Tuesday 10 June 2014

मन दर्पण गया टूट /

कोल्हू घनी सरसों पानी
कहता सब की राम कहानी
कर लो मन मजबूत /
स्नेह घरौंदा हर पल ढहता
इक्षा चना भार में भुन्जता
करम पछोरे सूप /
रद्दा रद्दा जमा अँधेरा
उजड़ा कैसे रैन बसेरा
आशा गूलर फूल /
बीता बीता धूप सरकती
संशय मकड़ी जाला बुनती
कंही हो गयी चूक /
मद्धिम मद्धिम दाह सुलगता
घर के भीतर का घर ढहता
कंहा हो गयी चूक /
बरसों की यह कठिन तपस्या
प्यार समर्पण बनी समस्या
कैसे हो गई चूक /
कैसे कोई खुशियाँ बांटे
करनी भरनी काटें छाटें
थक कर हो गया चूर /
एक बंजारा ब्यथित खड़ा है
खेल नियति का जटिल बड़ा है
जम गयी मन पर धूल /
दुःख का तक्षक नित प्रति डंसता
ओंठ न कोई ऐसा दिखता
जहर जो लेता चूस /
धीर पुरनिया कटता लुटता
अपने आँगन रोज घिसटता
हिल गयी उसकी चूल /
पत्ता पत्ता पीला पड़ गया
अंजुरी चेहर थाम्हे रह गया
मन दर्पण गया टूट /