Sunday 30 December 2012

उठो जागो .स्त्री को मुक्त करो

भारतीय मानस जिन्हे धर्म ग्रंथ कहता है .
मूलतः वे ही अधर्म को तर्क देते हैं
,इन्ही ने हमारे मॅन मस्तिस्क मे
स्त्री को भोग्या बना रखा है
स्त्री की योनि मे पत्थर .पुरुष डालता है .
स्त्री से सामूहिक व्यभिचार पुरुष करता है .
.जो उसने इन्ही धर्म ग्रंथो की क्षेपक कथाओं से सीखा है
मानुष के आचरण की सभ्यता को धर्म
किसी धर्म ग्रंथ ने नही कहा .
ढोंग पाखंड को धर्म कहता है .,
इन्ही धर्म ग्रंथो मे लंपट इंद्र
स्त्री के का शील भंग करता है
.इन्ही ने दुर्योधन की जाँघ पैर ड्रॉपड़ी को बैठाया गया
पाँच पाँच पतियों की भोग्या बनाया
इन्ही मे कुंती बिन ब्याही मा बनी ...
इसी लिए कहता हूँ की सावधान
यही ताकतें जो धर्म के नाम पर राजनीति करती हैं
वही स्त्री का शील हरण करती हैं
उन्हे मंदिरों मे गणिका बनाती हैं
उठो जागो .स्त्री को मुक्त करो
झूठे धार्मिक जकड़न से
लेने दो सांस उन्मुक्त ..............
जीने दो मनुष्य की तरह ..
वह तुम्हे जन्म देती है .
वह मा है .
वह प्रकृति है .पुरुष !!!!!!!!!!!!!!!
विनिष्ट मत करो

Thursday 27 December 2012

और कितनी प्रतीक्षा !कितनी परीक्षा !

कहाँ जांय.क्या करें .दम घुटता है .
इससे परे कोई दुनियां है क्या !मन कहता है
कुछ खुसी हो जहाँ हम वहां पर चलें .
जिन्दगी हो जहाँ चल वहां पर चलें .
नित वही चन्दन, नित वही पानी,
सब कुछ तो सड़ गया है .
बदबू और सड़ांध से ,बजबजाती जिन्दगी
ऋतू धर्म से भींगे लथफत लत्ते के तरह
अलग थलग फेक दी गई जिन्दगी
आँख भर पसरी उदासी खुरदुरी ........
इसके उस पार है क्या कोई तिलस्मी दुनियां
जहाँ चैन से सुकून से कुछ क्षण जी सकता हो आदमी
जहाँ फेफड़ा भर सकता हो एकबार सिर्फ एकबार ताजी हवा से
जहाँ इंसानियत अदब .इमानदारी से .चैन की साँस ले सके .
एक अदद बसंत की प्रतीक्षा में .
पतझर की वीरानी पसर गई है रोम रोम में .
भीतर अंतस में उग आये हैं हजारों ठूंठ .
इन पर कभी नहीं कूकती कोयल.
ठंढी हवा को इधर से गुजरे अरसा बीत गया.
उमर भटकते बना भिखारी जीवन ही जंजाल हो गया.
चेतन सब निर्जीव हो गए और मौन भगवान हो गया.
और कितनी प्रतीक्षा !कितनी परीक्षा !

Wednesday 26 December 2012

.आप जिंदगी को बदल नही सकते



मैने एक ग़रीब परिवार की बच्ची को कई वर्षों देखा .वह दीवाली मे घूम घूम कर सब के दरवाजे रंगोली बनती थी .बिना किसी ना नुकुर के बिना किसी भेद भाव के |.उसे रंगोली बनाना बहुत अच्छा लगता था | इसका उसे कोई मलाल नही था की उसके पिता रंग नही खरीद सकते थे |.सब लोग जो बचे हुए रंग उसे देते थे ,उन्ही से वह सुबह अपने दरवाजे पर रंगोली बनाती थी ,अपनी रंगोली मे बचे हुए रंगो को अपने अंदाज से सजाती थी ,उसकी रंगोली सबसे अधिक मन मोहक और सुंदर होती थी ,.मैने तभी से सीखा की जिंदगी जोरंग दे उन्हे ही सजाने की कोशिस करो .|जिंदगी को कभी बदलने की कोशिस नही करना चाहिए जिंदगी जो भी मिली जैसी भी मिली उसे भरपूर हौसले से जीने की कोशिस करनी चाहिए ..आप जिंदगी को बदल नही सकते . 

Tuesday 25 December 2012

- छ्न्द मे पद कुपद.----

देश की आधी जनसंख्या के लिए :
- छ्न्द मे पद कुपद.----
नियति करे अठखेली...........
*भूख ओढाना,बिपति बिछौना
पतरी दोना, कोठरी कोना
सजी स्वप्न की डोली |
*रूप सलोना ,माथ डिठौना
शादी गौना ,आए पहुना
बिंहासे मीठी बोली |
*करम करौंदा ,घास घरौंदा
दोहनी हौदा ,करते सौदा
मौनी गुड की भेली|
*काली गौरा, तुलसी चौरा
पाता पियारा नींम हरियरा
धरम प्रीति की चेली |
आस अकासी ,प्यास पियासी
मथुरा काशी ,चाह प्रवासी
हृदय आस्था रोली|
सुख का कोना ,दुख का ढोना
चैन चबेना प्रीति पिरोना
नियति करे अठ खेली ||

Sunday 23 December 2012

बस्तर, सपनों सा सुन्दर,

बस्तर, सपनों सा सुन्दर, भोले आदिवासी जो मौन रहते हैं, काली पहाड़ी मैना जो बोलती है.. आदिवासी विकास के नाम पर जितना धन बस्तर को मिला, सीधे देते तो हर आदिवासी अमीर होता,बेंक में जमा करते तो व्याज में जीवन भर खाता, बच्चो को शिक्षित कर लेता.
राजकीय पक्षी पहाड़ी मैना को बचाने मैं काफी खर्च हुआ,पर वो भाग्यशाली को ही दिखती है..सुन्दर आकाशनगर, बहते झरने, साल के हरे भरे वन, एक सप्ताह भी कम है, कुटुम्बसर की गुफा,चित्रकोट, हस्तशिल्प देखने मैं, सल्फी तो गोवा की फेनी को मात करती है..हाट- बाज़ार की खरीदी.. सब कुछ तो है बस्तर में, बस ये कोई कहने वाला नहीं ....,कि क्या रखा है घर मैं.. ? अरे कुछ दिन तो बड़े दिन की छुट्टियाँ गुजारो बस्तर में..

Friday 21 December 2012

मेरे गावं में एक लड़की थी

मेरे गावं में एक लड़की थी कजरी उसका नाम था
हर बुजुर्ग की वह प्यारी थी हर कोई यजमान था /

रंग सांवला रूप सलोना खंजन नयन रूप रस माता
कुंदन कंचन दमके यौवन हर भंवरा उस पर मंडराता

नाक नयन उसके तीखे थे भवहें तीर कमान थीं
नागिन सी बेनी थी उसकी हिरनी जैसी चाल थी /

गली गली फुदके खंजन सी गुन गुन गीत सुनातीथी
शहद घोलती बातें करती मोहक सी मुस्कान थी /

ऋतुओं के संग राग मिला कर जीना उसको भाता था
हर आभाव में खुश रहने का मन्त्र उसे भी आता था /

खेत , मेड़, चौपाल ,बगीचे ,उसके संग संग गाते थे
कोयल ,मोर, पपीहा तोता उसे देख शरमाते थे /

बाग बगीचे झूम झूम कर उसके गीत सुनते थे
उसकी एक झलक पा कर के संगवारी मुस्काते थे /

गली गली उसकी चर्चा थी हर कोई हैरान था
वह थी कली अछूती लेकिन हर भंवरा बदनाम था /

Wednesday 19 December 2012

अन्य होंगे चरण हारे

अन्य होंगे चरण हारे
और है जो लौटते दे शूल को संकल्प सारे
दुख ब्रति निर्माण उन्माद
यह अमरता नापते पद
बाँध देंगे अंक शन्श्रित से तिमिर की स्वर्ण बेला
दूसरी होगी कहानी ....
शून्य मे जिसके घिरे घन..................

अपना होना ही भूलगया हूँ

भीतर से कुछ खाली खाली सा लग रहा है
अंदर उतना भरा नही हैबाहर जितना है
और बाहर उतना ही खाली होता जा रहा है
भीतर जितना खाली है
इस अंदर बाहर के चक्कर मे
अपना होना ही भूलगया हूँ

अच्छा बननाशेष रह गया .


अच्छा बननाशेष रह गया .


मै उतना अच्छा आदमी नहीं निकला

जितनी की मुझे उम्मीद थी कि मै हो पाउँगा

कई बार अच्छा बनाने कि कोशिश में सारी अच्छाई झर जाती है

और अच्छा बनाना फिर भी शेष रह जता है

मुझे भरोषा तो था लेकिन जाहिर है

मैंने उतनी कोशिश नहीं कि जितनी कि जरूरत थी



मुझे अपने बच्चों कि पढ़ी लिखाई  का जादा तो नहीं

पर इतना अता पता तो रहा कि वे किस दर्जे में पढ़ते हैं

मैंने उन्हें बहुत सलाह नहीं दी और नसीहत या उपदेश भी नहीं

पर उन्हें साफ सफाई से जीवन बसर करना ,किसी पर निर्भर न रहना

अपना काम  खुद करना,किसी के आगे  सर न झुकना ,किसी का एहसान न लेना 

,भरसक मददगार होना,अपने पद ,पोजीशन का नजायज फायदा न उठाना
 वगौरह वगैरह तो आ ही गया /

उनकी अपनी मुश्किलें हैं ,तो मेरी ही कौन सी कम हैं

एक अच्छा पिता ,उन्हें अवसर का लाभ उठाने आज कि दुनिया में

अपना कम निकालने कि कुछ हिकमतें तो बता ही सकता था

जो मैंने नहीं किया क्यों कि -

बासठ बरस कि उम्र हो जाने के बाद भी

मुझे खुद ही पता नहीं है कि

हमारे समय में जिन्दगी जी कैसे जाती है .

सिर्फ इतना ही समझ पाया कि कैसे

जुटाया जाता है ,छत छप्पर जगह और रहत का सामान .

नहीं समझ पाया कि कैसे खादी कि जाती हैं दीवारें ,तोड़े जाते हैं रिश्ते .

क्या होता है चरित्र का छल ,कैसे बनाया जता है घर को बाजार

इस मायने में पूरा राज कपूर ही रहा -

.मेरे बच्चों ! अगर तुम सफल नहीं होते तो इसका जिम्मा मेरा जरूर होता

  हला की आज तुम मुझ पर निर्भर नहीं हो .

जिन्दगी तुम्हारे साथ कल क्या करेगी इस बारे में मैं कोई अटकल लगना नहीं चाहता

पर अगर मैं  अच्छा होता ,तो तुम्हे इतना अबोध न छोड़ता

जितना मैंने तुम्हे शायद इस खूंखार वक्त में छोड़ दिया है

तभी तो चालक चालों की शरारत ने तुम्हे आमूल चूल बदल दिया है

,तुम वो नही रह गए जो मैंने बनाना चाहा था
हालाँकि तुम सब अब भी मेरी प्यारी संताने हो

 मैं और तुम्हारी माँ  तुम्हे बेहद प्यार करता हूँ 
.
मैं अच्छा पिता तो नहीं बन सका तो अच्छा इन्सान बनाने का तो सवाल ही नहीं उठाता

चूक मुझसे कहीं वफादारी में भी हुई है ,शायद अपने लालच में

मैंने सोचा कि कई जगहें हैं ,हो सकती हैं ,और एक जगह दूसरी को रद्द नहीं करती

मुझे ख्याल तो था कि दुनिया के इतने विशाल होने के बावजूद जगहें बहुत कम ही हैं

जिसे जितनी मिली है उसी पर जम कर काबिज है

और इसकी मोहलत नहीं कि आप जगहों के बीच आवा जाही करते रहें .

मैंने प्रेम ,बांटा नहीं बल्कि पाया कि यह एक ओर बढ़ने से

दूसरी ओर कमतर नहीं होता बढ़ता ही है
 

 आसमान कि तरह एक शून्य बना रहता है जिसे कई कई सूरज भरते रहते हैंरंग

उन्ही कि धूप में मैं खिलाता और कुम्हिलाता  रहा .

मैंने जीवन और कविता को आपस में उल्झादिया

जीवन की कई सच्चाइयों और सपनो को कविता में ले गया

आश्वश्त हुआ कि जो शब्दों में है वह बचा रहेगा कविता में .

भले ही जीवन में नहीं....,गलती यह हुई .

जो कविता में हुआ उसे जीवन में हुआ मान  कर संतोष करता रहा .

अपने सुख और दुःख को अपने से बड़ा मनाकर

दूसरों के पास उसे शब्दों में ले जाने कि कोशिश में वे सब बदल गए और मैं  भी

और जो कुछ पंहुचा शायद नमैं  था न मेरे सुख दुःख 

,मुझे ठीक से पता ही नहीं था कि

हमारे समय में अच्छे दोस्त ही सच्चे दुश्मन होते हैं

अपने ही पक्के पराये .क्यों कि औरों को आप या आप कि

जिन्दगी में दखल देने कि फुर्सत कहाँ है



कभी कभार के भावुक विष्फोट के अलावा किसी से अपने दुःख का सज्खा नहीं किया

न मदद मांगी न शक किया ,गप्पबाजी में ही मन के शक को बह जाने दिया

कुछ शोहरत ,खासी बदनामी मिली ,पर बुढ़ापे के लिए ,अपने लिए ,

मुश्किल वक्त के लिए ,कुछ बचाया और जोड़ा नहीं .

किसी दोस्त ने कभी ऐसा करने कि गंभीर सलाह भी नहीं दी

इसी आपा धापी में किसी कदर आदमी बनाने कि कोशिश में

बासठ बरस गुजर गये पर अच्छा बनाना शेष रह गया

अब तो जो होना था हो गया

दल के पक्षी अचानक उड़ गए सब फुर्र से

बया बेचारा अकेला रहा गया ,घोसले के द्वार पर लटका हुआ /

सोचा था

सोचा था खुल के जियेंगे,
सोचा था सहेजेंगे सपने..
उजले कल की उम्मीद में,
आज गया रीत
बिखर गई नींद,
देखो ...
यूँ ही गया बीत .....

Tuesday 18 December 2012

लड़की मर गयी ||

अभी वह सोच ही रही थी
की दरिंदो उसे नोच खाया ..
लड़की लहू लुहन हो गयी
तन से भी और मन से भी
सूरज काला हो गया
सपने जीते जी
नरक मे तब्दील हो गये .......
..जिंदगी अपाहिज हो गयी
संसद मे और सड़कों पर
खूब शोर हुवा

?
हाथी आया ,हाथी आया
क्या हुवा क्या होगा
कुछ नही...........
अपन वायु निकली भों से ...
| !!!!!!!!!!!!!!!!!!!?
लड़की मर गयी ||

हे सूरज ज़रा आज तू पास आ .

हे सूरज ज़रा आज तू पास आ .
आज सपनो की महफ़िल
लगाएँगे हम .
ये बादल ज़रा तू भी आ पास आ .
सात रंगो की दुनिया
 बनाएँगे हम
ये हवा गुनगुना ,
हे गगन मुस्करा
आज जी भरके जीवन
सजाएँगे हम!
अभी वह सोच ही रही थी 
की दरिंदो उसे नोच खाया ..
लड़की लहू लुहन हो गयी
तन से भी और मन से भी
सूरज काला हो गया 
सपने जीते जी 
नरक मे तब्दील हो गये .......
..जिंदगी अपाहिज हो गयी
संसद मे और सड़कों पर
खूब शोर हुवा 
हाथी आया ,हाथी आया 
क्या हुवा क्या होगा 
कुछ नही 
अपन वायु निकली भों से ...
लड़की मर गयी ||

दर्द के गाँव से नित गुजरना ही है

दर्द के गाँव से नित गुजरना ही है ,हम को जीना यहीं ,यहीं मरना भी है
अपनी फितरत में है दर्द को जीतना, दर्द लेना भी है दर्द सहना भी है
दर्द के गीत ही मीत अपने हुए, इनको जीना भी है इनको गाना भी है
इस जहां में नहीं कोई ऐसी जगह ,दर्द के रास्ते जिन से गुजरे न हो
दर्द ही मीत है ,दर्द ही गीत है, दर्द ही प्यार है ,दर्द संसार है
दर्द को ओढ़ना दर्द बिस्तर भी है ,दर्द का ही सिरहाना लगता हूँ मै .
इसलिए तो सदा गुनगुनाता हूँ मै ,इसलिए तो सदा खिल खिलता हूँ मै
.दर्द के गाँव से नित गुजरना ही है ,हम को जीना यहीं ,यहीं मरना भी है
अपनी फितरत में है दर्द को जीतना, दर्द लेना भी है दर्द सहना भी है

यह ढलने वाला

आग हुई चूल्हे की ठंडी अदहन नहीं उबलने वाला

हर दिन उल्कापिंड गिरते आसमान से हम क्या पाते

आंधी वाली सुबहे आती चक्रवात खपरैल उड़ाते

इस सूरज से कुछ मत मांगो शाम हुई यह ढलने वाला

समाचार जगत से जुड़े मित्रों संपादक महोदयों से क्षमा याचना सहित

समाचार जगत से जुड़े मित्रों संपादक महोदयों से क्षमा याचना सहित एक कथा.(यह इस लिए की मेरे तमाम संपादक मित्रों में से यह कथा किसी की नहीं है कृपया किसी से न जोड़ें)
एक संपादक महोदय ने एक समाचार पत्र का संपादन ४० साल किया /लगभग ७० वर्ष की अवस्था में उन्हें सेवा निवृत्त किया गया .विदाई दी गई /उसी दिन उनके नाम एक पठाक का पत्र आया जिसकी इबारत कुछ इस प्रकार थी /
प्रिय संपादक महोदय ,मै आपके समाचार पत्र का

ियमित पाठक हूँ /आप नए नए संपादक बने थे तबसे ही मै पढ़ रहा हूँ /आप की सामयकी तथा सम्पादकीय बड़ी सटीक हुआ करती थी ,आप ने बड़े लगन से पत्र की सेवा की /,एक सवाल का उत्तर दे सकें तो जाते जाते दे दें/इन ४० सालों में आप ने रोज ही सम्पादकीय लिखी कभी नागा नहीं किया ,क्या आप कभी अवकाश पर नहीं गए ,कभी आप के घर कोई काम नहीं पड़ा ,क्या आप कभी बीमार नहीं पड़े ...!!!!उत्तर में
संपादक जी ने लिखा ..प्रिय पठाक आप के इस प्रश्न का उत्तर मै आज दे सकता हूँ क्यों की मै सेवा निवृत्त हो चुका हूँ /संपादक बनाने से पहले मै उप संपादक था एक दिन संपादक महोदय १० दिनों के लिए अवकाश पर गए थे ,बड़े ही इमानदार और सज्जन थे उन्होंने मुझे समझा दिया था की सम्पादकीय सोच समझ कर रोज लिखना ,मै बिना नागा उनकी आज्ञा का पालन करता रहा ,इस बीच मेरे लेखन की प्रशंसा हुई ,पत्र का पाठक वर्ग भी बढ़ा/लौट कर जब संपादक महोदय आये तो मालिक ने उन्हें सेवा से निकाल दिया ...जब कम खर्च में अच्छा संपादक मिला है तो आप की कोई जरूरत नहीं /मै उसी दिन सावधान हो गया था ,कभी कंही गया तो १० .१० दिन का अग्रिम सम्पादकीय लिखकर रख जाता था /मैंने कभी अपने सहायक को मौका ही नहीं दिया /सच कहूँ तो मै डरपोक था /अब सच कहने से मेरा क्या बिगड़ेगा ..इसलिए कह दिया

हम क्या होते जा रहे हैं ..

हम क्या होते जा रहे हैं ...
इंसानियत रही नही ..पूंछ बिना जानवर से भी बदतर .हैं हम .
जानवर कभी बलात्कार नही करता .वह सीजन मे संभोग करता है एक बार करता है .एक मादा से एक बार एक सीजस्न मे एक ही करता है .लेकिन आदमी जानवर से भीघटिया सामूहिक बलात्कार वह भी बस मे .सड़क मे रेल मे .छिह घिन आती है ऐसे आदमियों को देख कर आदमी कहलाने पर ..आख़िर ये हराम जाड़े भी किसी के पिता भाई पति होंगे .अगर पूरा परिवार हरा

मी नही है तो उन्हे ही ऐसे बाप को /ऐसे पति को /ऐसे पिता को /ऐसे भाई को ..जूते मार मार कर क़ानून के हवाले करना चाहिए .उस नेता को चाहिए ,,जिसके विधान सभा मे हैं की इन्हे पुलिस के हवाले करे ..असल बात तो यह है की सभी मिल कर बचाते हैं ...यही अपराध को बढ़ावा देता है ...इस के लिए कोई साधु /कोई एन जी ओ /कोई सामाजिक कार्यकर्ता ..क्यों नही हड़ताल कर रहा हैं ..कहाँ हैं ....केजरी /हज़ारे /रामदेव /..वेलेंटाइन दे पर शोर मचा कर हिंदुत्व के रक्षक जैसी नौटंकी करते हैं .क्यों नही ऐसे प्रसंगों मे आगे आते ./सब को आगे आना चाहिए .बंद होना चाहिए यह अराजक आचार्न

देश की न्यायपालिका

इस देश की न्यायपालिका की ब्यावस्था मे अमूल चूल परिवर्तन की आवश्यकता है .समय से न्याय निर्धारित समय मे जब तक नही मिलेगा कोई अपराध कम नही होगा वकीलों जजों के जंजाल मे फँस कर न्याय दम तोड़ देता है .इतना मीन मेख है की कई साल तक मुक़दमा चने पर भी दोषी बच जाता है .हर मुक़दमे के लिए समय और जज तथा वकील की ज़िम्मेदारी तय होनी चाहिए .ठीक से समयपर काम न होने पर लाइसेंस रद्द करने से लेकर जेल भेजने का प्रावधान होना चाहिए ./दूसरे स्तर पर .संपूर्ण कर्मचारी अधिकारी .आई ए एस आई पी एस .जज .जनता के बाप बन गये हैं सरकारी ब्यावस्था इन्ही की नौटंकी मे .. चर मरा गयी है /संबिधन मे सांसोधन करके इन ब्यूरोकेत्स पर अंकुश करना होगा

हनुमानजी की पूजा

.

हनुमानजी की पूजा के दौरान इस मंत्र को

पढ़ते हुए उनसे क्षमा-प्रार्थना करना

चाहिए-

मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं कपीश्वर |

यत्पूजितं मया देव! परिपूर्ण तदस्तु मे||

.
हनुमानजी की पूजा में इस मंत्र को पढ़ते

हुए सुवर्णपुष्प समर्पण करना चाहिए-

वायुपुत्र ! नमस्तुभ्यं पुष्पं सौवर्णकं प्रियम्|

पूजयिष्यामि ते मूर्ध्नि नवरत्न समुज्जलम् |

हनुमानजी की पूजा में इस मंत्र को पढ़ते

हुए उन्हें ऋतुफल समर्पण करना चाहिए-

फ़लं नानाविधं स्वादु पक्वं शुद्धं

सुशोभितम् |

समर्पितं मया देव गृह्यतां कपितं॥

इस मंत्र को पढ़ते हुए पवनपुत्र हनुमानजी

को सिन्दूर समर्पण करना चाहिए-

दिव्यनागसमुद्भु तं सर्वमंगलारकम् |

तैलाभ्यंगयिष्या मि सिन्दूरं गृह्यतांप्रभो ||

अंजनीपुत्र हनुमान की पूजा करते समय

इस मंत्र के द्वारा उन्हें पुष्पमाला समर्पण

करना चाहिए-

नीलोत्पलैः कोकनदैः कह्लारैः कमलैरपि|

कुमुदैः पुण्डरीकैस्त्वा ं पूजयामि कपीश्वर |
.

नींद की खुमारी है

प्यार न दिल लगी है न सपना है
खूबसूरत एहसास है और अपना है
सुबह की सबनम है .फैलती हुई धूप है
संझा की लॉरी है नींद की खुमारी है

मगर तेरा तो कोई हो ...

तेरे प्यार की हिफाजत कुछ इस तरह से की है ,
जब भी कभी किसी ने प्यार से देखा तो नजरे झुका ली हमने /
बस यही सोच कर तुझसे मोहब्बत करता हूँ मैं
मेरा तो कोई नहीं है .. मगर तेरा तो कोई हो ...

समाप्त हो गया उसका भय ....!!

बे तरतीब आदम कद
बबूल और झरबेरियों के
घने जंगल
वह भाग रही है
पैरों को सर पर धरे
घंटों घडियालों की चीख पुकार
और अजान की आवाज
उसका पीछा कर रहे हैं
भागती रही वह बेतहाशा ..आधी रात को
बहुत से घंटों की चीख बहुत से घडियालों की पुकार
बहुत सी अजानो की आवाज
कुछ और चीख कुछ और पुकार
कुछ और अजान की आवाज
उसका पीछा कर रहे थे ,
पैरों और भुजाओं से लहू बहता रह
लड़की हांफ रही थी ,
फिर वह लड़खड़ाई और गिरी ..
समाप्त हो गया उसका भागना
समाप्त हो गया उसका भय ....!!
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Thursday 13 December 2012

सर्वे भवंतु सुखीनः

मनुष्य की अदम्य जिजीविषा ,जीवन जीने की उत्कट अभिलाषा उसे सारे ख़तरों से जूझने और निपटने की हिम्मत देती है ;यह अदम्य लालसा ही है जो जो मनुष्य को अन्य प्रणियों से भिन्न करती है .हमारी संस्कृति ,हमारे संस्कार .हमारी आत्मानुशासन की प्रवृत्ति ,हमारे जीवन को सुरुचिपूर्ण और आकर्षक बनती है .हम इसी मे उठते और आगे बढ़ते हैं .यह सांस्कृतिक धरोहर हमे अपने लोक से मिलता है.जिसका लोक जितना समृद्ध होगा उसका आभिजा
त्य ..उतना ही सशक्त होगा सामर्थ्य वान होगा ..लौकिक जीवन हमे आस्था के गंगा जल मे अवगाहन कराता है ,हमारी आस्था ही हमारी उर्जा है शक्ति है .इसके अभाव मे हम बहुत हल्के और कमजोर होते हैं .पर यह आस्था किसी देवी देवता के प्रति नही .मनुष्य और मनुष्यता के प्रति होना चाहिए ...आस्था के मार्ग पर भटकने का अर्थ है मनुष्य जीवन के लक्ष्य से भटकना .सबसे जाड़ा ज़रूरी है की हमारी आस्था और प्रतिबद्धता अपने प्रति हो .मनुष्य के प्रति हो .परिवार और समाज के प्रति हो .धन ,धर्म पद प्रतिष्ठा मान सम्मान जाति ये सभी दूसरे नंबर पर आते हैं .
सर्वे भवंतु सुखीनः सर्वे संतु निरामाया की हमारी कल्पना तभी साकार होगी ..

सोचिए ज़रा


हमारी सबसे बड़ी समस्या आज के दिन है की हम आभिजात्य की ओर भाग रहे हैं .हमे समझना होगा की जो लौकिक नही वह सभ्य तो हो सकता है सुसंस्कृत नही होसकता ..समझने केलिए कह सकते हैं की जो अंतर प्यार और कांट्रेक्ट मे है .जोलौकिक है वह प्यार करता है ,स्नेह करता है सम्मान करता है .किसी को दुख नही देना चाहता ,अपने लिए नही दूसरोंके लिए जीना चाहता है .सहिष्णु होता है .उन्मुक्त होता है कपाट विहीन स्वच्छन्द होता है जिसकी जड़ें लोक मे नही किंतु आभिजात्य है वह इन सब के बिपरीत होता है .मा के हंत की बनी गुदड़ी लौकिक है .उस पर सुंदर कवर ,संस्कृति है ..फोम का गद्दा आभिजात्य है सभी है ..जो आत्मीयता प्रेम स्नेह आनंद संतोष गुदड़ी मे सोने मे है वह फोम के गद्दे मे नही .फोम आप को सुख देगा आनंद नही ..केवल आभिजात्य होना हमे दंभ देता है .अभिमान देता है .जड़ बनता है .संबेदना शून्य कर देता है .आज की दिनचर्या मे हम सभ्य हैं आभिजात्य हैं लेकिन लौकिक नही .इसी मे हम अपना पं खोते जा रहे हैं और मानसिक रूप से रुग्ण तथा गुलाम होते जा रहे हैं .हमे सोचना होगा की अपनी आने वाली पीढ़ी को उत्तरा धिकार मे हमे क्या देना है ..तोड़ा सा अपना पन या ढेर सारा आभिजात्य .,/हमारी जातीय संस्कृति विलुप्त हो गयी है ..इसके ज़िम्मेदार हम ही हैं ... कोई भी लकड़ी बिना स्नेह .आत्मीयता श्रम के गुड़िया नही बनती . हमे याद रखना चाहिए ..अभी भी समय है जो जहाँ है वहीं अपने जातीय गुनो को संरक्शाट कर सकता है .यह आप का धर्म भी है .कर्ज़ भी है ..रोटी से पिज़्ज़ा की ओर भागती पीढ़ी ........कल क्या होगी सोचिए ज़रा