Monday 7 November 2016

खोता सिक्का जब चल जाता है तब सही सिक्के चलन से बाहर हो जाते हैं

कई बार प्रयोग में खोटा सिक्का चल निकलता है ,एक बार चल निकला तो कुछ दिनों तक अपना सिक्का भी जमा लेता है.सही सिक्के चलन से बाहर हो जाते हैं . कुछ ऐसा ही अंनहोनी होगई हमारे नगर में .भाजपा के तथा कथित पितामह लखीराम जो खरसिया से नगरपालिका का भी चुनाव नहीं जीत सके उन्हों ने अपने पुत्र को बिलासपुर से चुनाव मैदान में उतार दिया .कांग्रेस की कलह ने उन्हें जीतने दिया .फिर तो दुबारा तिबारा चौ बारा कांग्रेसी कलह पराजित हुई .जीत का सेहरा लखी राम जी के मोहरे के सर बंधा . .फिर तो मंत्री पद मिला शहर के व्यापारी और मंत्री महोदय ......सिक्का चल पडा पर इसमे हमारा शहर बर्बाद हो गया .गुंडई लूट मार संगठित ढंग से चली .हजारों डकैती नगर के एक भाजपाई के संरक्षण में चली जो नगर निगम में ओहदे दार थे .पुलिस ऍफ़ आई आर सब हवा .परिणाम कुछ नहीं होना था यह सब को पता था .उनका रायपुर ट्रांसफर कर दिए ..भूल गया शहर परन्तु .शहर गड्ढा हो गया है जमीने और तालाब भी बिल्डरों के कब्जे में है .छुटभैये राम नामी दुपट्टा ओढ़े कहर ढहा रहे हैं गली गली.गुडाकू शराब देसी अंग्रेजी बिक रही है पीने वाले पी के टुन्न हैं .ट्राफिक व्यवस्था है ही नहीं .शाम को निकलना नरक के दरवाजे पर दस्तक देना है .बेजा कब्जा के कारण सडक ख़तम है बड़े होटल वालों ने बाकायदा सड़क को पार्किंग बना लिया है .जमीने हरियाणा के लालों ने खरीद ली ..और भी बीहुत कुछ .कराहता चरमराया शहर मुक्ति को छटपटा रहा है . हाँ शहर के आसमान पर १० /१२ करोड़ पति उभर गए .भैया की मिलकियत १० गुना हो गयी .एपा प्रोजेक्ट के कई सौ करोड़ कहाँ हैं प्रोजेक्ट कहाँ है ..मत पूछना ..देश द्रोही कहे जाओगे .
हमारे बिलासपुर में "दिल से" बहुत चल रहा है. ....भैया दिल से, .....भाभी दिल से.... एक परचा तो "दिल से" घर में पड़ा है. मुश्किल ये हैं कि पंद्रह साल से भैया डटे हुए हैं और गजब की राजनीति करते हैं. जनता बेहाल है एक रु किलो चाउर और दारु में मस्त है .अब तो गैस साईकिल दल न जाने क्या क्या .. और ठेकेदार, बिल्डर मालामाल हैं. भाभी को चार साल पहले ही मौका मिला, इस दरमियान यह बताने में सारा समय गुजर गया कि शहर की तकदीर संवारने की कवायद फेल क्यों हो गई... उनकी आरटीआई छाप, अदालत छाप संघर्ष के प्रशंसक कुछ जरूर हैं, लेकिन जनता को तो कुछ दिखना था, कभी भी दिखा नहीं. नारा भले ही "दिल से" हो.... मेरे शहर के लोग दिल पर पत्थर रखकर ही अपना विधायक चुनेंगे... यह तय है.अबकी नहीं बदला कुछ तो फिर पञ्च साल में गड्ढा हो जाएगा .इस लिए अभी नहीं तो कभी नहीं ...की चर्चा हर चुनाव में होती है .पर यह जो नया चुनाव का तरीका है घर बैठिये कमाइए वोट अगर भैया को नहीं देना तो वोट देने मत जाइए ..नायब है ..अब तो जोगी जी की पार्टी है समीकरण नए हैं ......बिलासपुर तुम्हे क्या मिला नया राज्य बन्ने से

Tuesday 13 September 2016

हिंदी दिवस की औपचारिकता

कल देश हिन्दी दिवस की औपचारिकता निभाए गा ,संस्थाओं मे कार्यालयों मे चर्चा होगी .बस हो गया .हिन्दी को राष्ट्रभाषा तो छोडो संपर्क भाषा का दर्जा भी पूरे देश मे नही है .इसके दो दुश्मन है एक तो अँग्रेज़ी का क्रेज़ नही छूट रहा है दूसरे वोट की राजनीति ने क्षेत्रीय बोलियों को हिन्दी का प्रतिस्पर्धी बना रखा है .लोग या तो अँग्रेज़ी बोलते हैं या क्षेत्रीय बोली.
हिन्दी विश्व की सबसे वैज्ञानिक भाषा है .देवनागरी सबसे वैज्ञानिक लिपि ,दोनो ही हमारी सांस्कृतिक विरासत के संवाहक भी हैं
यही दुनिया की एक मात्र भाषा है जिसमे जो लिखा जाता है वही बोला जाता है .हमारे जातीय परिवारिक रिश्तों के हर इकाई के लिए शब्द हैं .पूजा पाठ एवं खेती खलिहान से लेकर संवेदनाओं की प्रस्तुति के शब्द हैं .पर फिर भी उपेक्षित है .स्वतंत्रता के बाद यही हमारी कमाई है हिन्दी का तिरस्कार .,गाँधी स्वामी दया नंद जैसे महान लोगों ने जिसे अपना हथियार बनाया ,पाठ्यक्र्मो मे औपचारिक हो कर रह गयी .जो हिन्दी का खाते हैं वे भी हिन्दी का गाते नही .या तो क्षेत्रीय बोली के नेता बनाते हैं या अँग्रेज़ी के मसीहा ...हमारी तहज़ीब .हमारी अस्मिता की पहचान है हिन्दी .
देवनागरी लिपि के रचना कारों ने कोई कसर नही छोड़ी हर एक सांस्कृतिक शब्द को ध्यान मे रख कर लिपि की रचना की काका मामा नाना नानी मामी चाचा काकी अम्मा बापू नाती पोताबाबा ताउ मौसी बुआ सास ससुर साली .लोहार बढ़ई धोबी नाउ कहार डॉली दुलहन प्रणाम चरण पदुका घड़ा पनघट पनिहारीन भोर दुपहरी उषा संध्या कुआँ सखी सखा बरहि कथा तरकारी सब्जी पूड़ी खीर भात डाल बासी ज्ञान ऋषिगुरु जैसे शब्द क्ष त्र स श ष .य व जैसी ध्वनियों का विशेस महत्व है हमारी संस्कृति मे ,और किसी भाषा मे नही पर हत भाग्य वह रे वोट की राजनीति ...नेताओं ने देश का सत्या नाश कर दिया धर्म की कर्मकांड की मोक्ष की माला जपते हैं .पर संस्कृति इन्हे समझ मे नही आती .

Sunday 21 August 2016

नरेन्द्र मोदी की बेलगाम भाषा के खतरे


बेलगाम भाषा का टकराव पैदा करती है।साथ ही पीड़ादायक आनंद की सृष्टि भी करती है। सुनने वाला आनंद में रहता है लेकिन इस तरह की भाषा सामाजिक कष्टों की सृष्टि करती है और तनाव पैदा करती है। मोदी बाबू ने मैनस्ट्रीम मीडिया में बेलगाम भाषा को जनप्रिय बनाया है। हाल ही में वे जब हरियाणा में बोल रहे थे तो लोग समझ ही नहीं पाए कि उनके साथ क्या घट रहा है,यही हाल चुनावी सभाओं का भी था।
मोदी के भाषायी प्रयोगों को ध्यान से देखें तो पाएंगे कि मोदी ने वक्तृता का ऐसा इडियम विकसित किया है जिसमें रेशनल के लिए कोई जगह नहीं है। वे भाषा में शब्दों का प्रयोग करते समय पद,सामाजिकता और संस्थान की भाषा के मानकों का अतिक्रमण करते हैं। चुनावों में इस तरह का अतिक्रमण चलता है लेकिन सामान्य स्थितियों में पद और संस्थान की भाषा का ख्याल रखा जाना चाहिए।
मसलन मोदी का हाल ही में वैज्ञानिकों को यह कहना कि 'चलता है' का रवैय्या नहीं चलेगा। यह कथन अपने आप में बहुत कुछ कहता है।प्रधानमंत्री अपनी संस्थान की भाषा भूलकर और पेशेवरलोगों की भाषा भूलकर जिस मुहावरे में बोल रहे थे वह बेलगाम भाषा का नमूना है। नभाटा के अनुसार मोदी ने कहा ''अब 'चलता है' वाला रवैया बिल्कुल नहीं चलेगा और इसे छोड़ना ही होगा।'' । मोदी ने यह भी कहा '' डीआरडीओ ग्लोबल समुदाय को ध्यान में रखकर खुद में बदलाव लाए।'' , अफसोस की बात है कि मोदी को इतना ही नहीं मालूम कि यह संस्थान विश्व प्रतिस्पर्धा को ध्यान में रखकर अपनी प्राथमिकताएं तय करके काम कर रहा है। सबसे बेहतरीन वैज्ञानिक इसमें काम करते हैं।इन वैज्ञानिकों के बीच में प्रधानमंत्री की भाषा में बोलना चाहिए न कि गैर-सांस्थानिक भाषा में।इसके अलावा वैज्ञानिकों के बीच में बोलते समय यह भी ध्यान रहे कि वे गुलाम नहीं हैं जो आदेशों पर काम करें। वे जो तय करते हैं उसकी रोशनी में काम करते हैं। इसी तरह जब 15अगस्त को लालकिले से मोदी बोल रहे थे तो पद-संस्थान की भाषिक मर्यादा का अतिक्रमण करके बोल रहे थे।मसलन् , बिना संसद की अनुमति के उन्होंने योजना आयोग को खत्म करने की घोषणा कर डाली।साथ में हिदायतों और नसीहतों की जड़ी लगा दी। नसीहतें तानाशाह देते हैं,लेकिन मोदी तो लोकतंत्र के नायक के रुप में बोल रहे थे उनको नसीहतें देने की जरुरत नहीं थी।
मोदी ने अपनी भाषा को पद-संस्थान की भाषा के अनुकूल भाषा परिवर्तन नहीं किया तो वह दिन दूर नहीं कि वे देश में भाषा में भिडंत करते-कराते नजर आएंगे। हाल ही में हरियाणा में हाइवे के उदघाटन पर उनका जो भाषण था वह प्रधानमंत्री का उदघाटन भाषण नहीं था वह तो भिड़ंत भाषण था ,जाहिरा तौर पर परिणाम सामने है,कांग्रेस के कई नेताओं ने तेज और सही प्रतिक्रिया व्यक्त की है। इस तथ्य को मोदी समझें और दुरुस्त करें कि वे देश के प्रधानमंत्री हैं और उस पद और संस्थान की भाषायी परंपरा है,वह परंपरा यदि टूटती है तो जमीनी स्तर पर सामाजिक बिखराव और टकराव पैदा होना लाजिमी है।
मोदी की भाषा में हेकड़ी,उपदेश,दादागिरी के साथ फासिस्ट भाषायी भावबोध छिपा है ,मोदी को इसको सचेत रुप से अपने भाषिक संसार से बेदखल करना होगा वरना टकरावों का जन्म होगा।...

Saturday 6 August 2016

आरएसएस शांति का पक्षधर नहीं है

मनोहर परिकर ने अभी कुछ दिनों पहले एक बयान देते हुए आमिरखान और किरण को कुछ कुछ कह गए .जो उन्हें नहीं कहना था .असल में यह उनकी आदत है .एक साल पहले उन्हों ने एक बयांन दिया था .
."सेना के महत्व का ह्रास हुवा है क्यों की पिछले ४० ५० सालों में देश ने कोई युद्ध नहीं लड़ा .....
दो बातें .
एक तो मनोहर परिकर खाना क्या चाहते हैं क्या हर रोज युद्ध लड़ा जाना चाहिए
दूसरी की बांगला देश का निर्माण युद्ध और कारगिल का युद्ध हुए ४० ५० साल हो गए क्या ......
आखिर मनोहर परिकर खाना क्या चाहते थे क्या वे अगली लोकसभा के पहले सेना के महत्व को बढाने के नाम पर देश को किसी युद्ध में झोंकने की सोच रहे हैं क्या
मनोहर परिकर अगर ऐसा सोच रहे हैं तो कोई आश्चर्य नहीं क्यों की आरएसएस शांति का पक्षधर नहीं है वह अशांति के माध्यम से भय पैदा करके अपनी शक्ति बढ़ता है शक्ति की पूजा करता है शस्त्र  की पूजा करता है .उसका शास्त्र से कुछ लेना देना नही .वह शिवाजी और झांसी की रानी का पक्षधर है .इसीलिए उन्हें गाँधी नेहरू पटेल खटकते थे .आरएसएस न तो सामाजिक नियमन और सहिष्णुता में विशवास करता न शांति में ...मनोहर परिकर के दोनों कथन पर संसद में बंहस होनी चाहिए थी लेकिन यहाँ तो हमारे विपक्षी नेता बस बोलते हैं सोचते नहीं पढ़ते नहीं .पाकिस्तान मो फद्गोबरी खेल कर लौटे राजनाथ ने संसद को गुमराह कर दिया और लोग झांसे में आ गए .काश्मीर में अशांति असम में अशांति उत्तरप्रदेश में अशांति राजस्थान छत्तीसगढ़ में अशांति ..गुजरात में आंध्र में अशान्ति ....
न्याय शांति का प्रथम न्यास है .......और संघियों से न्याय दिवा स्वपन है
 मानव जाति का इतिहास दो प्रकार के युद्धों का साक्षी है .न्याय पूर्ण युद्ध और अन्याय पूर्ण युद्ध ..न्य्याय पूर्ण युद्ध का सम्बन्ध समाज की प्रगति और निरंतर क्रांतिकारी विकास से होता है ..जब की अन्य्याय पूर्ण युद्ध ठीक इसके बिपरीत ..केवल सत्ता सुख भोगने की नीयत से . यह युद्ध उन भौतिक शक्तियों का साथ देता है जो समाज की गत्यात्मकता को पंगु बनाने की असफल चेष्टा करती हैं .हमारा देश इसी दूसरे प्रकार की शक्तियों के अन्य्याय पूर्ण युद्ध की विभीषिका झेल रहा है

Saturday 23 July 2016

आइये आज फिर कुछ चुराते हैं इतिहास से..

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 आइये आज फिर कुछ चुराते हैं इतिहास से.... अली अल हादी अ स (८२७ ई - ८६८ ई ) ने अपने एक साथी को बुलाया और कहा बंदरगाह पर जाओ और इस वक़्त एक नाव आकर बंदरगाह पर रुकेगी , जिसमे ग़ुलाम और कनीज़े भर कर लाये गए होंगे बेचने के लिए. उसमें से तुम्हे बहुत ही हसीन और शाही सौन्दर्य वाली लड़की दिखेगी जिसे तुम देखते ही समझ जाओगे की मैंने इसी के बारे में कहा होगा. यह ख़त उस लड़की को देना और उसे खरीद लाना. साथी बंदरगाह पर गया और ठीक वैसा ही कुछ घटित हुआ जैसा की बताया गया था. साथी बहुत आश्चर्य चकित था और पहेली समझ नहीं प् रहा था. रास्ते में बात करते समय उस लड़की ने बताया की वोह महान जुलियस सीज़र की पौत्री है और जुलियस सीज़र के पतन के पश्चात भागते हुए पकड़ ली गयी और घुलाम समझ कर बिकने के लिए बग़दाद भेज दी गयी. साथी ने पूछा की वोह उसके साथ चलने को क्यों तैयार हो गयी और उस पत्र में क्या लिखा था? लड़की ने बताया कि वोह बचपन से यह सपने में देखती आरही थी की उसका विवाह उस शख्स के बेटे के साथ होना है जिसकी मुहर उस पत्र पर लगी है. जब जुलियस सीज़र ने उसकी मर्जी के विरूद्ध उसका विवाह एक यहूदी राजकुमार से करना चाहा तो भूकंप आया और शाही तख़्त गिर गया. जिसे अपशगुन मान कर विवाह रोक दिया गया. इस यहूदी लड़की का नाम नरगिस था जिससे अली अल हादी (अली नक़ी )अ ० स ० ने अपने बेटे हसन असकरी अ० स० का निकाह कराया. और उनसे एक पुत्र का जन्म हुआ जिसका नाम रखा गया अल मेहदी.(२९ जुलाई ८६९ ई ) शिया मत के अनुसार इनके कुल १२ इमाम हुए जिसमे अली अल हादी (अली नक़ी )अ ० स ० दसवे इमाम , हसन असकरी अ० स० ग्यारहवे इमाम और अल मेहदी अ० स० १२ वे और अंतिम इमाम इमाम हुए. बनी उमय्या और बनी अब्बासी काल में पहले के ११ इमामो की तरह ही अल मेहदी अ० स० को भी मारने की शासन ने पूरी कोशिश की. एक दिन मस्जिद में नमाज़ पढने के दौरान सेना ने मस्जिद को घेर लिया और इनका वध करने के लिए इनके बहार आने का इंतज़ार करते रहे. जब सुबह हो गयी और यह बाहर नहीं आये तब सेना अन्दर गयी और यह कहीं नहीं मिले.(९४१ ईस्वी) तबसे शिया समुदाय का यह मानना है की अल मेहदी जिंदा हैं और अदृश्य हो गए जीसस क्राइस्ट की ही भाँती और क़यामत के दिन जालिमो का नाश करने दोबारा प्रकट होंगे. आज की रात शियों के १२वे इमाम अल मेहदी के जन्म की रात है. मुहम्मद साहब के समय से ही इस रात को बहुत मुबारक बताया गया है और अपने गुनाहों की माफ़ी मांगने के लिए एक बेहतर रात बताया गया है. आज मुस्लिम समुदाय( शिया सुन्नी और भी सभी समुदाय ) अपने मृत परिजनों को भी याद करता है और सारी रात मस्जिदों में कुरान पढ़ा जाता है. कई जगहों पर आतिशबाजियां जला कर भी यह शबे बरात का उत्सव मनाया जाता है......

Sunday 17 July 2016

बताइये मैं कौन हूँ हिन्दू या मुसलमान .

दो घटनाएँ .....
.इसे पढ़िए अवश्य.आप के काम भी आ सकता है .उचित समझें तो कमेन्ट भी करे.
*एक .
.मेरा घर बन रहा था .सावन में मोहल्ले की तमाम महिलाएं शिव पूजा करने .४(चार ) किलोमीटर दूर मंदिर जा रही थीं . मेरी पत्नी ने घर का काम रोक कर पास की जमींन में एक शिव मंदिर बनवाया .विधिवत स्थापना हुई .मोहल्ले के हर घर की पारी बाँध दी गयी .मंदिर में पूजा अर्चना होने लगी .मेरा घर तीन महीने देर से बना और उस समय डेढ़ लाख खर्च हुए .पत्नी खुस थीं .भाजपा सरकार आई .संघियों ने मंदिर पर कब्जा कर लिया एक ददुआ के ग्रुप के भगोड़े बन्दा के पंडित को पुजारी बना दिया .विधायक महोदय ने ५००० हजार चन्दा दिया आयोजन हुआ मंदिर का नाम बदल दिया गया शिव के नीचे गर्भगृह में एक दुर्गा बैठा दी गयी. बजरंगोयं ने एक हनुमान भी बैठा दिया .पर अब केवल १० .१५ लोग ही मंदिर जाते हैं .जबरदस्ती मंदिर के मेंतेंनेस के नाम पर उगाही होती है 
.
*दो ..

.मैं अभी बीमार पडा .घर में कोई नहीं था.केवल पत्नी और बेटी थी .वे सब दुखी और परेशां न थे . मित्र दोस्तबहुत मदद किये.लगभग 5 डाक्टर मित्रों ने मदद की .संदीप ने रक्त दिया ..मेरे अपने पंहुचे पर देर से .जब मैं डिस्चार्ज हो रहाथा . .दिन में भीड़ रहती थी .पर रात को तीमारदारी कौन करे .मेरा आपरेशन १० जुलाई को हुवा .रात को ११ बजे एक मुस्लिम युवक रुहुल अमीन आया .उसने मेरी थकी पत्नी और बेटी .को घर पंहुचाया और उस दिन से मेरे वापसी तक रोज ११ बजे रात से सुबह ७ बजे तक मेरी तीमार दारी करता रहा दवाइयां देता रहा .सुबह .३ बजे उठ कर सहरी खाता था.रोजा रखता .रात भर मेरे पैर हाथ पीठ सहलाता .मुझे करवट लेना मना था .मेरा ध्यान रखता .सुबह कालेज जाता.वह बी काम एल एल बी के द्वतीय वर्ष का छात्र है . .लौटते वक्त फिर ४ बजे मुझे देखता मेरेलिए मिनरल वाटर लाता .देखता फिर .घर आता रोजा खोलता .मस्जिद जाता दोनों नमाज आता करता और सुबह की सहरी लेकर ११ बजे फिर उपस्थित हो जाता पूरे ८ दिन यही कर्म रहा .
मैं घर आगया हूँ .
बताइये मैं कौन हूँ हिन्दू या मुसलमान .बताइये की ..इंसानियत कहाँ ज़िंदा है ..हिन्दुवों के मंदिरों में या मुसलमानों में .मेरा भारत किसकी वजह से ज़िंदा है .किसकी वजह से दम तोड़ रहा है .

Wednesday 22 June 2016

भोर हो गयी


भोर हो गई
अस्ताचल में सूरज छिपा ही था कि
कि शुक्र तारे कि बिंदी लगाये
उतर गई संध्या मेरे अगन में
पसर गई पूरे घर में चुपके से
विभ्रम कि लोरी ,स्नेह कि थपकी ,ममता सा दुलार
बिन किसी भेद भाव बाँट दिया सबको
सो गया घर बार ,वह होगई प्रौढ़
उस ने बदल लिए नाम
वह अब रजनी हो गई थी /
भोर कि आहट से अभी कुनमुनाई ही थी रजनी
सखी उषा ने खट खटा दिया द्वार
निकल पड़ी रजनी पनघट कि ओर
सखी उषा से मिलने धवल वस्त्रों में सकुचाई,अलसाई छुई मुई
सूरज ने उलट दिए अनुराग उसके आँचल में
अरुणिम किरणों के सिन्दूर से भर दी उसकी मांग
कम्पित थे अरुण गात/भोर हो गई ,
दोनों हाथो ढँक लिया मुह छिप गई रजनी .....

जीवन साथी

सुनो .!
धीरज रखो ..
कुछ भी स्थाई नहीं रहता
सुख नहीं ....तो दुःख भी नहीं !
देखना
एक दिन फिर से
आएँगी खुशियाँ
तब तुम बटोर लेना
अपने आँचल में ...
देखो .
अभी मैं थका नहीं हूँ
तुम पगली जाने क्यों घबडाती हो
चलो इसी बहाने मेरे
आस पास तो मडराती हो .
सुनो!!
दुखी मत हो ..
ज़रा हंसो
तुम नहीं जानती कि
कितनी अच्छी लगाती हो
जब तुम खिलखिला कर हंसती हो .
देखो देखो!!
तुम अपनी बिटिया को देखो
नहीं है श्रृष्टि में कोई इतना सुन्दर फूल
यह मात्र बिटिया ही नहीं
हमारी जीवनी शक्ति है .जो असरदार बना देती है
मेरी कोशिशों को .अपनी मुस्कराहट से.......................

Tuesday 24 May 2016

मीडिया'.....राहुल और मोदी और प्रधान मंत्री पद

मीडिया के द्वारा बार बार राहुल और मोदी की तुलना और प्रधान मंत्री पद के लिए पसंद ना पसंद की चर्चा सुन कर मैंने एक पोस्ट डाली जिसमे लिखा की मोदी और राहुल की तुलना नहीं की जानी चाहिए .कुछ संघी इतने बौखला गए की गालियाँ बकने लगे एक श्री कृष्ण शर्मा तो चड्डी उतार कर अभद्र हो गया .
सच मानिये मैंने वह पोस्ट सामान्य तौर पर लिख दिया था 'पर आज पूरी तरह संजीदा हूँ .
एक कहावत है की... उड़द और अरहर की क्या तुलना ..किसान जानते हैं की दोनों खरीफ की फसल हैं दोनों एक ही खेत में बोते हैं .पर उड़द घास पात तथा एनी फसलों को रौंद कर उन को दबा कर..चबा जाती है. राहर और अन्य अनाजो को लपेट कर तीन महीने में पक जाता है .काटने में देर हुई तो चिटक जाता है .राहर आठ दस महीने में पकती है .सीधे खडी रहती है .रहर की तासीर सहज है उड़द की बादी . चूँकि दोनों राजनीति में है लिहाजा मोदी उड़द हैं राहुल राहर .मोदी बादी हैं राहुल फायदे मंद .
मोदी का उदय संघ की पीठिका शिक्षा दीक्षा में अस्त्र शास्त्र और नफ़रत ,घृणा हिंदुत्व की घुट्टी पी कर हूवा. और संघ अंग्रेजी साम्रज्य्बाद का पोषक हो कर स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के विरोध हेतुअंग्रजों द्वारा पैदा किया गया ( सन्दर्भ ..गोलवलकर की पुस्तक )महात्मा गाँधी की नियोजित ह्त्या किसने करवाई मैं क्यों कहूँ .सभी को पता है .मोदी .दम्भी अकडू घुटे पीर खुर्राट राजनीतिग्य गुजरात की प्रगति और अवगति के रचयिता .गोधरा जैसे कई संहारों में विवादित .
राहुल .मोतीलाल नेहरू जवाहरलाल. इंदिरा. राजीव के त्याग बलिदान और स्वतंत्रता संग्राम से लेकर आज तक की कांग्रस की परम्परा का वाहक शांत सौम्य आम आदमी का पैरोकार जागरूक युवा .सपने गढ़ने और उसे जमीनी हकीकत बनाने में तल्लीन बिना पद की लालसा के .भारत के समस्त लोगों के लिए सक्रीय .प्रधान मंत्री पद को त्यागा देने वाली भारतीयता को अंगी कर कर जीने में तल्लीन सोनिया की देख रेख में पला बाधा साधारण सा युवक .विवाद हीन
मोदी दिल्ली पहुँचाने की जल्दी में आडवाणी को धकेल कर आगे जा रहे हैं रहूल दिल्ली में सब कुछ हो कर भी कुछ नहीं चाहते बड़ों का साम्मान करते है .मोदी का मैं दंभ हो गया है राहुल में मैं है ही नहीं ..अब आप ही बताइए दोनों की क्या तुलना .कौन है सही नायक देश का किसे देखना चाहेंगे लोग .कौन जादा अनुकूल है भारतीय संबिधान के ..उत्तर है रहल राहुल राहुल .......

Wednesday 11 May 2016

मैं अपने गाँव लौटूंगा

मैं अपने गाँव लौटूंगा

मेरे गाँव के बीचोबीचपुश्तों से खड़ा बरगद का पेड़अब बूढा हो चला है .
काल के निर्मम थपेड़ों मेंएक एक कर ढहतीं रहींइसकी विशाल भुजाएं
विकलांग श्रद्धा के अभिशाप भोगने को विवश
यह बरगद मूलोच्छेदित हो जाय,
उसके पहलेउसके पांवों में एक बरगद उगाउंगा.
उसकी बांहों में नया संसार बसाऊंगा
जहाँ मेरा लोक फिर से लौट कर बतियाये गा ,
धामा चौकड़ी मचाये गा .गायेगा ,
फगुआ .चैता .आल्हा.कजरी और कन्हरवा .
मेरे आंगन में पुश्तों से खड़ा तुलसी का चौरा
उसमे फिर से लगाऊंगा एक नन्हा पौधा
सींचूँगा अपने संस्कार बोध से
प्रत्येक संध्या कच्ची मिटटी के नन्हे दीपकजलायेगी मेरी सह धर्मिणी .
संझौती लेसेगी मेरी पुत्र बधू
टिमटिमाते दिए की मद्धिम लव में
अँधेरे के शाश्वत सत्ता को पिघलते मैं जी भरके देखूँगा .
अपनी पुस्तैनी देहरी पर माथा झुकऊँ गा
,उस चौखट पर फिर एक बार अपनी नन्ही बिटिया को
ओका बोका तीन तलोका खिलाऊंगा .
देहरी का लालित्य ,
चौखट का मर्म
और चौखट लांघने का अर्थ समझाऊंगा

Friday 15 April 2016

चाय गरम ...गरम चाय ..गरमा गरम चाय



मोदी जी भारत के लिए ईश्वर का बरदान है ..शिवराज . मोदी भगवान् का अवतार हैं .बेन्कैया .....बर्तन मांजने वाली का बेटा प्रधान मंत्री बन गया ...मोदी जी, को इतना न फुलाओ कि फट जाए देवकांत बरुआ नामक शख्स का भारतीय राजनीति में एकमात्र और संभवत: सबसे बड़ा योगदान वही एक वाक्य - इंडिया इज इंदिरा’ रहा है जिसकी वजह से कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष हमेशा याद किए जाते हैं। आज दशकों बाद एक और शख्स ‘वोट फॉर इंडिया’ के जरिए ‘बीजेपी इज इंडिया’ बता रहे हैं। किसी एक पार्टी को राष्ट्रीयता का पर्यायवाची बनाने की यह कोशिश वास्तव में एक खतरनाक सोच का परिणाम है। एक ऐसी विचारधारा जिससे धुर दक्षिणपंथी बू आ रही है। भाषणों से जताना चाहते हैं कि वे और केवल उनकी पार्टी ही देशभक्त है। जनाब, राष्ट्रीयता किसी व्यक्ति और पार्टी की जागीर नहीं होती। न तो BJP की, न कांग्रेस की और न ही AAP की। हम इस सत्य को कब स्वीकार करेंगे कि हम विभिन्न धर्मों के अस्तित्वों की धरती पर जी रहे हैं और इस वक्त व्याप्त विश्वव्यापी बदलाव की लहर में अब सहजीवन ही हमारा सहअस्तित्व बचा है। दक्षिणपंथ को मिली तनिक सी हवा किसी और स्वरूप में देश को टुकड़े-टुकड़े कर के रख देगी। ऐसा खतरनाक खेल न खेलें। विश्व ऐसे उदाहरणों से पटा पड़ा है। भले ही ये लच्छेदार मुहावरे भाड़े से लाए गए लोगों की तालियां बजवा लें, लेकिन आम जनता राजनीतिज्ञों द्वारा अपने दिमाग और सोच के साथ किए ‘चिंतन बलात्कार’ को कभी स्वीकार नहीं करती। इमर्जेंसी हो या विभिन्न पार्टियों के ‘बिरयानी प्रयोग’ या प्रमोद महाजन का ‘इंडिया शाइनिंग’, जनता ने तो इंदिरा गांधी और अटल बिहारी जैसे PM को भी कूड़ेदान के हवाले कर दिया। खुद और अपनी पार्टी को सही बताना कोई बुरी बात नहीं, लेकिन यह कैसे जायज ठहराया जा सकता है कि ‘फलां, फलां गलत है, इसलिए मैं सही हूं।’ वास्तव में तो यह संपूर्ण अप्रोच ही गलत और नकारात्मक विचार वाला है। PM पद का ख्वाब देखनेवाले को अपनी सोच स्तरीय बनानी होगी। बदलाव की लड़ाई लड़नेवाले को सबसे पहले सामाजिक अहंकारों के खिलाफ लड़ना पड़ता है। अपने आप को अलहदा दिखाना ही नहीं बल्कि बनना पड़ता है, न कि अहंकारी भाषा का प्रयोग करना। दूसरों पर जो उंगली उठाते हैं उन्हें पहले अपनी ओर भी देखना चाहिए। गुब्बारे को इतना भी न फुलाओ की वह फट जाए? ओबामा के मैनरिजम की नकल कर लेने भर से कोई PM नहीं बन जाता। देश के आर्थिक, कूटनीतिक, सामाजिक संकटों व वैश्विक प्रश्नों को सुलझाने के लिए अपने तरीकों, नीतियों, अप्रोच और समाधान को भी सामने रखना पड़ता है। पिछले तीन महीनों से देश के कोने-कोने में करोड़ों-अरबों के खर्च से हो रहे तमाशों में PM बनने के बाद देश के लिए अपनी योजनाओं, कार्यक्रमों और प्राथमिकताओं के बारे में एक शब्द भी नहीं बोला जाता। इनमें सिर्फ होता है कांग्रेस के नाम से विधवा विलाप, वह भी सीना पीट-पीट कर। अरे, आखिर कब होगी देश की बेरोजगारी, आर्थिक मंदी से निपटने के तरीकों, गरीबी उन्मूलन, जीडीपी ग्रोथ, इंडस्ट्रियल ग्रोथ, देशवासियों की मूलभूत जरूरतों को उपलब्ध कराने की आपकी योजनाओं की बात? महीनों से सिर्फ कांग्रेस के कुशासन को गिनाने से काम नहीं बनेगा। प्रश्न करने के बाद जनता के सामने उत्तर भी रखना जरूरी होता है। वास्तव में तो देश का मतदाता इस विधवा प्रलाप से ऊब चुका है। अजी, खत्म हो गया हनीमून पीरियड, अब आओ सचाई के धरातल पर और बताओ की एक PM कंडिडेट के पास क्या भावी योजनाएं हैं देश के लिए। कुछ कॉर्पोरेट समूहों को कौड़ी के मोल जमीन देकर सारे टैक्स माफ कर देने को ‘विकास’ कह देने की परिभाषा आपकी होगी क्योंकि इसका मोल तो गुजरात राज्य की जनता ने चुकाया है। दूध का दूध हो जाए जब अगर जनाब से किसी मंच पर लाइव व खुली बहस की जाए और देश के सारे विकट आर्थिक प्रश्नों की वन-टू-वन चर्चा हो। सारी पोल एक मिनट में खुल जाएगी। चाय गरम...चाय गरम!!

Wednesday 6 April 2016

अच्छा बनाने की कोशिस में सारी अच्छाई झर गयी अच्छा बनना फिर भी शेष रह गया

अच्छा बनना फिर भी शेष रह गया

अच्छा बननाशेष रह गया
मै उतना अच्छा आदमी नहीं निकला
जितनी की मुझे उम्मीद थी कि मै हो पाउँगा
कई बार अच्छा बनाने कि कोशिश में सारी अच्छाई झर जाती है
और अच्छा बनाना फिर भी शेष रह जता है
मुझे भरोषा तो था लेकिन जाहिर है
मैंने उतनी कोशिश नहीं कि जितनी कि जरूरत थी|
मुझे अपने बच्चों कि पढ़ाई लिखाई का जादा तो नहीं
पर इतना अता पता तो रहा कि वे किस दर्जे में पढ़ते हैं
मैंने उन्हें बहुत सलाह नहीं दी और नसीहत या उपदेश भी नहीं
पर उन्हें साफ सफाई से जीवन बसर करना ,किसी पर निर्भर न रहना
अपना कम खुद करना. सर न झुकना ,किसी का एहसान न लेना ,भरसक मददगार होना
अपने पद ,पोजीशन का नजायज फायदा न उठाना वगौरह वगैरह तो आ ही गया /
उनकी अपनी मुश्किलें हैं ,तो मेरी ही कौन सी कम हैं
एक अच्छा पिता ,उन्हें अवसर का लाभ उठाने आज कि दुनिया में
अपना काम निकालने कि कुछ हिकमतें तो बता ही सकता था
जो मैंने नहीं किया....... क्यों कि -
चौंसठ बरस कि उम्र हो जाने के बाद भी
मुझे खुद ही पता नहीं है कि
हमारे समय में जिन्दगी जी कैसे जाती है .
सिर्फ इतना ही समझ पाया कि कैसे
जुटाया जाता है ,छत छप्पर जगह और राहत का सामान .
नहीं समझ पाया कि कैसे खडी की जाती हैं दीवारें ,तोड़े जाते हैं रिश्ते .
क्या होता है चरित्र का छल ,कैसे बनाया जाता है घर को बाजार
इस मायने में पूरा राज कपूर ही रहा -
सब कुछ सीखा हमने न सीखी होशयारी....
सच है दुनिया वालों कि हम हैं अनारी .
मेरे बच्चों ! अगर तुम सफल नहीं होते
तो इसका जिम्मा मेरा जरूर होता.!
हला की आज तुम मुझ पर निर्भर नहीं हो .
जिन्दगी तुम्हारे साथ कल क्या करेगी
इस बारे में मैं कोई अटकल लगना नहीं चाहता
पर अगर मैं अच्छा पिता होता ,तो
तुम्हे इतना अबोध न छोड़ देता जितना
मैंने तुम्हे इस खूंखार वक्त में छोड़ दिया है.
तभी तो चालाक चालों की शरारत ने..
तुम्हे आमूल चूल बदल दिया है..
हालाँकि तुम सब अब भी
मेरी प्यारी संताने हो .
मैं तुम्हे बेहद प्यार करता हूँ .
मैं अच्छा पिता तो नहीं बन सका
तो अच्छा इन्सान बनाने का तो सवाल ही नहीं उठाता
चूक मुझसे कहीं वफादारी में भी हुई है ,
शायद अपने लालच में मैंने सोचा कि
कई जगहें हैं ,हो सकती हैं ,और एक जगह दूसरी को रद्द नहीं करती
मुझे ख्याल तो था कि दुनिया के इतने विशाल होने के बावजूद जगहें बहुत कम ही हैं
जिसे जितनी मिली है उसी पर जम कर काबिज है
और इसकी मोहलत नहीं कि आप जगहों के बीच आवा जाही करते रहें .
मैंने प्रेम ,बांटा नहीं बल्कि पाया कि यह एक ओर बढ़ने से
दूसरी ओर कमतर नहीं होता बढ़ता ही है
आसमान कि तरह एक शून्य बना रहता है
जिसे कई कई सूरज भरते रहते हैं
उन्ही कि धुप में मैं खिलाता और कुम्हिलता रहा .
मैंने जीवन और कविता को आपस में उल्झादिया
जीवन की कई सच्चाइयों और सपनो को कविता में ले गया
आश्वश्त हुआ कि जो शब्दों में है वह बचा रहेगा कविता में .
भले ही जीवन में नहीं..........,गलती यह हुई कि.
जो कविता में हुआ उसे जीवन में हुआ माँन कर संतोष करता रहा .
अपने सुख और दुःख को अपने से बड़ा माँनकर
दूसरों के पास उसे शब्दों में ले जाने कि कोशिश में
वे सब बदल गए और मैं भी
और जो कुछ पन्हुच सका शायद न मैं था न मेरे सुख दुःख ,
मुझे ठीक से पता ही नहीं था कि
हमारे समय में अच्छे दोस्त ही सच्चे दुश्मन होते हैं
अपने ही पक्के पराये .क्यों कि औरों को आप या आप कि
जिन्दगी में दखल देने कि फुर्सत कहाँ है.
कभी कभार के भावुक विष्फोट के अलावा
किसी से अपने दुःख का साझा नहीं किया
न मदद मांगी न शक किया,
गप्पबाजी में ही मन के शक को बह जाने दिया.
कुछ शोहरत ,खासी बदनामी मिली ,
पर बुढ़ापे के लिए ,अपने लिए ,मुश्किल वक्त के लिए ,
कुछ बचाया और जोड़ा नहीं .
किसी दोस्त ने कभी ऐसा करने कि गंभीर सलाह भी नहीं दी.
इसी आपा धापी में किसी कदर
आदमी बनाने कि कोशिश में
चौंसठ बरस गुजर गये पर अच्छा बनाना शेष रह गया
अब तो जो होना था हो गया
डाल के पक्षी अचानक उड़ गए सब फुर्र से
बया बेचारा अकेला रहा गया ,घोसले के द्वार पर लटका हुआ /

Thursday 28 January 2016

अंग्रेजों के यार आज सबसे बड़े देशभक्त बन गए


अंग्रेजों के यार आज सबसे बड़े देशभक्त बन गए



जब नेताजी और पं. नेहरू गोरों की सरकार के खिलाफ गोलबंदी कर रहे थे,तब आप कहाँ थे मिस्टर स्वयंसेवक ?

आजादी की लड़ाई में नाखून तक नहीं कटाने वाले आज सबसे बड़े देशभक्त बन गए हैं।

आजादी की लड़ाई में नाखून तक नहीं कटाने वाले आज सबसे बड़े देशभक्त बन गए हैं। इस मुल्क के लिए इससे बड़ी विडंबना और क्या हो सकती है?
 बात खुद के तमगे तक होती तो कोई बात नहीं थी लेकिन इन लोगों ने अब बाकायदा देशभक्ति की सर्टिफिकेट भी बांटनी शुरू कर दी है। इसके लिए देशभक्ति का खजाना ना सही लेकिन चंद खोटे सिक्के तो अपनी जेब में होने ही चाहिए। इसी लक्ष्य से इन्होंने नेता जी सुभाष चंद्र बोस और जवाहर लाल नेहरू को चुना है। और फिर दोनों के बीच फर्जी तरीके से दरार पैदा करने की कोशिश की जा रही है। यह कुछ और नहीं बल्कि राष्ट्रभक्ति में अपनी साझेदारी दिखाने की उसी कोशिश का हिस्सा है।
बोस और नेहरू के बीच के इन मूसरचंदों से यह जरूर पूछा जाना चाहिए कि जब नेताजी देश से बाहर रहकर अंग्रेजी हुकूमत की चूलें हिला रहे थे। और नेहरू कांग्रेस की अगुवाई में न एक भाई, न एक पाई के नारे के साथ गोरों की सरकार के खिलाफ गोलबंदी कर रहे थे। तब ये और इनके हमराह कहां थे और वो क्या कर रहे थे?

श्यामा प्रसाद मुखर्जी उस समय मुस्लिम लीग के साथ मिलकर अंग्रेजों की छत्रछाया में बंगाल में सरकार चला रहे थे।

इनके झूठ, भ्रम और अफवाह की आंधी में बहने से पहले दो मिनट ठहरकर सोचने की जरूरत है। इनके सबसे बड़े नेता और नेहरू के नेतृत्व वाली अंतरिम कैबिनेट के सदस्य श्यामा प्रसाद मुखर्जी, जिनकी भगीरथी चोटी से बीजेपी निकली है। उस समय मुस्लिम लीग के साथ मिलकर अंग्रेजों की छत्रछाया में बंगाल में सरकार चला रहे थे। मुस्लिम लीग के नेता फ़जलुल हक़ सूबे के मुख्यमंत्री थे और मुखर्जी साहब उप मुख्यमंत्री।
इसी तरह से सिंध और उत्तर पश्चिम फ्रंटियर प्रांत (एनडब्ल्यूएफपी) में भी इसी गठबंधन की सरकारें थीं। सिंध में तो पहले अल्लाह बख्श की सरकार थी। इत्तेहाद पार्टी के नेतृत्व में गठित इस सेकुलर सरकार में हिंदू, मुस्लिम और सिख सभी शामिल थे। लेकिन अंग्रेजों की मदद से मुस्लिम लीग के गुंडों ने 1943 में अल्लाह बख्श की हत्या कर दी। फिर उसके बाद सिंध में मुस्लिम लीग और हिंदू महासभा के गठबंधन की संयुक्त सरकार बनी। उस समय दक्षिणपंथी खेमे के सबसे बड़े वीर वीर सावरकर ने इसे व्यावहारिक राजनीति की जरूरत करार दिया था। सावरकर उस समय हिंदू महासभा के अध्यक्ष थे।

अंग्रेजी सेना में सैनिकों की भर्ती के लिए हिंदू महासभा ने बाकायदा कैंप लगवाए थे

अंग्रेजों से इनकी यारी यहीं तक महदूद नहीं थी। अंग्रेजी सेना में सैनिकों की भर्ती के लिए हिंदू महासभा और उसके मुखिया ने बाकायदा जगह-जगह भर्ती कैंप लगवाए थे। फिर इन्हीं जवानों को उत्तर-पूर्व के मोर्चे पर सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व वाले आईएनए के सैनिकों का सीना छलनी करने के लिए भेजा जाता था। सावरकर ने तब कहा था कि
जापान के द्वितीय युद्ध में शामिल होने से हम सीधे ब्रिटेन के शत्रुओं की जद में आ गए हैं। नतीजतन हम पसंद करें या ना करें युद्ध की विभीषिकाओं की चपेट में आने से हमें अपनी मातृभूमि को बचाना होगा। और यह भारत की रक्षा की दिशा में भारत सरकार (तब ब्रिटिश सरकार) के प्रयासों को तेज करने के जरिये ही संभव है। इसलिए हिंदू महासभा को खासकर बंगाल और असम के हिंदुओं को सैन्य बलों में शामिल होने के लिए प्रेरित करने की जरूरत है। [ वी डी सावरकर, समग्र सावरकर वांगमय: हिंदू राष्ट्र दर्शन, खंड 6, महाराष्ट्र प्रांतिक हिंदू महासभा, पुणे, 1963, पेज-460 ]
 इन तथ्यों के बाद कम से कम बीजेपी-आरएसएस या फिर किसी भी दक्षिणपंथी संगठन को इस मसले पर बोलने का कोई नैतिक अधिकार नहीं रह जाता है। इस मामले में किसी तथ्य पर आधारित आलोचना की गुंजाइश न होने पर अब इन्हें झूठ और अफवाहों का सहारा लेना पड़ रहा है। दरअसल नेताजी से जुड़ी 100 फाइलों के सार्वजनिक होने के बाद भी उन्हें नेहरू के खिलाफ कुछ नहीं मिला। फाइलों के पहाड़ से कुछ नहीं मिला तो अब फर्जी चिट्ठी तैयार की गई है। इसी के सहारे काम चलाया जा रहा है। लेकिन इसका भी पर्दाफाश हो गया है। इसलिए नेताजी और नेहरू के बारे में बात करने से पहले संघ और बीजेपी को एक बार अपने गिरेबान में जरूर झांक लेना चाहिए। क्योंकि एक अंगुली अगर कोई उठाता है तो चार खुद पर भी उठ रही होती हैं।
महेंद्र मिश्र, लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।
महेंद्र मिश्र, लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। 

भगत सिंह और उनके साथी बटुकेश्वर दत्त के खिलाफ गवाही देने वाले संघी थे ????

भगत सिंह और उनके साथी बटुकेश्वर दत्त के खिलाफ गवाही देने वाले संघी थे ????
भगत सिंह और उनके साथी बटुकेश्वर दत्त के खिलाफ गवाही देने वाले संघी थे ????
बहुत अच्छी जानकारी है कृपया ध्यान से पढ़ें .
󾮜ये है देश के दो बड़े महान देशभक्तों की कहानी....
󾮜जनता को नहीं पता है कि भगत सिंह के खिलाफ विरुद्ध गवाही देने वाले दो व्यक्ति कौन थे । जब दिल्ली में भगत सिंह पर अंग्रेजों की अदालत में असेंबली में बम फेंकने का मुकद्दमा चला तो...
󾮜 भगत सिंह और उनके साथी बटुकेश्वर दत्त के खिलाफ शोभा सिंह ने गवाही दी और दूसरा गवाह था शादी लाल
- See more at: http://mcci.org.in/article.php?id=71686#sthash.NE9bZ98A.dpuf दोनों नाथूराम गोड्से की तरह आरएसएस से जुड़े थे और दोनों को वतन से की गई इस गद्दारी का 1977 की जनता पार्टी सरकार बनाने पर इनाम भी मिला। दोनों को न सिर्फ सर की उपाधि दी गई बल्कि और भी कई दूसरे फायदे मिले।
󾮜 शोभा सिंह को दिल्ली में बेशुमार दौलत और करोड़ों के सरकारी निर्माण कार्यों के ठेके मिले आज कनौट प्लेस में सर शोभा सिंह स्कूल में कतार लगती है बच्चो को प्रवेश नहीं मिलता है जबकि
󾮜 शादी लाल को बागपत के नजदीक अपार संपत्ति मिली। आज भी श्यामली में शादी लाल के वंशजों के पास चीनी मिल और शराब कारखाना है।
󾮜 सर शादीलाल और सर शोभा सिंह, भारतीय जनता कि नजरों मे सदा घृणा के पात्र थे और अब तक हैं
󾮜 लेकिन शादी लाल को गांव वालों का ऐसा तिरस्कार झेलना पड़ा कि उसके मरने पर किसी भी दुकानदार ने अपनी दुकान से कफन का कपड़ा तक नहीं दिया।
󾮜 शादी लाल के लड़के उसका कफ़न दिल्ली से खरीद कर लाए तब जाकर उसका अंतिम संस्कार हो पाया था।
󾮜शोभा सिंह खुशनसीब रहा। उसे और उसके पिता सुजान सिंह (जिसके नाम पर पंजाब में कोट सुजान सिंह गांव और दिल्ली में सुजान सिंह पार्क है जिसका उदघाट्न बीजेपी के ही मुख्यमंत्री साहब सिंह वर्मा ने किया था इसके अलावा दिल्ली समेत देश के कई हिस्सों में हजारों एकड़ जमीन मिली और खूब पैसा भी।
󾮜 शोभा सिंह के बेटे खुशवंत सिंह ने शौकिया तौर पर आरएसएस के मुखपत्र पांजन्य में पत्रकारिता शुरु कर दी और बड़ी-बड़ी हस्तियों से संबंध बनाना शुरु कर दिया।
󾮜सर शोभा सिंह के नाम से एक चैरिटबल ट्रस्ट भी बन गया जो अस्पतालों और दूसरी जगहों पर धर्मशालाएं आदि बनवाता तथा मैनेज करता है। 󾮜 आज दिल्ली के कनॉट प्लेस के पास बाराखंबा रोड पर जिस स्कूल को मॉडर्न स्कूल कहते हैं वह शोभा सिंह की जमीन पर ही है और उसे सर शोभा सिंह स्कूल के नाम से जाना जाता था।
󾮜 खुशवंत सिंह ने अपने संपर्कों का इस्तेमाल कर अपने पिता को एक देशभक्त दूरद्रष्टा और निर्माता साबित करने की भरसक कोशिश की।
󾮜 खुशवंत सिंह ने खुद को इतिहासकार भी साबित करने की भी कोशिश की और कई घटनाओं की अपने ढंग से व्याख्या भी की।
󾮜 खुशवंत सिंह ने भी माना है कि उसका पिता शोभा सिंह 8 अप्रैल 1929 को उस वक्त सेंट्रल असेंबली मे मौजूद था जहां भगत सिंह और उनके साथियों ने धुएं वाला बम फेंका था।
󾮜 बकौल खुशवंत सिह, बाद में शोभा सिंह ने यह गवाही दी, शोभा सिंह 1978 तक जिंदा रहा और दिल्ली की हर छोटे बड़े आयोजन में वह बाकायदा आमंत्रित अतिथि की हैसियत से जाता था।
󾮜 हालांकि उसे कई जगह अपमानित भी होना पड़ा लेकिन उसने या उसके परिवार ने कभी इसकी फिक्र नहीं की।
󾮜 खुशवंत सिंह का ट्रस्ट हर साल सर शोभा सिंह मेमोरियल लेक्चर भी आयोजित करवाता है जिसमे आरएसएस और बीजेपी के बड़े-बड़े नेता और लेखक अपने विचार रखने आते हैं, और...
󾮜 बिना शोभा सिंह की असलियत जाने (य़ा फिर जानबूझ कर अनजान बने) उसकी तस्वीर पर फूल माला चढ़ा आते हैं
󾮜आज़ादी के दीवानों क विरुद्ध और भी गवाह थे ।
1. शोभा सिंह 2. शादी राम 3. दिवान चन्द फ़ोर्गाट 4. जीवन लाल 5. ....... देश के एक पूर्व प्रधानमन्त्री( जो एक कवि थे )
कितने बेशर्म है बीजेपी वाले आजादी की लड़ाई में किसी का कोई योगदान नहीं ऊपर से यह गद्दारी फिर भी देशभक्ती का ऐसा स्वांग रचते है के पूछो नहीं