Friday 7 March 2014

क्या ? ऐसा नहीं हो सकता /

क्या ? 
ऐसा नहीं हो सकता /
 कि जब भी मिलें हम एस तरह मिलें ,
जैसे मिलती हैं , 
अलग अलग दिशाओं में ब्याही दो सखियाँ 
वर्षों बाद किसी मेले में / 
जीवन में बहुत बवाल है वरना ,
कौन भूलता है बेफिक्र दिनों को ,
आप भी नहीं भूले होंगे 
पर याद नहीं करते होंगे हरदम , 
आखिर कौन है इतना फुर्सतिहा /
 बहुत मार काट है इन दिनों , 
जिसे देखो वही दूसरे को धकियाते जा रहा है / 
ऐसे में महज इतना हो जाय तो भी अच्छा है कि
 जब आप थक हार कर पोंछ रहे हों अपना पसीना
 तो याद आ जाय पसीना पोंछते पिता का थका चेहरा 
और यह की दुनिया सिर्फ हमारी बपौती नहीं है 
 यहाँ सभी को हक है जीने का अपनी आजादी के साथ /