सूरज ने कुछ देर से खोले जब आज द्वार
पलट गई हौले से रंग भरी गगरी
सरसों के खेत पीले हो गए
किरणों ने चुप चाप दस्तक दी आँगन में
बिखर गई अल्पना बन अरुणाभ धूप
हवा ने हौले से हिला दिया पारिजात
रच गई रंगोली नारंगी फूलों की
जस्मीन की लता ने स्वेत पुष्प ज्यों बिखराए
इंद्र धनुष उतर गया आँगन में मेरे
आंवले की फुनगी से गवरैया बोली भोर हुई भोर हुई
पलट गई हौले से रंग भरी गगरी
सरसों के खेत पीले हो गए
किरणों ने चुप चाप दस्तक दी आँगन में
बिखर गई अल्पना बन अरुणाभ धूप
हवा ने हौले से हिला दिया पारिजात
रच गई रंगोली नारंगी फूलों की
जस्मीन की लता ने स्वेत पुष्प ज्यों बिखराए
इंद्र धनुष उतर गया आँगन में मेरे
आंवले की फुनगी से गवरैया बोली भोर हुई भोर हुई
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