Wednesday 24 April 2013

फागुन जोग लिखी ..


चुगुली करती हवा निगोड़ी
मधुऋतु  अलख जगाये
मैना करती सीना जोरी
रुनझुन पायल गए
फागुन जोग लिखी ..
धीरे धीरे बही फगुनहट
चंपा महकी रात
लादे पलास लाल दिसि चारो
आँखें करतीं बात
चैत में धूम मची ..
बौरे आम टिकोरा झूलें
भौंरा बांस लुभाए
खेत पके खलिहान जगे सब
कोयल पंचम गए
बिंहसती धुप खिली ..
नीरस हुई निगोड़ी पछुवा
नीकी लगे छाँव
सूखन लगे ताल तलैया
बगिया सिमटा गाँव
धूप  की तेज बढ़ी ..
सूरज ने फैलाई बांहें
लूह चले चहुँ ओर
दहकन लागी दासों दिसायें
छाँव खोजती ठौर
अभी से  तपन बढ़ी ..
पके आम चुचुआने महुवा
बगिया सिमटा गाँव
ताल सरोवर दरकन लागे
धधक उठी हर ठाँव
भोर कुछ खिली खिली..
भांय भांय  करती दुपहरिया
चिड़िया दुबकी पात
नाच रही चिल चिल गन गनियां
सुलगे आधी रात
जवानी ग्रीष्म चढी ..
फागुन जोग लिखी .....

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