Thursday 18 April 2013

.जब जब बाजे खझडिया त हिरनी विसुरै हो .

कल राम नवमी है .

.शाक्त देवी को बलि देंगे वैष्णव राम की जय करेंगे .

.हम जो अयोध्या वासी हैं .क्या करें ..सोहर गायेंगे .आप को सुनना है ......सुनिए .

.पर ध्यान रहे रोना नहीं है .
..जब जब बाजे खझडिया त हिरनी विसुरै हो .
राम का मुंडन है .सरयू के किनारे एक हिरन का जोड़ा घास चर रहा है ..हिरनी की नजर चहलकदमी पर पडी तो उसने ..हिरन से कहा ,प्रिय लगता है आज महाराज दशरथ के यहाँ कोई उत्सव है .चलो छिप जाओ ..नहीं तो तुम्हारा शिकार हो जाएगा .

.अभी बात पूरी हुई ही नहीं थी की हिरन को वान लग गया .वह मर गया .शिकारी उसे कंधे पर लेकर दशरथ के दरबार में गया, माता कौशल्या के हवाले किया .हिरनी उसके पीछे पीछे गयी ..कौशल्या ने हिरनी से आने का कारन पूछा तो उसने कहा ..माता तुम ऐसा करो हिरन का मांस निकाल लो राम के लिए व्यंजन बनाओ .. और खाल हमें दे दो .हमें खुसी होगी ..हम चले जायेंगे |
कौशल्या बोली ..तुम खाल का क्या करोगी ....हिरनी
हिरनी बोली....जंगल के किसी सूखे ठूठ पर लटका कर इसके इर्द गिर्द घास चरुन्गी .मुझे संतोष होगा की मेरा पति मेरे पास है .
कौसल्या पहले तो राजी हो गयीं .पर तुरंत मना कर दिया ..बोलीं ....
.जाहु हिरनी घर अपने खलारिया न देबय हो ..हिरनी खलरी क खझडी मढइबय बजईहैं राजा रघुबर .

..क्या करती हिरनी रोती विलखती चली गयी ....फिर क्या था हिरन के .खाल की खंझडी बनी|

राम लखन भारत सत्रुघन बजाते बजाते खेलते थे .खझडी. की आवाज हिरनी को जंगल में सुनाई पड़ती ..तो उसे अपने पति की याद आती, वह पति के स्मृति में विभोर हो जाती |
लोक गीत कार लिखता है ...जब जब बाजे खझडिया त हिरनी वीसूरय हो ......
यह मार्मिक सोहर हम माँ से सुनते थे ..सुबह जब माँ जातामें गेंहू पीसती थी तो यही सोहर गाती थी .हम खटिया से उठ कर आते और माँ की जांघ में सर रख कर सो जाते जाते के घुरुर घुरू की ध्वनी और सोहर का राग ..अलौकिक संगीत का समा .वहअब कहाँ ......कैसी लगी कथा .

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