Friday 18 August 2017

घूमी पुरुवा सोंधी सोंधी


.
घूमी पुरुवा सोंधी सोंधी ,महक उठे सीवान
चढ़े आकाश तैरते बादल,ब्याकुल हुआ किसान
दंवागारा आस चढी /

चढ़ा अषाढ़ गगन घन गरजा ,पपीहा पीव पुकारे
आम्मा झोर चली पूर्वी ,बरखा सगुन उतारे
पहली बूँद परी /


रातों रात ऋतुमती धरती ,नथुनों सोंधी गंध
अंगूर अंगूर खेत चीरते पढ़ें करम के छंद
भाग की रेख खींची /


डीभी डीभी इच्छा उठती ,अन्खुवा स्वप्न जगाये
धनी रंग चुनरिया पहने ,धरती सावन गाये
स्वाती बूँद झरी /


झडी झर रहीं बीर बहूटी वर्षा चढी जवानी
नदी नल तलब सरोवर केवल पानी पानी
भादों झडी लगी /


काली रात अन्धेरा डरपे ,हाँथ न सूझत हाँथ
बदरा गरजे गोरी लरजे ,टपकत पानी पात
प्रिय सों प्रीति बढी /

No comments:

Post a Comment