Saturday 28 January 2017

बचपन की यादें आज एक लोकगीत सोहर . प्रोफ.सरोज मिश्र·19 अप्रैल 2016

.आज मन कहा रहा है अम्मा की गोद में सर रख कर सो जाएँ .बचपन में जब मा सुबह सुबह ४ बजे जाँता में गेहूं पीसती थी तो अक्सर गाती थी और मैं बिस्तर से उनींदा ही भागकर आता था उसके जांघ पर सर रखकर आँख बंद करके सो जाता था जांते की घुरुर घुरूर और मा के अमृतसुर में लोक धुन की अलौकिक संरचना में मैं डूब जाया करता था ऐसा अक्सर होता था मुझे वे सारे गीत याद हैं सुनाऊंगा आज एक सोहर
जब जब बाजे खझडिया त हिरनी विसुरै हो . राम का मुंडन है .सरयू के किनारे एक हिरन का जोड़ा घास चर रहा है ..हिरनी की नजर चहलकदमी पर पडी तो उसने ..हिरन से कहा ,प्रिय लगता है आज महाराज दशरथ के यहाँ कोई उत्सव है .चलो छिप जाओ ..नहीं तो तुम्हारा शिकार हो जाएगा .
.अभी बात पूरी हुई ही नहीं थी की हिरन को वान लग गया .वह मर गया .शिकारी उसे कंधे पर लेकर दशरथ के दरबार में गया, माता कौशल्या के हवाले किया .हिरनी उसके पीछे पीछे गयी ..कौशल्या ने हिरनी से आने का कारन पूछा तो उसने कहा ..माता तुम ऐसा करो हिरन का मांस निकाल लो राम के लिए व्यंजन बनाओ .. और खाल हमें दे दो .हमें खुसी होगी ..हम चले जायेंगे | कौशल्या बोली ..तुम खाल का क्या करोगी ....हिरनी हिरनी बोली....जंगल के किसी सूखे ठूठ पर लटका कर इसके इर्द गिर्द घास चरुन्गी .मुझे संतोष होगा की मेरा पति मेरे पास है . कौसल्या पहले तो राजी हो गयीं .पर तुरंत मना कर दिया ..बोलीं .... .जाहु हिरनी घर अपने खलारिया न देबय हो ..हिरनी खलरी क खझडी मढइबय बजईहैं राजा रघुबर .
..क्या करती हिरनी रोती विलखती चली गयी ....फिर क्या था हिरन के .खाल की खंझडी बनी|
राम लखन भारत सत्रुघन बजाते बजाते खेलते थे .खझडी. की आवाज हिरनी को जंगल में सुनाई पड़ती ..तो उसे अपने पति की याद आती, वह पति के स्मृति में विभोर हो जाती | लोक गीत कार लिखता है ...जब जब बाजे खझडिया त हिरनी वीसूरय हो ...... यह मार्मिक सोहर हम माँ से सुनते थे ..सुबह जब माँ जाता में गेंहू पीसती थी तो यही सोहर गाती थी .हम खटिया से उठ कर आते और माँ की जांघ में सर रख कर सो जाते जाते के घुरुर घुरू की ध्वनी और सोहर का राग ..अलौकिक संगीत का समा .वहअब कहाँ ......कैसी लगी कथा .....

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