Saturday 28 November 2015

सिविल सेवा परीक्षा में कैसे लिखें निबंध


 .
मुख्य परीक्षा के वर्तमान पैटर्न में निबंध के प्रश्नपत्र का महत्त्व बेहद बढ़ गया है। ऐसे में इस पेपर को नज़रअंदाज़ करना भारी पड़ सकता है।
पर आश्चर्यजनक बात यह है कि हम में से अधिकतर लोग निबंध के पेपर के महत्त्व को जानते हुए भी अक्सर इसकी अनदेखी करते हैं।
दरअसल यह एक ऐसा पेपर है, जिसमें प्राप्तांकों की रेंज बहुत ज़्यादा है। किसी को 250 अंकों में से महज 50 अंक मिल पाते हैं तो कोई 150 अंक लाकर अपनी सफलता की राह को आसान बना लेता है।  अगर हिन्दी माध्यम के परीक्षार्थियों की बात करें, तो इस पेपर का महत्त्व और भी अधिक बढ़ जाता है। इस साल से हिन्दी माध्यम से सिविल सेवा परीक्षा में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले सभी परीक्षार्थियों की सफलता में निबंध के पेपर का अच्छा-खास योगदान है।
लिहाज़ा निबंध के प्रश्नपत्र में अच्छे अंक पाने के लिए इस पर थोड़ा ध्यान दें:
1. अभ्यास का कोई विकल्प नहीं है। हर हफ्ते तीन घंटे के लिए बैठें और डेढ़-डेढ़ घंटे में कुल 2 निबंध लिखने का अभ्यास ज़रूर करें। इसका आपको बेहद फायदा होगा।
2. पहले कुछ मिनटों में निबंध की एक लिखित रूपरेखा ज़रूर बना लें, इसमें निबंध के विषय के विस्तार के पक्ष, तथ्य, उदाहरण और उक्तियाँ शामिल कर सकते हैं।
3. विषय तसल्ली से चुनें। उसी क्षेत्र के विषय चुनें, जिन पर आपकी पकड़ और समझ अच्छी हो। उदाहरण के लिए, विज्ञान पृष्ठभूमि के लोग तकनीकी विषयों पर कुछ बेहतर लिख सकते हैं। मुझे साहित्य-संस्कृति-मीडिया और अध्यात्म से जुड़े विषय ज़्यादा आकर्षित करते हैं। अमूर्त विषयों पर मैं ज़्यादा बेहतर लिख पाता हूँ। मेरी सलाह है कि अपनी रूचि और सम्बंधित विषय क्षेत्र की समझ के आधार पर निर्णय लें।
4. शुरुआत प्रस्तावना से करें, जो कई तरह की सकती है, जैसे कोई प्रसिद्ध कथन या उक्ति, कोई उदाहरण या विषय की पृष्ठभूमि। पर प्रस्तावना में एक विजन होना चाहिए और विषय के विस्तार का संकेत भी होना चाहिए।
5 . निबंध को पैराग्राफ में ही लिखें। एक पृष्ठ पर दो से तीन पैराग्राफ अच्छे लगते हैं।
6. जिस तरह खाना न केवल अच्छा बना हो, बल्कि उसका ढंग से परोसा जाना भी उतना ही महत्वपूर्ण है, ठीक इसी तरह निबंध में भी प्रस्तुतीकरण का अच्छा-खासा महत्त्व है।
7. विषय का विस्तार करते वक़्त कोशिश करें कि उसके ज़्यादातर पहलुओं को छू सकें। हर विषय के बहुत से पक्ष हैं, जैसे- आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, दार्शनिक, ऐतिहासिक और वैज्ञानिक। जितने ज़्यादा पहलुओं को छुएंगे, उतना अच्छा प्रभाव पड़ेगा। पर व्यर्थ के विस्तार से बचें।
8. क्रमबद्ध और व्यवस्थित ढंग से लिखें। बेतरतीब और मनमाने ढंग से लिखना खराब प्रभाव छोड़ता है।
9. शब्द सीमा का अतिक्रमण करके समय और श्रम व्यर्थ न करें।
10. निबंध पूरे जीवन के अध्ययन और अनुभव का एक निचोड़ है। लिहाज़ा पढ़ते रहें, लिखते रहें और सीखते रहें।
'' ''कुछ लिखकर सो, कुछ पढ़कर सो,
तू जिस जगह जगा सवेरे, उस जगह से बढ़कर सो।''
-- ( भवानी प्रसाद मिश्र)

Tuesday 17 November 2015

काहे को ब्याही बिदेस


 अमीर ख़ुसरो की एक हजार साल पहले लिखी कविता हमेशा याद करता हूं।
इसकी कई मार्मिक और जीवन से बड़ी होती जाती पंक्तियां हर बार पढ़ने पर अन्दर से भिगो डालती हैं। इसीलिए कहते हैं जिस पर बीतती है वही जानता है। .

 काहे को ब्याही बिदेस, अरे लखिया बाबुल मोरे।
 भइया को दीनो बाबुल, महला दुमहला हमको दियो परदेस।।

 हम तो बाबुल तोरे बेले की कलियाँ, घर-घर माँगी में जाएँ।
 हम तो बाबुल तोरे खूँटे की गइयाँ, जित बाँधो तित जाएँ।।

 हम तो बाबुल तोरे पिंजड़े की चिड़ियाँ, कुहुक-कुहुक रट जाएँ।।
 ताँतों भरी मैंने गुड़िया जो छोड़ी, छूटा सहेलन का साथ।।

 निमिया तले मोरा डोला जो उतरा, आया बलम जी का गाँव।।
 ’काहे को ब्याही बिदेस लखिया बाबुल मोरे’

Monday 16 November 2015

अच्छा बननाशेष रह गया

अच्छा बननाशेष रह गया
मै उतना अच्छा आदमी नहीं निकला
जितनी की मुझे उम्मीद थी कि मै हो पाउँगा
कई बार अच्छा बनाने कि कोशिश में सारी अच्छाई झर जाती है
और अच्छा बनाना फिर भी शेष रह जता है
मुझे भरोषा तो था लेकिन जाहिर है
मैंने उतनी कोशिश नहीं कि जितनी कि जरूरत थी|
मुझे अपने बच्चों कि पढ़ाई लिखाई का जादा तो नहीं
पर इतना अता पता तो रहा कि वे किस दर्जे में पढ़ते हैं
मैंने उन्हें बहुत सलाह नहीं दी और नसीहत या उपदेश भी नहीं
पर उन्हें साफ सफाई से जीवन बसर करना ,किसी पर निर्भर न रहना
अपना कम खुद करना. सर न झुकना ,किसी का एहसान न लेना ,भरसक मददगार होना
अपने पद ,पोजीशन का नजायज फायदा न उठाना वगौरह वगैरह तो आ ही गया /
उनकी अपनी मुश्किलें हैं ,तो मेरी ही कौन सी कम हैं
एक अच्छा पिता ,उन्हें अवसर का लाभ उठाने आज कि दुनिया में
अपना काम निकालने कि कुछ हिकमतें तो बता ही सकता था
जो मैंने नहीं किया....... क्यों कि -
चौंसठ बरस कि उम्र हो जाने के बाद भी
मुझे खुद ही पता नहीं है कि
हमारे समय में जिन्दगी जी कैसे जाती है .
सिर्फ इतना ही समझ पाया कि कैसे
जुटाया जाता है ,छत छप्पर जगह और राहत का सामान .
नहीं समझ पाया कि कैसे खडी की जाती हैं दीवारें ,तोड़े जाते हैं रिश्ते .
क्या होता है चरित्र का छल ,कैसे बनाया जाता है घर को बाजार
इस मायने में पूरा राज कपूर ही रहा -
सब कुछ सीखा हमने न सीखी होशयारी....
सच है दुनिया वालों कि हम हैं अनारी .
मेरे बच्चों ! अगर तुम सफल नहीं होते
तो इसका जिम्मा मेरा जरूर होता.!
हला की आज तुम मुझ पर निर्भर नहीं हो .
जिन्दगी तुम्हारे साथ कल क्या करेगी
इस बारे में मैं कोई अटकल लगना नहीं चाहता
पर अगर मैं अच्छा पिता होता ,तो
तुम्हे इतना अबोध न छोड़ देता जितना
मैंने तुम्हे इस खूंखार वक्त में छोड़ दिया है.
तभी तो चालाक चालों की शरारत ने..
तुम्हे आमूल चूल बदल दिया है..
हालाँकि तुम सब अब भी
मेरी प्यारी संताने हो .
मैं तुम्हे बेहद प्यार करता हूँ .
मैं अच्छा पिता तो नहीं बन सका
तो अच्छा इन्सान बनाने का तो सवाल ही नहीं उठाता
चूक मुझसे कहीं वफादारी में भी हुई है ,
शायद अपने लालच में मैंने सोचा कि
कई जगहें हैं ,हो सकती हैं ,और एक जगह दूसरी को रद्द नहीं करती
मुझे ख्याल तो था कि दुनिया के इतने विशाल होने के बावजूद जगहें बहुत कम ही हैं
जिसे जितनी मिली है उसी पर जम कर काबिज है
और इसकी मोहलत नहीं कि आप जगहों के बीच आवा जाही करते रहें .
मैंने प्रेम ,बांटा नहीं बल्कि पाया कि यह एक ओर बढ़ने से
दूसरी ओर कमतर नहीं होता बढ़ता ही है
आसमान कि तरह एक शून्य बना रहता है
जिसे कई कई सूरज भरते रहते हैं
उन्ही कि धुप में मैं खिलाता और कुम्हिलता रहा .
मैंने जीवन और कविता को आपस में उल्झादिया
जीवन की कई सच्चाइयों और सपनो को कविता में ले गया
आश्वश्त हुआ कि जो शब्दों में है वह बचा रहेगा कविता में .
भले ही जीवन में नहीं..........,गलती यह हुई कि.
जो कविता में हुआ उसे जीवन में हुआ माँन कर संतोष करता रहा .
अपने सुख और दुःख को अपने से बड़ा माँनकर
दूसरों के पास उसे शब्दों में ले जाने कि कोशिश में
वे सब बदल गए और मैं भी
और जो कुछ पन्हुच सका शायद न मैं था न मेरे सुख दुःख ,
मुझे ठीक से पता ही नहीं था कि
हमारे समय में अच्छे दोस्त ही सच्चे दुश्मन होते हैं
अपने ही पक्के पराये .क्यों कि औरों को आप या आप कि
जिन्दगी में दखल देने कि फुर्सत कहाँ है.
कभी कभार के भावुक विष्फोट के अलावा
किसी से अपने दुःख का साझा नहीं किया
न मदद मांगी न शक किया,
गप्पबाजी में ही मन के शक को बह जाने दिया.
कुछ शोहरत ,खासी बदनामी मिली ,
पर बुढ़ापे के लिए ,अपने लिए ,मुश्किल वक्त के लिए ,
कुछ बचाया और जोड़ा नहीं .
किसी दोस्त ने कभी ऐसा करने कि गंभीर सलाह भी नहीं दी.
इसी आपा धापी में किसी कदर
आदमी बनाने कि कोशिश में
चौंसठ बरस गुजर गये पर अच्छा बनाना शेष रह गया
अब तो जो होना था हो गया
डाल के पक्षी अचानक उड़ गए सब फुर्र से
बया बेचारा अकेला रहा गया ,घोसले के द्वार पर लटका हुआ /

Saturday 31 October 2015

पानीदार कथाएं................


दिन में लंघन रात चबेना
भूख खरहटा मारे
दुःख की खरही आस दंवगरा
सुख की धूप निहारे /
संकल्पों की दंवरी नाधे
मन बंजारा आकुल
फांक समय की चख पाने को
चाह अधूरी ब्याकुल /
रच रच जोते खेत करमवा
पाटा मारे भाग
हर पल अंटकी आस बिखरती
दर्द विवाई जाग/
जांता पीसे साँझ जवानी
ढेंकी कूटे रात
बोरसी सुलगे मनोकामना
गोंइठा तापे प्रात /
थक्का थक्का जमी दुपहरी
करवट आधी रात
खैलार दही बिलोये रच रच
मट्ठाआये हाँथ /
चुटकी चुटकी इक्षा बीने
आँचर कोइंछा  पूजे 
फिर फिर जरै ताजी नहि बारू
आग भभुक्का भूंजे /
फुनगी फुनगी चना खोंटती
चढी अगहनी धूप
कांवर कांवर दुरदिन ढोए
पईया  फटके सूप /
रंदा मारे समय पीठ पर
खुरपी छीले घास
 मुल मुल माटी चढ़ी चाक पर
फिर अषाढ़ की आस /
काल दरेंती करवत काटे
बनियाँ मांगे सूद
पीली अरहर खिली खेत में
 गए बटेरे कूद /
टूटी खाट पट टूटे
पिय की बांह उसास
घूरे के भी दिन फिरते हैं
यही लोक विश्वास /
खपरैले पर बोला कागा
ठूठ कुहुँकती कोयल
मन वृन्दावन तुलसी चन्दन
पतझड फूटे कोंपल /
आँखे खोले उषा  सुनहली
कुंवा में लगी आग
कीचड पानी सब जर गए
मेंढक त्तापे आग /
थिगाडा थिगाडा जोड़ जिन्दगी
सुजनी एक बनाये
पथराई  आँखों से कहते
 पानीदार कथाएं/        






Tuesday 11 August 2015

सांप ज्ञान देने से आदमी तो नहीं बनेगा

एक जहरीला सांप था ,सांप की तरह स्वभाविक आचरण करता था ,जैसे जैसे उसकी उम्र बढ़ी उसकी ख्याति कटखने जहरीले सांप के रूप में बढ़ी .जिस क्षेत्र में वह रहता लोग सावधान रहते  .वह जिसे काट लेता वह मर जाता .एक दिन अचानक इस जहरीले सांप की याददास्त लौटी और इसे पता चला की वह पूर्व जन्म में आदमी था पर दुष्कर्म करता था
इस लिए इस जन्म में सांप होगया .उसके मन में आया की अगला जन्म सुधर लिया जाय .वह एक महात्मा के पास गया अपनी कहानी सुना कर अगले जन्म को सुधारने की इक्षा जताई .महात्मा ने डरते हुए दूर से ही कह दिया  सत्संग करो राम कथा सुनो .अब वह सांप भगवान् की कथा का प्रेमी हो गया जहां कथा होती राम चर्चा होती वहां पहुँच जता .पर जहरीले सांप को देख कर लोग भाग जाते .सांप को बोलना तो आता नहीं था  वह दौड़ा कर जिसे मुह से पकड़ता वह मर जाता .अब वह पागल सांप की तरह जाना जाने लगा .सांप फिर महात्मा के पास गया और अपनी कथा बतायी .महात्मा ने कहा तुम काटना छोड़ दो .
अब उसने कटना छोड़ दिया .पहले तो लोग डरते रहे फिर .समझ गए की यह काटता नही .तो बच्चे उसकी पूंछ पकड़ कर घसीटने लगे .उसकी दुर्गति करते पर वह नहीं कटता .एइसे ही एक दिन बच्चों ने उसे अधमरा कर दिया .घायल सांप ने देखा की वहीं से वह महात्मा जी जा रहे हैं उसने उन्हें रोक कर आप बीती सुनाई .महात्मा ने कहा ..भाई मैंने काटने को मना किया था फुफकारने और डर्वाने को नही मना किया था .अब सांप समझ गया वह फुफकारने लगा  जादा क्रोध होने पर काट भी देता ..अब वह फिर धीरे से वाही होने लगा जो था ...यह कथा मात्र कथा है इसे किसी व्यक्ति से जोड़कर मत देखिये गा सांप मनुष्य नहीं हो सकता

Saturday 13 June 2015

खंड खंड पाखण्ड में उलझता जा रहा है मेरा देश

खंड खंड पाखण्ड में उलझता जा रहा है मेरा देशदेश धीरे धीरे फंसी बाद के रस्ते चल पडा . हम किस समय में जीने को अभिशप्त हैं / .पहले इन्हों ने हमारी धार्मिक संस्थाओं का सत्या नाश किया /राष्ट्र के नायकों का सत्या नाश किया /सामजिक संस्थाओं का सत्या नाश किया /जाती और सामाज का सत्य नाश अपने आप हो गया/इतिहास को विवादस्पद कहके झूठा बनाया /नया इतिहास फैलाया /देश द्रोहियों को नायक बनाया और नायकों को अपमानित किया/नोट से गाँधी को हटा कर उन्हें सफाई कर्मी बनादिया ./शांति को तलाक /स्त्यग्रह खुद कर लिया वह भी बंगला देश के लिए /कार्पोरेट ब्यापारी देश पर भारी हैं /रुपये की कीमत निरंतर घट रही है /महंगायी रोज बढ़ रही है /समाज उच् श्रीन्खल हो रहा है असहिष्णु हो रहा है /हिंसा बढ़ रही है/साम्प्रदायिक दंगे भड़काए जा रहे हैं /नशा /झूठ फरेब चरम पर है /और अब तो इन्हों ने सेना के मनोबल को तोड़ने के लिए उसकी विश्वसनीयता भी ख़त्म करना शुरू कर दिया /म्यांमार प्रकरण इसी का संकेत है /इसीतरह हुवा तो सैनिक विद्रोह होजायेगा /कश्मीर अरुणाचल पंजाब आतंकियों के कब्जे में है कमोबेस .....यह सब देश में फंसी बाद के आगमन के लक्षन ही नही पक्की सूचना हैं .जर्मनी में हिटलर के कब्जे के दोसाल पहले यही स्थिति थी .खंड खंड पाखण्ड में उलझता जा रहा है मेरा देश

Saturday 16 May 2015

नकटा संप्रदाय



नारी मुई घर संपाति नासी मूड मुड़ाय भए सान्यासी . 
सन्यासी कथा . 
संजय ,उवाच ...महाराज एक गाँव मे एक दुश्चरित्र सकल्कर्मी दुष्ट था .गाँव वाले जब उस से परे शान हो गये तो .पंचायत मे निर्णय लेकर सब ने मिल कर उसकी नाक काट दी ..अब बच्चे उसे नकटा कह कर पुकार ने लगे .,परे शान होकर नकटा गाँव छोड़ कर भाग गया .कई दिन कई किलोमीटर चल कर वह तक गया भूख प्यास भी लगी सांझ को एक गाँव केबाहर तलब केपास एक पेड़ के नीचे बैठ गया , तका तो था ही .बेहोस हो गया .अब तक उसकी दाढ़ी भी बढ़ चुकी थी .| सुबह लोग दिसा मैदान के लिए सौच के लिए आए तो देखा की एक बीमार आदमी पड़ा है बेहोस |लोगों को दया आई .सेवा दवाई हुई .टे को हॉस आया .लोगो ने नहलवाया खाना दिया |जब थोडा माहौल शांत हुवा तो एक ने पूछा बाबा कहाँ से आरहे हो कहाँ जाओगे ? नकटा बोला .बच्चा .हम ठहरे रमता जोगी ..तीर्थ यात्रा पर जा रहे थे तबीयत खराब हो गयी .ठीक होते ही चला जौँगा .गाँव के लोग लग गये पुण्य के लालच मे बाबा की सेवा करने ,आपस मे होड़ लग गयी , कोई खाना कोई कपड़ा किसी ने कूट बना डी .राम भजन होने लगा .ढूनी जल गयी आस पास खबर हो गयी भीड़ आने लगी चढ़ावा चढ़ने लगा बाबा की चल निकली | बाबा ने सारे प्रोग्राम त्याग दिए वहीं डेरा डाल दिया .| एक दिन एक जिग्यासु ने पूछा ...बाबा बाकी सब तो ठीक है पर आप की नाक कैसे कटी ..नकटा बोला ..राम राम नाक नही नासिका कहो बच्चा .नासिका अहम का प्रतीक है इसके कारण हृदय मे बैठे भगवान के दर्शन मे ब्यावधान हो रहा था .सो हमने नासिका कटवा दी | जिग्यासु ने उत्सुकता से पूछा तो आप को भगवान के साक्षात दर्शन हुए हाँ हुए ..नकटा बोला | हम भी नासिका का त्याग करके भगवान के दर्शन कर सकते हैं क्या ,? जिग्यासु ने पूछा . नकटा बोला हाँ |वह बयकति बोला तो काट दो ..हम भगवान को देखेंगे .नकटा बोला ब्रम्‍ह मुहूर्त मे आना नहा धो कर पूजा करके भगवान का आवाहन करेंगे फिये नासिका त्याग करेंगे फिर दर्शन होगा | दूसरे दिन वह आदमी गया .विधि विधान का नाटक करके नकटा ने उसकी नाक काट डी .| दर्द हुवा वह आदमी छटपटाने लगा ..थोड़ी देर बाद उसे ध्यान आया की भगवान तो दिखे ही नही .वह पहले तो खुद कोशिस किया पर नही दिखे .फिर उसने नकटा से पूछा ..भगवान कहाँ हैं .नकटा जो उत्तर दिए आप भी ध्यान से सुने ..महाराज नकटा बोला ....सेयेल जब भगवान थे तब तो तुम छटपटा रहे थे .वे चले गये .इतनी बड़ी दुनिया मे तुम अकेले तो हो नही जिसे दर्शन देना था .भगवान दूसरे भक्त के पास गये |भक्त बोला अब मेरा क्या होगा .| नकटा बोला अब चिल्ला मैने भगवान को देखा नाक कटवा कर देखा गुरु जी की कृपा से देखा ..नही तो लो तिरस्कृत करेंगे नकटा कहेंगे ..भक्त की समझ मे गया ..वह चिल्लाया ..दिखे दिखे भगवान दिखे ..लोगों ने तिलक लगा कर उसे भी परम हंस बना दिया ..बस एक से दो दो से चार चल पड़ा नकटा संप्रदाय ..........आया कुच्छ समझ मे ...महा राज जी .कहकर संजय चुप हो गये ..मैं भी चुप होता हूँ ..आप सोचिए .. .