Tuesday 31 December 2013

..निराला जी का नवगीत

बांधो न नव इस ठाँव बंधू
पूछेगा सारा गाँव बंधू
यह घाट वही जिस पर धंस कर
वह रोज नहाती थी हंस कर
आँखें रह जातीं थीं फंस कर
देती थी सब के दांव बंधू
बंधो न नव इस ठांव बंधू .

Sunday 29 December 2013

congress's contribution of India, December 30, 2013 at 9:00am


: A few humble contributions of Congress
1. Constitution of India
2. IITs, IIMs, ISI, 250 plus universities, Indian Agricultural Research Institute, UGC 1956, AICTE 1987
3. Doordarshan
4. AIR
5. IGNOU largest university in the worldestablished in 1985
6. New IITs and IIMs during UPA 1
7. ISRO
8. BARC
9. First Indian cosmonaut Mr Rakesh Sharma
10. Pakistan Surrenders to India 1971
11. Nuclear Deal
12. Computerization by Shri Rajiv Gandhi
13. Non Aligned Movement by Pt. Jawahr LalNehru
14. Bringing back the Gold deposited out of thecountry
15. First Nuclear Test during Mrs. Gandhi
16. DRDO
17. Economic Reforms by Mr Manmohan Singh
18. India is 4th largest GDP
19. 2nd fastest growing economy
20. MGNREGA
21. RTI
22. Kendriya Vidhyalayas
23. SAIL
24. BHEL
25. HZL
26. Locomotive factories etc realted to railways
27. Jai Jawan Jai Kisan
28. Nuclear Deal
29. Inclusion of Sikkim in India
30. Chandrayan
31. Bhakra Nangal Dam
32. Planning Commision of India and First FiveYear plan in 1951 by Pt. Jawahar lal Nehru
33. AIIMS
34. free and compulsory elementary educationforrural children
35. Nationalization of Banks
36. Green Revolution
37. As per economic surveys, when Indira Gandhi became Prime Minister, 65% of the country'spopulation was below the poverty line, and whenher regime ended in 1984, this figure was 45%.During her rule, food production increased by250%.Literacy also increased in India by 30%.
38. Modernization of the telecommunicationindustry
39. Navodaya Vidyalaya System in 1986
40. The first National Education Programme was promulgated in 1968 by the government of Prime Minister Indira Gandhi, and the second by Prime Minister Rajiv Gandhi in 1986.
41. Shri Rajiv Gandhi increased government support for science and technology and associated industries, and reduced import quotas, taxes and tariffs on technology-based industries, especially computers, airlines, defence and telecommunications. He introduced measures significantly reducing the License Raj, allowing businesses and individuals to purchase capital, consumer goodsand import without bureaucratic restrictions.
42. created MTNL in 1986,
43. public call offices, better known as PCOs,helped spread telephones in rural areas
. 44. free market reforms that rescued the almostbankrupt nation from economic collapse.
45. SEBI Act of 1992 and the Security Laws(Amendment) which gave SEBI the legal authority to register and regulate all security marketintermediaries.
46. Opening up in 1992 of India's equitymarketsto investment by foreign institutional investorsand permitting Indian firms to raise capital oninternational markets by issuing GlobalDepositoryReceipts (GDRs)
47. Starting in 1994 of the National StockExchange as a computer-based trading system which served as an instrument to leverage reforms of India's other stock exchanges. The NSE emerged as India's largest exchange by 1996.
48. The impact of these reforms may be gauged from the fact that total foreign investment (including foreign direct investment, portfolio investment, and investment raised on international capital markets) in India grew from a minuscule US $132 million in 1991-92 to $5.3billion in 1995-96 49. Rao began industrial policy reforms with the manufacturing sector. He slashed industrial licensing, leaving only 18 industries subject to licensing. Industrial regulation was rationalized.
50. it was Rajiv Gandhi who reduced the voting age to 18.
51. It was Rajiv Gandhi who declared Swami Vivekanandas birth anniversary on January 12thas National Youth Day.
52. Look East foreign policy
53. A strong earthquake in Latur, Maharashtra,also killed 10,000 people and displaced hundreds of thousands in 1993. Rao was applauded by many for using modern technology and resources to organize major relief operations to assuage the stricken people, and for schemes of economic reconstruction. The prime minister, Narasimha Rao, appointed anOxford-educated former academic/bureaucrat,Manmohan Singh, as finance minister. Singh had served in all major economic positions in the country, including as governor of India’s centralbank, the Reserve Bank of India. As secretary-general of the South Commission, he had also had close interactions with IMF managing director Michel Camdessus. As economic adviserto the previous prime minister Singh was not new to the impending crisis. To him, making exchange rate adjustments, implementing fiscal reform, and influencing business expectations were the most immediatepolicy priorities.
.54. Food Security Bill55. LOKPAL56. Woman"s protection Bill..

Wednesday 25 December 2013

सोचिए ज़रा

सोचिए ज़रा

मनुष्य की अदम्य जिजीविषा ,जीवन जीने की उत्कट अभिलाषा उसे सारे ख़तरों से जूझने और निपटने की हिम्मत देती है ;यह अदम्य लालसा ही है जो जो मनुष्य को अन्य प्रणियों से भिन्न करती है .हमारी संस्कृति ,हमारे संस्कार .हमारी आत्मानुशासन की प्रवृत्ति ,हमारे जीवन को सुरुचिपूर्ण और आकर्षक बनती है .हम इसी मे उठते और आगे बढ़ते हैं .यह सांस्कृतिक धरोहर हमे अपने लोक से मिलता है.जिसका लोक जितना समृद्ध होगा उसका आभिजात्य ..उतना ही सशक्त होगा सामर्थ्य वान होगा ..लौकिक जीवन हमे आस्था के गंगा जल मे अवगाहन कराता है ,हमारी आस्था ही हमारी उर्जा है शक्ति है .इसके अभाव मे हम बहुत हल्के और कमजोर होते हैं .पर यह आस्था किसी देवी देवता के प्रति नही .मनुष्य और मनुष्यता के प्रति होना चाहिए ...आस्था के मार्ग पर भटकने का अर्थ है मनुष्य जीवन के लक्ष्य से भटकना .सबसे जाड़ा ज़रूरी है की हमारी आस्था और प्रतिबद्धता अपने प्रति हो .मनुष्य के प्रति हो .परिवार और समाज के प्रति हो .धन ,धर्म पद प्रतिष्ठा मान सम्मान जाति ये सभी दूसरे नंबर पर आते हैं .

सर्वे भवंतु सुखीनः सर्वे संतु निरामाया की हमारी कल्पना तभी साकार होगीहमारी सबसे बड़ी समस्या आज के दिन है की हम आभिजात्य की ओर भाग रहे हैं .हमे समझना होगा की जो लौकिक नही वह सभ्य तो हो सकता है सुसंस्कृत नही होसकता ..समझने केलिए कह सकते हैं की जो अंतर प्यार और कांट्रेक्ट मे है .जोलौकिक है वह प्यार करता है ,स्नेह करता है सम्मान करता है .किसी को दुख नही देना चाहता ,अपने लिए नही दूसरोंके लिए जीना चाहता है .सहिष्णु होता है .उन्मुक्त होता है कपाट विहीन स्वच्छन्द होता है ज

िसकी जड़ें लोक मे नही किंतु आभिजात्य है वह इन सब के बिपरीत होता है .मा के हंत की बनी गुदड़ी लौकिक है .उस पर सुंदर कवर ,संस्कृति है ..फोम का गद्दा आभिजात्य है सभी है ..जो आत्मीयता प्रेम स्नेह आनंद संतोष गुदड़ी मे सोने मे है वह फोम के गद्दे मे नही .फोम आप को सुख देगा आनंद नही ..केवल आभिजात्य होना हमे दंभ देता है .अभिमान देता है .जड़ बनता है .संबेदना शून्य कर देता है .आज की दिनचर्या मे हम सभ्य हैं आभिजात्य हैं लेकिन लौकिक नही .इसी मे हम अपना पं खोते जा रहे हैं और मानसिक रूप से रुग्ण तथा गुलाम होते जा रहे हैं .हमे सोचना होगा की अपनी आने वाली पीढ़ी को उत्तरा धिकार मे हमे क्या देना है ..तोड़ा सा अपना पन या ढेर सारा आभिजात्य .,/हमारी जातीय संस्कृति विलुप्त हो गयी है ..इसके ज़िम्मेदार हम ही हैं ... कोई भी लकड़ी बिना स्नेह .आत्मीयता श्रम के गुड़िया नही बनती . हमे याद रखना चाहिए ..अभी भी समय है जो जहाँ है वहीं अपने जातीय गुनो को संरक्शाट कर सकता है .यह आप का धर्म भी है .कर्ज़ भी है ..रोटी से पिज़्ज़ा की ओर भागती पीढ़ी ........कल क्या होगी सोचिए ज़रा

भारतीय मानस जिन्हे धर्म ग्रंथ कहता है .

भारतीय मानस जिन्हे धर्म ग्रंथ कहता है .
मूलतः वे ही अधर्म को तर्क देते हैं
,इन्ही ने हमारे मॅन मस्तिस्क मे
स्त्री को भोग्या बना रखा है
स्त्री की योनि मे पत्थर .पुरुष डालता है .
स्त्री से सामूहिक व्यभिचार पुरुष करता है .
.जो उसने इन्ही धर्म ग्रंथो की क्षेपक कथाओं से सीखा है
मानुष के आचरण की सभ्यता को धर्म
किसी धर्म ग्रंथ ने नही कहा .
ढोंग पाखंड को धर्म कहता है .,
इन्ही धर्म ग्रंथो मे लंपट इंद्र
स्त्री के का शील भंग करता है
.इन्ही ने दुर्योधन की जाँघ पैर ड्रॉपड़ी को बैठाया गया
पाँच पाँच पतियों की भोग्या बनाया
इन्ही मे कुंती बिन ब्याही मा बनी ...
इसी लिए कहता हूँ की सावधान
यही ताकतें जो धर्म के नाम पर राजनीति करती हैं
वही स्त्री का शील हरण करती हैं
उन्हे मंदिरों मे गणिका बनाती हैं
उठो जागो .स्त्री को मुक्त करो
झूठे धार्मिक जकड़न से
लेने दो सांस उन्मुक्त ..............
जीने दो मनुष्य की तरह ..
वह तुम्हे जन्म देती है .
वह मा है .
वह प्रकृति है .पुरुष !!!!!!!!!!!!!!!
विनिष्ट मत करो

एक पाती अम्मा को लिख दूं इस दुनिया का हाल

एक पाती अम्मा को लिख दूं इस दुनिया का हाल
वह भी  समझ जाय गी जीना कैसे हुवा मोहाल

यह दुनिया तो बहुत अलग है तेरी दुनिया से
.पर अम्मा तू दुखी न होना  मेरी दुनिया से

यह सच है पर ऐसे ही है इस दुनिया का हाल
दींन धरम कुछ बचा नहीं है हम सब हैं बेहाल


चारों तरफ छली कपटी हैं एक न दीखता सच्चा
स्नेह प्यार को तरस रहा है देश का हर एक बच्चा

बचपन खिसक गया हाथों से सीधे बूढ़े हो गए
रीता रीता मन बौराया क्या से क्या हम हो गए

रोज रोज मर मर कर जीना कष्ट बहुत पहुंचाए
तुमने देखी सारी सुनियाँ तुमको क्या समझाएं

तेरी बहू अकेली है मा बच्चे सब हैं बाहर
हम दोनों का स्नेह वही है .पर सूना है आँगन

कभी फोन से कभी मेल से हाल चाल लेते हैं
हम भी ऐसे ही हंस रोकर किसी तरह जीते है

 सांसों का मजदूर बन गया कथित विवेकी जीवन
यह उधार की पस्त जिन्दगी और जिया नहीं जाये

नव विकास की नई ताल पर घर में घुसा दिखावा
कुछ भी सहज नहीं रह पाया सब कुछ हुवा छलावा

धन दौलत सत्ता और कुर्सी की है खींचा तानी
जिसकी लाठी वही हांकता सब भैंसें मन मानी

अंधी महा दौड़ में भूली लोक धुनों की थिरकन
लोकरंग सब बिखर गए हैं तेज हुई है धड़कन

 हाल चाल तो ठीक ही समझो जादा क्या बतियाये.
जीवन इतना जटिल है उलझा सुलझे न सुलझाये

Monday 11 November 2013

.हमने पढ़ा है .

.हमने पढ़ा है .
दुनिया के सारे मनुष्य केवल 7 जींस से विकसित हुए .मतलब सारी दुनिया मूलतः 7 जोड़े पति पत्नी की औलाद है .
मैंने राधा कुमुद मुखर्जी को बहुत पढ़ा है .
उन्हों ने लिखा है की भारत वर्ष में बिभिन्न जातियों का समिश्रण बहुत संश्लिष्ट है .उन्हों ने यह भी लिखा है की न जाने कितनी जातियां यहाँ आईं और यहीं की होकर रह गयीं आज मूलतः कौन किसकी संतान है पता करना असंभव है .आदमी अधिक से अधिक १० पीढ़ी को जानता है वह भी वैध की पीढी अवैध की धारा समान्तर चलाती रही .इस लिए कोई भी गारंटी से नहीं कह सकता की उनकी २५वीपीढी के पिता या माता किस जाती की थीं
इसकी जरुरत भी नहीं मनुष्य होना सबसे जादा जरुरी है दिक्कत यह है की हम मनुष्य ही नहीं होना चाहते बाकी सब होना चाहते हैं .
मनुष्य के पहचान की दूसरी बात है धर्म. इसका मनुष्य के जींस या पारिवारिक परम्परा से कोई रिश्ता नहीं .इसकी धारा अलग चलती है .जो मनुष्य होने के लिए गैरजरूरी है .
हमारी सांस्क्रतिक विरासत हमारे अगली पहचान है .यही हमारे आचरण की सभ्यता होती है .इसके लिए जाति या धर्म की आवश्यकता नहीं मनुष्य होना काफी है .केरल में आज भी इसका उदाहरण है .
मनुष्य की मनुष्यता का पहला और आख़िरी चरित्रगत आचरण है जियो और जीने दो .,सहिष्णुता .किसी को पीड़ा न देना .सबके कल्याण की बात सोचना ..ऐसे में जब कोई धर्म की विचार की कट्टारता लेकर सामजिक विखंडन की बात करे तो वह मनुष्य नहीं .आज भगवान बन कर या शैतान बन कर जीने का मजा उठाने वालों की कमी नहीं .हमें हमारे देश और समाज को बचाना है तो अब जादा सावधान होना होगा .सोचिये .और मुझे भी समझाइये ..कोई बात गलत हो तो .

Saturday 9 November 2013

.भारत सभी का है .यहाँ सभी को जीने का अधिकार है पूरी स्वतंत्रता से .

देश अराजक हो गया है .हर कोई दूसरे को दोष दे रहा है खुद के गिरहबान में झांकने की हिम्मत किसी में नहीं .अराजकता से सम्स्यायें हल नहीं होतीं .मैं मूलतः शिक्षक हूँ और ७० से युवकों को ही संभालता झेलता भोगता रहा हूँ .बहुत मजा आया इस कार्य में .लेकिन हमने न तो कभी किसी को गुमराह किया ,न कभी किसी से हमें डर लगा सच और सच को आचरण में धारण किया यही हथियार रहा .युवकों में व्यवस्था के प्रति असंतोष तो होता है होगाही होनाभी चाहिए .और व्यवस्था परिवर्तन की महत्वाकांक्षा भी .किन्तु सच्चा मार्गदर्शक सही शिक्षक .सच्चा नेता तबतक युवकों को उद्दिगन नहीं करता जब तक् कोई सही रास्ता न मिल जाय .एक बार युवकों को खडा किया तो परिणाम तक पंहुचाये बिना उन्हें रुकना नहीं चाहिए .अन्यथा बहुत भयंकर परिणाम होता है .इस मायने में मैं अन्ना हजारे को बहुत बड़ा दोषी मानता हूँ .उन्हों ने युवकों को जोड़ा खडा किया और खुद परदे से गायब हो गए जब तक रहे गलत लोगों से घिरे रहे उन्हें खुद पता नहीं था की वे चाहते क्या हैं .अब परदे से गायब हो गए .रामदेव .केजरीवाल और संघ तथा भाजपा के अनेक अनुषंगों ने उन्हें लपक लिया .अब आज युवक उन्ही के लिए इस्तेमाल हो रहे हैं .हजारे के बस में जब नहीं था तो गलत लोगों के लिए रास्ता क्यों खोला .यह बात युवकों को खुद समझनी होगी .कांग्रेस या भाजपा कोई दूध का धोया नहीं बेईमान दोनों में हैं पर देश का हित देख कर युवकों को साथ होना होगा .कपट से बचना होगा आज धर्म /हिंदुत्व भारत के लिए महत्त्व पूर्ण नहीं समान नागरिक समान अधिका र ..भारत सभी का है .यहाँ सभी को जीने का अधिकार है पूरी स्वतंत्रता से .देश किसी की बपौती नहीं .लाफ्फासों फासिस्टों .धर्मान्धों . जातीय जहर फूंकने वालोंऔर झूठ बोलने वालों की लफ्फासी को समझ कर वोट देना होगा.
देश को युवक ही बचा सकते हैं गलत हाथों में जाने से .उन्हें समझना होगा .आने वाले खतरे को पहचानना होगा .कपटी लोगोंको बे नकाब करना होगा .हल प्रदर्शन नहीं वोट से .मुझे कम से कम मुझे अपने युवकों पर भरोसा है .

Sunday 20 October 2013

हिन्दी सीखे ,हिन्दी को जाने


.यह सीखने सिखाने की एक प्रक्रिया है .बात चीत से इस यात्रा के श्रम का परिहार भी होता रहेगा और हम आपस मे कुछ न कुछ सीखेंगे भी .हिन्दी हमारी संपर्क भाषा है हिन्दी शब्द आमिर ख़ुसरो के हिंदवी से से बना है .दिल्ली मे आमिर ख़ुसरो हमारी लोक बोलियों के साथ अरबी और फ़ारसी के मिश्रण से जिस नई भाषा मे लेखन शुरू किए उसे लोगों ने हिंदवी कहा .. .एक थॉल मोती से भरा सब के सिर पर औंधा धरा थाली चारो ओर फिरे मोती उसमे से एक न गिरे बैठी थी पिय मिलन को खांची मान मे रेख अब मौनी क्यों हो गयी चलनी के केइ देख खीर पकाई जतन से चरखा दिया चलाय आया कुत्ता खा गया तू बैठी ढोल बजाय . यह हिंदवी है आप हिन्दी का प्रारंभिक रूप कहा सकते हैं .,इसे स्वीकृत उतनी नही मिली जितनी चाहिए थी .ख़ुसरो हैदरा बाद चले गये उनकी भाषा उनके साथ गयी ..वहाँ दक्खिनि हिन्दी कहलाती है .दिल्ली मे खड़ी बोली ने अपना आधिपत्य जमा लिया .वही अब हिन्दी है हमारी हिन्दी दुनिया की सबसे अधिक विज्ञानिक .भाषा है .इसकी लिपि देवनागरी भी पूर्णतः वैज्ञानिक है . हिन्दी दुनिया की एक मात्र ऐसी भाषा है जिसमे जो बोला जाता है वही लिखा जाता है यही दुनिया की एक मात्र भाषा है जिसमे स्वर ध्वनियों के प्रतीक चिन्ह हैं . यही वह भाषा है जिसमे स्वर और ब्यनज़न के अतिरिक्त अर्ध स्वर और संयुक्त व्यनज़न हैं और इसीलिए यह कम्प्युटर के लिए सर्वाधिक उपयुक्त भाषा मानी जाती है ... जब कम्प्युटर से सामान्य बोल चाल की तरह voice recognition की तकनीक के द्वारा संवाद प्रारम्भ होगा ... केवल हिंदी बारहखड़ी को आधार बनाकर उससे सभी काम कराये जा सकेंगे ... हमारी ध्वनियों के उच्चारण की एक वैज्ञानिक ब्यावस्था है .ध्वनियाँ एक निशित प्रकार से निश्चित जगह से निश्चित प्रयत्न से उच्चरित होतीं हैं .यह करिश्मा जब समझ मे आजाएगा तब हिन्दी बोलते समय आप स्वाभिमान से भर जाएँगे . हम कल से स्वर को समझेंगे फिर व्यनज़न .द्धवनियों को पूरी तरह समझने के बाद हम शब्द रचना फिर वाक्य ..की तरफ जाएँगे . एक बात और याद रहे की हमने पहले बोलना सीखा हमने शब्द प्रकृति से लिए फिर हमने ब्याकरण सीखा फिर लिपि का विकास हुवा फिर हमने लिखना सीखा .बोलने से लिखने तक कई हज़ार साल बीत गये . स्वर ध्वनियाँ अन्य भाषाओं की तरह हिन्दी मे भी स्वर और ब्यनजन दो प्रकार की ध्वनियाँ हैं ध्वनियो के उच्चारण के लिए मुखविवर अर्थात दोनो ओंठ से लेकर गले की ठुड्डी कंठ तक जिसे हम काकाली या कौवा कहेंगे तक के विभिन्न अंगो से होता है .ओंठ दाँत जीभ छोटी जीभ स्वर् नलिका मसूढा तालूउपर /नीचे दंटो और मसूढों की संधि आदि बिभिन्न स्थानो के निशित प्रयत्न से हम ध्वनियों का उच्चारण करते हैं स्वर ..अर्थात वे ध्वनियाँ जिनके उच्चारण के लिए किसी और अन्य ध्वनियों की सहायता न लेनी पड़े .स्वर ध्वनि का उच्चारण केवल जिहवा से होता है .किसी और अवयव की सहायता नही लेनी पड़ती /जीभ को टीन भागों मे बाँट कर देखिए ..अग्र जिहवा ..टिप /मध्य जिहवा ..बीच का हिस्सा /पीछे की जीभ जहाँ एक घंटी लटक रही है .पश्च जिहवा /इन्ही के आधार पर स्वर ध्वनियों को तीन भागों मे बाँट दिया गया है ...अग्र स्वर ...पस्च स्वर / मध्य स्वर हम स्वर ध्वनियों की चर्चा कर रहे थे . आ आ इई उऊए ऐओ .से अँह:तक..१२ इ ईउ ए ओ अँ अ आ ऊ ऐऔ ह: आप की जीभ > अग्र-जिहवा --------- मध्य जिहवा ------ पश्च जिहवा (यहहिस्सामुखविवरमे पीछे है जहाँ एक घंटीहै /) अग्र स्वर मध्य स्वर पश्च स्वर अग्र स्वर हुए ........जो आगे से निकले मध्य स्वर सिर्फ़ एक है ....अ. पश्च स्वर हुए जो पीछे से निकले इ ईउ ए ओ अँ अग्र स्वर हुए मध्य स्वर सिर्फ़ एक है ....अ..... पश्च स्वर आ ऊ ऐऔ ह: जीभ के प्रयत्न घुमाव और स्थान के आधार पर इनके भी विभाजन हैं ..विवृत्त अर्धविवृत्त समवृत्त अर्ध संवृत अब शेष फिर कल ..अवश्य पढ़िए .अपनी टिप्पाड़ी दीजिए .ध्वनियों का उच्चारण करके आनंद लीजिए बताइए की कैसा लगा .... आज इतना ही समझिए .कोई सवाल हो तो पूछिये ..अपनी टिप्पाड़ी ज़रूर लिखिए ...कल आगे अच्छी हिन्दी सीखें बोलें ... .गतान्क से आगे पाठ ४...व्यंजन ध्वनियाँ . अभी तक आपने स्वर धावनियो की परिभाषा , अ से अ: तक के उत्पादन स्थान.. /उच्चारण अवयव .आदि की जानकारी प्राप्त की .अब बारी है व्यंजन ध्वनियों की . परिभाषा =.हिन्दी वर्ण माला की वे ध्वनियाँ जिनका उच्चारण स्वर ध्वनियों की सहायता के बिना संभव नही .है अर्थात हर व्यंजन ध्वनि स्वर ध्वनि की सहायता से ही उच्चारित होती है |.जब आप क बोलते हैं तो उसमे अ निहित होता है .| वर्णमाला मे व्यंजन ध्वनियाँ कई वर्गों मे विभक्त हैं| यह विभाजन उच्चारण अवयव के आधार पर है ./आगे चल कर हम स्वर् के दाब बालाघात स्वारा घात के आधार पर भी बिभाजन कर के समझेंगे .| हम आप को बता चुके हैं की दोनो ओठों से लेकर गले के भीतर कंठ के काकाल्य तक के हिस्से से हम व्यंजन ध्वनियों का उच्चारण करते है | दूनो ओंठ,दोनो तालू ,जिहवा की स्थित, घुमाव ,उपर नीचे के दाँत /गले मे लटकाने वाली छोटी जीभ .नासिका .आदि के सहारे हम व्यंजन ध्वनियों का उच्चारण करते हैं .हमारे पास कुछ अर्धस्वर भी हैं .कुछ संयुक्त व्यंजन भी हैं |इनके अतिरिक्त ..ज्ञान ऋषि जैसे शब्दों के लिए अलग ध्वनि भी है |\ १=कंठ से निकालने वाली ध्वनियों को कंठ ध्वनि कहते हैं ...क ख ग घ ड. इसे क वर्ग कहा जाता है / २=तालू और जीभ के घर्सन से निकलने वाली ध्वनि को तालव्य ध्वनियाँ कहते है च छ ज झ याँ इसे च वर्ग भी कहा जाता है /३=मूर्धन्य ध्वनियाँ जीभ के प्रयत और मूर्धा आकर के कारण उत्पन्न होती हैं ...ट ठ ड़ढ़ ण इन्हे ट वर्ग भी कहा जाता है /४=दंत्य ध्वनियाँ पूरी तरह आगे के उपर नीचे के चार दाँतों से उच्चारित होती हैं .जिनके चारो दाँत नही होंगे वे त थ द ध न का उच्चारण नही कर सकते /५= ओंठ ध्वनियाँ उपर नीचे के दोनो ओंठकी सहायता से उच्चारित होती हैं जिनके ओंठ किसी कारण वास नही होते वे प फ ब भ म ध्वनियों का उच्चारण नही कर सकते आप इनका उच्चारण करके अभ्यास करे ..फिर आनंद ले .य र ल व श ष स .ह क्ष त्र पर चर्चा अगले पाठ मे करेंगे ... गतान्क से आगे का पाठ .. य र ल व श ष स ह क्ष त्र ज्ञ से पहले की ध्वनियों के बारे मे चर्चा हो चुकी है ..इनमे से य और व अर्धस्वर कहलाते हैं अतः जीभ की सहायता से उच्चारित होतेहैं मध्य जिहवा से श तालव्य ध्वनि है अतः च वर्ग के साथ है .तालव्य ध्वनि ६ हो गयी वैसे ही इसका उच्चारण होगा जैसे अन्य तालव्य ध्वनि का ष मूर्धन्य ध्वनि है मूर्धन्य ध्वनियों की संख्या भी ६ हो गयी .इसका उच्चारण भी उसी तरह होगा जैसे अन्य मूर्धन्य ध्वनियों का स दंत्य ध्वनि है दंत्य ध्वनि भी ६ हो गये .इसका उच्चारण उसी तरह होगा जैसे अन्य दंत्य ध्वनियों का र वर्त्स्य ध्वनि है इसका उच्चारण दाँत और मसुढ़ों से जीभ के कई बार स्पर्श से होता है ल लुंठित ध्वनि कहलाती है जीभ उपर के मासूढ़े से चिपक कर यह ध्वनि निकलती है ह हृस्व ध्वनि है सबसे कम प्रयत्न इसी के उच्चारण मे लगता है क्ष त्र ज्ञ संयुक्त व्यंजन है ऋ स्वर है ये तीनो हमारी शब्दावली के कुछ विशिस्ट शब्दों के लिए हैं जैसे ऋषि /ज्ञान /त्रिदेव अब हम सीखेंगे की हमारे शव्द भंडार मे शव्द कहाँ से आते हैं ....

Saturday 19 October 2013

एक मित्र ने सुनाया .एक कहानी ज्यों का त्यों सुन लो .



"वही सबसे तेज चलता है, जो अकेला चलता है। एक बार एक किसान की घड़ी कहीं खो गयी. वैसे तो घडी कीमती नहीं थी पर किसान उससे भावनात्मक रूप से जुड़ा हुआ था और किसी भी तरह उसे वापस पाना चाहता था. उसने खुद भी घडी खोजने का बहुत प्रयास किया, कभी कमरे में खोजता तो कभी बाड़े तो कभी अनाज के ढेर में ….पर तामाम कोशिशों के बाद भी घड़ी नहीं मिली. उसनेनिश्चय किया की वो इस काम में बच्चों की मदद लेगा और उसने आवाज लगाई , ” सुनो बच्चों , तुममे से जो कोई भी मेरी खोई घडी खोज देगा उसे मैं १०० रुपये इनाम में दूंगा.” फिर क्या था , सभी बच्चे जोर-शोर दे इस काम में लगा गए…वे हर जगह की ख़ाक छानने लगे , ऊपर-नीचे , बाहर, आँगन में ..हर जगह…पर घंटो बीत जाने पर भी घडी नहीं मिली. अब लगभग सभी बच्चे हार मान चुके थे और किसान को भी यही लगा की घड़ी नहीं मिलेगी, तभी एक लड़का उसके पास आया और बोला , ” काका मुझे एक मौका और दीजिये, पर इस बार मैं ये काम अकेले ही करना चाहूँगा.” किसान का क्या जा रहा था, उसे तो घडी चाहिए थी, उसने तुरंत हाँ कर दी. लड़का एक-एक कर के घर के कमरों में जानेलगा… और जब वह किसान के शयन कक्ष से निकला तो घड़ी उसके हाथ में थी. किसान घड़ी देख प्रसन्न हो गया और अचरज से पूछा ,” बेटा, कहाँ थी ये घड़ी , और जहाँ हम सभी असफल हो गए तुमने इसे कैसे ढूंढ निकाला ?” लड़का बोला,” काका मैंने कुछ नहीं किया बस मैं कमरे में गया और चुप-चाप बैठ गया, और घड़ी की आवाज़ पर ध्यान केन्द्रित करने लगा , कमरे में शांति होने के कारण मुझे घड़ी की टिक-टिक सुनाई दे गयी , जिससे मैंने उसकी दिशा का अंदाजा लगा लिया और आलमारी के पीछे गिरी ये घड़ी खोज निकाली.” Friends, जिस तरह कमरे की शांति घड़ी ढूढने में मददगार साबित हुई उसी प्रकार मन की शांति हमें life कीज़रूरी चीजें समझने में मददगार होती है . हर दिन हमें अपने लिए थोडा वक़्त निकालना चाहिए , जसमे हम बिलकुल अकेले हों , जिसमे हम शांति से बैठ कर खुद से बात कर सकें और अपने भीतर की आवाज़ को सुन सकें , तभी हम life को और अच्छे ढंग से जी पायेंगे..."

Sunday 23 June 2013

वेद.मंत्र

ओं भूर्भुवः स्वः ततसवितुर्वरेनियम भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नह प्रचोदयात .ओं. सन्नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये/ शंयोरभि स्रवन्तु नः /*ओं..वाक़ ,वाक़ /ओं प्राणः प्राणः/ ओं चक्षुःचक्षुः/ओं श्रोत्रं श्रोत्रं/ ओं नाभिः/ ओं ओं कंठः/ ओं शिरः/ ओं भाहुभ्यामयशोबलम / ओं करतलकरप्रिश्ठ्ये/ओं भू:,ओं भुव:,ओं स्वः, ओं मह:,ओं जन:,ओं ताप:, ओं सत्यम /ओं ऋतंच सत्यांचाभीद्धात्तापसोअद्ध्यजायत,ततो रात्र्यजायत ततः समुद्रो अर्णवः / समुद्रअद्र्न्वादाधि संवत्सरो अजायत ,अहो रात्रानि विदधद्विश्व्स्य मिषतो वशी / सूर्याचन्द्रमसौ धाता यथापूर्वंमकल्प्यत,दिवंच पृथ्वींचान्तरिक्षमथोस्वः /ओं प्राची दिगग्निराधिपतिरक्षितो रक्षितादित्याइषवः /तेभ्यो नमो अधिपतिभ्यो नमो रक्षित्रिभ्यो नम इशुभ्यो नमं एभ्यो अस्तु /यो असमान द्वेस्ति यं वयं द्विष्मस्तं वो जम्भे दध्मः/ओं दक्षिणा दिगिन्द्रो अधिपतिस्तिरश्चिराजी रक्षिता पिटर इषवः /तेभ्यो नामोअधिप्तिभ्यो नमो रक्षित्रिभ्यो नम इशुभ्यो नम एभ्यो अस्तु /यो असमान द्वेस्ति यं वयं द्विमस्तं वो जम्भी दध्मः

लौट आई मैना भी

लौट आई मैना भी 
कई दिनों बाद आज तीसरे पहर
बगीचे में पौधों को पानी दे रहा था कि
अचानक मेरे सिर पर मंडराई
मानो उसने अपनी पहचान बताई
आज दिखी मेरी मैना ....
पिछले बसंत के बाद उड़ गई थी
अपने दो नन्हे बच्चों के साथ
आज बच्चे साथ नहीं थे /
उसके साथ उसका नया साथी था
मैना बेहद खुश थी ,साथी गंभीर था
मैना चिउं चिउं करते ,अपनी लम्बी पूंछ हिलाते
आम आंवला अमरुद नीबू मधु कामिनी
जूही मधुमालती सभी पर बैठ आई
वह मानो फूली नहीं समां रही थी /
लौट के साथी के पास आई ,
उसके कानो में गुनगुनाई 
यही उसका अपना ठौर है /जहाँ उसने रचा था संसार ...
लौट आई मैना भी ...प्रवासी बच्चे नहीं लौटे ......?

भोर हो गई

भोर हो गई 
अस्ताचल में सूरज छिपा ही था कि
कि शुक्र तारे कि बिंदी लगाये
उतर गई संध्या मेरे अगन में
पसर गई पूरे घर में चुपके से
विभ्रम कि लोरी ,स्नेह कि थपकी ,ममता सा दुलार
बिन किसी भेद भाव बाँट दिया सबको
सो गया घर बार ,वह होगई प्रौढ़
उस ने बदल लिए नाम
वह अब रजनी हो गई थी /
भोर कि आहट से अभी कुनमुनाई ही थी रजनी
सखी उषा ने खट खटा दिया द्वार
निकल पड़ी रजनी पनघट कि ओर
सखी उषा से मिलने धवल वस्त्रों में सकुचाई,अलसाई छुई मुई
सूरज ने उलट दिए अनुराग उसके आँचल में
अरुणिम किरणों के सिन्दूर से भर दी उसकी मांग
कम्पित थे अरुण गात/भोर हो गई ,
दोनों हाथो ढँक लिया मुह छिप गई रजनी ...

रति गंध न मिल जाय


मानवीय  चेतना का विनाश
संत्राश.
धीरे धीरे सुलगता हुआ दाह
निरंतर कचोटती हुई स्थितियों में
जीता हुआ,मरता हुआ मन .
झुलसते    इक्षाओं के अंगारे
कफ़न सी सफ़ेद आर पार फ़ैली हुई
चांदनी के नीचे
सुबकती सांसें .
जीता जागता जहन्नुम
बिलबिलाती हुई इक्षाएं
हिनहिनाता क्रोध ,
खुद बुदाते  प्रेम ......
गेगरीन के घाव के
मवाद सी जिन्दगी
खुर्राट वेश्या के
सिफलिस सड़े अंगों सी
नुची चुथी बजबजाती
ब्यवस्था में ,झल्लाती जिन्दगी.
ऋतु गंध में भीगे कपडे सी
फेंक दी गयी
इसलिए की उसे
रति गंध न मिल जाय.

Sunday 28 April 2013

anhad - vani: यह ढलने वाला

anhad - vani: यह ढलने वाला: आग हुई चूल्हे की ठंडी अदहन नहीं उबलने वाला
 हर दिन उल्कापिंड गिरते आसमान से हम क्या पाते
 आंधी वाली सुबहे आती चक्रवात खपरैल उड़ाते
 इस सूरज से अब क्या डरना शाम हुई  ढलने वाला है .


anhad - vani: दर्द के गाँव से नित गुजरना ही है

anhad - vani: दर्द के गाँव से नित गुजरना ही है: दर्द के गाँव से नित गुजरना ही है ,हम को जीना यहीं ,यहीं मरना भी है अपनी फितरत में है दर्द को जीतना, दर्द लेना भी है दर्द सहना भी है दर्द ...

anhad - vani: सोचिए ज़रा

anhad - vani: सोचिए ज़रा: मनुष्य की अदम्य जिजीविषा ,जीवन जीने की उत्कट अभिलाषा उसे सारे ख़तरों से जूझने और निपटने की हिम्मत देती है ;यह अदम्य लालसा ही है जो जो मन...

anhad - vani: कृपया बच्चों को भगवान का असली अर्थ समझाइये .

anhad - vani: कृपया बच्चों को भगवान का असली अर्थ समझाइये .: मुझे नरक जाना पसंद है पर इस तरह के संतो का सानिध्य मोक्ष नही चाहिए कतई नही |.वैसे मैं भगवान को मानता हूँ पर स्वर्ग नरक मोक्ष ,देबी देव...

anhad - vani: फागुन जोग लिखी ..

anhad - vani: फागुन जोग लिखी ..: चुगुली करती हवा निगोड़ी मधुऋतु  अलख जगाये मैना करती सीना जोरी रुनझुन पायल गए फागुन जोग लिखी .. धीरे धीरे बही फगुनहट चंपा महकी र...

Wednesday 24 April 2013

फागुन जोग लिखी ..


चुगुली करती हवा निगोड़ी
मधुऋतु  अलख जगाये
मैना करती सीना जोरी
रुनझुन पायल गए
फागुन जोग लिखी ..
धीरे धीरे बही फगुनहट
चंपा महकी रात
लादे पलास लाल दिसि चारो
आँखें करतीं बात
चैत में धूम मची ..
बौरे आम टिकोरा झूलें
भौंरा बांस लुभाए
खेत पके खलिहान जगे सब
कोयल पंचम गए
बिंहसती धुप खिली ..
नीरस हुई निगोड़ी पछुवा
नीकी लगे छाँव
सूखन लगे ताल तलैया
बगिया सिमटा गाँव
धूप  की तेज बढ़ी ..
सूरज ने फैलाई बांहें
लूह चले चहुँ ओर
दहकन लागी दासों दिसायें
छाँव खोजती ठौर
अभी से  तपन बढ़ी ..
पके आम चुचुआने महुवा
बगिया सिमटा गाँव
ताल सरोवर दरकन लागे
धधक उठी हर ठाँव
भोर कुछ खिली खिली..
भांय भांय  करती दुपहरिया
चिड़िया दुबकी पात
नाच रही चिल चिल गन गनियां
सुलगे आधी रात
जवानी ग्रीष्म चढी ..
फागुन जोग लिखी .....

Sunday 21 April 2013

क्या ? ऐसा नहीं हो सकता /

क्या ? ऐसा नहीं हो सकता / कि जब भी मिलें हम एस तरह मिलें ,जैसे मिलती हैं , अलग अलग दिशाओं में ब्याही दो सखियाँ वर्षों बाद किसी मेले में / जीवन में बहुत बवाल है वरना ,कौन भूलता है बेफिक्र दिनों को ,आप भी नहीं भूले होंगे पर याद नहीं करते होंगे हरदम , आखिर कौन है इतना फुर्सतिहा / बहुत मार काट है इन दिनों , जिसे देखो वही दूसरे को धकियाते जा रहा है / ऐसे में महज इतना हो जाय तो भी अच्छा है कि जब आप थक हार कर पोंछ रहे हों अपना पसीना तो याद आ जाय पसीना पोंछते पिता का थका चेहरा और यह की दुनिया सिर्फ हमारी बपौती नहीं है यहाँ सभी को हक है जीने का अपनी आजादी के साथ /

तेरे प्यार की हिफाजत कुछ इस तरह से की है ,

तेरे प्यार की हिफाजत कुछ इस तरह से की है ,
जब भी कभी किसी ने प्यार से देखा तो नजरे झुका ली हमने /
बस यही सोच कर तुझसे मोहब्बत करता हूँ मैं
मेरा तो कोई नहीं है .. मगर तेरा तो कोई हो ...

Thursday 18 April 2013

.जब जब बाजे खझडिया त हिरनी विसुरै हो .

कल राम नवमी है .

.शाक्त देवी को बलि देंगे वैष्णव राम की जय करेंगे .

.हम जो अयोध्या वासी हैं .क्या करें ..सोहर गायेंगे .आप को सुनना है ......सुनिए .

.पर ध्यान रहे रोना नहीं है .
..जब जब बाजे खझडिया त हिरनी विसुरै हो .
राम का मुंडन है .सरयू के किनारे एक हिरन का जोड़ा घास चर रहा है ..हिरनी की नजर चहलकदमी पर पडी तो उसने ..हिरन से कहा ,प्रिय लगता है आज महाराज दशरथ के यहाँ कोई उत्सव है .चलो छिप जाओ ..नहीं तो तुम्हारा शिकार हो जाएगा .

.अभी बात पूरी हुई ही नहीं थी की हिरन को वान लग गया .वह मर गया .शिकारी उसे कंधे पर लेकर दशरथ के दरबार में गया, माता कौशल्या के हवाले किया .हिरनी उसके पीछे पीछे गयी ..कौशल्या ने हिरनी से आने का कारन पूछा तो उसने कहा ..माता तुम ऐसा करो हिरन का मांस निकाल लो राम के लिए व्यंजन बनाओ .. और खाल हमें दे दो .हमें खुसी होगी ..हम चले जायेंगे |
कौशल्या बोली ..तुम खाल का क्या करोगी ....हिरनी
हिरनी बोली....जंगल के किसी सूखे ठूठ पर लटका कर इसके इर्द गिर्द घास चरुन्गी .मुझे संतोष होगा की मेरा पति मेरे पास है .
कौसल्या पहले तो राजी हो गयीं .पर तुरंत मना कर दिया ..बोलीं ....
.जाहु हिरनी घर अपने खलारिया न देबय हो ..हिरनी खलरी क खझडी मढइबय बजईहैं राजा रघुबर .

..क्या करती हिरनी रोती विलखती चली गयी ....फिर क्या था हिरन के .खाल की खंझडी बनी|

राम लखन भारत सत्रुघन बजाते बजाते खेलते थे .खझडी. की आवाज हिरनी को जंगल में सुनाई पड़ती ..तो उसे अपने पति की याद आती, वह पति के स्मृति में विभोर हो जाती |
लोक गीत कार लिखता है ...जब जब बाजे खझडिया त हिरनी वीसूरय हो ......
यह मार्मिक सोहर हम माँ से सुनते थे ..सुबह जब माँ जातामें गेंहू पीसती थी तो यही सोहर गाती थी .हम खटिया से उठ कर आते और माँ की जांघ में सर रख कर सो जाते जाते के घुरुर घुरू की ध्वनी और सोहर का राग ..अलौकिक संगीत का समा .वहअब कहाँ ......कैसी लगी कथा .

Monday 4 February 2013

सोचिए ज़रा

मनुष्य की अदम्य जिजीविषा ,जीवन जीने की उत्कट अभिलाषा उसे सारे ख़तरों से जूझने और निपटने की हिम्मत देती है ;यह अदम्य लालसा ही है जो जो मनुष्य को अन्य प्रणियों से भिन्न करती है .हमारी संस्कृति ,हमारे संस्कार .हमारी आत्मानुशासन की प्रवृत्ति ,हमारे जीवन को सुरुचिपूर्ण और आकर्षक बनती है .हम इसी मे उठते और आगे बढ़ते हैं .यह सांस्कृतिक धरोहर हमे अपने लोक से मिलता है.जिसका लोक जितना समृद्ध होगा उसका आभिजात्य ..उतना ही सशक्त होगा सामर्थ्य वान होगा ..लौकिक जीवन हमे आस्था के गंगा जल मे अवगाहन कराता है ,हमारी आस्था ही हमारी उर्जा है शक्ति है .इसके अभाव मे हम बहुत हल्के और कमजोर होते हैं .पर यह आस्था किसी देवी देवता के प्रति नही .मनुष्य और मनुष्यता के प्रति होना चाहिए ...आस्था के मार्ग पर भटकने का अर्थ है मनुष्य जीवन के लक्ष्य से भटकना .सबसे जाड़ा ज़रूरी है की हमारी आस्था और प्रतिबद्धता अपने प्रति हो .मनुष्य के प्रति हो .परिवार और समाज के प्रति हो .धन ,धर्म पद प्रतिष्ठा मान सम्मान जाति ये सभी दूसरे नंबर पर आते हैं .

सर्वे भवंतु सुखीनः सर्वे संतु निरामाया की हमारी कल्पना तभी साकार होगीहमारी सबसे बड़ी समस्या आज के दिन है की हम आभिजात्य की ओर भाग रहे हैं .हमे समझना होगा की जो लौकिक नही वह सभ्य तो हो सकता है सुसंस्कृत नही होसकता ..समझने केलिए कह सकते हैं की जो अंतर प्यार और कांट्रेक्ट मे है .जोलौकिक है वह प्यार करता है ,स्नेह करता है सम्मान करता है .किसी को दुख नही देना चाहता ,अपने लिए नही दूसरोंके लिए जीना चाहता है .सहिष्णु होता है .उन्मुक्त होता है कपाट विहीन स्वच्छन्द होता है ज

िसकी जड़ें लोक मे नही किंतु आभिजात्य है वह इन सब के बिपरीत होता है .मा के हंत की बनी गुदड़ी लौकिक है .उस पर सुंदर कवर ,संस्कृति है ..फोम का गद्दा आभिजात्य है सभी है ..जो आत्मीयता प्रेम स्नेह आनंद संतोष गुदड़ी मे सोने मे है वह फोम के गद्दे मे नही .फोम आप को सुख देगा आनंद नही ..केवल आभिजात्य होना हमे दंभ देता है .अभिमान देता है .जड़ बनता है .संबेदना शून्य कर देता है .आज की दिनचर्या मे हम सभ्य हैं आभिजात्य हैं लेकिन लौकिक नही .इसी मे हम अपना पं खोते जा रहे हैं और मानसिक रूप से रुग्ण तथा गुलाम होते जा रहे हैं .हमे सोचना होगा की अपनी आने वाली पीढ़ी को उत्तरा धिकार मे हमे क्या देना है ..तोड़ा सा अपना पन या ढेर सारा आभिजात्य .,/हमारी जातीय संस्कृति विलुप्त हो गयी है ..इसके ज़िम्मेदार हम ही हैं ... कोई भी लकड़ी बिना स्नेह .आत्मीयता श्रम के गुड़िया नही बनती . हमे याद रखना चाहिए ..अभी भी समय है जो जहाँ है वहीं अपने जातीय गुनो को संरक्शाट कर सकता है .यह आप का धर्म भी है .कर्ज़ भी है ..रोटी से पिज़्ज़ा की ओर भागती पीढ़ी ........कल क्या होगी सोचिए ज़रा

Sunday 3 February 2013

जिन्दगी भर .पीड़ा और रोमांच देती रहीं बचपन की बेवकूफियां

जिन्दगी भर .पीड़ा और रोमांच देती रहीं बचपन की बेवकूफियां


बचपन के दिन भी क्या दिन थे, जब हम शहंशाह होते थे,बेताज बादशाह ,खुराफात के पिटारे ,जो सूझा कर दिया ,लेकिन क्या बात थी तब के समाज गाँव घर में ,बचपने को बचपना मानकर ही ब्यवहार होता था ,अब तो थाना पुलिस  मार पीट दुश्मनी  सब हो जाय .वाकया उन दिनों का है जब हम चौथी  कक्षा में पढ़ते थे ,मेरे एक चहेरे भाई की भाभी थीं ,अरे यार भाभी मेरी थीं उनकी तो पत्नी थीं बेहद सुन्दर चंचल मुझे बहुत अच्छी  लगती थीं.खूब  काम कराती थीं अपना ,लेकिन बदले में कुछ न कुछ देतीं थीं ,उनकी एक आदत गड़बड़ थी ,जब भी मिलतीं थीं मेरे गोल गालों को जोर से चिमट देतीं थीं और चूम लेतीं थीं ,चूमना तो ठीक था पर चिमटतीं  तो इतने जोर से थीं की रोना आजाता था ,आँखें आंसू से डबडबा जातीं  थीं, उनकी सास मतलब की मेरी चाची इस प्रसंग में मेरा साथ देतीं थीं ,होली आयी ,होली के दिन लगभग १२ बज रहे थे ,चाची ने मुझे बुलाया और पुचकारते हुए बोलीं ..हमर बचवा हो ताड़ी वाली (भाभी के मायके के नाम ताड़ी था ) तोहर गलवा नोच नोच के लाल कई दिहीं ,फिर उन्होंने अपनी ही बहू के खिलाफ मुझे भड़काया मै भी चढ़ गया चने के झाड़ पर चाची ने जो जैसा कहा था किया .सुबह की धुलंड होली (धुल कीचड़ की होली )ख़तम हो गयी थी ,दोपहर को नहा धोकर भाभी अपना बाल खोल  कर सुखा  रही थीं और साथ ही पूड़ी बेल रही थीं , चाची के निर्देश के अनुसार मैं नाद से सड़ा हुआ भूसा (बैलों को खिलाने वाला नाद..भूसा खली दाना  ) बाल्टी में लेकर लुकते छिपते गया और भाभी के खुलेसर और बालों  पर होली है की उदघोशना के साथ उलट दिया ,सारी गंदगी फ़ैल गयी बाल में खली दाने में सडा हुआ  भूसा भर गया ,सब गन्दा पानी कपडे ,शरीर के साथ पूड़ी और गुल गुले  के आंटे में भर गया ,पूरा घर गंधाने  लगा ,चाची बड़ी  खुस ,की आज तो बहू से बदला निकाल लिया बच्चे ने. उनका खुद का घर खुद की बहू खुद के त्यौहार के पकवान और  आंटे के बर्बाद होने की चिंता नहीं ,उन्हें मजा आ रहा था.खूब हंस रहीथीं , .भाभी खिसीआई  सी ,रुआंसी    हो गयी ,उसे इस बात का दुःख नहीं था की मैंने गन्दा कर दिया, दुःख इस बात का था की चाची के प्लान ने उसे पराजित कर दिया नहीं तो सुबह से किसी ने उसे कीचड़ नहीं लगाया था,गुस्से में भाभी ने मेरे घर जाकर मेरी माँ से शिकायत  कर दी ,माँ ने पहले तो मेरा होलीकाष्टक छुड़ाया ,खूब पीटा.फिर सजा का फरमान सुनाया .जाओ कूंएं से पानी लाकर दो बहू नहाये गी ,अब क्या था .भाभी बैठ गयी नहाने ,मानिनी नायिका की तरह ,मैं पानी लेकर आता था  भाभी उलट देती थी ,नहाती नहीं थी ,मेरे पूछने पर धमकाए, की लाते हो पानी की जाकर अम्मा को बताऊँ ,मै चुप होकर आदेश  का पालन करता रहा ,दो घंटे तक कमसे कम ५० बाल्टी पानी भरवाने के बाद भाभी मुझे पकड़ कर मेरा गाल चिमाटते हुए बोली कहो लाला कैसा लगा ,फिर खेलोगे भूसे की होली ,मेरे गालों को चूमा, बोलीं जा अब हम नहालेंगे ,बाल धोने में बहुत देर लागी भूसा बालों से चिपक गया था ,निकलता ही नहीं था ,आज भाभी ७८ साल की हैं ,पर याद करके खूब हंसती हैं अपने पोपले गालों को फुलाकर , भाभी मेरी सुन्दर थी ,आज भी है ,

फागुन जोग लिखी .

फागुन जोग लिखी .


चुगुली करती हवा निगोड़ी
मधुऋतु  अलख जगाये
मैना करती सीना जोरी
रुनझुन पायल गए
फागुन जोग लिखी ..
धीरे धीरे बही फगुनहट
चंपा महकी रात
लादे पलास लाल दिसि चारो
आँखें करतीं बात
चैत में धूम मची ..
बौरे आम टिकोरा झूलें
भौंरा बांस लुभाए
खेत पके खलिहान जगे सब
कोयल पंचम गए
बिंहसती धुप खिली ..
नीरस हुई निगोड़ी पछुवा
नीकी लगे छाँव
सूखन लगे ताल तलैया
बगिया सिमटा गाँव
धूप  की तेज बढ़ी ..
सूरज ने फैलाई बांहें
लूह चले चहुँ ओर
दहकन लागी दासों दिसायें
छाँव खोजती ठौर
अभी से  तपन बढ़ी ..
पके आम चुचुआने महुवा
बगिया सिमटा गाँव
ताल सरोवर दरकन लागे
धधक उठी हर ठाँव
भोर कुछ खिली खिली..
भांय भांय  करती दुपहरिया
चिड़िया दुबकी पात
नाच रही चिल चिल गन गनियां
सुलगे आधी रात
जवानी ग्रीष्म चढी ..
फागुन जोग लिखी .....

Saturday 2 February 2013

नहीं दीखता मुझे बसंत कहीं भी


अभी अभी लौटा हूँ

कवि गोष्ठी से

लोगों ने सुनाईकवितायेँ

सुनाये वसंत के गीत .

किसी की खो गई प्रियतमा

किसी को मिल गया मन का मीत .

पर अबकी बार भी मै नही जान सका

वह तरकीव जिससे महसूसता

आगमन बसंत का .

सुनता कोयल की कूक

मैना दम्पति की सीना जोरी

फागुनी हवावों की कानाफूसी

भीतर तक मेरे भरी नहीं अम्र कुंजों की मधु गंध

गदबदाये

सरई बनो का जादू ,मादक गंध महुवा की .

अन्दर तक बना हुवा संत मै खोजता हूँ

अपने परिवेश में बसंत .

मेरे भीतर तक धंसा पसरा समूचा

बियाबान

मारता है हूक

मुझे तो सब कुछ दीखता है ठूंठ

ठूंठ ,ठूंठ ,ठूंठ दर ठूंठ ,और उस पर बैठा है

एक गिरहबाज नोच रहा है ,नन्ही सी चिड़िया के पंख

तोड़ रहा है उसके डैने अपने अभ्यस्त खुरदुरेपंजों से

नाखून बढे पंजों में जकड़े निचोड़ रहा है उसका समुच अस्तित्व

नीचे झड़े सूखे पत्ते का अम्बार खड खडा उठता है,

और क्रूर हो उठता है हवा का रुख .

धीरे से सरकता हुआ भेडिया,लपलपाती जीभ

चाटता है रक्त उस लड़ बडाये लाल भुभुक्क पलास के नीचे .

अभी कल की ही तो है बात

शहर के उस ब्यस्ततम चौराहे पर पिचक दिया था

ट्रक ने उस नन्ही सी जान को पचाक ......

हो गयी थी सारी सड़क लाल

हाँ हाँ वही तो जो देख नहीं सका अपना छठां बसंत .

अभी कल ही तो बैठा था मेरे संग

और उसका बाप पिट गया उसी रात

ट्रक मालिक के गुंडों के हाथ ,खिचगयी साड़ी

उसबाचारी अभागिन मां की जो भरे बसंत में

समेटे है बीरान बियाबान पतझड़

पिचके गाल सूखी छाती

निचुड़े अध् ढंके अंगों से निर्वासित ,रीती भयातुर आँखें

वह भी तो खोज रही है अपने जीवन का बसंत

जो तोड़ चुका है दम ,

वह चीखती है चिल्लाती है

अपने बसंत को आवाज लगती है .

पर खो जाती है उसकी चीख

भीड़ भरे इस अपने ही अजनबी शहर में

नहीं दीखता मुझे बसंत कहीं भी
इस श्मशान नगर में .

मै वहां कभी नहीं गया..पर मै वंहा हर क्षण होता हूँ ...


मेरे घर से थोड़ी दूर पर है .वह कब्रिस्तान
नजदीक ही है वह श्मशान ,एक ही जमीन का टुकड़ा
जो दफनाये गए उनके लिए कब्रिस्तान
जो जलाये गए उनके लिए श्मशान
चारो ओर से खुला है ,हर चुनाव में .
इसके घेरे बंदी की चिंता करते हैं नेता लोग
अपने भाषणों में इसे मरघट कहते हैं ,
लोग दफनाये जाते हैं लोग जलाये जाते हैं इसी मरघट में ,
मोहल्ले के रहवासियों के लिए आबादी के निस्तार का
एक हिस्सा ही है यह/ मरघट मेरे छत से दिखता है /
मेरे घर और मरघट के बीच एक बहुत बड़ा ताल है
तालाब नुमा /इसमें "आब" नहीं है /फैली है बेशर्मी
डबरा है थोडा सा /इसी में लोटते रहते हैं दिन भर
भैंसें, सूअर ,बकरियां ,गाँयें,कुत्ते और कुत्तों के पिल्लै
चरवाहे,नशाखोर ,जुआरी ,कचरा बीनने वाले बच्चे ,रात में
कबर बिज्जू /किनारे --नाऊ,धोबी .पान और चाय की दुकान
दुकानों पर ग्राहक .भीड़ .सोहदे .बाल कटवाते लोग
सड़क से स्कूल जाती लड़कियों को घूरते ,पेपर पढ़ते .बीडी पीते चेहरे
दिशा मैदान करने वाले गालो पर हाथ धरे बेशर्मी की आड़ में चैन से शौच करते है /
लोग जलाये जाते हैं ,लोग दफनाये जाते है इसी मरघट में
पर इस दिनचर्या में कोई खलल नहीं पड़ता/एक डाक्टर हैं
अस्पताल भी है उनका इसी मरघट के किनारे
मरीजों के पलस्तर काट काट करफेंक देते हैं .कर्मचारी इसी मरघट में रोज /
छितराए रहते हैं मानव अंग प्रत्यंग रोज इसी मरघट में ,इन्ही में खेलते हैं
कचरा बीनने वाले बच्चे कुत्ते. कुत्तों के पिल्लै /तालाब और मरघट को
अलग करने वाले मेड पर एक आम का पेड़ है ,कितना पुराना है किसी को नहीं पता
चांदनी रात में मेरे घर की छत से दिखता है.मरघट का विस्तार और आम का पेड़/
मेरे लिए आम के पेड़ का इस जगह होने का कोई अर्थ ,या प्रयोजन नहीं
पर आम के पेड़ का इस जगह होने का अर्थ भी है ,प्रयोजन भी है
पेड़ है तो छाया है .कोटर है मधु मक्खियों का छत्ता है चिड़ियाँ है घोसला है
गलियों में लुका छिपी खेलते बच्चों की तर्ज पर आगे पीछे सरपट भागती हैं
गिलहरियाँ इस की मोती डालों के बीच /इस पेड़ के वंहा होने की कोई योजना नहीं थी फिर भी वह वहां हैऔर उसके होने से बहुत कुछ है /ऋतुएं आती हैं जातीं हैं
पतझड़ होता है .बसंत आता है कोयल कूकती है छाया होती है बच्चे अमियाँ तोड़ते हैं
पत्थर मार मार कर ,मै वंहा कभी नहीं गया पर हर क्षण होता हूँ
,हर जलती चिता में हर दफ़न होती लाश में ......

Thursday 17 January 2013

मन का मीत

जिसको पाने को मैने
रातें काटी
दिन खोया
करवट बदली
पन्नेपलटे
क़लम डुबोया
और
लिखे कुछ गीत
पर मिला न
मन का मीत ..|||
सोच रहा हूँ
यह मेरा भ्रम था
सत्य नही था
केवल पागल पंन था
मन का मीत मिलेगा
प्यारे केवल मन मे ||||

एक नन्हा बच्चा


एक नन्हा बच्चा  
दिखता था मुझे रोज  
अपनी मां अंधी के साथ  
उस परिचित चौराहे के पास ...| 
कहता था 
रोटी दो  
दाना दो ,खाना दो ..| 
उसकी अबोध आँखो मे  
नही झाँकते थे सपने . 
दिखता था भूख का दर्द 
मिली हुई झिड़कियाँ  
गंदी गालियाँ  
घृणा तिरस्कार  
आदमी होने का पुरस्कार | 
एक दिन सुना गया  
देश ख़तरे मे है  
निकल पड़े सड़कों पर  
हाथों मे लेकर के डंडे  
केजरी रामदेव संघ और अन्ना के समर्थक  
देश भक्त और राजनीति के पंडे  
फिर क्या था पुलिस ने भी अपने निकल लिए डंडे | 
शुरू हुवा आगज़नी और पथराव  
मेरा छोटा सा शहर  
कई दिन कई रात भोगता ही रहा तनाव | 
आठवें दिन जब हुड दंग कम हुवा  
लोग निकले सड़कों पर  
चौराहों पर  
पार्टी कार्यालयों मे लिखा जा रहा था  
उपलब्धि का इतिहास  
इसी वर्ष निर्वाचन हो जाता काश | 
पर नही दिखा मुझे वह नन्हा बच्चा  
अपनी मा आँधी के साथ  
उस परिचित चौराहे के पास| 
किसी ने बताया की होटल के पिछवाड़े  
एक बुढ़िया की लाश जूठन की कर रही है तलाश | 
तभी -तमाश बीनो की भीड़ को चीर कर  
एक अध नंगे बच्चे ने  
लाश की छाती पर पैर रख कर  
लिया एक हलफ़नामा | 
और वे हाथ जो माँगते थे भात  
उठ गये व्यवस्था के विरोध मे एक साथ .|||