Thursday, 22 December 2011

manthan 2

हमारी सामूहिकता का रूप बदल गया है /अब यह अनेकता में एकता नहीं है /एकता में अनेकता है /सबकी अनेकता को संयोजित करके एकता बनाये रखने के लिए जिस सहिष्णुता की जरूरत है ,वह मात्र सहन शीलता नहीं है उससे कुछ जादा है ,बल्कि बहुत जादा है ,यंहा विचार के साथ त्याग की ,दूसरे के सम्मान की ,दूसरे को खुश देख कर प्रसन्न होने के आदत की ,,त्याग के द्वारा भोग की जरूरत है और ये सभी हमारे समाज से नदारत हैं /जो ठगे जा रहे हैं उन्हें सभी ठगते हैं नेता ,योगी, भोगी, जोगी,पार्षद ,पटवारी पुलिस भी, चोर भी, अन्ना, गुरु ,साधू, सभी /इसलिय वे भी चतुराई से अपने को सुरक्षित करते है अपना काम निकलते हैं ,जीना तो है /इन्ही सब छोटी सोच की वजहों से छोटी समस्याएं जन्म लेतीं हैं/देश की अराजकता इन्ही की उपज है /जो जन्हा है दम्भी हो गया है /बज्जत हो गया है /अराजक हो गया है ,ये दम्भी ,ये बज्जात ,ये अराजक ,जादा संगठित है ,आक्रामक हैं /शक्ति शाली हैं /भूल जानी चाहिए बचपन की कथा की सात लकड़ी एक साथ हो तो नहीं टूटेगी, आज छप्पन एक साथ हों तो भी बिखर जायेंगे एक मिनट नहीं लगता /सभी के ( वेस्टेड इन्त्रस्त) सोचने ,लाभ ,हानि की परिभाषा बदल गई है /देश बहुत काम की सोच में प्राथमिक है /पर शुक्र है की है /इस लिए देश रहेगा ..
यूनान रोम ,मिश्र सब मिट गए जन्हा से, बाकी रहा है अब तक नमो निशान हमारा
,कुछ बात है की हस्ती मिटती नहीं हमारी, दुश्मन रहा है सदियों दौरे जन्हा हमारा ......
मुझे क्षम करना दोस्तों अब बस ,..क्षमिहन्ही सज्जन मोर ढिठाई /

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