Thursday 28 January 2016

अंग्रेजों के यार आज सबसे बड़े देशभक्त बन गए


अंग्रेजों के यार आज सबसे बड़े देशभक्त बन गए



जब नेताजी और पं. नेहरू गोरों की सरकार के खिलाफ गोलबंदी कर रहे थे,तब आप कहाँ थे मिस्टर स्वयंसेवक ?

आजादी की लड़ाई में नाखून तक नहीं कटाने वाले आज सबसे बड़े देशभक्त बन गए हैं।

आजादी की लड़ाई में नाखून तक नहीं कटाने वाले आज सबसे बड़े देशभक्त बन गए हैं। इस मुल्क के लिए इससे बड़ी विडंबना और क्या हो सकती है?
 बात खुद के तमगे तक होती तो कोई बात नहीं थी लेकिन इन लोगों ने अब बाकायदा देशभक्ति की सर्टिफिकेट भी बांटनी शुरू कर दी है। इसके लिए देशभक्ति का खजाना ना सही लेकिन चंद खोटे सिक्के तो अपनी जेब में होने ही चाहिए। इसी लक्ष्य से इन्होंने नेता जी सुभाष चंद्र बोस और जवाहर लाल नेहरू को चुना है। और फिर दोनों के बीच फर्जी तरीके से दरार पैदा करने की कोशिश की जा रही है। यह कुछ और नहीं बल्कि राष्ट्रभक्ति में अपनी साझेदारी दिखाने की उसी कोशिश का हिस्सा है।
बोस और नेहरू के बीच के इन मूसरचंदों से यह जरूर पूछा जाना चाहिए कि जब नेताजी देश से बाहर रहकर अंग्रेजी हुकूमत की चूलें हिला रहे थे। और नेहरू कांग्रेस की अगुवाई में न एक भाई, न एक पाई के नारे के साथ गोरों की सरकार के खिलाफ गोलबंदी कर रहे थे। तब ये और इनके हमराह कहां थे और वो क्या कर रहे थे?

श्यामा प्रसाद मुखर्जी उस समय मुस्लिम लीग के साथ मिलकर अंग्रेजों की छत्रछाया में बंगाल में सरकार चला रहे थे।

इनके झूठ, भ्रम और अफवाह की आंधी में बहने से पहले दो मिनट ठहरकर सोचने की जरूरत है। इनके सबसे बड़े नेता और नेहरू के नेतृत्व वाली अंतरिम कैबिनेट के सदस्य श्यामा प्रसाद मुखर्जी, जिनकी भगीरथी चोटी से बीजेपी निकली है। उस समय मुस्लिम लीग के साथ मिलकर अंग्रेजों की छत्रछाया में बंगाल में सरकार चला रहे थे। मुस्लिम लीग के नेता फ़जलुल हक़ सूबे के मुख्यमंत्री थे और मुखर्जी साहब उप मुख्यमंत्री।
इसी तरह से सिंध और उत्तर पश्चिम फ्रंटियर प्रांत (एनडब्ल्यूएफपी) में भी इसी गठबंधन की सरकारें थीं। सिंध में तो पहले अल्लाह बख्श की सरकार थी। इत्तेहाद पार्टी के नेतृत्व में गठित इस सेकुलर सरकार में हिंदू, मुस्लिम और सिख सभी शामिल थे। लेकिन अंग्रेजों की मदद से मुस्लिम लीग के गुंडों ने 1943 में अल्लाह बख्श की हत्या कर दी। फिर उसके बाद सिंध में मुस्लिम लीग और हिंदू महासभा के गठबंधन की संयुक्त सरकार बनी। उस समय दक्षिणपंथी खेमे के सबसे बड़े वीर वीर सावरकर ने इसे व्यावहारिक राजनीति की जरूरत करार दिया था। सावरकर उस समय हिंदू महासभा के अध्यक्ष थे।

अंग्रेजी सेना में सैनिकों की भर्ती के लिए हिंदू महासभा ने बाकायदा कैंप लगवाए थे

अंग्रेजों से इनकी यारी यहीं तक महदूद नहीं थी। अंग्रेजी सेना में सैनिकों की भर्ती के लिए हिंदू महासभा और उसके मुखिया ने बाकायदा जगह-जगह भर्ती कैंप लगवाए थे। फिर इन्हीं जवानों को उत्तर-पूर्व के मोर्चे पर सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व वाले आईएनए के सैनिकों का सीना छलनी करने के लिए भेजा जाता था। सावरकर ने तब कहा था कि
जापान के द्वितीय युद्ध में शामिल होने से हम सीधे ब्रिटेन के शत्रुओं की जद में आ गए हैं। नतीजतन हम पसंद करें या ना करें युद्ध की विभीषिकाओं की चपेट में आने से हमें अपनी मातृभूमि को बचाना होगा। और यह भारत की रक्षा की दिशा में भारत सरकार (तब ब्रिटिश सरकार) के प्रयासों को तेज करने के जरिये ही संभव है। इसलिए हिंदू महासभा को खासकर बंगाल और असम के हिंदुओं को सैन्य बलों में शामिल होने के लिए प्रेरित करने की जरूरत है। [ वी डी सावरकर, समग्र सावरकर वांगमय: हिंदू राष्ट्र दर्शन, खंड 6, महाराष्ट्र प्रांतिक हिंदू महासभा, पुणे, 1963, पेज-460 ]
 इन तथ्यों के बाद कम से कम बीजेपी-आरएसएस या फिर किसी भी दक्षिणपंथी संगठन को इस मसले पर बोलने का कोई नैतिक अधिकार नहीं रह जाता है। इस मामले में किसी तथ्य पर आधारित आलोचना की गुंजाइश न होने पर अब इन्हें झूठ और अफवाहों का सहारा लेना पड़ रहा है। दरअसल नेताजी से जुड़ी 100 फाइलों के सार्वजनिक होने के बाद भी उन्हें नेहरू के खिलाफ कुछ नहीं मिला। फाइलों के पहाड़ से कुछ नहीं मिला तो अब फर्जी चिट्ठी तैयार की गई है। इसी के सहारे काम चलाया जा रहा है। लेकिन इसका भी पर्दाफाश हो गया है। इसलिए नेताजी और नेहरू के बारे में बात करने से पहले संघ और बीजेपी को एक बार अपने गिरेबान में जरूर झांक लेना चाहिए। क्योंकि एक अंगुली अगर कोई उठाता है तो चार खुद पर भी उठ रही होती हैं।
महेंद्र मिश्र, लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।
महेंद्र मिश्र, लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। 

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