मै अपने गाँव लौटूंगा
अपनी पुस्तैनी देहरी पर माथा झुकाऊ गा
नन्ही बिटिया को देहरी का मर्म और देहरी लांघने का अर्थ समझाऊंगा
तुलसी के चौरे पर रोज संध्या संझौती लेसे गी मेरी पुत्र बधू
टिमटिमाते देये की लव माँ अँधेरे की शास्वत सत्ता को पिघलते मै जी भर के देखूँगा
अपनी पुस्तैनी देहरी पर माथा झुकाऊ गा
नन्ही बिटिया को देहरी का मर्म और देहरी लांघने का अर्थ समझाऊंगा
तुलसी के चौरे पर रोज संध्या संझौती लेसे गी मेरी पुत्र बधू
टिमटिमाते देये की लव माँ अँधेरे की शास्वत सत्ता को पिघलते मै जी भर के देखूँगा
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