /
कुछ राज्यों ने इसे प्राथमिक स्तर पर अनिवार्य भी कर दिया है / यह सब उदारी करन की नीति का परिणाम है /पश्चिम का मॉल
,पश्चिम की पूँजी,पश्चिम की संस्कृति जब देश में आयेगी तो पश्चिम की भाषा भी आएगी/अंग्रेजी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की जरुरत है /यह ग्लोबलाईजेसन की भाषा है , इसी से देश की नई पीढ़ी में आधुनिकता आ रही है ,भारत जैसे विशाल देश में उन्हें अपना मॉल बेंचना है
तो नई पीढ़ी को अंग्रेजियत के रंग में रंगना उनकी जरूरत है और वे ऐसा कर रहे हैं /हमारी सर्कार ही नहीं हम सब उनके आगे नतमस्तक हैं /कालमार्क्स ने कहा था जो वर्ग समाज का सत्ताधारी भोतिक शक्ति होता है वही उसकी बौद्धिक शक्ति भी होता है /ब्यवस्था के हाथ में ही सरे संसाधन होते है मिडिया पर भी उसी का नियंत्रण होता है /वह हमारी रुचियाँ तक बदल देता है /आज अंग्रेजी पढने से नौकरी मिलती है
भारतीय भाषाएँ पढने से नौकरी मिलने लगे तो लोग उसी की मांग करने लगेंगे /गाँधी जी ने कहा था क़ि...अगर मेरे हांथों में ताना सही सत्ता हो तो मैआज से ही विदेशी भाषा में दी जाने वाली शिक्षा बंद कर दूं /मै पाठ्य पुस्तकों क़ी तयारी का इंतजार नहीं करूंगा वे तो माध्यम के पीछे चलीं आएँगी /इस बुरे का तुरंत इलाज होना चाहिए.../अंग्रजी शोषक -शासक वर्ग तथा ब्यूरोक्रेट्स क़ी भाषा है ,भारतीय भाष्य जन भाषा हैं/आम जनता को हक तभी मिलेगा जबुसकी भाषा में प्तियोगी परीक्षा आयोजित होंगी /
Tuesday, 15 November 2011
मित्रों समय निरंतर गति शील है ,काल का प्रवाह कभी नहीं रुकता पानी के
बहाव के बिपरीत तैरना कठिन है ,सभी दौड़ना जानते है पर सभी ओलम्पिक नहीं
जाते ,सभी चलते है पर मंजिल तक सभी नहीं जानते ,समसामयिक होना,/समय से
मुठभेड़ करना/समय को दिशा देना /तीन स्थितियां हैं /कल की इस दुर्दमनीय धरा
में जो भी अप्रासंगिक होगा विनिष्ट हो जायेगा /संस्कृति सूक्ष्म और
परिवर्तन शील है /सभ्यता आभिजात्य के नविन वस्त्रविन्यास धारण कर रही
है/सभ्यता तकनीकी जड़ता ,यांत्रिकता की ओर और संस्कृति सूक्ष्म से स्थूल की
ओर जा रही है /फिर भी जो लोकिक नहीं आभिजात्य नहीं / मित्रों समय निरंतर गति शील है ,काल का प्रवाह कभी नहीं रुकता पानी के
बहाव के बिपरीत तैरना कठिन है ,सभी दौड़ना जानते है पर सभी ओलम्पिक नहीं
जाते ,सभी चलते है पर मंजिल तक सभी नहीं जानते ,समसामयिक होना,/समय से
मुठभेड़ करना/समय को दिशा देना /तीन स्थितियां हैं /कल की इस दुर्दमनीय धरा
में जो भी अप्रासंगिक होगा विनिष्ट हो जायेगा /संस्कृति सूक्ष्म और
परिवर्तन शील है /सभ्यता आभिजात्य के नविन वस्त्रविन्यास धारण कर रही
है/सभ्यता तकनीकी जड़ता ,यांत्रिकता की ओर और संस्कृति सूक्ष्म से स्थूल की
ओर जा रही है /फिर भी जो लोकिक नहीं आभिजात्य नहीं / मित्रों समय निरंतर गति शील है ,काल का प्रवाह कभी नहीं रुकता पानी के
बहाव के बिपरीत तैरना कठिन है ,सभी दौड़ना जानते है पर सभी ओलम्पिक नहीं
जाते ,सभी चलते है पर मंजिल तक सभी नहीं जानते ,समसामयिक होना,/समय से
मुठभेड़ करना/समय को दिशा देना /तीन स्थितियां हैं /कल की इस दुर्दमनीय धरा
में जो भी अप्रासंगिक होगा विनिष्ट हो जायेगा /संस्कृति सूक्ष्म और
परिवर्तन शील है /सभ्यता आभिजात्य के नविन वस्त्रविन्यास धारण कर रही
है/सभ्यता तकनीकी जड़ता ,यांत्रिकता की ओर और संस्कृति सूक्ष्म से स्थूल की
ओर जा रही है /फिर भी जो लोकिक नहीं आभिजात्य नहीं /
Monday, 14 November 2011
महात्मा तुलसीदास के रामचरित मानस से हर क्षण हमें सलाह मिलती है ......
मानस की पंक्ति .. विप्र सचिव गुरु बैद्य जो प्रिय बोलहिं भय आस ,राज धर्म तन तीन कर होंहि बगही नाश / अगर ,आप का पुरोहित, सलाहकार ,गुरु और वैद्य ,सच बोलने की जगह चापलूसी में या डर में ठाकुर सोहती बतियाते हैं तो समझ ले कि राज्य का धर्म का ,शरीर का नाश होने वाला है /इसी का निष्कर्ष है ....उघरे अंत न होंहि निबाहू ,काल नेमि जिमि रावन राहू /केंद्रीय सत्ता के साथ यही हो रहा है
मानस की पंक्ति .. विप्र सचिव गुरु बैद्य जो प्रिय बोलहिं भय आस ,राज धर्म तन तीन कर होंहि बगही नाश / अगर ,आप का पुरोहित, सलाहकार ,गुरु और वैद्य ,सच बोलने की जगह चापलूसी में या डर में ठाकुर सोहती बतियाते हैं तो समझ ले कि राज्य का धर्म का ,शरीर का नाश होने वाला है /इसी का निष्कर्ष है ....उघरे अंत न होंहि निबाहू ,काल नेमि जिमि रावन राहू /केंद्रीय सत्ता के साथ यही हो रहा है
Saturday, 12 November 2011
Wednesday, 9 November 2011
जब तक हिंदी को शिक्षा रोजगार प्रोद्योगिकी विज्ञानं मीडिया समाजविज्ञान वाणिज्य व्यवसाय और तकनीकी शिक्षा से नहीं जोड़ेंगे ,उसे व्यवहार और काम काज की भाषा नहीं बनायेंगे ,तब तक हिन्दी वह स्थान नहीं पासकती जिसकी वह हकदार है /हिन्दी का प्रयोजन मूलक बनाना आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है /आज का युवक कैरियर निर्माण के प्रति अधिक सजग है इसीलिए वह कम्पूटर और अंग्रेज़ी के पीछे भाग रहा है /अतः अब हिन्दी में ईमेल इन्टरनेट वेव साईट और पोर्टल का अधिकाधिक विकास और उपयोग होना चाहिए युवाओं की उदासीनता दूर करने के लिए सोचें की हम अपने विषयों को कैसे जादा अर्थपूर्ण प्रयोजनमूलक और रोजगारोन्मुखी बना सकते हैं इससे विद्यार्थियों में नया आत्मविश्वास जागेगा आज पत्रकारिता मिशन न होकर व्यवसाय और प्रतिस्पर्धा हो गयी है /आज तकनीक बहुत बिकसित हो गयी है अतः अब पुराने तरीके से काम नहीं चलेगा /पत्रकारिता बोद्धिक माफिया बनगई है /सारा ध्यान मुनाफे पर है , आतः सनसनीखेज हो गयी है ,विश्वसनीयता घटी है ,किसी भी विधा का एस तरह संदिग्ध हो जाना खतरनाक है /
Saturday, 5 November 2011
भारतीय आख्यान; परम्परा और आधुनिक गल्प साहित्य
वैदिक वांग्मय से लेकर जैन बौद्ध ग्रंथो से होते हुए सूफी साहित्य तक हमारी आख्यान परम्परा फैली हुई है /आधुनिक भारतीय भाषाओँ में भी अनेक उत्कृष्ट रचनाये है /मराठी उपन्यास ययाति को आख्यान परंपरा का नवीन संस्करण कह सकते हैं /इंडियन नेरोटलोगी नमक पुस्तक में हमारी कथन प्रक्रिया को शास्य्र मन गया है /हमें भी चाहिए की उसे शास्त्र का दर्जा दे कर विषद अध्यन करें /प्राचीन और अर्वाचीन आख्यानात्मकता जिसे अंग्रजी में नारेटीविटी कहते हैं के दस रूपों और दस माँडलों के उदाहरण आधुनिक भारतीय भाषाओँ में विशेष कर बंगला के मंगल काव्य मराठी के लीलाचारित पंजाबी और सिन्धी की किस्सायेंऔर हिंदी के बीरगाथा काव्य में उपलब्ध हैं /ये सभी हमारी आख्यान परम्परा की कड़ियाँ हैं /प्राचीन इतिहास,संस्कृत साहित्य अभिनय कला नृत्य नाट्यकला में आख्यान भरे पड़े हैं / क्रमशः
Friday, 4 November 2011
KAL ka chakr aur lohe ka kasailapan
Jb sapak,sapakpeethh par padata hai
kal ka koda To
chalte chalte toot jate hain sare ridam
bikhar jati hai sari sangati
jor jor se bheechta hoon
apna jabda ,teesne lagte hain dant
aur mai chublata hoon
danton me fanse kalkhand ko
Nirantar raonde jane ki peeda
to sathh chalti sadak sayed janti bhi ho
par kal ka yah kaseilapan
mujhse adhik aur kaon janta hai
abhi doodhke dant bhi nahi toote thhe
nadh diya gaya tange se
bana diya ghodha
naya josh naya unmad kheechne laga vah
pairo me ghav na ho jay es liye ,thhonk di gai nal
bojh se adhik kast dene lagi keelen
ekagrta tootne lagi to dhanp dee gayi ankhe
man ke vichlan se chal na bigad jay
esliye dal di gayee jabdon me lohe ki valga
pairon me nal ,ankhon par dhapna,
muh me valga peethh par bojh
niyati ban gai
en sabhi ki sangati baithha kar
fir bhi vah chalana chahta hai
char kol ki ant heen kali sadkon par
lohe ka kasailapan ghode se adhik kaon janta hai
Thursday, 3 November 2011
Jo thokar khate hain
Jo thokar khate hain
pravah pa jate hain
bina geet likhe bina geet gaye
ve chal ke lay ,tal aur chhand se parichit ho jate hain
patthhron se takrata hai pani ,patthhar vahin pade rah jate hain
aage badh jata hai thhokar khaya huva pani
jo thhokar khate hai ve pravah pa jate hain
jin patthron se nadi gujari hai
unhone agar milai hogi apani aavaj to ve ret ho chuke honge
kachharon me bagulon ke sang udrahe honge
athhava nadi ke marg se alag pade huye honge
pani sparsh aur usase uthhte sangeet ke liye tadap rahe honge
Wednesday, 2 November 2011
Hava nikaldi....india again..ki
ek akele kejari wal ne anna ke pavitr aandolan ki hava nikal dee ,kuchh chhutbhaiya ladko ladkiyon ko gumrah kar kejreewal ne na kevl anna ko pathhbhrast kiya desh ki janta ko bhi gumrah kiya ,kar ki chori ki shasan ke paise ka durupyog kiya chande ka paisa hajam kiya jabardasti congress ko blackmel kiya bibi ko deputation bheja,govt ko paisa vapes karne ke nam par dosto se lon bhi lene ko taiyar pakade jane par gurrana,, yah kisi ki ejjt nahi karta anna ke haliya bayan par kitni battmeej pratikriya dee ,ab ann ne sahi rasta fir pakada hai anna ka doosra kadam kejreewal ko bahar ka rasta dikhana tab dekhenge kiran &kejri kahan jayenge seedha tihad
Subscribe to:
Posts (Atom)