Sunday, 25 December 2011

जीवन सबसे कठिन तपस्या ::


(एक कविता लिखी बच्चों के लिए :बन गई सब के लिए;मेरा नाती समृद्ध जो अभी पाँच साल का है ,केलिफोर्निया  में रहता है छुट्टियों में आया है उसे खूब  भाई यह कविता  वह दो दिन में  ही इसे गाने लगा है आप भी गायें )

जीवन सबसे कठिन तपस्या ,सबसे गूढ़ पहेली,
यदि अच्छा इन्सान बनसकें , समझो भर गई झोली /
उठें सबेरे सूरज के संग ,कलियों संग मुस्काएं ,
चिड़ियों के संग पंख लगा कर हम आकाश उड़ जाएँ /
फूलों से हम हँसना  सीखे और कोयल से गाना
फल से लदी डाल से सीखे सब को शीश झुकाना /
साद गुण करें इकठ्ठा कैसे मधु मक्खी बतलाती
काँटों में भी मुस्काते हैं कलियाँ हमें सिखाती /
चढ़ता सूरज नित दुपहर को और संध्या ढल जाता
झुलस झुलस कर दशों  दिशा में सबको रह दिखता /
बिना किसी भी भेद भाव के हवा हमें दुलराती
और आकाश बाँटता अमृत धरती भूख मिटाती /
ऊँची  ऊँची चट्टानों से कल कल झरने झरते
लम्बी यात्रा करती नदियाँ दिन भर बहते बहते /
संध्या सब को चैन बांटतीआँचल में ढक लेती
रात सुनाती लोरी चुप चुप नई कहानी कहती /
 पानी सबकी प्यास बुझाता सबका जीवन दाता
पर्वत सर ऊँचा कर हमको स्वाभिमान सिख लाता/
सच मुच है सौगात जिन्दगी पाँच तत्व की न्यारी
ज्ञान और विज्ञानं सभी कुछ मानव की बलिहारी /
खाली हाथ आये हैं जग में जाना खाली हाथ
कुछ सदगुण सत्कर्म समेटें वही रहेगा साथ/
आस पास विखरा है सोना कर्म धर्म और सपना
समय और आचरण संभालो सारा जग है अपना //   


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