मै अपनी ही परछाहीं पर उकुडू हूँ परछाहीं की तरह
उतना बहर नहीं हूँ बाहर जितना अपने बहार है
उतना ही खली हूँ बाहर जितना भीतर खली है
अंधकार में फैलते हुए अंधकार का फैलाव है
उसी में फैलता हुआ मै अपनी परछाहीं पर झुकी
अपनी पीठ पर टिका घुटनों में सर दिए
समझना चाहता हूँ प्रयोजन अपने होने का
मेरा सारा अस्तित्व मेरे ऊपर जहर रहा है /
एक सपना टूट कर विक्षत जीवन सा विखरा है
उसी मे से बिन कर इक्षाएं ,अपनी फटी जेबों में ठूंस कर
जनाचाहता हूँ हर दिशा में--
जाने की हर दिशा बंद है ,हर बंद दिशा का दरवाजा मै हूँ
अकेले मै हूँ अपने सिवाय ,यह मै कौन हूँ जो मै नहीं हूँ /
अपने ही बारे में मै गड़बड़ा गया हूँ /
उतना बहर नहीं हूँ बाहर जितना अपने बहार है
उतना ही खली हूँ बाहर जितना भीतर खली है
अंधकार में फैलते हुए अंधकार का फैलाव है
उसी में फैलता हुआ मै अपनी परछाहीं पर झुकी
अपनी पीठ पर टिका घुटनों में सर दिए
समझना चाहता हूँ प्रयोजन अपने होने का
मेरा सारा अस्तित्व मेरे ऊपर जहर रहा है /
एक सपना टूट कर विक्षत जीवन सा विखरा है
उसी मे से बिन कर इक्षाएं ,अपनी फटी जेबों में ठूंस कर
जनाचाहता हूँ हर दिशा में--
जाने की हर दिशा बंद है ,हर बंद दिशा का दरवाजा मै हूँ
अकेले मै हूँ अपने सिवाय ,यह मै कौन हूँ जो मै नहीं हूँ /
अपने ही बारे में मै गड़बड़ा गया हूँ /
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