Sunday 18 March 2012

तुम पगली

देखो ! तुम्हारे पति के पास एक किसान की विरासत है उसने अपने पिता की आँखों में कभी साँझ नहीं देखी अपनी माँ को कभी हारते नहीं देखा . ये दिन भी बीत ही जायेंगे धीरज धरो कुछ भी ठहरा नहीं रहता न समय , न सुख तो दुःख भी नहीं . फिर कैसी हताशा ,कैसी निराशा , तुम पगली जाने क्यों घबडाती हो

कहाँ जांय.क्या करें .दम घुटता है

कहाँ जांय.क्या करें .दम घुटता है . इससे परे कोई दुनियां है क्या !मन कहता है कुछ खुसी हो जहाँ हम वहां पर चलें . जिन्दगी हो जहाँ चल वहां पर चलें . नित वही चन्दन, नित वही पानी, सब कुछ तो सड़ गया है . बदबू और सड़ांध से ,बजबजाती जिन्दगी ऋतू धर्म से भींगे लथफत लत्ते के तरह अलग थलग फेक दी गई जिन्दगी आँख भर पसरी उदासी खुरदुरी ........ इसके उस पार है क्या कोई तिलस्मी दुनियां जहाँ चैन से सुकून से कुछ क्षण जी सकता हो आदमी जहाँ फेफड़ा भर सकता हो एकबार सिर्फ एकबार ताजी हवा से जहाँ इंसानियत अदब .इमानदारी से .चैन की साँस ले सके . एक अदद बसंत की प्रतीक्षा में . पतझर की वीरानी पसर गई है रोम रोम में . भीतर अंतस में उग आये हैं हजारों ठूंठ . इन पर कभी नहीं कूकती कोयल. ठंढी हवा को इधर से गुजरे अरसा बीत गया. उमर भटकते बना भिखारी जीवन ही जंजाल हो गया. चेतन सब निर्जीव हो गए और मौन भगवान हो गया. और कितनी प्रतीक्षा !कितनी परीक्षा !

पिता की याद आई

आज पता नहीं क्यों पिता की याद आई सुबह सुबह टपक पड़े आंसू . हम बहुत अकेले पड़ गए हैं तात. और जिन्दगी हो गई है झंझावात. स्नेह प्रेम अपनापन भोगे बीत गए हैं वर्षों तापेदिक्क सी कठिन जिन्दगी बीते नहीं बिताये . हर दिन बढ़ती बीरानी में आप बहुत याद आये . प्रीति सी मीठी उपस्थिति .रीति सी प्यारी छुअन का स्नेह की अतुलित फुहारे सीख की मीठी झड़प का शिक्षकी गरिमा सहित निर्माण की उत्कट सदिक्षा पितृवत सम्बेदाना और संस्कारित प्रबल दीक्षा . अभावों में दृढ अविचलित और सुख को सहज लेना काल के निर्मम थपेड़ों को सरल उन्मुक्त जीना आप से सीखा है हमने हर विसंगति जीत लेना आप की उस साधना का मोल हम कुछ दे न पाए जब कभी आयी मुसीबत ,आप हर क्षण याद आये

काल का प्रवाह

काल का प्रवाह कभी नहीं रुकता सभी चल रहे हैं .मंजिल तक कितने पहुंचे धारा के बिपरीत तैरना आज कल बहुत कठिन है समय के साथ मुठ भेड़ आसन नहीं .कोई साथ नहीं देता . निरंतर अकेले पड़ते जाने का खतरा ..दुःख .. पीड़ा तोड़ देता है लय ,समाप्त हो जाती है गतिशीलता... सुर ताल छंद सब बेढंग हो जाते हैं वक्त के साथ जिसने मिला ली है ताल जमाना उसी का है ,सफल है वह , जिन्दगी का हर तराना ,हर फ़साना उसका है उम्र के चुकते जाने के खतरे से जूझते हुए यह अनुभूति ,की गालिबन वक्त कम है . काम बहुत है .निरंतर परेशां करती है जितना अभी तक किया है उस से जादा करना है जितना अभी तक जिया है उस से जादा मरना है

मै कोई तुम्हारी छाया नहीं हूँ

मै कोई तुम्हारी छाया नहीं हूँ जो उजाले में साथ रहे और अँधेरे में गायब हो जाय मै अँधेरे में तुम्हारे अंतस के कोने में बसने वाली हिम्मत हूँ जिसकी जरुरत तुम्हे दिन के उजाले में महशूस ही नहीं होती