Thursday, 15 December 2011

भोर हुई भोर हुई

सूरज ने कुछ देर से खोले जब आज द्वार
पलट गई हौले से रंग भरी गगरी
सरसों के खेत पीले हो गए 
किरणों ने  चुप चाप दस्तक दी आँगन में
बिखर गई अल्पना बन अरुणाभ  धूप
हवा ने हौले से हिला दिया पारिजात
रच गई रंगोली  नारंगी फूलों की
जस्मीन की लता ने स्वेत पुष्प ज्यों बिखराए
इंद्र धनुष उतर गया आँगन में मेरे
आंवले की फुनगी से गवरैया बोली  भोर हुई भोर हुई
 

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