अबकी जब टीम आना नभ चरवह संगीत रचाना
नया गीत, नव छंद, ताल नव, नव सुर देकर जाये
मिले नया आलोक जगत को टूटे सब भ्रम रचना
नए मीत नव संकल्पों से उत्साहित धुन गाएं
धानी रंग चुनरिया रंगना मन रस बस कर जाना
चढ़ी अटारी ग्राम बधूटी कजरी के स्वर गाये
खपरैलों पर कागा बोले गोरी झूले झूला
सैयद -सीता एक साथ फिर गुडिया ब्याह रचाएं
अम्मा बैठें एक बार फिर जांते पर भिनसारे
अपने भोर गीत मंगल से अमृत सुर बरसायें
दही बिलोती दादी गांए मक्खन खाते दादा
रहे न कुछ भी छद्म कपट सब होवे सादा सादा
बूढ़े बरगद की छैंया में फिर से गूंजे आल्हा
ताल ठोंक कर भिड़ें अखाड़े फागू और दुलारे
फुलवा से फिर करें ठिठोली बूढ़े रमई काका
चौपालों पर रोज साँझ को बरसें प्रेम फुहारे/
क्रमशः जारी ............
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