Saturday 31 December 2011

शुभकामनायें

सन २०१२ का पहला दिन ,आज रात भर झिम झिम पानी गिरता रहा ,पेड़ पौधे धुल कर धवल हो गए, नवल हो गए, धूल धक्कड़ साफ हो गया है ,खुली हवा में साँस ले रहे है /हम सब भी खुली हवा में साँस लें ,ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ की हम सभी को सदबुद्धि दे ,अपनी क्षुद्र मानसिकताओं से बहार निकल कर खूब सूरत दुनिया को हम खूबसूरत नजरिये से देखना सीखें /"ओं विश्वानि देव सवितर दुरतानि परसुवः इयद भद्रंग च तन्नासुवः /:आज सूर्य की रश्मियाँ नहीं हैं आकाश में बादल हैं फिर भी प्रकाश हो गया है ,ईश्वर सभी के जीवन में नव गति ,नव मति, नव लय ,ताल , छंद नव, सभी को नवल कंठ, नव जलद मंद्ररव नव नभ के नव विहाग ब्रिंद को नव पर नव स्वर दे ,सब का कल्याण हो /:सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया सर्वे भद्राणि पश्यन्तु माँ कश्चिद् दु;खभागभवेत्/"सब हो सुखी सभी समृद्ध हो ,सभी प्रसन्न हो / सारी सीमायें तोड़ कर हम घर समाज राष्ट्र विश्व सभी के कल्याण में लगें /ओं सहना भवतु सहनौ भुनत्तु सह वीर्यं कार्ववाही तेजस्विना बधीतमस्तु महाविदविशावाही / ओं शांति: ओं शांति: शांति:इसी कामना के साथ फेसबुक की रोमांचक वैचारिक यात्रा पर आओ साथ चलें .....हाँ हो सके तो जिम भाग्य शालियों के माता पिता साथ हो वे अपने जनक के चरण स्पर्श अवश्य कर ले इस से दो फायदा तत्काल होगा उन्हें ख़ुशी मिलेगी आप को आशीर्वाद तीसरा लाभ यह होगा की आप की झुकाने की आदत बनी रहेगी और आप पिता के पैरों की फटी वेवैयों को देख कर यह समझ सकेंगे की जिन्दगी उनकी आप से जादा कठिन थी ,फिर भी उन्होंने आप को खूब सूरत दुनिया दी ,जीवन दिया ,धरती पर माता पिता साक्षात् भगवन होते हैं इनका आदर करके आप अपने को सम्मानित ही नहीं करते ईश्वर की कृपा के पात्र हो जाते हैं ..स्वागत नै यात्रा में .... नए संकल्पों के साथ..

Wednesday 28 December 2011

मित्रों देशी भाषा में आज के जीवन का सच है मन दर्पण गया टूट /

कोल्हू घनी सरसों पानी
कहता सब की राम कहानी
कर लो मन मजबूत /
स्नेह घरौंदा हर पल ढहता
इक्षा चना भार में भुन्जता
करम पछोरे सूप /
रद्दा रद्दा जमा अँधेरा
उजड़ा कैसे रैन बसेरा
आशा गूलर फूल /
बीता बीता धूप सरकती
संशय मकड़ी जाला बुनती
कंही हो गयी चूक /
मद्धिम मद्धिम दाह सुलगता
घर के भीतर का घर ढहता
कंहा हो गयी चूक /
बरसों की यह कठिन तपस्या
प्यार समर्पण बनी समस्या
कैसे हो गई चूक /
कैसे कोई खुशियाँ बांटे
करनी भरनी काटें छाटें
थक कर हो गया चूर /
एक बंजारा ब्यथित खड़ा है
खेल नियति का जटिल बड़ा है
जम गयी मन पर धूल /
दुःख का तक्षक नित प्रति डंसता
ओंठ न कोई अईसा दिखता
जहर जो लेता चूस /
धीर पुरनिया कटता लुटता
अपने आँगन रोज घिसटता
हिल गयी उसकी चूल /
पत्ता पत्ता पीला पड़ गया
अंजुरी चेहर थाम्हे रह गया
मन दर्पण गया टूट /

पानीदार कथाएं/

दिन में लंघन रात चबेना
भूख खरहटा मारे
दुःख की खरही आस दंवगरा
सुख की धूप निहारे /
संकल्पों की दंवरी नाधे
मन बंजारा आकुल
फांक समय की चख पाने को
चाह अधूरी ब्याकुल /
रच रच जोते खेत करमवा
पाटा मारे भाग
हर पल अंटकी आस बिखरती
दर्द विवाई जाग/
जांता पीसे साँझ जवानी
ढेंकी कूटे रात
बोरसी सुलगे मनोकामना
गोंइठा तापे प्रात /
थक्का थक्का जमी दुपहरी
करवट आधी रात
खैलार दही बिलोये रच रच
मट्ठाआये हाँथ /
चुटकी चुटकी इक्षा बीने
आँचर कोइंछा  पूजे 
फिर फिर जरै ताजी नहि बारू
आग भभुक्का भूंजे /
फुनगी फुनगी चना खोंटती
चढी अगहनी धूप
कांवर कांवर दुरदिन ढोए
पईया  फटके सूप /
रंदा मारे समय पीठ पर
खुरपी छीले घास
 मुल मुल माटी चढ़ी चाक पर
फिर अषाढ़ की आस /
काल दरेंती करवत काटे
बनियाँ मांगे सूद
पीली अरहर खिली खेत में
 गए बटेरे कूद /
टूटी खाट पट टूटे
पिय की बांह उसास
घूरे के भी दिन फिरते हैं
यही लोक विश्वास /
खपरैले पर बोला कागा
ठूठ कुहुँकती कोयल
मन वृन्दावन तुलसी चन्दन
पतझड फूटे कोंपल /
आँखे खोले उषा  सुनहली
कुंवा में लगी आग
कीचड पानी सब जर गए
मेंढक त्तापे आग /
थिगाडा थिगाडा जोड़ जिन्दगी
सुजनी एक बनाये
पथराई  आँखों से कहते
 पानीदार कथाएं/        












 











              











              

Sunday 25 December 2011

जीवन सबसे कठिन तपस्या ::


(एक कविता लिखी बच्चों के लिए :बन गई सब के लिए;मेरा नाती समृद्ध जो अभी पाँच साल का है ,केलिफोर्निया  में रहता है छुट्टियों में आया है उसे खूब  भाई यह कविता  वह दो दिन में  ही इसे गाने लगा है आप भी गायें )

जीवन सबसे कठिन तपस्या ,सबसे गूढ़ पहेली,
यदि अच्छा इन्सान बनसकें , समझो भर गई झोली /
उठें सबेरे सूरज के संग ,कलियों संग मुस्काएं ,
चिड़ियों के संग पंख लगा कर हम आकाश उड़ जाएँ /
फूलों से हम हँसना  सीखे और कोयल से गाना
फल से लदी डाल से सीखे सब को शीश झुकाना /
साद गुण करें इकठ्ठा कैसे मधु मक्खी बतलाती
काँटों में भी मुस्काते हैं कलियाँ हमें सिखाती /
चढ़ता सूरज नित दुपहर को और संध्या ढल जाता
झुलस झुलस कर दशों  दिशा में सबको रह दिखता /
बिना किसी भी भेद भाव के हवा हमें दुलराती
और आकाश बाँटता अमृत धरती भूख मिटाती /
ऊँची  ऊँची चट्टानों से कल कल झरने झरते
लम्बी यात्रा करती नदियाँ दिन भर बहते बहते /
संध्या सब को चैन बांटतीआँचल में ढक लेती
रात सुनाती लोरी चुप चुप नई कहानी कहती /
 पानी सबकी प्यास बुझाता सबका जीवन दाता
पर्वत सर ऊँचा कर हमको स्वाभिमान सिख लाता/
सच मुच है सौगात जिन्दगी पाँच तत्व की न्यारी
ज्ञान और विज्ञानं सभी कुछ मानव की बलिहारी /
खाली हाथ आये हैं जग में जाना खाली हाथ
कुछ सदगुण सत्कर्म समेटें वही रहेगा साथ/
आस पास विखरा है सोना कर्म धर्म और सपना
समय और आचरण संभालो सारा जग है अपना //   


Saturday 24 December 2011

मै वहां कभी नहीं गया..पर मै वंहा हर क्षण होता हूँ ...

मै वहां कभी नहीं गया..पर मै वंहा हर क्षण होता हूँ ...

मै वहां कभी नहीं गया..पर मै वंहा हर क्षण होता हूँ ...
मेरे घर से थोड़ी दूर पर है .वह कब्रिस्तान
नजदीक ही है वह श्मशान ,एक ही जमीन का टुकड़ा
जो दफनाये गए उनके लिए कब्रिस्तान
जो जलाये गए उनके लिए श्मशान
चारो ओर से खुला है ,हर चुनाव में .
इसके घेरे बंदी की चिंता करते हैं नेता लोग
अपने भाषणों में इसे मरघट कहते हैं ,
लोग दफनाये जाते हैं लोग जलाये जाते हैं इसी मरघट में ,
मोहल्ले के रहवासियों के लिए आबादी के निस्तार का
एक हिस्सा ही है यह/ मरघट मेरे छत से दिखता है /
मेरे घर और मरघट के बीच एक बहुत बड़ा ताल  है
तालाब नुमा /इसमें "आब" नहीं है /फैली है बेशर्मी
डबरा है थोडा सा /इसी में लोटते रहते हैं दिन भर
भैंसें, सूअर ,बकरियां ,गाँयें,कुत्ते और कुत्तों  के पिल्लै
चरवाहे,नशाखोर ,जुआरी ,कचरा बीनने वाले बच्चे ,रात में
कबर बिज्जू /किनारे --नाऊ,धोबी .पान और चाय की दुकान
दुकानों पर ग्राहक .भीड़ .सोहदे .बाल कटवाते लोग
सड़क से स्कूल जाती लड़कियों को घूरते ,पेपर पढ़ते .बीडी पीते चेहरे
दिशा मैदान करने वाले गालो पर हाथ धरे बेशर्मी की आड़ में चैन से शौच करते है /
लोग जलाये जाते हैं ,लोग दफनाये जाते है इसी मरघट में
पर इस दिनचर्या में कोई खलल नहीं पड़ता/एक डाक्टर हैं
अस्पताल भी है उनका  इसी मरघट के किनारे
मरीजों के पलस्तर  काट काट करफेंक देते हैं .कर्मचारी इसी मरघट में रोज /
छितराए रहते हैं मानव अंग प्रत्यंग रोज इसी मरघट में ,इन्ही में खेलते हैं
 कचरा बीनने वाले बच्चे कुत्ते. कुत्तों के पिल्लै  /तालाब और मरघट को
अलग करने वाले मेड पर एक आम का पेड़ है ,कितना पुराना है किसी को नहीं पता
चांदनी रात में मेरे घर की छत से दिखता है.मरघट का विस्तार और आम का पेड़/ 
मेरे लिए आम के पेड़ का इस जगह होने का कोई अर्थ ,या प्रयोजन नहीं
पर आम के पेड़ का इस जगह होने का अर्थ भी है ,प्रयोजन भी है
पेड़ है तो छाया है .कोटर है मधु मक्खियों का छत्ता है चिड़ियाँ है घोसला है
गलियों में लुका  छिपी खेलते बच्चों की तर्ज पर आगे पीछे सरपट भागती हैं
 गिलहरियाँ इस की मोती डालों के बीच /इस पेड़ के वंहा  होने की कोई योजना नहीं थी फिर भी वह वहां हैऔर उसके होने से बहुत कुछ है /ऋतुएं आती हैं जातीं हैं
पतझड़ होता है .बसंत आता है कोयल कूकती है छाया होती है बच्चे अमियाँ तोड़ते हैं
पत्थर मार मार कर  ,मै वंहा कभी नहीं गया पर हर क्षण होता हूँ
,हर जलती चिता में हर  दफ़न होती लाश में ......


 

Friday 23 December 2011

उतनी खुसी हमारे जीवन में /

सुनो दुखी मत हो .
हौसला रखो
.देखना .
हम जीत ही जायेंगे
एक दिन ./
बस हाथ पकड़ी रहो .
थोडा मुस्कराते रहो/
हम ने पढ़ा है .
दुःख सब को मांजता है/
फिर से लौट कर आयंगी बहारें
तब तुम पलकों पर सहेज कर
धीरे से उतार लेना उन्हें जीवन में /
हम  थके नहीं हैं ,
हमारी उम्र भी थकने की नहीं है अभी /
तुम पगली न जाने क्यों घबराती हो
चलो यह भी एक हिसाब  से अच्छा ही है /
इसी बहाने मेरे आस पास तो रहती हो ,
लेकिन छोडो यह सब
जरा जोर से खिल खिला कर हंसो/
 तुमको मालूम नहीं
तुम कितनी अच्छी लगती हो जब
जब खिल खिला कर हंसती हो /
एक बात कहूं ,सच मानोगी ?
जितनी हंसी तुम्हारे ओंठों पर
उतनी  खुसी हमारे जीवन में /

उतनी खुसी हमारे जीवन में /

Thursday at 2:33pm · Edit · Discard
सुनो दुखी मत हो .
हौसला रखो.देखना .
हम जीत ही जायेंगे एक दिन ./
बस हाथ पकड़ी रहो .
थोडा मुस्कराते रहो/ हम ने पढ़ा है .
दुःख सब को मांजता है/
,फिर से लौट कर आयंगी बहारें
तब तुम पलकों पर सहेज कर
धीरे से उतार लेना उन्हें जीवन में /
हम  थके नहीं हैं ,
हमारी उम्र भी थकने की नहीं है अभी /
तुम पगली न जाने क्यों घबराती हो
चलो यह भी एक हिसाब  से अच्छा ही है /
इसी बहाने म...

Thursday 22 December 2011

manthan 2

हमारी सामूहिकता का रूप बदल गया है /अब यह अनेकता में एकता नहीं है /एकता में अनेकता है /सबकी अनेकता को संयोजित करके एकता बनाये रखने के लिए जिस सहिष्णुता की जरूरत है ,वह मात्र सहन शीलता नहीं है उससे कुछ जादा है ,बल्कि बहुत जादा है ,यंहा विचार के साथ त्याग की ,दूसरे के सम्मान की ,दूसरे को खुश देख कर प्रसन्न होने के आदत की ,,त्याग के द्वारा भोग की जरूरत है और ये सभी हमारे समाज से नदारत हैं /जो ठगे जा रहे हैं उन्हें सभी ठगते हैं नेता ,योगी, भोगी, जोगी,पार्षद ,पटवारी पुलिस भी, चोर भी, अन्ना, गुरु ,साधू, सभी /इसलिय वे भी चतुराई से अपने को सुरक्षित करते है अपना काम निकलते हैं ,जीना तो है /इन्ही सब छोटी सोच की वजहों से छोटी समस्याएं जन्म लेतीं हैं/देश की अराजकता इन्ही की उपज है /जो जन्हा है दम्भी हो गया है /बज्जत हो गया है /अराजक हो गया है ,ये दम्भी ,ये बज्जात ,ये अराजक ,जादा संगठित है ,आक्रामक हैं /शक्ति शाली हैं /भूल जानी चाहिए बचपन की कथा की सात लकड़ी एक साथ हो तो नहीं टूटेगी, आज छप्पन एक साथ हों तो भी बिखर जायेंगे एक मिनट नहीं लगता /सभी के ( वेस्टेड इन्त्रस्त) सोचने ,लाभ ,हानि की परिभाषा बदल गई है /देश बहुत काम की सोच में प्राथमिक है /पर शुक्र है की है /इस लिए देश रहेगा ..
यूनान रोम ,मिश्र सब मिट गए जन्हा से, बाकी रहा है अब तक नमो निशान हमारा
,कुछ बात है की हस्ती मिटती नहीं हमारी, दुश्मन रहा है सदियों दौरे जन्हा हमारा ......
मुझे क्षम करना दोस्तों अब बस ,..क्षमिहन्ही सज्जन मोर ढिठाई /

manthan 1


  • · · · a few seconds ago near Indore
  • जाति, भाषा, क्षेत्र, धर्म, लाभ, हानि ,पद, नौकरी,लिंग भेद,गरीब अमीर /शोषक, दलित ,अगड़े पिछड़े /फिर उसमे भी पिछड़ी उच्च जाति ,अल्प संख्यक/ उसमे भी तीन के ,तेरह के... /किस किस पर बंहस करेंगे मित्र /हमारे देश का सामाजिक नियमन एक दूसरे से जुड़ा है /यह न तो अंगूर का गुच्छा रह गया /न ही फूलों का गुलदस्ता /इसे यों समझें की यह एक अनार है /अनार के दाने एक तासीर के हैं ,एक रूप के, एक रंग के हैं ,एक रस के ,किन्तु ये दाने हैं ,ये जिस खोल में बंद है ,उसके भीतर दानो को संयोजित करने की कोई लकीर नहीं होती / बहुत जटिल है यह संयोजन /उतना ही जटिल हमारे देश का सामाजिक निय मन /अनार को चाहे जन्हा से काटो कोई न कोई दाना कटे गा /रस चुयेगा /दाने गुम्फित हैं ,गुत्थम गुत्था हैं /उनका अलग आकार हो जाता है खोल से बहार आकर /उनकी अलग पर्सनालिटी हो जाती है /वे हमारी तरह जीव नहीं पर सोचें अगर वे बोल सकते तो/इसी प्रकार जब हम किसी एक पर चर्चा करते हैं तो दूसरा परेशान होने लगता है /अब हम हकीम लुकमान तो है नहीं /और लाल बुझक्कड़ की तरह हर जगह हिरन दौड़ाने से कुछ नहीं होता /जय हो ...फील गुड ...मूंदहु आंख कतहु कछु नहीं ....जय श्री राम ..जय

Tuesday 20 December 2011

ved mantr ..contd 6

शुभ प्रभात /मित्रों ..कल से आगे
यजुर्वेद ३६/१४ ओं तच्चक्षु  देर्वहितं पुराश्ताच्छुक्र्मुच्च्रत
पश्येम शरदः शतं जीवेम:शरद शतं श्रुणुयाम शरदः शतं प्रब्रवाम शरदः शत मदीना:स्याम शरदः शतं भूयश्च शरदः शतात//४//अर्थात वह ब्रम्ह जो सर्व द्रष्टा ,उपासकों का हित करी ,और पवित्र है  जो श्रृष्टि के पूर्व से वर्तमान है उसकी कृपा से हम .देंखे १०० वर्ष  तक /जीवें १०० वर्ष तक /सुनें १०० वर्ष तक /बोलें १०० वर्ष तक /  स्वतंत्र रहें १०० वर्ष तक और १०० वर्ष से भी अधिक देंखे सुने जीए /
अब ..ओं सन्नोदेवीरभिष्ठय आपोभवन्तुपीतये संयोरभीश्रवन्तुनह .. .का पाठ कर तीन आच मन करें फिर गायत्री मन्त्र पढ़ें /ओं भूर्भुवः स्वह /तत सवितुरवरेण्यम भर्गो देवस्य धीमहि धियो इयो नःप्रचोदयात /यजुर्वेद.३६/३// ( अर्थ सबसे पहले दिए अनुसार )आज इतना ही कल फिर आगे ...आप का दिन शुभ हो ,कल्याण कारी हो , फल दाई  हो /     

रूस में गीता पर प्रति बांध की आशंका ;हमारी सोच ;......वह रे मिडिया वह रे देश वह रे संसद वह रे नेता ,,,,...

रूस में गीता पर प्रति बांध की आशंका ;हमारी सोच ;......वह रे मिडिया वह रे देश वह रे संसद वह रे नेता ,,,,...
रूस के तोमास्क की अदालत में इस वर्ष जून से यह मुकदमा चल रहा है /इस मामले में इस्कान के संस्थापक ए.सी .भक्ति वेदांत स्वामी प्रभुपाद द्वारारचित भगवदगीता एज इट इज पर प्रतिबन्ध लगाने की मांग उक्त कोर्ट से की गई है और कहा गया है की यह सामाजिक कलह फ़ैलाने वाला ग्रन्थ है अतः रूस में इसके वितरण पर प्रतिबन्ध लगाया जाय /इसे अवैध घोषित किया जाय / गीता पर प्रतिबन्ध की बात नहीं की गई है /बिना समझे ही हम उद्दिग्न होते हैं /मान नीया परम आदरणीय सुषमा स्वराज्य को क्या कंहू दो कदम और आगेहो कर गीता को राष्ट्रीय पुस्तक घोषित करने की मांग कर बैंठी /आप जब फील गुड कर रहीं थी तब क्यों नहीं किया बहन जी / रूस में बसे १५००० भारतीय और इस्कान के अनुयाई प्रधान मंत्री से हस्तक्षेप् की मांग कर रहे हैं /भारत में भी हिदू धर्मावलम्बी चिंतित हैं ,सरकार की नाकामी कहकर कुछ समाचार भी आ रहे है /यह है हमरी मानसिकता /हमारे मिडिया को तो जोक्पल मिलगया //बहती गंगा में कोई बाइबिल पर प्रति बन्ध की बात कर रहा है /कोई सभी को भड़का रहा है /मिडिया और गैर जिम्मेदार है /उसे चाहिए की सही बात पता करे /
आप को पीड़ा हो रही है तो प्रभुपाद को क्यों नहीं कुछ बोलते / उन्होंने वह ब्याख्या क्यों की उसका तर्क क्या है /तिलक/राधा कृष्णन/गाँधी जी आदि कईयों ने गीता का भाष्य किया है /पर प्रभुपाद ने ऐसा क्या किया उन्हें देश को बताना चाहिए वहां तो हिम्मत भी नहीं है और बोलेंगे क्या चोर चोर मौसेरे भाई ,सारे मिलकर समस्या खड़ी करते हैं सारे मिलकर सरकार को दोष देते हैं /असल में प्रभुपाद की ब्याख्या .भगवद गीता एज इट इज के प्रतिबन्ध की मांग की गई है मुक़दमे में /गीता पर नहीं/सारे मिलकर आन्दोलन करते है ,,वह रे हमारी सोच... गुंडे को सलाम गुंडई सरकार रोके ..सामान्य लोग इस षड्यंत्र को कब समझेंगे .प्रति बन्ध की मांग गीता की उसब्याख्या पर है जो प्रभुपाद ए.सीभक्ति वेदांत .जी ने की है / पुस्तक गीता पर नहीं / उसको समझिये और अफवाहों से सावधान रहिये ,
आप को पीड़ा हो रही है तो प्रभुपाद को क्यों नहीं कुछ बोलते /वहां तो हिम्मत भी नहीं है और बोलेंगे क्या चोर चोर मौसेरे भाई ,सारे मिलकर समस्या खड़ी करते हैं सारे मिलकर सरकार को दोष देते हैं / सारे मिलकर आन्दोलन करते है ,,वह रे हमारी सोच... गुंडे को सलाम गुंडई सरकार रोके ..सामान्य लोग इस षड्यंत्र को कब समझेंगे ...

Monday 19 December 2011

ved mantr ..contd 5

मित्रों शुभ प्रभात ,एक और खूब सूरत दिन ईश्वर ने हमें दिया  हम उसके आभारी हैं /
अभी तक आप ने अपने लिए प्रति दिन किये जाने वाली प्रार्थना पढ़ा /कर्तब्य १/२ अब आप ईश्वर के सम्बन्ध में आप को क्या करना चाहिए पढ़े -कर्तब्य -३ ..उपस्थान मन्त्र
यजुर्वेद ३५/१४...
ओम उद्वयं तमस्परी स्व:पश्यंत /उत्तरम देवं देवत्रा सूर्यमगन्म जयोतिरुत्त  मम //१//अर्थात -- हम अविद्या अंधकार से रहित ,सुख स्वरूप ,प्रलय के पश्चात् भी रहने वाले देव,दिब्य गुण युक्त सर्वोत्तम के आत्मा को जानते हुए उच्च्भाव को प्राप्त हों /
यजुर्वेद ३३/३१
ओम उदु त्यं जातवेदसं देव बहन्ति केतवः/दृशे विश्वायसूर्यम //२//अर्थात ...निश्चय ही  उस  वेदों के प्रकाशक चरात्मा ईश्वर को ,सब को दिखलाने के लिए ,जगत की रचना आदि गुण रूप पताकाएं भली भांति दिखलाती हैं /
यजुर्वेद ७/४२
ओं चित्रं देव नामुदगादनीकं चक्षुर्मित्रस्य वरुणस्यागने: /आप्रा द्यावापृथ्वी अन्तरिक्ष सूर्य्य आत्मा जगतस्थुशश्चस्वाहा //३//अर्थात ..वह ईश्वर उपासकों  का,विचित्र बल,वायु,जल और अग्नि का ,प्रकाशक ,प्रकाशक और अप्रकाशक  लोंकों का तथा अन्तरिक्ष का धारक ,प्रकाश स्वरूप जंगम और स्थावर का आत्मा है /कल इसके आगे ...क्रमशः..                     

Sunday 18 December 2011

राम की जल समाधि :;भारत भूषन (भारत भूषन की कविताउनकी याद में )

राम की जल समाधि :;भारत भूषन (भारत भूषन  की कविताउनकी याद में )
पश्चिम में ढलका सूर्य उठा वंशज सरयू की रेती से,
हारा-हारा, रीता-रीता, निःशब्द धरा, निःशब्द व्योम,
निःशब्द अधर पर रोम-रोम था टेर रहा सीता-सीता।
           *                *                     *
किसलिए रहे अब ये शरीर, ये अनाथमन किसलिए रहे,
धरती को मैं किसलिए सहूँ, धरती मुझको किसलिए सहे।
तू कहाँ खो गई वैदेही, वैदेही तू खो गई कहाँ,
मुरझे राजीव नयन बोले, काँपी सरयू, सरयू काँपी,
देवत्व हुआ लो पूर्णकाम, नीली माटी निष्काम हुई,
इस स्नेहहीन देह के लिए, अब साँस-साँस संग्राम हुई।

ये राजमुकुट, ये सिंहासन, ये दिग्विजयी वैभव अपार,
ये प्रियाहीन जीवन मेरा, सामने नदी की अगम धार,
माँग रे भिखारी, लोक माँग, कुछ और माँग अंतिम बेला,
इन अंचलहीन आँसुओं में नहला बूढ़ी मर्यादाएँ,
आदर्शों के जल महल बना, फिर राम मिलें न मिलें तुझको,
फिर ऐसी शाम ढले न ढले।,
      *                     *                        *
ओ खंडित प्रणयबंध मेरे, किस ठौर कहां तुझको जोडूँ,
कब तक पहनूँ ये मौन धैर्य, बोलूँ भी तो किससे बोलूँ,
सिमटे अब ये लीला सिमटे, भीतर-भीतर गूँजा भर था,
छप से पानी में पाँव पड़ा, कमलों से लिपट गई सरयू,
फिर लहरों पर वाटिका खिली, रतिमुख सखियाँ, नतमुख सीता,
सम्मोहित मेघबरन तड़पे, पानी घुटनों-घुटनों आया,
आया घुटनों-घुटनों पानी। फिर धुआँ-धुआँ फिर अँधियारा,
लहरों-लहरों, धारा-धारा, व्याकुलता फिर पारा-पारा।

फिर एक हिरन-सी किरन देह, दौड़ती चली आगे-आगे,
आँखों में जैसे बान सधा, दो पाँव उड़े जल में आगे,
पानी लो नाभि-नाभि आया, आया लो नाभि-नाभि पानी,
जल में तम, तम में जल बहता, ठहरो बस और नहीं कहता,
जल में कोई जीवित दहता, फिर एक तपस्विनी शांत सौम्य,
धक धक लपटों में निर्विकार, सशरीर सत्य-सी सम्मुख थी,
उन्माद नीर चीरने लगा, पानी छाती-छाती आया,
आया छाती-छाती पानी।
*                                 *                    *

आगे लहरें बाहर लहरें, आगे जल था, पीछे जल था,
केवल जल था, वक्षस्थल था, वक्षस्थल तक केवल जल था।
जल पर तिरता था नीलकमल, बिखरा-बिखरा सा नीलकमल,
कुछ और-और सा नीलकमल, फिर फूटा जैसे ज्योति प्रहर,
धरती से नभ तक जगर-मगर, दो टुकड़े धनुष पड़ा नीचे,
जैसे सूरज के हस्ताक्षर, बांहों के चंदन घेरे से,
दीपित जयमाल उठी ऊपर,
सर्वस्व सौंपता शीश झुका, लो शून्य राम लो राम लहर,
फिर लहर-लहर, सरयू-सरयू, लहरें-लहरें, लहरें- लहरें,
केवल तम ही तम, तम ही तम, जल, जल ही जल केवल,
हे राम-राम, हे राम-राम
हे राम-राम, हे राम-राम ।

ved mantr ..contd 4

मित्रों शुभ प्रभात
वेद की ऋचाएं :आप की नित्य पूजा
कल से आगे ;(अथर्व ३/२७/५/
ओं ध्रुवादिग्विश्नुरधिपतिः कल्माषग्रीओ रक्षितावीरुधइषवः/तेभ्यो नमो अधिपतिभ्यो नमो रक्षत्रिभ्यो नम इषुभ्यो  नम एभ्यो अस्तु /योअस्मन द्वेष्टि  यं वयं     द्विषमषतं वो जम्भेदध्मः//५//   अर्थात .नीचे की दिशा में विष्णु स्वामी हैं और  काली गर्दन वाले जीवों से रक्षा करते हैं /वृक्ष लता आदि उनके बाण हैं /हम उनका आदर सम्मान करते है ,हम सभी का सम्मान करते हैं /
ओम ऊर्ध्वादिग वृहस्पतिरधिपतिः शिवत्रोरक्षिता वर्षमिशव:/ तेभ्यो नमो अधिपतिभ्यो नमो रक्षत्रिभ्यो नम इषुभ्यो  नम एभ्यो अस्तु /योअस्मन द्वेष्टि  यं वयं     द्विषमषतं वो जम्भेदध्मः//६//अर्थात ...ऊपर की दिशा में वृहस्पति महान स्वामी हैंवे स्वेट कुष्ठआदि  रोंगों से रक्षा करते हैं वर्षा का जल उनके बाण स्वरूप हैं / हम उनका आदर सम्मान करते है ,हम सभी का सम्मान करते हैं /टीप;....
(इन छहों मंत्रो में पूर्व पश्चिम उत्तर दक्षिण ऊपर नीचे दिशा  के रक्षक  देवता अग्नि इंद्र वरुण सोम विष्णु वृहस्पति,उनके हथियार और संभावित कष्ट का उल्लेख तथा निदान है हम उन सभी का सम्मान करते हैं /)शेष तीसरा कर्तब्य कर्म   अगले दिन.... आप का दिन शुभ हो सभी दिशाओं के देवता आप की रक्षा करें                     

Saturday 17 December 2011

dhartee

रोज सुबह घर आंगन बहारते ,
संध्या तुलसी को संझौती लेसते लेसते
दिया ,देहरीऔर घर आँगन हो गई
आंटा गूंथते गूंथते लोई में तब्दील हो गई
अब तो वह धरती बन गई है
क्या इतना आसान है अपने को धरती बना लेना ?

रूस में गीता पर प्रति बांध की आशंका ;हमारी सोच ;..

....
रूस के तोमास्क की अदालत में इस वर्ष जून से यह मुकदमा चल रहा है /इस मामले में इस्कान के संस्थापक ए.सी .भक्ति वेदांत स्वामी प्रभुपाद द्वारा भगवदगीता एज इट इज पर प्रतिबन्ध लगाने की मांग उक्त कोर्ट से की गई है और कहा गया है की यह सामाजिक कलह फ़ैलाने वाला ग्रन्थ  है अतः रूस में इसके वितरण पर प्रतिबन्ध लगाया जाय /इसे अवैध घोषित किया जाय /रूस में बसे १५००० भारतीय और इस्कान के अनुयाई प्रधान मंत्री से हस्तक्षेप्  की मांग कर रहे हैं /भारत में भी हिदू  धर्मावलम्बी चिंतित हैं ,सरकार की नाकामी कहकर कुछ समाचार भी आ रहे है /यह  है हमरी मानसिकता /हम खुद या हम में से कोई एक गन्दा करे हम सब मिलकर प्रधान मंत्री को दोष दें /प्रधान मंत्री न हुए
सफाई  कर्मी हो गए/ जब इस्कान के ही प्रभुपाद ने मुकदमा दायर किया तो रूस और भारत क्या करे /आप को पीड़ा हो रही है तो प्रभुपाद को क्यों नहीं कुछ बोलते /वहां तो हिम्मत भी नहीं है और बोलेंगे क्या चोर चोर मौसेरे भाई ,सारे मिलकर  समस्या खड़ी करते हैं सारे मिलकर सरकार को दोष देते हैं / सारे मिलकर आन्दोलन करते है ,,वह रे हमारी सोच... गुंडे को सलाम गुंडई सरकार रोके  ..सामान्य लोग इस षड्यंत्र को कब समझेंगे ... 

bitiya

,गौर से देखो अपनी बिटिया को
इतना सुन्दर इतना मोहक
श्रृष्टि में नहीं कोई दूसरा फूल
सोचो तो जरा ,ये मात्र बिटिया नहीं है
प्राण शक्ति है हमारी ,जीवन रेखा है
मैंने महसूस किया है ,इसकी खिलखिलाहट को
जो असरदार बनादेती है
मेरी कोशिशों को .......
( अमेरिका में )

pyari aatma ko sneh ki samajhaal

ये दिन भी बीत ही जायेंगे /धीरज रखो .
.कुछ भी ठहरा नहीं रहता /
न समय न सुख तो दुःख भी नहीं ,
फिर कैसी हताशा और कैसी निराशा /
देखो तुम्हारे पति के पास किसान की विरासत है
उसने अपने पिता की आँखों में कभी साँझ नहीदेखा
माँ को कभी हारते नहीं देखा /

pyari aatma ko sneh ki samajhaal photo scen and downlod by me

ved mantr ..contd 3

शुभ प्रभात मित्रों  वेदों में  प्रति दिन गृहस्थ  के लिए किये जाने वाले संध्या कर्म निर्धारित हैं अभी तक आप ने पढ़ा की आप का पहला कर्तब्य क्या है ,दूसरे कर्तब्य की पहली कड़ी अब पढ़िए आगे .......
अथर्व वेद ३/२७/३/...
ओं प्रतीची दिग्वरुनोअधिपति: प्रिदाकू रक्षितानंमिषाव:/  तेभ्यो नमोअधिपतिभ्योनमो   रक्षितुभ्यो नम एभ्योअस्तु /यो अस्मान द्वेस्ती यं वयं द्विस्मस्तंवो जम्भे दद्मः //३//    अर्थात....पश्चिम दिशा में वरुण स्वमी हैं विषैले प्राणियों से रक्षा करते हैं घृत उनके बाण  के सामान है  /उनके लिए नमस्कार ,उनका आभार सभी के लिए आदर /
ओम उदीची दिक्सोमोअधिपति:स्वजोरक्षिताश निरिषव:/ तेभ्यो नमोअधिपतिभ्योनमो     रक्षितुभ्यो नम एभ्योअस्तु /यो अस्मान द्वेस्ती यं वयं द्विस्मस्तंवो जम्भे दद्मः / ३/२७/४/
अर्थात ...
उत्तर दिशा में सोम शांति स्वरूप ईश्वर हैं स्वामी हैं स्वयं उत्पन्न कीटआदि से रक्षा करते है अकाशी विद्दयुत उनका बाण है /उनके लिए नमस्कार ,उनका आभार सभी के लिए आदर
शेष ५/६/कल आप का दिन शुभ हो   
    

vad mantr

कल हमने ऋग्वेद के सूर्य मन्त्र.. ओं भूर्भुवः स्वः ततसवितुर्वरेनियम भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नह प्रचोदयात ... से शुरुआत की थी /आज यजुर्वेद अध्याय ३६ मन्त्र १२.. से *ओं. सन्नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये/ शंयोरभि स्रवन्तु नः /
(कल्याण कारी सर्व प्रकाशक ईश्वर इक्षित फल के लिए, आनंद प्राप्ति के लिए हम पर सर्वब्यापक हों /सुख की वर्षा करें )
*ओं..वाक़ ,वाक़ /ओं प्राणः प्राणः/ ओं चक्षुःचक्षुः/ओं श्रोत्रं श्रोत्रं/ ओं नाभिः/ ओं हृदयं/
ओं कंठः/ ओं शिरः/ ओं भाहुभ्यामयशोबलम / ओं करतलकरप्रिश्ठ्ये /(हे ईश्वर मेरी वाणी, प्राण (नासिका )चक्षु, कर्ण ,नाभि, ह्रदय ,कंठ ,शिर, बाहु और हाथ के ऊपर नीचे के भाग ,अर्थात सभी इन्द्रियां बलवान और यश वाली हों / याद रखें बिस्तर छोड़ने के पूर्ब दोनों हाथ सामने फैला कर बोलें ..कराग्रे बसते लक्ष्मी, करमद्धे सरस्वती, करमूले च गोबिन्दम प्रभाते कर दर्शनम / (आगे कल फिर ) शुभ प्रभात ....आप का दिन सार्थक हो .

पढ़िए कल से आगे ;-
प्राणायाम मन्त्र -ओं भू:,ओं भुव:,ओं स्वः, ओं मह:,ओं जन:,ओं ताप:, ओं सत्यम (अथर्व)
ओं ऋतंच सत्यांचाभीद्धात्तापसोअद्ध्यजायत,ततो रात्र्यजायत ततः समुद्रो अर्णवः / समुद्रअद्र्न्वादाधि संवत्सरो अजायत ,अहो रात्रानि विदधद्विश्व्स्य मिषतो वशी / सूर्याचन्द्रमसौ धाता यथापूर्वंमकल्प्यत,दिवंच पृथ्वींचान्तरिक्षमथोस्वः /(ऋ .वेद१०/१९०/१/२/३) अर्थात ईश्वरीय ज्ञान वेद जो तीनो काल में एक जैसा रहा करता है और प्रकृति ईश्वर के ज्ञान मय अनंत सामर्थ्य से प्रकट हुए हैं उसी सामर्थ्य से महाप्रलय , महारात्रि प्रकट हुई है /आकाश जालों से भरा है/ धाता (धारण करने वाले )ने सूर्य और चन्द्र को पूर्व कल्प के सामान रच लिया थाप्रकाश मन और प्रकाश रहित लोक भी रच लिया था और अन्तरिक्ष भी /(अभी तक आप ने जो तीन दिनों में पढ़ा यह आप की नित्य प्रातः पूजा का पहला कर्तब्य है काल से दूसरा कर तबी....)आप का दिनमान शुभ हो ...

मित्रों अभी तक आप ने जो पढ़ा वह आप का रोज का अपने लिए किया जाने वाला पहला कर्तब्य था / अब,दूसरा कर्तब्य ..
अथर्व वेद-(3/१७/१//) से ........
ओं प्राची दिगग्निराधिपतिरक्षितो रक्षितादित्याइषवः /तेभ्यो नमो अधिपतिभ्यो नमो रक्षित्रिभ्यो नम इशुभ्यो नमं एभ्यो अस्तु /यो असमान द्वेस्ति यं वयं द्विष्मस्तं वो जम्भे दध्मः //१//अर्थात ..पूर्व दिशा में प्रकाश स्वरूप ईस्वर स्वमी अंध कर से रक्षा करने वाला है /सूर्य की किरने वन रूप हैं ,उस स्वामी के लिए नमस्कार /रक्षक को नमस्कार,वाणो के लिए आदर उन सब के लिए भी आदर जो हमसे द्वेष करता है ,जिससे हम द्वेस करते हैं ,उस द्वेष भाव को आप के विनाशक शक्ति के सम्मुख रखते हैं /
अथर्व वेद ३/२७/२//
ओं दक्षिणा दिगिन्द्रो अधिपतिस्तिरश्चिराजी रक्षिता पिटर इषवः /तेभ्यो नामोअधिप्तिभ्यो नमो रक्षित्रिभ्यो नम इशुभ्यो नम एभ्यो अस्तु /यो असमान द्वेस्ति यं वयं द्विमस्तं वो जम्भी दध्मः //२//अर्थात ...दक्षिण दिशा में ऐश्वर्यवान इंद्र स्वामी है ,टेढ़े चलने वालो से रक्षा करता है, चन्द्र किरणे उसके बाण तुल्य हैं /शेष अर्थ ऊपर के अनुसार ....

Friday 16 December 2011

नभचर

अबकी जब तुम आना नभचर ,वह संगीत रचाना
नया गीत, नव छंद, ताल नव, नव सुर देकर जाये/
मिले नया आलोक जगत को टूटे सब भ्रम रचना
नए मीत नव संकल्पों से उत्साहित धुन गाएं/
धानी रंग चुनरिया रंगना मन रस बस कर जाना
चढ़ी अटारी ग्राम बधूटी कजरी के स्वर गाये/
खपरैलों पर कागा बोले गोरी झूले झूला
सैयद -सीता एक साथ फिर गुडिया ब्याह रचाएं/
अम्मा बैठें एक बार फिर जांते पर भिनसारे
अपने भोर गीत मंगल से अमृत सुर बरसायें/
दही बिलोती दादी गांए मक्खन खाते दादा
रहे न कुछ भी छद्म कपट सब होवे सादा सादा/
बूढ़े बरगद की छैंया में फिर से गूंजे आल्हा
ताल ठोंक कर भिड़ें अखाड़े फागू और दुलारे/
फुलवा से फिर करें ठिठोली बूढ़े रमई काका
चौपालों पर रोज साँझ को बरसें प्रेम फुहारे/

Thursday 15 December 2011

भोर हुई भोर हुई

सूरज ने कुछ देर से खोले जब आज द्वार
पलट गई हौले से रंग भरी गगरी
सरसों के खेत पीले हो गए 
किरणों ने  चुप चाप दस्तक दी आँगन में
बिखर गई अल्पना बन अरुणाभ  धूप
हवा ने हौले से हिला दिया पारिजात
रच गई रंगोली  नारंगी फूलों की
जस्मीन की लता ने स्वेत पुष्प ज्यों बिखराए
इंद्र धनुष उतर गया आँगन में मेरे
आंवले की फुनगी से गवरैया बोली  भोर हुई भोर हुई
 

जीवन में बहुत बवाल है

जीवन में बहुत बवाल है
वरना कौन भूलता उन बे फिकर दिनों को
आप भी नहीं भूले होंगे पर, याद नहीं करते होंगे हरदम
आखिर कौन है इतना फुर्सतिहा ,बहुत मार काट मची है इन दिनों
जिसे देखो वही,धकियाते जा रहा है एक दूसरे को ,
पेले पड़ा है ..एक दूसरे के पैरों में सिर डाले..भेड़ की तरह..
ऐसे में महज इतना ही हो जाय तो भी समझो बहुत अच्छा की ....
अपने काम के बाद जब आप पोंछ रहे हों अपना पसीना
तो बस याद आजाये पसीना पोंछते पिता का चेहरा
हम समझें यह की जिन्दगी उनकी भी कठिन थी ,दुरूह थी
और यह की दुनियां सिर्फ हमारी बपौती नहीं है
यंहा सब को हक़ है जीने का ,अपनी पूरी आजादी के साथ
जीवन में बहुत बवाल है
वरना कौन भूलता उन बे फिकर दिनों को
आप भी नहीं भूले होंगे पर, याद नहीं करते होंगे हरदम
आखिर कौन है इतना फुर्सतिहा ,बहुत मार काट मची है इन दिनों
जिसे देखो वही,धकियाते जा रहा है एक दूसरे को ,
पेले पड़ा है ..एक दूसरे के पैरों में सिर डाले..भेड़ की तरह..
ऐसे में महज इतना ही हो जाय तो भी समझो बहुत अच्छा की ....
अपने काम के बाद जब आप पोंछ रहे हों अपना पसीना
तो बस याद आजाये पसीना पोंछते पिता का चेहरा
हम समझें यह की जिन्दगी उनकी भी कठिन थी ,दुरूह थी
और यह की दुनियां सिर्फ हमारी
नी पूरी आजादी के साथ
बपौती नहीं है
यंहा सब को हक़ है जीने का अप
नी पूरी आजादी के साथ
,
नी पूरी आजादी के साथ

हठ कर बैठा चाँद

हठ कर बैठा चाँद
एकदिन जब उसका मन डोला
रो रो कर अपनी मम्मी से तब उसने यह बोला
सिल्वा दो माँ मुझे ऊन का मोटा एक झिंगोला /
आसमान के सारे तारे कहते हैं सब मुझसे
तेरी मम्मी प्यार करे ना चंदा भैया तुमसे /
जाड़े में सब लोग पहनते मोटा मोटा कपडा
फिर भी नंगे रहते होतुम बोलो क्या है लफडा /
सन सन करती हवा रात भर जाड़े से मरता हूँ
ठिठुर कर किसी तरह यात्रा पूरी करता हूँ /
मुझे चाहिए ब्रेंडएड कपडे चलो मॉल से लूँगा
उन्हें पहन कर आज रात को सब को उत्तर दूंगा/
सुन चंदा की बात कहा मम्मी ने अरे सलोने
कुशल करें भगवान,लगे मत तुझको जादू टोने /
आज दिला दूँगी मै तुझको कपडे अच्छे अच्छे
चल प़ीले अपना दूध और हठ कर ना मेरे बच्चे/

जाड़े ने रंग दिखाया

अब जाड़े ने रंग दिखाया ठंढी ठंढी हवा भी लाया
जलने लगे अलाव घरों में बच्चे बूढों को मन भाया /
घेर घेर कर सब अलाव को बैठें घुसुरो मुसुरो
बात बात में बात निकलती सब है खासे खुसरो /
राजनीति की  चर्चा निकली ,फिर चुनाव की बात
ज्यों केले के पात पात में पात पात में पात /
बात बात में बतबढ़ हो गई भिड़ गए रमई शंकर
बिना बात के हुई लड़ाई झगडा हुआ भयंकर /
दादा ने फिर डांट डपट कर दोनों को समझाया
छोटे बच्चों ने हंस हंस कर आनंद बहुत उठाया /
मौसम है आलू गन्ने का भून के आलू खाओ
गन्ना चूसो घूम घूम कर सब  आनंद उठाओ

Tuesday 13 December 2011

रेल का सामान्य डिब्बा और भारतीय प्रजातंत्र

रेल का सामान्य डिब्बा और भारतीय प्रजातंत्र
भारतीय प्रजातंत्र ,भारतीय रेल के सामान्य डिब्बे की तरह है ,ठसा ठस भरा डिब्बा जब उसमेकिसी नए स्टेशन पर कोई भी नई सवारी घुसती है तो पहले से बैठे लोग उसे बैठने नहीं देते ,काफी जद्दो जहद के बाद वह भी किसी तरह उसी में सेट हो जाता है ,लेकिन अगले स्टेशन पर वह भी नई सवारी को बैठाने नहीं देता ,फिर वही घूसम पैजार ,वह भी सेट हो जाता है .यही कहानी दुहराई जाती रहती है ,लोग चढ़ते उतरते रहते हैं /अब लोंगो ने एक तरीका सीख लिया है जो बड़ा मुफीद है ..इसे ऐसे समझा जा सकता है .....एक सज्जन अपने परिवार के दस सदस्यों के साथ डिब्बे में बैठे थे ,कोई नया परिवार आया उसे किसी भी हालत में बैठने क्या घुसने नहीं दे रहे थे /मामला बिगड़ गया नए सदस्यों में एक जवान लड़का था उसका धैर्य डोल गया उसने सज्जन को एक झन्नाटे दार झापड़ रसीद कर दिया सज्जन बोले .मुझे मारा तो मारा मेरी बीबी को मारा तो ठीक नहीं होगा युवक ने उन्हें भी एक दे दिया .अब सज्जन बोले अभी माफ़ कर रहा हूँ मेरे बेटे को मारा तो..इतने में युवक ने बेटे को भी एक रसीद कर दिया ,इस प्रकार जब सारे सदस्य पिट गए तब सज्जन बोले अब बैठ जाओ /गाड़ी चली ,कुछ देर बाद उनकी मित्रता भी हो गई /इसी बीच किसी ने मजाक में पूछ दिया की जब बैठाना ही था तो सभी को क्यों पिटवाया ? सज्जन ने मासूमियत से कहा ऐसा नहीं होता तो बाद में सभी मेरा मजाक उड़ाते /यही हो रहा है सारी हदे पार करके ही लोग साथ रहते हैं शांत रहते हैं

भगवान ही बेडा पार करें

एक गाँव में एक चरित्र हीन ब्यक्ति था /गाँव के लोग परेशान थे /एक दिन लोंगो को गुस्सा लगा उन्होंने उस चरित्रहीन को पकड़ा और उसकी नाक काट दी /लोग उसे नकटा कहने लगे परेशान नकटा एक दिन गाँव छोड़ कर चला गया दूर बहुत दूर /चलते चलते थक गया संध्या हो गई थी ,भूख भी लगी थी ,एक गाँव के पास तलब दिखा एक पेड़ भी था ,नकटे ने सोचा रात यहीं बिताते है ,सुबह देखा जाये गा/सुबह गाँव के लोग तलब की और दिशा मैदान को निकले ,देखा एक आदमी सोया है बीमार भी दिख रहा है ,दाढ़ी बाल भी बढे हैं /एक बुजुर्ग को जादा दया आई उसने ने पूछ दिया बाबा आप कौन है कंहा जा रहे है बस क्या था नकटे की धूर्तता जाग गई उसने कहा .दूर गाँव का साधू हूँ चारो धाम की यात्रा पर निकला हूँ स्वास्थ्य ठीक नहीं है /बेचारे बुजुर्ग को दया आ गई उसने नकटे बाबा को घर चलने को कहा नाते ने कहा नहीं मई गाँव के भीतर नहीं रह सकत सन्यासी हूँ ,अब बुजुर्ग की दया और उमड़ पड़ी वह घर गया बिस्तर खटिया खाना पानी ले आया ,एक जोपडी भी दल दी बोला बाबा आप जबतक ठीक नहीं हो जाते यहीं विश्राम करें /नकटे की चल पड़ी /एक से दो दो से चार देखा देखी सेवक बढ़ते गए ,नकटे को सन्यासी,संत महात्मा योगी साधू सभी उपाधियाँ मिल गई वह तगड़ा भी हो गया /गाँव में पूजित भी /एक दिन किसी मनचले ने पूछ दिया ,बाबा आप की नाक किसने काटी,सहज भाव से नकटे ने कहा- किसी ने काटी नहीं, हमने कटवाई है क्योंकि ध्यान के समय जब भगवान ह्रदय में आते हैं और मै उनके दर्शन करता हूँ तो नासिका ब्याव धान डालती है इसलिए कटवा दिया अब वह नकटा महराज बन गया /एक दिन एक भक्त आया उसने इक्षा जाहिर की इश्वर के दर्शन की ,इसके लिए नाक कटवाने को तैयार था ,महात्मा नकटे ने उसकी नाक काट दी ,भक्त दर्द से छटपटाने लगा थोड़ी देर बाद उसे याद आया की भगवन के दर्शन करलूं ,उसने नीचे छाती में देखा बार बार देखा भगवन जी नहीं दिखे ,भक्त ने बाबा से पूछा भगवान कंहा हैं बाबा ने कहा अभागे भगवान जब थे तुम छट पटा रहे थे चले गए उन्हें और भी काम है यही डेरा थोड़े ही जमायेंगे /भात ने पूछा अब क्या करें बाबा ने समझाया ...अब बोल नाक कटाई तो ईश्वर के दर्शन हुए नहीं तो लोग मजाक उड़ायेंगे /
भक्त समझ गया, वह चिल्लाने लगा देख लिया, देख लिया, भगवान को, बाबा की कृपा से /बस क्या था एक से दो, दो से चार, नकटा सम्प्रदाय का समुदाय बनगया ,मेरे देश में ऐसे की भीड़ है ,भगवान ही बेडा पार करें

बदल राग


अबकी जब टीम आना नभ चरवह संगीत रचाना
नया गीत, नव छंद, ताल नव, नव सुर देकर जाये
मिले नया आलोक जगत को टूटे सब भ्रम रचना
 नए मीत नव संकल्पों से उत्साहित धुन गाएं
धानी रंग चुनरिया रंगना मन रस बस कर जाना
चढ़ी अटारी ग्राम बधूटी कजरी के स्वर गाये
खपरैलों पर कागा बोले गोरी झूले झूला
सैयद -सीता एक साथ फिर गुडिया ब्याह रचाएं
अम्मा बैठें एक बार फिर जांते पर भिनसारे
अपने भोर गीत मंगल से अमृत सुर बरसायें
दही बिलोती दादी गांए मक्खन खाते दादा
रहे न कुछ भी छद्म कपट सब होवे सादा सादा
बूढ़े बरगद की छैंया में फिर से गूंजे आल्हा
ताल ठोंक कर भिड़ें अखाड़े फागू और दुलारे
फुलवा से फिर करें ठिठोली बूढ़े रमई काका
चौपालों पर रोज साँझ को बरसें प्रेम फुहारे/
क्रमशः जारी ............

           
 

Sunday 11 December 2011

एक नन्हा लड़का रोज चौराहे के पास

एक नन्हा  लड़का  रोज चौराहे के पास
दिखता था  अपनी अंधी माता के साथ
कहता था खाना दो पैसा दो ..
उसकी अबोध आँखों में सपने नहीं दिखते
झांकती थीं रोटियां ..भूख का दर्द
मिली हुई झिडकियां ,घृणा तिरस्कार   ...
आदमी की औलाद होने का पुरस्कार
याचना में फैले हुए,  हाँथ मांगते थे भात /
एक दिन अचानक ,सुनाई पड़ा ..
रेलवे जोन खतरे में है ,सभी निकल पड़े सडको पर लेकर झंडे/
कालेज स्कूलों के छात्र, युवक, खेतिहर, मजदूर
कृषक  और राजनीति के पंडे/
घोषणा की गई आज शहर बंद है ,होगा घेराव
पुलिस ने भी अपने निकल लिए डंडे
सात दिन लगातार आगजनी  फायर पथराव
कर्फ्यू की कैद में मेरा शहर ,भोगता ही रहा ,तनाव
इधर आक्रोश उधर दमन बेबस , करता रह सब कुछ सहन
आठवें दिन कर्फ्यू के बंधन जब शिथिल हुए
निकल पड़े सड़कों पर लोग ,किन्तु नहीं दिखा मुझे
वह अधनंगा  लड़का, अपनी माँ अंधी के साथ ,
 उस परिचित चौराहे के पास
किसी ने बताया .एक अंधी की लाश ,पड़ी हुई होटल के पीछे
कर रही है जूठन की तलाश  /प्रजातंत्र के रक्षक ,जेइल अस्पतालों में
फोटो खिचवाने और भाषण  छपवाने में ब्यस्त ,पार्टी कार्यालयों में
लिखा जा रहा था उपलब्धि का इतिहास
,इसी वर्ष निर्वाचन हो जाता काश ...
अंधी ली लाश को घेर ,खड़े तमाशबीनो की  भीड़ को चीर कर
 एक नग्न लड़के ने लाश की छाती पर खड़े हो कर
 दिया एक हलफ नामा
बंद करो करना बकवास,फूंक दो झूठे इतिहास ,,,
और वे हाथ जो मांगते थे भात ,
उठ गए विरोध में ब्यवस्था के उसीदिन एक साथ ?


,सोनिया का विरोध सिर्फ विदेशी होने के कारन/ राहुल का विरोध हजारे के गाँव

प्रिय दोस्तों /आज सुबह से जंतर मंतर का नाटक और सर्कस की कलाबाजी देख और सुन रहा हूँ केजरीवाल ने गुमराह करने की कोशिस की लेकिन वर्धन साहब और ब्रिंदा ने उसे संभाला संसद की मर्यादा रखी/किसीने उनकी इक्षा के अनुरूप कोई बात  किसी ने नहीं माना /सब ने संसद में चर्चा की बात की / मैं चार  बातें कहूँगा ..
.१)बाबूराव हजारे उर्फ़ अन्ना का सोनिया तथा राहुल को अनुमान के आधार पर अनावस्यक दोष देना क्या सर्वथा गलत नहीं  है ?,यह लड़ाई सीधे हजारे टीम ने सोनिया/राहुल की ओर जानबूझ कर मोड़ दिया है /मात्र बदनाम करने के लिए /
2)देश को सूचना का अधिकार अधिनियम सोनिया ने दिलवाया /भा ज पा शासन ने नहीं दिया, देतो वह भी  सकती थी  पर क्यों नहीं दिया ?आज नाटक क्यों ?
3) बिदेश में जमा काले धन की वापसी के लिए २२ देशो से समझौता सोनिया ने  किया है
4)राष्ट्रीय सलाह कार  परिषद् की अध्यक्ष के रूप में सोनिया ने पहली बार लोकपाल बिल लाने की सलाह दी /4)राहुलने संसद के बहार कभी कोई टिप्पड़ी लोकपाल के बारे में नहीं की /देश को  सूचना का अधिकार,विदेश में जमा  काले धन पूँजी की वापसी ,लोकपाल बिल की हिमायत ,करने हेतु वचनबद्ध ,सोनिया का विरोध सिर्फ विदेशी होने के कारन/  राहुल का विरोध हजारे के गाँव के लोगो से न मिलने के कारण /कांग्रेस का विरोध सिर्फ अन्य विरोधी पार्टियों के उकसावे  के कारन  कुंठा में कियाहै हजारे ने/ क्यों की कांग्रेस विधि अनुसार सब करने को प्रति बद्ध है /लोग दादागिरी से यश लेना चाहते हैं /
असल में RSS/बीजेपी बिपक्षी नहीं चाहते की यश कांग्रेस को मिले समस्त अराजक नौटंकी यही है /सभी को चुनाव जीतना है /हजारेकांग्रेस  का विरोध कर हराना चाहती है क्यों की उन्हें डर है की कांग्रेस रह गई तो उनकी खैर नहीं /उनकी सारी  गंदगी सामने आएगी /आप कृपया अपनी टिप्पड़ी से मेरी भी सहायता करें ,मैं भी कंही गलत  तो नहीं सोच रहा हूँ ,आप की बेबाक टिप्पड़ी का स्वगत है तों..




 

Saturday 10 December 2011

हमारा देश आर्यावर्त .

हमारा देश आर्यावर्त .भारत वर्ष . हिन्दुस्तान . इंडिया .भारतमाता तक की यात्रा कर चुका
तब से अब तक कितनी संस्कृतियाँ ,सभ्यताएं .जातियां .धर्म .भाषा इस देश में आये  कुछ चाले गए कुछ यहीं के होकर रह गए/कुछ धर्म यहीं पैदा हुएऔर सारी दुनिया में फ़ैल गए/  हमारी स्थिति यह है की हम आज भी अपना वजूद तलाश रहे है /आखिर माजरा क्या है!हम कौन थे क्या होगये और क्या होंगे अभी ,आओ विचारें आज मिलकर ये समस्याएं सभी ..अपने विचार देकर राष्ट्र धर्म का निरवाह करें ........
ॐ सहना भवतु सहनौभुनत्तु सहवीर्यं ..और . तेनतक्तेनभुन्जिथः..तथा . जीवेम शरदः .(वेद)..से ....यवादजीवेत सुखंजीवेत  ऋणं कृत्वा घृतं पीवेत  (पुराण)तक   की यात्रा कर चुके / प्रकृति पूजा से अनीश्वर बाद होते हुए मूर्ति पूजा.एवं बुद्ध से मूर्ति पूजा  के बीभत्स रूप तक पहुँच गए  /  हमारा खंड खंड पाखंड ओढने का कोई आधार  क्या है .हम कर्म के अनुसार वर्ण के उपासक (वेद -एक घर के चार पुत्र ब्रह्मण क्षत्री वैश्य शूद्र )जन्मना जाति(पुराण) और वर्ण तथा धर्म को अंगी कार कर चुके /धार्मिक उन्माद के ,जातीय विखंडन के चरम पर हैं हम ,स्वधर्म/राष्ट्र धर्म विलुप्त है /लूटो नोचो का भ्रष्टाचर  धर्म हो गया है  कितना पतन और होगा विश्व गुरु का ,,आप ही सोचें और उपाय सुझाएँ की  हमें क्या करना चाहिए  /आज तो अराजकता भी बड़ी समस्या है /रोज हत्या बलात्कार (यत्र नार्यन्तु पूज्यते) कादेश है /..अगर कुछानाही हो सकता तो सामाजिक आचरण क्या हो .विचार प्रकट करें .....शायद कोई हल नकले ...या नाभि निकले /कोई रास्ता दिखे ...

Friday 9 December 2011

मै वहां कभी नहीं गया..पर मै वंहा हर क्षण होता हूँ ...

मै वहां कभी नहीं गया..पर मै वंहा हर क्षण होता हूँ ...
मै वहां कभी नहीं गया..पर मै वंहा हर क्षण होता हूँ ...
मेरे घर से थोड़ी दूर पर है .वह कब्रिस्तान
नजदीक ही है वह श्मशान ,एक ही जमीन का टुकड़ा
जो दफनाये गए उनके लिए कब्रिस्तान
जो जलाये गए उनके लिए श्मशान
चारो ओर से खुला है ,हर चुनाव में .
इसके घेरे बंदी की चिंता करते हैं नेता लोग
अपने भाषणों में इसे मरघट कहते हैं ,
लोग दफनाये जाते हैं लोग जलाये जाते हैं इसी मरघट में ,
मोहल्ले के रहवासियों के लिए आबादी के निस्तार का
एक हिस्सा ही है यह/ मरघट मेरे छत से दिखता है /
मेरे घर और मरघट के बीच एक बहुत बड़ा ताल है
तालाब नुमा /इसमें "आब" नहीं है /फैली है बेशर्मी
डबरा है थोडा सा /इसी में लोटते रहते हैं दिन भर
भैंसें, सूअर ,बकरियां ,गाँयें,कुत्ते और कुत्तों के पिल्लै
चरवाहे,नशाखोर ,जुआरी ,कचरा बीनने वाले बच्चे ,रात में
कबर बिज्जू /किनारे --नाऊ,धोबी .पान और चाय की दुकान
दुकानों पर ग्राहक .भीड़ .सोहदे .बाल कटवाते लोग
सड़क से स्कूल जाती लड़कियों को घूरते ,पेपर पढ़ते .बीडी पीते चेहरे
दिशा मैदान करने वाले गालो पर हाथ धरे बेशर्मी की आड़ में चैन से शौच करते है /
लोग जलाये जाते हैं ,लोग दफनाये जाते है इसी मरघट में
पर इस दिनचर्या में कोई खलल नहीं पड़ता/एक डाक्टर हैं
अस्पताल भी है उनका इसी मरघट के किनारे
मरीजों के पलस्तर काट काट करफेंक देते हैं .कर्मचारी इसी मरघट में रोज /
छितराए रहते हैं मानव अंग प्रत्यंग रोज इसी मरघट में ,इन्ही में खेलते हैं
कचरा बीनने वाले बच्चे कुत्ते. कुत्तों के पिल्लै /तालाब और मरघट को
अलग करने वाले मेड पर एक आम का पेड़ है ,कितना पुराना है किसी को नहीं पता
चांदनी रात में मेरे घर की छत से दिखता है.मरघट का विस्तार और आम का पेड़/
मेरे लिए आम के पेड़ का इस जगह होने का कोई अर्थ ,या प्रयोजन नहीं
पर आम के पेड़ का इस जगह होने का अर्थ भी है ,प्रयोजन भी है
पेड़ है तो छाया है .कोटर है मधु मक्खियों का छत्ता है चिड़ियाँ है घोसला है
गलियों में लुका छिपी खेलते बच्चों की तर्ज पर आगे पीछे सरपट भागती हैं
गिलहरियाँ इस की मोती डालों के बीच /इस पेड़ के वंहा होने की कोई योजना नहीं थी फिर भी वह वहां हैऔर उसके होने से बहुत कुछ है /ऋतुएं आती हैं जातीं हैं
पतझड़ होता है .बसंत आता है कोयल कूकती है छाया होती है बच्चे अमियाँ तोड़ते हैं
पत्थर मार मार कर ,मै वंहा कभी नहीं गया पर हर क्षण होता हूँ
,हर जलती चिता में हर दफ़न होती लाश में ......

मै वहां कभी नहीं गया..पर मै वंहा हर क्षण होता हूँ ...

मै वहां कभी नहीं गया..पर मै वंहा हर क्षण होता हूँ ...
मेरे घर से थोड़ी दूर पर है .वह कब्रिस्तान
नजदीक ही है वह श्मशान ,एक ही जमीन का टुकड़ा
जो दफनाये गए उनके लिए कब्रिस्तान
जो जलाये गए उनके लिए श्मशान
चारो ओर से खुला है ,हर चुनाव में .
इसके घेरे बंदी की चिंता करते हैं नेता लोग
अपने भाषणों में इसे मरघट कहते हैं ,
लोग दफनाये जाते हैं लोग जलाये जाते हैं इसी मरघट में ,
मोहल्ले के रहवासियों के लिए आबादी के निस्तार का
एक हिस्सा ही है यह/ मरघट मेरे छत से दिखता है /
मेरे घर और मरघट के बीच एक बहुत बड़ा ताल  है
तालाब नुमा /इसमें "आब" नहीं है /फैली है बेशर्मी
डबरा है थोडा सा /इसी में लोटते रहते हैं दिन भर
भैंसें, सूअर ,बकरियां ,गाँयें,कुत्ते और कुत्तों  के पिल्लै
चरवाहे,नशाखोर ,जुआरी ,कचरा बीनने वाले बच्चे ,रात में
कबर बिज्जू /किनारे --नाऊ,धोबी .पान और चाय की दुकान
दुकानों पर ग्राहक .भीड़ .सोहदे .बाल कटवाते लोग
सड़क से स्कूल जाती लड़कियों को घूरते ,पेपर पढ़ते .बीडी पीते चेहरे
दिशा मैदान करने वाले गालो पर हाथ धरे बेशर्मी की आड़ में चैन से शौच करते है /
लोग जलाये जाते हैं ,लोग दफनाये जाते है इसी मरघट में
पर इस दिनचर्या में कोई खलल नहीं पड़ता/एक डाक्टर हैं
अस्पताल भी है उनका  इसी मरघट के किनारे
मरीजों के पलस्तर  काट काट करफेंक देते हैं .कर्मचारी इसी मरघट में रोज /
छितराए रहते हैं मानव अंग प्रत्यंग रोज इसी मरघट में ,इन्ही में खेलते हैं
 कचरा बीनने वाले बच्चे कुत्ते. कुत्तों के पिल्लै  /तालाब और मरघट को
अलग करने वाले मेड पर एक आम का पेड़ है ,कितना पुराना है किसी को नहीं पता
चांदनी रात में मेरे घर की छत से दिखता है.मरघट का विस्तार और आम का पेड़/ 
मेरे लिए आम के पेड़ का इस जगह होने का कोई अर्थ ,या प्रयोजन नहीं
पर आम के पेड़ का इस जगह होने का अर्थ भी है ,प्रयोजन भी है
पेड़ है तो छाया है .कोटर है मधु मक्खियों का छत्ता है चिड़ियाँ है घोसला है
गलियों में लुका  छिपी खेलते बच्चों की तर्ज पर आगे पीछे सरपट भागती हैं
 गिलहरियाँ इस की मोती डालों के बीच /इस पेड़ के वंहा  होने की कोई योजना नहीं थी फिर भी वह वहां हैऔर उसके होने से बहुत कुछ है /ऋतुएं आती हैं जातीं हैं
पतझड़ होता है .बसंत आता है कोयल कूकती है छाया होती है बच्चे अमियाँ तोड़ते हैं
पत्थर मार मार कर  ,मै वंहा कभी नहीं गया पर हर क्षण होता हूँ
,हर जलती चिता में हर  दफ़न होती लाश में ......


 


Tuesday 6 December 2011

संसद भंग हो रही /-3

प्रजा तंत्र का साज सज गया फील गुड का गान
प्याज बिक गया साठ रुपैया .अपना देश महान
ये दोहरी  मार पड़ रही .संसद भंग हो रही /
हर एक साल नया तोहफा लो बैठे छीलो प्याज
करो तयारी फिर चुनाव की ,इनको दे दो ताज
घोटाला चलन बन रही ,संसद भंग हो रही /
बो रहे झूठ बंटते फूट चल रहे कपट नीति के कूट
दिन करें नैतिकता की बात ,तोड़ते मर्यादा हर रात
झूठ परवान चढ़ रही संसद भंग हो रही /
धर्म की ब्याख्या करते रोज नोचते नैतिकता को खोज
जाती की राज नीति बेजोड़ राष्ट्र की निष्ठा डाले तोड़
 शर्म बेशर्म हो रही संसद भंग  हो रही /
बढ़ रहा कला धंधा रोज.कमाते कला धन हर रोज
वोट पड़ते लाठी के जोर मचाते लोक तंत्र का शोर
 असलियत नंगी हो रही संसद भंग हो रही /
बन रहा रोज नया दल एक क्षेत्र और जाति कर रही टेक
बदलती निष्ठा रातो रात बोलते ऊंची ऊंची बात
धूर्तता कितनी बढ़रही संसद भंग हो रही/
जेइल जाते जैसे ससुराल निकल कर फिर वैसी ही चाल
आदमी होता रोज हलाल नहीं इन सब को कोई मलाल
ये कैसी हवा चाल रही संसद भंग हो रही /
कर रहे प्रजातंत्र की बात खेलते पूँजी पति के हाँथ
 इक्कट्ठा करते गुंडा फ़ौज घूमते बाहु  बली बे खौफ
गुंडई पूजित हो रही संसद भंग हो रही /
समर्थन देते लेते रोज बदलतीं सरकारें हर रोज
सदन बहुरूपियों का मेला जोकरई करें गुरु चेला
चमड़ी मोती हो रही संसद भंग हो रही /

  



  

kya sanyog aaj moharram aaj hi 6 disambar

आज मुहर्रम के दिन मुझे मेरे दादा जी बहुत याद आये /हमारा छोटा सा गाँव प्रायः सभी जातियां .मुसलमान सिर्फ एक, वह भी उनमे छोटी जाती का गरीब /मेरे दादा जी को काका कहते थे /.मुहर्रम के दस दिन पहले दादा जी फेरु को बुलाकर हिदायत देते थे की ताजिया ठीक से बनानासब गांवों से बड़ा बनाना /सबकुछ मेरे घर से बांस से लेकर लेई तक,अबरी पेपर के लिए पैसा भी ,हम सब फेरु की सहायता करते थे , ताजिया बनता था,दादाजी तक़...रीर करते थे ,हमलोग सुनते थे , झंघडिया बनते थे, दाहा का बाजा रात भर बजाते थे....... कड़वा कड़ाक्कड़ दहवा क लक्कड़ घंमड घंमड , बहुत मजा आता था .हमलोग पड़ोस के गाँव में अपना ताजिया ले जाते थे ,वह मुसल्मानो का गाँव था ,वहां सभी ताजिये इकट्ठा होकर फिर कर्बला जाते थे ,पंडित काका सबसे आगे .उनका ताजिया सबसे आगे. सबसे ऊँचा क्या शान थी .वाह रे दिन ...ईश्वर ने हमें केवल इन्सान बनाया लोंगो ने हमे हिन्दू मुस्लमान बनाया सम्बेदाना सहिस्नुता , सब हलाल कर दिया

Sunday 4 December 2011

bimlendu kavita

विमलेन्दु आप की कविता ने फिर एक बार जखाझोरा ,बहुत मसक्कत से एक एक शब्द तौल कर जड़ा है आप ने ,हमारी अनुभूतियाँ जिजीविषा का पल्ला पकड़ कर ही आती हैं ,यही जिजीविषा ही मनुष्य को अनादी काल से स्थापित करती रही है,जिजीविषा की इस दुर्दमनीय धारा को हमारी स्मृतियाँ प्रवाह देती रहीं हैं ...फिर तो जो भी संततियों के पराजय बोध में जमे होते हैं तलछट की तरह ,गर्वीले भूलों की दरार में उग जाते हैं दूबकी तरह ,और ध्वस्त कर देते हैं इतिहास को ...बहुत महीन तह में जाकर कविता की आत्मा को उकेरा है ...यह दूब मुझे कई महीनो से परेशान कर रही थी, पंडित की पूजा ,मृतक की तेरहीं .विवाह की थाली.सभी जगह एक सी महत्ता, जिजीविषा इतनी की मरे जानवर की हड्डी पर फेंक दो तो भी जड़ जमाले, फ़ैल जाय,यह तिनका भी है,लान भी/ आपने मेरी सोच से भी अच्छा प्रयोग किया / सार्थक किया /कविता की भाषा कमाल की है ,जिसे आप ने गुम- सुम स्त्रियों के काजल की ओट से निकाला है,इसी तरह लिखते रहें, इसी तरह लोक की स्मृति को जीते रहें //बधाई //

Saturday 3 December 2011

संसद भंग हो रही /२/

संसद भंग हो रही /२/
संबिधान की घोषणा प्रजातंत्र के साज
बदतर इनका हाल है नहीं किसी को लाज
मौसम बिगाड़ा इस कदर पूछे किस से कौन
 मेढक टर टर बोलते दुबकी कोयल मौन
बूढी काकी उठ पड़ी सुन कर यह संबाद
चौतरफा जनता पिसे देश हुआ बरबाद
रोटी के लाले पड़े होते रोज चुनाव
 रौंदी जाती अस्मिता नेता चलते दांव
फैली चर्चा  वोट की बंट गया सारा गाँव
अब तो फिर से होयगें झगडे ठाँव कुठाँव
बिछी विसतें गाँव में फिट करते सब वोट
अब तो फिर से बाँटेंगे ,दारू कम्बल नोट
नेता पहुंचा गाँव जब हवा हो गई मौन
रोटी बेटी पेट की चिंता करता कौन
आगे पीछे घूमते सोहदे हैं बेहाल
रघुवा नेता बनगया कंधे गमछा डाल
चौपालों पर छिड़ गई चर्चा वोट पुराण
जाति धर्म और गोत्र में बंट गए सब के प्राण /क्रमशः /...३


Friday 2 December 2011

संसद हो रही भंग /

नेताका सन्देश सुन गाँव हो गया दंग
होंगे नए चुनाव फिर संसद हो रही भंग /
संसद की हर कार गुजारी करती है हैरान
बैठा चौपालों में तडपे नंगी देह किसान /
जरा सोचते तो चुप रहते करते नहीं बवाल
अपनी कुंठाओं में डूबे कार दिया देश हलाल /
पर्त पर्त जम गई धूर्तता ईर्ष्या ठाँव कुठाँव
जाने कितने कपट फले हैं राजनीति के गाँव /
 चवपालों में सोचते माथे धर कर हाथ 
ऐसी  बिकट समस्या आगईबुद्धि न देती साथ /
सबसे बड़ी समस्या भैया वोट किसे हम देंगे
नाग नाथ और सांपनाथ में फिर से दंगल होंगे /.......क्रमशः ..कल

Thursday 1 December 2011

आज नींद खुल गई

आज नींद खुल गई फेस बुक को पूरा देखा ,समय को चबाने का एक जरिया है /जब आप बोर हो रहे हों कुछ समझ न आता हो तो भी बिजीकर देता है /ढेरों विचार मिलते है /ठीक ही है /कुछ लोग यहाँ भी ग्रुपबाजी ,तिकड़म करते रहते है पसंद नापसंद करके /कोई मिल जाये तो बात करलो,मन बहल जायेगा ,कुछ जीवंत समस्याओं पर विचार मिल जाता है / कुछ मित्र ह्यूमर भी कर लेते है ,मुझे यह जादा जरूरी इसलिय लगता है की आज लोग हसना या किसी की खुल... कर तारीफ करना भूल गए है/..मुझे ..बिम्लेंदु ,लीना और गीता तीन संभावनाओं की नई पौध मिली , लीना और बिम्लेंदु की बहुत अच्छी पकड़ है कविता पर , इनका शिल्प और इनकी कविता की भाषा दोनों बेमिशाल है ,बार बार पढने को मन कहता है /गीता ..नवगीत अच्छे लिख रही है. तीनो लम्बी रेस के घोड़े हैं .इन्हें लिखने की ललक बनी रहे /बिम्लेंदु.. गद्य भी सटीक लिखते हैं ,विबेचना भी अच्छी कर रहे है विषय को खोल कर तटस्थ हो जाते हैं / मेरी समस्त सद्भावना एवं शुभकामनाये,इनके लिए / पुनश्च......इन तीनो से मै फेसबुक पर ही परिचित हुआ .....

ओका बोका

१-ओका बोका तीन तलोका लैया लाटी चन्दन काटी
रघुआ क काव नाव- विजई
काव खाय दूध- भात
काव बिछवाई - चटाई
काव ओढे .पटाई
 हाँथ पटक .चोराई ले
२- तर काटी तरकुलवा काटी काटी बन के खाजा
     हथिया पर घुन घुनवा नाचे उड़े महुलिया राजा
      ताई ताई रोटिय घिया चाभोडिया बाले मियां मर गए
      के खाई रोटिया...हम खाब रोटिया          

सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता

सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता
बार बार आती है मुझको मधुर याद बचपन तेरी
गया ले गया तू जीवन की सबसे मस्त ख़ुशी मेरी
चिंता रहित खेलना खाना और फिरना निर्भय स्वच्छंद
कैसे भूला जा सकता है बचपन का अतुलित आनंद
उंच  नीच का ज्ञान नहीं था छुआ छूट किसने जानी
बनी हुई थी आह झोपड़ी और चिथड़ों में रानी //
किये दूध के कुल्ले मैंने चूस अंगूठा सुधा पिया 
किलकारी किल्लोल मचा कर सूना घर आबाद किया //
रोना और मचल जाना भी क्या आनंद दिखाते थे
बड़े बड़े मोती से आंसू जय माला पहनाते थे //
मई रोई माँ काम छोड़ कर आई मुझको उठा लिया 
लिपट लिपट कर चूम चाट गीले गलों को सुखा दिया //
दादा ने चंदा दिखलाया नेत्र नीर युत दमक उठे
मेरी  हंसती मूर्ती देख कर सब के चेहरे चमक उठे //
पाया मैंने बचपन फिर से बचपन बेटी बन आया
उसकी मंजुल मूर्ती देख कर मुझ में नव जीवन आया //
माँ औ कह कर बुला रही थी मिटटी खा कर आई थी
कुछ मुंह में कुछ लिए हाथ में मुझे खिलाने लाई थी //
मैंने पूछा यह क्या लाई --बोल उठी वह माँ... काओ
हुआ प्रफुल्लित ह्रदय खुसी से मैंने कहा तुम्ही खाओ //
पाया मैंने बचपन फिर से बचपन बेटी बन आया
उसकी मंजुल मूर्ती देख कर मुझ में नव जीवन आया  //

अछूतों की आह

अछूतों की आह
(सुभद्रा कुमारी चव्हाण की प्रसिद्द दो बाल कविताओं में एक
यह दलित साहित्य रचना की शुरुआत है )
एक दिन हम भी किसी के लाल थे
... आँख के तारे किसीके थे कभी
... बूँद भर गिरता पसीना देख कर
था बहा देता घड़ों लोहो कोई
देवता देवी अनेको पूज कर
निर्जला रह कर कई एकदशी
तीर्थों में जा द्विजों को दान दे
गर्भ में पाया हमें माँ ने कंही
जन्म के दिन फूल की थाली बजी
दुःख की राते कटीं सुख दिन हुए
प्यार से मुखड़ा हमारा चूम कर
स्वर्ग सुख पाने लगे माता पिता
हाय हमने भी कुलीनों की तरह
जन्म पाया प्यार से पाले गए
जो बचे फूले फले सो क्या हुवा
कीट से भी नीचतम मने गए/
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