Saturday 15 July 2017

धर्म ...क्या है !!

*धर्म (Dharma)*
किसी भी वस्तु के स्वाभाविक गुणों को उसका धर्म कहते है जैसे अग्नि का धर्म उसकी गर्मी और तेज है। गर्मी और तेज के बिना अग्नि की कोई सत्ता नहीं।अत: *मनुष्य का स्वाभाविक गुण मानवता है। यही उसका धर्म है।*
*कुरान* कहती है – *मुस्लिम बनो।*
*बाइबिल* कहती है – *ईसाई बनो।*
किन्तु *वेद* कहता है – *मनुर्भव अर्थात मनुष्य बन जावो (ऋग्वेद 10-53-6)।*
अत: *वेद (Ved) मानवधर्म का नियम शास्त्र है।* जब भी कोई समाज, सभा या यंत्र आदि बनाया जाता है तो उसके सही संचालन के लिए नियम पूर्व ही निर्धारित कर दिये जाते है परमात्मा (god) ने सृष्टि के आरंभ में ही मानव कल्याण के लिए वेदों के माध्यम से इस अद्भुत रचना सृष्टि के सही संचालन व सदुपयोग के लिए दिव्य ज्ञान प्रदान किया। *अत: यह कहना गलत है कि वेद केवल आर्यों (हिंदुओं) के लिए है, उन पर जितना हक हिंदुओं का है उतना ही मुस्लिमों का भी है।*
मानवता का संदेश देने वाले वैदिक धर्म (vedic religion) के अलावा दूसरे अन्य मत किसी व्यक्ति विशेष द्वारा चलाये गए। मत चलाते समय उन्होने अपने को ईश्वर का दूत व ईश्वर पुत्र बताया, ताकि लोग उनका अनुसरण करें। जैसे – *इस्लाम धर्म पैगंबर मुहम्मद (Prophet Muhammad) द्वारा, ईसाई धर्म ईसा-मसीह (Jesus-Christ) द्वारा और बौद्ध धर्म महात्मा बुद्ध (Buddha) द्वारा आदि।* क्योंकि सभी अनुयायियों को धर्म के चलाने वाले पर विश्वास लाना आवश्यक है। अत: ये धर्म नहीं, मत है। ये सब मत वैज्ञानिक (scientific) भी नहीं है, जबकि धर्म और विज्ञान का आपस में अभिन्न संबंध है। जहाँ धर्म है वहाँ विज्ञान है। *देखो, बाइबिल में सूर्य को पृथ्वी के चारों ओर परिक्रमा करना बताया है जबकि वेद कहता है कि पृथ्वी सूर्य के चारों ओर जल सहित घूमती है।* इतना ही नहीं विज्ञान का कोई भी क्षेत्र हो, वेदों से नहीं छूटा। अत: जो मत विज्ञान की कसौटी पर खरे नहीं उतरते, वे धर्म भी नहीं है। गीता में श्रीकृष्ण जी कहते है कि *‘यतो धर्मस्ततो जय:’* अर्थात जहाँ धर्म है वहाँ विजय है आगे आता है कि *‘वेदोsखिलो धर्ममुलं’* अर्थात वेद धर्म का मूल है।
वेदों के आधार पर महर्षि मनु (manu) ने धर्म के 10 लक्षण बताए है :-
*धृति क्षमा दमोsस्तेयं शौचमिन्द्रिय निग्रह:*
*धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्म लक्षणमं ॥*
*(1) धृति कठिनाइयों से न घबराना।
*(2) क्षमा शक्ति होते हुए भी दूसरों को माफ करना।
*(3) दम मन को वश में करना (समाधि के बिना यह संभव नहीं) ।
*(4) अस्तेय चोरी न करना। मन, वचन और कर्म से किसी भी परपदार्थ या धन का लालच न करना ।
*(5) शौच शरीर, मन एवं बुद्धि को पवित्र रखना।
*(6) इंद्रिय-निग्रह इंद्रियों अर्थात आँख, वाणी, कान, नाक और त्वचा को अपने वश में रखना और वासनाओं से बचना।
*(7) धी बुद्धिमान बनना अर्थात प्रत्येक कर्म को सोच-विचारकर करना और अच्छी बुद्धि धारण करना।
*(8) विद्या सत्य वेद ज्ञान ग्रहण करना।
*(9) सत्य सच बोलना, सत्य का आचरण करना।
*(10) अक्रोध क्रोध न करना। क्रोध को वश में करना।
*इन दश नियमों का पालन करना धर्म है।* यही धर्म के दस लक्षण है। यदि *ये गुण या लक्षण किसी भी व्यक्ति में है तो वह धार्मिक है।* मनुष्य बिना सिखाये अपने आप कुछ नहीं सीखता है। जबकि ईश्वर ने अन्य जीवों को कुछ स्वाभाविक ज्ञान दिया है जिससे उनका जीवन चल जावे। जैसे :- मनुष्य को बिना सिखाये न चलना आवे, न बोलना, न तैरना और न खाना आदि। जबकि हिरण का बच्चा पैदा होते ही दौड़ने लगता है, तैरने लगता है। यही बात अन्य गाय,भैंस,शेर,मछ्ली,सर्प,कीट-पतंग आदि के साथ है। अत: *ईश्वर ने मनुष्य के सीखने के लिए भी तो कोई ज्ञान दिया होगा जिसे धर्म कहते है।* जैसे भारत के संविधान को पढ़कर हम भारत के धर्म, कानून, व्यवस्था, अधिकार आदि को जानते है वैसे ही *ईश्वरीय संविधान वेद को पढ़कर ही हम मानवता व इस ईश्वर की रचना सृष्टि को जानकर सही उन्नति को प्राप्त कर सकते है।* आर्यसमाज निरंतर इसी वेद प्रचार के विश्व शांति व उन्नति के कार्य में यथासामर्थ्य लगा हुआ है। *यदि विश्व के किसी भी कोने के मनुष्य को वेदों को समझने के लिए आर्यसमाज का सहयोग लेना ही होगा अन्यथा गलत व्याख्या रूप में आपको मेक्समूलर आदि के किए ग्वारु भाष्य वाले वेद ही मिलेंगे । पूर्ण वैज्ञानिक वैदिक ज्ञान के लिए प्रयत्नशील सभी मनुष्य कृपया आर्यसमाज में जावे ओर अपनी, अपने राष्ट्र की व सारे विश्व की उन्नति के लिए वैदिक धर्म को यथास्वरूप अपनावे।

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