Sunday 3 February 2013

जिन्दगी भर .पीड़ा और रोमांच देती रहीं बचपन की बेवकूफियां

जिन्दगी भर .पीड़ा और रोमांच देती रहीं बचपन की बेवकूफियां


बचपन के दिन भी क्या दिन थे, जब हम शहंशाह होते थे,बेताज बादशाह ,खुराफात के पिटारे ,जो सूझा कर दिया ,लेकिन क्या बात थी तब के समाज गाँव घर में ,बचपने को बचपना मानकर ही ब्यवहार होता था ,अब तो थाना पुलिस  मार पीट दुश्मनी  सब हो जाय .वाकया उन दिनों का है जब हम चौथी  कक्षा में पढ़ते थे ,मेरे एक चहेरे भाई की भाभी थीं ,अरे यार भाभी मेरी थीं उनकी तो पत्नी थीं बेहद सुन्दर चंचल मुझे बहुत अच्छी  लगती थीं.खूब  काम कराती थीं अपना ,लेकिन बदले में कुछ न कुछ देतीं थीं ,उनकी एक आदत गड़बड़ थी ,जब भी मिलतीं थीं मेरे गोल गालों को जोर से चिमट देतीं थीं और चूम लेतीं थीं ,चूमना तो ठीक था पर चिमटतीं  तो इतने जोर से थीं की रोना आजाता था ,आँखें आंसू से डबडबा जातीं  थीं, उनकी सास मतलब की मेरी चाची इस प्रसंग में मेरा साथ देतीं थीं ,होली आयी ,होली के दिन लगभग १२ बज रहे थे ,चाची ने मुझे बुलाया और पुचकारते हुए बोलीं ..हमर बचवा हो ताड़ी वाली (भाभी के मायके के नाम ताड़ी था ) तोहर गलवा नोच नोच के लाल कई दिहीं ,फिर उन्होंने अपनी ही बहू के खिलाफ मुझे भड़काया मै भी चढ़ गया चने के झाड़ पर चाची ने जो जैसा कहा था किया .सुबह की धुलंड होली (धुल कीचड़ की होली )ख़तम हो गयी थी ,दोपहर को नहा धोकर भाभी अपना बाल खोल  कर सुखा  रही थीं और साथ ही पूड़ी बेल रही थीं , चाची के निर्देश के अनुसार मैं नाद से सड़ा हुआ भूसा (बैलों को खिलाने वाला नाद..भूसा खली दाना  ) बाल्टी में लेकर लुकते छिपते गया और भाभी के खुलेसर और बालों  पर होली है की उदघोशना के साथ उलट दिया ,सारी गंदगी फ़ैल गयी बाल में खली दाने में सडा हुआ  भूसा भर गया ,सब गन्दा पानी कपडे ,शरीर के साथ पूड़ी और गुल गुले  के आंटे में भर गया ,पूरा घर गंधाने  लगा ,चाची बड़ी  खुस ,की आज तो बहू से बदला निकाल लिया बच्चे ने. उनका खुद का घर खुद की बहू खुद के त्यौहार के पकवान और  आंटे के बर्बाद होने की चिंता नहीं ,उन्हें मजा आ रहा था.खूब हंस रहीथीं , .भाभी खिसीआई  सी ,रुआंसी    हो गयी ,उसे इस बात का दुःख नहीं था की मैंने गन्दा कर दिया, दुःख इस बात का था की चाची के प्लान ने उसे पराजित कर दिया नहीं तो सुबह से किसी ने उसे कीचड़ नहीं लगाया था,गुस्से में भाभी ने मेरे घर जाकर मेरी माँ से शिकायत  कर दी ,माँ ने पहले तो मेरा होलीकाष्टक छुड़ाया ,खूब पीटा.फिर सजा का फरमान सुनाया .जाओ कूंएं से पानी लाकर दो बहू नहाये गी ,अब क्या था .भाभी बैठ गयी नहाने ,मानिनी नायिका की तरह ,मैं पानी लेकर आता था  भाभी उलट देती थी ,नहाती नहीं थी ,मेरे पूछने पर धमकाए, की लाते हो पानी की जाकर अम्मा को बताऊँ ,मै चुप होकर आदेश  का पालन करता रहा ,दो घंटे तक कमसे कम ५० बाल्टी पानी भरवाने के बाद भाभी मुझे पकड़ कर मेरा गाल चिमाटते हुए बोली कहो लाला कैसा लगा ,फिर खेलोगे भूसे की होली ,मेरे गालों को चूमा, बोलीं जा अब हम नहालेंगे ,बाल धोने में बहुत देर लागी भूसा बालों से चिपक गया था ,निकलता ही नहीं था ,आज भाभी ७८ साल की हैं ,पर याद करके खूब हंसती हैं अपने पोपले गालों को फुलाकर , भाभी मेरी सुन्दर थी ,आज भी है ,

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