Wednesday 19 September 2012

कृपया बच्चों को भगवान का असली अर्थ समझाइये

कृपया बच्चों को भगवान का असली अर्थ समझाइये . कृपया बच्चों को भगवान का असली अर्थ समझाइये . भ -.भूमि क्षिति.=Earth ग.-.गगन ..आकाश=Sky व. -.वायु हवा =Air अ -अग्नि आग.=Fire न - नीर जल =water कृपया बच्चों को भगवान का असली अर्थ समझाइये ...भ +ग +व +अ +न =प्रकृति=netur...god क्षिति जल प!वक गगन समीरा पाँच तत्व यह रचित शरीर! ||

Friday 14 September 2012


नया गीत, नव छंद, ताल नव, नव सुर देकर जाये
मिले नया आलोक जगत को टूटे सब भ्रम रचना
नए मीत नव संकल्पों से उत्साहित धुन गाएं
धानी रंग चुनरिया रंगना मन रस बस कर जाना
चढ़ी अटारी ग्राम बधूटी कजरी के स्वर गाये
खपरैलों पर कागा बोले गोरी झूले झूला
सैयद -सीता एक साथ फिर गुडिया ब्याह रचाएं
अम्मा बैठें एक बार फिर जांते पर भिनसारे
अपने भोर गीत मंगल से अमृत सुर बरसायें
दही बिलोती दादी गांए मक्खन खाते दादा
रहे न कुछ भी छद्म कपट सब होवे सादा सादा
बूढ़े बरगद की छैंया में फिर से गूंजे आल्हा
ताल ठोंक कर भिड़ें अखाड़े फागू और दुलारे
फुलवा से फिर करें ठिठोली बूढ़े रमई काका
चौपालों पर रोज साँझ को बरसें प्रेम फुहारे/

जितनी हंसी तुम्हारे ओंठों पर

सुनो दुखी मत हो .
हौसला रखो.देखना .
हम जीत ही जायेंगे एक दिन ./
बस हाथ पकड़ी रहो .
थोडा मुस्कराते रहो/ हम ने पढ़ा है .
दुःख सब को मांजता है/
,फिर से लौट कर आयंगी बहारें
तब तुम पलकों पर सहेज कर
धीरे से उतार लेना उन्हें जीवन में /
हम  थके नहीं हैं ,
हमारी उम्र भी थकने की नहीं है अभी /
तुम पगली न जाने क्यों घबराती हो
चलो यह भी एक हिसाब  से अच्छा ही है /
इसी बहाने मेरे आस पास तो रहती हो ,
लेकिन छोडो यह सब
जरा जोर से खिल खिला कर हंसो/
 तुमको मालूम नहीं
तुम कितनी अच्छी लगती हो जब
जब खिल खिला कर हंसती हो /
एक बात कहूं ,सच मानोगी ?
जितनी हंसी तुम्हारे ओंठों पर
उतनी  खुसी हमारे जीवन में /



 
 

उषा पीसती नेह जतन से

उषा पीसती नेह जतन से जांत चले भिनसारे भोर लीपती रच रच आँगन पूरे चौक उजारे . मूसल छांटे बिपति दुपहरी ओखली धरी ओसारे . साँझ झोंकती थकी जवानी चूल्हे में सिर डारे . आधी रात बदलती करवट आँख समय बिरुआरे . चेहरे पर चौरासी झुर्री मईया ठाढ़ दुआरे . लाले लाले गोड़ कनईया आँखें सपना बुनतीं . काल कलौती उज्जर धोती मंशा चुनती मोती,

Thursday 13 September 2012

हिन्दी दिवस.2

हिन्दी दिवस पता नही क्या मलिक की भाषा और नौकर की भाषा हिन्दी हमारी जातीय संस्कृति की संवाहक भाषा है .,यह हिन्दी जाति की भाषा है ..भारतीय लोक की भाषा है इसी मे हमारी क्षेत्रीय बोलियाँ समाहित हैं ,क्षेत्रीय बोलियों से हिन्दी पुष्ट और समृद्ध होती है ..लौकिक मुहावरे लोक उक्तियाँ हमारी भाषा को ताक़त वर बनाती हैं भाषा किसी की बपौती नही पुराण काल मे भी ब्राम्‍हंन संस्कृत बोलते थे लौकिक बोली शूद्रो की बोल ी कही जाती थी उसी तर्ज पर अँग्रेज़ी मलिक की और हिन्दी नौकर की भाषा कही जाती है /आज कल फिल्मों मे हिन्दी मालिक की भाषा और भोजपुरी नौकर की भाषा दिखाई जाती है,यह नौटंकी बंद होनी चाहिए यह भोजपुरी का अपमान है .किसी भी भाषा पर आप गँवारों की भाषा का ठप्पा नही लगा सकते ,.भाषा किसी की बपौती नही हर किसी को हर भाषा बोलनी चाहिए बोलने का अधिकार है हर भाषा का सम्मान होना चाहिए अपनी भाषा पर स्वाभिमान होना चाहिए .हम जिस भाषा मे सोच सकते हैं उसी मे अभिब्य्क्त होना सहज और स्वाभाविक होता है .सार्थक भी .

हिन्दी दिवस14 sept

हिन्दी दिवस14 sept देश हिन्दी दिवस की औपचारिकता निभाए गा ,संस्थाओं मे कार्यालयों मे चर्चा होगी .बस हो गया .हिन्दी को राष्ट्रभाषा तो डोर संपर्क भाषा का दर्जा भी पूरे देश मे नही है .इसके दो दुश्मन है एक तो अँग्रेज़ी का क्रेज़ नही छूट रहा है दूसरे वोट की राजनीति ने क्षेत्रीय बोलियों को हिन्दी का प्रतिस्पर्धी बना रखा है .लोग या तो अँग्रेज़ी बोलते हैं या क्षेत्रीय बोली. हिन्दी विश्व की सबसे वैज्ञा निक भाषा है .देवनागरी सबसे वैज्ञानिक लिपि ,दोनो ही हमारी सांस्कृतिक विरासत के संवाहक भी हैं यही दुनिया की एक मात्र भाषा है जिसमे जो लिखा जाता है वही बोला जाता है .हमारे जातीय परिवारिक रिश्तों के हर इकाई के लिए शब्द हैं .पूजा पाठ एवं खेती खलिहान से लेकर संवेदनाओं की प्रस्तुति के शब्द हैं .पर फिर भी उपेक्षित है .स्वतंत्रता के बाद यही हमारी कमाई है हिन्दी का तिरस्कार .,गाँधी स्वामी दया नंद जैसे महान लोगों ने जिसे अपना हथियार बनाया ,पाठ्यक्र्मो मे औपचारिक हो कर रह गयी .जो हिन्दी का खाते हैं वे भी हिन्दी का गाते नही .या तो क्षेत्रीय बोली के नेता बनाते हैं या अँग्रेज़ी के मसीहा ...हमारी तहज़ीब .हमारी अस्मिता की पहचान है हिन्दी . देवनागरी लिपि के रचना कारों ने कोई कसर नही छोड़ी हर एक सांस्कृतिक शब्द को ध्यान मे रख कर लिपि की रचना की काका मामा नाना नानी मामी चाचा काकी अम्मा बापू नाती पोताबाबा ताउ मौसी बुआ सास ससुर साली .लोहार बढ़ई धोबी नाउ कहार डॉली दुलहन प्रणाम चरण पदुका घड़ा पनघट पनिहारीन भोर दुपहरी उषा संध्या कुआँ सखी सखा बरहि कथा तरकारी सब्जी पूड़ी खीर भात डाल बासी ज्ञान ऋषिगुरु जैसे शब्द क्ष त्र स श ष .य व जैसी ध्वनियों का विशेस महत्व है हमारी संस्कृति मे ,और किसी भाषा मे नही पर हत भाग्य वह रे वोट की राजनीति ...नेताओं ने देश का सत्या नाश कर दिया धर्म की कर्मकांड की मोक्ष की माला जपते हैं .पर संस्कृति इन्हे समझ मे नही आती ..

Saturday 1 September 2012

कविता मेरे एकांत का प्रवेश द्वार है .

कविता मेरे एकांत का प्रवेश द्वार है . यहाँ मै वह होता हूँ जो मैं हूँ . यहाँ होने के लिए मुझे कोई प्रयास नहीं करना पड़ता यहीं आकर मै सुस्ताता हूँ घड़ी भर जिन्दगी की जद्दो जेहद से हार थक कर