Friday 16 June 2017

मैं वहां कभी नहीं गया ..


तालाब और मरघट को
अलग करने वाले मेड पर एक आम का पेड़ है ,
कितना पुराना है किसी को नहीं पता
चांदनी रात में मेरे घर की छत से दिखता है.
मरघट का विस्तार और आम का पेड़/
मेरे लिए आम के पेड़ का इस जगह होने का कोई अर्थ ,या प्रयोजन नहीं
पर आम के पेड़ का इस जगह होने का अर्थ भी है ,प्रयोजन भी है
पेड़ है तो छाया है .कोटर है मधु मक्खियों का छत्ता है चिड़ियाँ है घोसला है
गलियों में लुका छिपी खेलते बच्चों की तर्ज पर आगे पीछे सरपट भागती हैं
गिलहरियाँ इस की मोती डालों के बीच /
इस पेड़ के वंहा होने की कोई योजना नहीं थी फिर भी वह वहां हैऔर
उसके होने से बहुत कुछ है /ऋतुएं आती हैं जातीं हैं
पतझड़ होता है .बसंत आता है कोयल कूकती है छाया होती है
बच्चे अमियाँ तोड़ते ह
पत्थर मार मार कर ,
मै वंहा कभी नहीं गया पर हर क्षण होता हूँ
,हर जलती चिता में हर दफ़न होती लाश में ......

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