Friday 30 January 2015

लौट आई मैना भी 
कई दिनों बाद आज तीसरे पहर
बगीचे में पौधों को पानी दे रहा था कि
अचानक मेरे सिर पर मंडराई
मानो उसने अपनी पहचान बताई
आज दिखी मेरी मैना ....
पिछले बसंत के बाद उड़ गई थी
अपने दो नन्हे बच्चों के साथ
आज बच्चे साथ नहीं थे /
उसके साथ उसका नया साथी था
मैना बेहद खुश थी ,साथी गंभीर था
मैना चिउं चिउं करते ,अपनी लम्बी पूंछ हिलाते
आम आंवला अमरुद नीबू मधु कामिनी
जूही मधुमालती सभी पर बैठ आई
वह मानो फूली नहीं समां रही थी /
लौट के साथी के पास आई ,
उसके कानो में गुनगुनाई 
यही उसका अपना ठौर है /जहाँ उसने रचा था संसार ...
लौट आई मैना भी ...प्रवासी बच्चे नहीं लौटे ......?

और कितनी प्रतीक्षा !कितनी परीक्षा !

कहाँ जांय.क्या करें .दम घुटता है .
इससे परे कोई दुनियां है क्या !मन कहता है
कुछ खुसी हो जहाँ हम वहां पर चलें .
जिन्दगी हो जहाँ चल वहां पर चलें .
नित वही चन्दन, नित वही पानी,
सब कुछ तो सड़ गया है .
बदबू और सड़ांध से ,बजबजाती जिन्दगी
ऋतू धर्म से भींगे लथफत लत्ते के तरह
अलग थलग फेक दी गई जिन्दगी
आँख भर पसरी उदासी खुरदुरी ........
इसके उस पार है क्या कोई तिलस्मी दुनियां
जहाँ चैन से सुकून से कुछ क्षण जी सकता हो आदमी
जहाँ फेफड़ा भर सकता हो एकबार सिर्फ एकबार ताजी हवा से
जहाँ इंसानियत अदब .इमानदारी से .चैन की साँस ले सके .
एक अदद बसंत की प्रतीक्षा में .
पतझर की वीरानी पसर गई है रोम रोम में .
भीतर अंतस में उग आये हैं हजारों ठूंठ .
इन पर कभी नहीं कूकती कोयल.
ठंढी हवा को इधर से गुजरे अरसा बीत गया.
उमर भटकते बना भिखारी जीवन ही जंजाल हो गया.
चेतन सब निर्जीव हो गए और मौन भगवान हो गया.
और कितनी प्रतीक्षा !कितनी परीक्षा !

Tuesday 27 January 2015

बहुत बड़ी कीमत चुकाई भारत ने .मोदी के मियाँ मिट्ठू बनने की


परसों से हर चैनल ने यह समाचार तो जरुर दिखाया कि लंबे समय से दो शर्तों के कारण भारत और अमेरिका के बीच अटकी पड़ी न्यूक्लियर डील को बराक ओबामा के साथ बात कर मोदी ने पहले दिन ही क्लीयर करवा दी। लेकिन किसी ने भी यह नहीं बताया कि इसकी देश ने कितनी बड़ी कीमत चुकाई।
यूपीए सरकार ने भारत ने देशहित को सामने रखकर न्यूक्लियर डील पर हस्ताक्षर जरूर किए लेकिन उसकी दो शर्तों के कारण वह आज तक लागू नहीं हो सकीं थीं।
1) डील में पहली बाधा इस बात पर एकमत न होना था --भारत का कहना था कि चूंकि इस डील का प्रेरक और निर्माता बनने का श्रेय अमेरिका बन रहा है तो भविष्य में चेरनोबिल जैसी घटना होने पर दुर्घटनाग्रस्त लोगों को मदद के लिए 1500 करोड़ रूपए का एक फंड बने जिसमें अमेरिका योगदान दे।
2) दूसरी बाधा मनमोहन सिंह की अगुवाई वाली सरकार द्वारा अमेरिका की यह थोपी हुई यह शर्त मानना बना था कि -अमेरिका जब और जितनी बार चाहे भारत के सभी न्यूक्लियर संयंत्रों की जांच कर सकता है।
अमेरिका यह दो शर्तें मनवाने के लिए साम, दाम, दंड, भेद सहित विश्व के हर मंच का उपयोग कर भारत पर दबाव बनवाता रहा लेकिन मनमोहन सिंह इस शर्त को मानने के बाद भारत के भविष्य के साथ होनेवाले खतरों को जानते थे और उन्हें देश की सार्वभौमिकता का अंदाज था इसलिए वे अमेरिका के सामने नहीं झुके।

ओबामा की यात्रा के पहले दिन ही भारत ने दोनों शर्तों को स्वीकार ही नहीं किया बल्कि देश की सुरक्षा के साथ ऐसा समझौता किया है जिसकी सजा देश सदियों तक भुगतेगा।
भारत ने स्वीकार कर लिया है कि

1) 1500 करोड़ रू.के फंड को भारत ही देगा। 750 करोड़ देश की चार बीमा कंपनियां देंगी और शेष 750 भारत सरकार देगी।
2) भारत ने अनंत काल तक के लिए अपने सारे न्यूक्लियर संयंत्रों की जांच अमेरिका के बदले --न्यूक्लियर पावरवाले देशों के संगठन से--करवाना स्वीकार कर लिया। यह सभी जानते हैं कि विश्वबैंक और आईएमएफ की तरफ यह संगठन भी अमेरिका की ही जेबी संस्था है।
अब भारतवासियों को खुद अपने अंदर झांककर देखना है कि उसने तीन दिवसीय तमाशे की कितनी बड़ी कीमत चुकाई है।

Thursday 22 January 2015

इस दौर में भी बचाने को बहुत कुछ बचा है हमारे पास ///

हर बार की तरह लौटा हूँ घर .और
 घर लौट आया है मुझ में ..
 वह घर जो मेरा है ..मेरा नहीं है .!
 इसकी दीवारों पर लिखे अनगिनत किस्से ,सपने मेरे अपने हैं ,..
पर यह अलग बात है ..जो कोई मायने नहीं रखते ..
जब भी मैं लौटता हूँ घर ,मेरा घर दौड़ कर लिपट जाता है
मुझसे ढूंढता है मेरी आँखों में अपने लिए सहानुभूति
बताता है अपनी बदहाली के किस्से
किस तरह चुपके से अपनों ने ही कुतर दिया घरेलू रिश्तों की बुनियाद .
 किस तरह धीरे धीरे मर गया घर का चरित्र
आज वह मुझे पढवाता है
 तनहाइयों में दीवारों पर लिखे कुछ शब्द
 बताता है की कैसे कैसे उलझनों में वह उलझ गया ,
 खामोश खड़ी दीवारें
 निःशब्द कह जाती है अपनी ब्यथा कथा
बीमार हवाएं रिश्तों में फूटते दुर्गन्ध का बयान करती हैं
खुद को सम्हालने की असफल कोशिस करता मै
 सहेजता हूँ ठंढी होती दिनचर्या में जीवन की गर्माहट,
 मन का हरापन भोलापन दिल का ,अक्खड़ पन, जुझारू पन ,
एक शाश्वत प्रश्न खड़ा होता है क्यों ?
किसके लिए ?
पर वह मेरे भीतर जो एक मन और है ..
जो नहीं जनता दैन्य हार मानता नहीं ..
कहता है डटे रहो मोर्चे पर
लड़ना है अपने हिस्से का महाभारत अकेले ही
 इस दौर में भी बचाने को बहुत कुछ बचा है हमारे पास ///

Monday 19 January 2015

.यह मेरी राय है

ओबामा के भारत आगमन के एक सप्ताह पहले से उनके जाने के एक दिन बाद तक भारत का जल थल और आस्मां अमेरिका के कब्जे में रहेगा .यहाँ तक की वे अपनी गाड़ी से राजपथ आयेंगे .न तो वे राष्ट्रपति के साथ राजपथ आयेंगे .और न तो वे राष्ट्रपति के साथ बैठेंगे .यह संबिधान परम्परा और भारतीय राष्ट्रपति तीनो का अपमान है .मोदी की लालसा देश को हर प्रकार से नीचा दिखा रही है .पहले अदानी अम्बानी की बीबियों के आगे सार्वजानिकरूप से पर झुक कर अभिवादन .अदानी अम्बानी का उनकी पीठ ठोंकना .
और अब ओबामा तथा अमेरिका के लिए सब कुछ दाव पर लगा देना .दिल्ली चुनाव में हर प्रकार के हठ कंडे अपनाना निंदनीय है देश का अपमान है .यह मेरी राय है

Saturday 10 January 2015

anhad - vani: - छ्न्द मे पद कुपद.----

anhad - vani: - छ्न्द मे पद कुपद.----: देश की आधी जनसंख्या के लिए : - छ्न्द मे पद कुपद.---- नियति करे अठखेली........... *भूख ओढाना,बिपति बिछौना पतरी दोना, कोठरी कोना सजी ...

anhad - vani: मेरे गावं में एक लड़की थी

anhad - vani: मेरे गावं में एक लड़की थी: मेरे गावं में एक लड़की थी कजरी उसका नाम था हर बुजुर्ग की वह प्यारी थी हर कोई यजमान था / रंग सांवला रूप सलोना खंजन नयन रूप रस माता क...

Sunday 4 January 2015

आप सी कलह .का दुष्परिणाम

छत्तीस गढ़ के नगरी निकाय चुनाव संपन्न हुए  १० महानाग्र्पलिकाओं में चार पर बमुश्किल रमण को कब्जा मिला  अबकी बार कांग्रेस के लिए उत्साह जंक परिणाम हैं फिर भी कांग्रेसी दगा बाजों ने बिलासपुर को भाजपा को सौंप दिया .तत्काल इन दगा बाजों और इनके आका को कांग्रेस से निकल बहार करना चाहिए .बहुत दिनों से यह नौटंकी पब्लिक देख रही है .अब कांग्रेस को कठोर होना होगा .नसबंदी कांड के बाद भी नगरपालिका में कांग्रेस की पराजय संभी कांग्रेसियों के कारण है .फिर भी ग्रामीड़ क्षेत्रों में कांग्रेस को भारी सफलता मिली है ......