चलिए मित्रों एक कहानी सुनाता हूँ /माँ से सुनी थी /सरयू नदी के उस पार अयोध्या में बड़ी रौनक और चहल पहल थी ,लोग उत्साहित थे /इस पार जंगल में हिरन का एक जोड़ा घास चार रहा था /अचानक हिरनी का ध्यान अयोध्या के चहल पहल की तरफ जाता है /उसे समझते देर नहीं लगती की कोई उत्सव है/हिरनी हिरन से कहती है --प्रिय चलो जंगल में भीतर चले अयोध्या में उत्सव है -अभी कोई आएगा और आप का शिकार कर लेगा ,इनका कोई भी उत्सव... मृगया के बिना नहीं होता /हिरन कुछ समझता की उसके पहले ही उसे एक बान लगा, वह तो ढेर हो गया/शिकारी हिरन को
अयोध्या की ओर ले चले ,हिरनी उनके पीछे चली /राज भवन जा कर हिरनी ने
कौशल्या को अपने बिधवा होने की कथा सुनाई और कहा की, हे रानी हिरन का मांस आप निकल कर उस की ख़ाल मुझे वापस दें दें तो कृपा होगी/तुम ख़ाल का क्या करोगी-रानी ने पूछा /जंगल में किसी ठूंठ पर लटका कर उसके इर्द गिर्द चरूंगी इस एहसास के साथ की मेरा पति मेरे पास है /रानी द्रवित हुईं और ख़ाल देने को तैयार होगई /किन्तु अचानक मुकर गईं/बोलीं- जाहू हिरनी घर अपने खलरिया न देबई हो, मैया खलरी क खंझरी मढ़ाइब बजैहैं राजा रघुबर --हिरनी निराश वापस होती है यहीं से लोक गीत शुरू होता है ---जब जब बाजेई खझरिया त हिरनी बिसूरई हो ललना ---
पूरा गीत फिर --/
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