Sunday 18 March 2012
पिता की याद आई
आज पता नहीं क्यों पिता की याद आई
सुबह सुबह टपक पड़े आंसू .
हम बहुत अकेले पड़ गए हैं तात.
और जिन्दगी हो गई है झंझावात.
स्नेह प्रेम अपनापन भोगे बीत गए हैं वर्षों
तापेदिक्क सी कठिन जिन्दगी बीते नहीं बिताये .
हर दिन बढ़ती बीरानी में आप बहुत याद आये .
प्रीति सी मीठी उपस्थिति .रीति सी प्यारी छुअन का
स्नेह की अतुलित फुहारे सीख की मीठी झड़प का
शिक्षकी गरिमा सहित निर्माण की उत्कट सदिक्षा
पितृवत सम्बेदाना और संस्कारित प्रबल दीक्षा .
अभावों में दृढ अविचलित और सुख को सहज लेना
काल के निर्मम थपेड़ों को सरल उन्मुक्त जीना
आप से सीखा है हमने हर विसंगति जीत लेना
आप की उस साधना का मोल हम कुछ दे न पाए
जब कभी आयी मुसीबत ,आप हर क्षण याद आये
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