Wednesday 25 December 2013

एक पाती अम्मा को लिख दूं इस दुनिया का हाल

एक पाती अम्मा को लिख दूं इस दुनिया का हाल
वह भी  समझ जाय गी जीना कैसे हुवा मोहाल

यह दुनिया तो बहुत अलग है तेरी दुनिया से
.पर अम्मा तू दुखी न होना  मेरी दुनिया से

यह सच है पर ऐसे ही है इस दुनिया का हाल
दींन धरम कुछ बचा नहीं है हम सब हैं बेहाल


चारों तरफ छली कपटी हैं एक न दीखता सच्चा
स्नेह प्यार को तरस रहा है देश का हर एक बच्चा

बचपन खिसक गया हाथों से सीधे बूढ़े हो गए
रीता रीता मन बौराया क्या से क्या हम हो गए

रोज रोज मर मर कर जीना कष्ट बहुत पहुंचाए
तुमने देखी सारी सुनियाँ तुमको क्या समझाएं

तेरी बहू अकेली है मा बच्चे सब हैं बाहर
हम दोनों का स्नेह वही है .पर सूना है आँगन

कभी फोन से कभी मेल से हाल चाल लेते हैं
हम भी ऐसे ही हंस रोकर किसी तरह जीते है

 सांसों का मजदूर बन गया कथित विवेकी जीवन
यह उधार की पस्त जिन्दगी और जिया नहीं जाये

नव विकास की नई ताल पर घर में घुसा दिखावा
कुछ भी सहज नहीं रह पाया सब कुछ हुवा छलावा

धन दौलत सत्ता और कुर्सी की है खींचा तानी
जिसकी लाठी वही हांकता सब भैंसें मन मानी

अंधी महा दौड़ में भूली लोक धुनों की थिरकन
लोकरंग सब बिखर गए हैं तेज हुई है धड़कन

 हाल चाल तो ठीक ही समझो जादा क्या बतियाये.
जीवन इतना जटिल है उलझा सुलझे न सुलझाये

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