.यह सीखने सिखाने की एक प्रक्रिया है .बात चीत से इस यात्रा के श्रम का
परिहार भी होता रहेगा और हम आपस मे कुछ न कुछ सीखेंगे भी .हिन्दी हमारी
संपर्क भाषा है हिन्दी शब्द आमिर ख़ुसरो के हिंदवी से से बना है .दिल्ली मे
आमिर ख़ुसरो हमारी लोक बोलियों के साथ अरबी और फ़ारसी के मिश्रण से जिस नई
भाषा मे लेखन शुरू किए उसे लोगों ने हिंदवी कहा .. .एक थॉल मोती से भरा सब
के सिर पर औंधा धरा थाली चारो ओर फिरे मोती उसमे से एक न गिरे बैठी थी पिय
मिलन को खांची मान मे रेख अब मौनी क्यों हो गयी चलनी के केइ देख खीर पकाई
जतन से चरखा दिया चलाय आया कुत्ता खा गया तू बैठी ढोल बजाय . यह हिंदवी है
आप हिन्दी का प्रारंभिक रूप कहा सकते हैं .,इसे स्वीकृत उतनी नही मिली
जितनी चाहिए थी .ख़ुसरो हैदरा बाद चले गये उनकी भाषा उनके साथ गयी ..वहाँ
दक्खिनि हिन्दी कहलाती है .दिल्ली मे खड़ी बोली ने अपना आधिपत्य जमा लिया
.वही अब हिन्दी है हमारी हिन्दी दुनिया की सबसे अधिक विज्ञानिक .भाषा है
.इसकी लिपि देवनागरी भी पूर्णतः वैज्ञानिक है . हिन्दी दुनिया की एक मात्र
ऐसी भाषा है जिसमे जो बोला जाता है वही लिखा जाता है यही दुनिया की एक
मात्र भाषा है जिसमे स्वर ध्वनियों के प्रतीक चिन्ह हैं . यही वह भाषा है
जिसमे स्वर और ब्यनज़न के अतिरिक्त अर्ध स्वर और संयुक्त व्यनज़न हैं और
इसीलिए यह कम्प्युटर के लिए सर्वाधिक उपयुक्त भाषा मानी जाती है ... जब
कम्प्युटर से सामान्य बोल चाल की तरह voice recognition की तकनीक के द्वारा
संवाद प्रारम्भ होगा ... केवल हिंदी बारहखड़ी को आधार बनाकर उससे सभी काम
कराये जा सकेंगे ... हमारी ध्वनियों के उच्चारण की एक वैज्ञानिक ब्यावस्था
है .ध्वनियाँ एक निशित प्रकार से निश्चित जगह से निश्चित प्रयत्न से
उच्चरित होतीं हैं .यह करिश्मा जब समझ मे आजाएगा तब हिन्दी बोलते समय आप
स्वाभिमान से भर जाएँगे . हम कल से स्वर को समझेंगे फिर व्यनज़न .द्धवनियों
को पूरी तरह समझने के बाद हम शब्द रचना फिर वाक्य ..की तरफ जाएँगे . एक
बात और याद रहे की हमने पहले बोलना सीखा हमने शब्द प्रकृति से लिए फिर हमने
ब्याकरण सीखा फिर लिपि का विकास हुवा फिर हमने लिखना सीखा .बोलने से लिखने
तक कई हज़ार साल बीत गये . स्वर ध्वनियाँ अन्य भाषाओं की तरह हिन्दी मे भी
स्वर और ब्यनजन दो प्रकार की ध्वनियाँ हैं ध्वनियो के उच्चारण के लिए
मुखविवर अर्थात दोनो ओंठ से लेकर गले की ठुड्डी कंठ तक जिसे हम काकाली या
कौवा कहेंगे तक के विभिन्न अंगो से होता है .ओंठ दाँत जीभ छोटी जीभ स्वर्
नलिका मसूढा तालूउपर /नीचे दंटो और मसूढों की संधि आदि बिभिन्न स्थानो के
निशित प्रयत्न से हम ध्वनियों का उच्चारण करते हैं स्वर ..अर्थात वे
ध्वनियाँ जिनके उच्चारण के लिए किसी और अन्य ध्वनियों की सहायता न लेनी
पड़े .स्वर ध्वनि का उच्चारण केवल जिहवा से होता है .किसी और अवयव की
सहायता नही लेनी पड़ती /जीभ को टीन भागों मे बाँट कर देखिए ..अग्र जिहवा
..टिप /मध्य जिहवा ..बीच का हिस्सा /पीछे की जीभ जहाँ एक घंटी लटक रही है
.पश्च जिहवा /इन्ही के आधार पर स्वर ध्वनियों को तीन भागों मे बाँट दिया
गया है ...अग्र स्वर ...पस्च स्वर / मध्य स्वर हम स्वर ध्वनियों की चर्चा
कर रहे थे . आ आ इई उऊए ऐओ .से अँह:तक..१२ इ ईउ ए ओ अँ अ आ ऊ ऐऔ ह: आप की
जीभ > अग्र-जिहवा --------- मध्य जिहवा ------ पश्च जिहवा
(यहहिस्सामुखविवरमे पीछे है जहाँ एक घंटीहै /) अग्र स्वर मध्य स्वर पश्च
स्वर अग्र स्वर हुए ........जो आगे से निकले मध्य स्वर सिर्फ़ एक है ....अ.
पश्च स्वर हुए जो पीछे से निकले इ ईउ ए ओ अँ अग्र स्वर हुए मध्य स्वर
सिर्फ़ एक है ....अ..... पश्च स्वर आ ऊ ऐऔ ह: जीभ के प्रयत्न घुमाव और
स्थान के आधार पर इनके भी विभाजन हैं ..विवृत्त अर्धविवृत्त समवृत्त अर्ध
संवृत अब शेष फिर कल ..अवश्य पढ़िए .अपनी टिप्पाड़ी दीजिए .ध्वनियों का
उच्चारण करके आनंद लीजिए बताइए की कैसा लगा .... आज इतना ही समझिए .कोई
सवाल हो तो पूछिये ..अपनी टिप्पाड़ी ज़रूर लिखिए ...कल आगे अच्छी हिन्दी
सीखें बोलें ... .गतान्क से आगे पाठ ४...व्यंजन ध्वनियाँ . अभी तक आपने
स्वर धावनियो की परिभाषा , अ से अ: तक के उत्पादन स्थान.. /उच्चारण अवयव
.आदि की जानकारी प्राप्त की .अब बारी है व्यंजन ध्वनियों की . परिभाषा
=.हिन्दी वर्ण माला की वे ध्वनियाँ जिनका उच्चारण स्वर ध्वनियों की सहायता
के बिना संभव नही .है अर्थात हर व्यंजन ध्वनि स्वर ध्वनि की सहायता से ही
उच्चारित होती है |.जब आप क बोलते हैं तो उसमे अ निहित होता है .| वर्णमाला
मे व्यंजन ध्वनियाँ कई वर्गों मे विभक्त हैं| यह विभाजन उच्चारण अवयव के
आधार पर है ./आगे चल कर हम स्वर् के दाब बालाघात स्वारा घात के आधार पर भी
बिभाजन कर के समझेंगे .| हम आप को बता चुके हैं की दोनो ओठों से लेकर गले
के भीतर कंठ के काकाल्य तक के हिस्से से हम व्यंजन ध्वनियों का उच्चारण
करते है | दूनो ओंठ,दोनो तालू ,जिहवा की स्थित, घुमाव ,उपर नीचे के दाँत
/गले मे लटकाने वाली छोटी जीभ .नासिका .आदि के सहारे हम व्यंजन ध्वनियों का
उच्चारण करते हैं .हमारे पास कुछ अर्धस्वर भी हैं .कुछ संयुक्त व्यंजन भी
हैं |इनके अतिरिक्त ..ज्ञान ऋषि जैसे शब्दों के लिए अलग ध्वनि भी है |\
१=कंठ से निकालने वाली ध्वनियों को कंठ ध्वनि कहते हैं ...क ख ग घ ड. इसे क
वर्ग कहा जाता है / २=तालू और जीभ के घर्सन से निकलने वाली ध्वनि को
तालव्य ध्वनियाँ कहते है च छ ज झ याँ इसे च वर्ग भी कहा जाता है
/३=मूर्धन्य ध्वनियाँ जीभ के प्रयत और मूर्धा आकर के कारण उत्पन्न होती हैं
...ट ठ ड़ढ़ ण इन्हे ट वर्ग भी कहा जाता है /४=दंत्य ध्वनियाँ पूरी तरह
आगे के उपर नीचे के चार दाँतों से उच्चारित होती हैं .जिनके चारो दाँत नही
होंगे वे त थ द ध न का उच्चारण नही कर सकते /५= ओंठ ध्वनियाँ उपर नीचे के
दोनो ओंठकी सहायता से उच्चारित होती हैं जिनके ओंठ किसी कारण वास नही होते
वे प फ ब भ म ध्वनियों का उच्चारण नही कर सकते आप इनका उच्चारण करके अभ्यास
करे ..फिर आनंद ले .य र ल व श ष स .ह क्ष त्र पर चर्चा अगले पाठ मे करेंगे
... गतान्क से आगे का पाठ .. य र ल व श ष स ह क्ष त्र ज्ञ से पहले की
ध्वनियों के बारे मे चर्चा हो चुकी है ..इनमे से य और व अर्धस्वर कहलाते
हैं अतः जीभ की सहायता से उच्चारित होतेहैं मध्य जिहवा से श तालव्य ध्वनि
है अतः च वर्ग के साथ है .तालव्य ध्वनि ६ हो गयी वैसे ही इसका उच्चारण होगा
जैसे अन्य तालव्य ध्वनि का ष मूर्धन्य ध्वनि है मूर्धन्य ध्वनियों की
संख्या भी ६ हो गयी .इसका उच्चारण भी उसी तरह होगा जैसे अन्य मूर्धन्य
ध्वनियों का स दंत्य ध्वनि है दंत्य ध्वनि भी ६ हो गये .इसका उच्चारण उसी
तरह होगा जैसे अन्य दंत्य ध्वनियों का र वर्त्स्य ध्वनि है इसका उच्चारण
दाँत और मसुढ़ों से जीभ के कई बार स्पर्श से होता है ल लुंठित ध्वनि कहलाती
है जीभ उपर के मासूढ़े से चिपक कर यह ध्वनि निकलती है ह हृस्व ध्वनि है
सबसे कम प्रयत्न इसी के उच्चारण मे लगता है क्ष त्र ज्ञ संयुक्त व्यंजन है ऋ
स्वर है ये तीनो हमारी शब्दावली के कुछ विशिस्ट शब्दों के लिए हैं जैसे
ऋषि /ज्ञान /त्रिदेव अब हम सीखेंगे की हमारे शव्द भंडार मे शव्द कहाँ से
आते हैं ....
No comments:
Post a Comment