Sunday 21 April 2013

क्या ? ऐसा नहीं हो सकता /

क्या ? ऐसा नहीं हो सकता / कि जब भी मिलें हम एस तरह मिलें ,जैसे मिलती हैं , अलग अलग दिशाओं में ब्याही दो सखियाँ वर्षों बाद किसी मेले में / जीवन में बहुत बवाल है वरना ,कौन भूलता है बेफिक्र दिनों को ,आप भी नहीं भूले होंगे पर याद नहीं करते होंगे हरदम , आखिर कौन है इतना फुर्सतिहा / बहुत मार काट है इन दिनों , जिसे देखो वही दूसरे को धकियाते जा रहा है / ऐसे में महज इतना हो जाय तो भी अच्छा है कि जब आप थक हार कर पोंछ रहे हों अपना पसीना तो याद आ जाय पसीना पोंछते पिता का थका चेहरा और यह की दुनिया सिर्फ हमारी बपौती नहीं है यहाँ सभी को हक है जीने का अपनी आजादी के साथ /

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