Wednesday 22 June 2016

भोर हो गयी


भोर हो गई
अस्ताचल में सूरज छिपा ही था कि
कि शुक्र तारे कि बिंदी लगाये
उतर गई संध्या मेरे अगन में
पसर गई पूरे घर में चुपके से
विभ्रम कि लोरी ,स्नेह कि थपकी ,ममता सा दुलार
बिन किसी भेद भाव बाँट दिया सबको
सो गया घर बार ,वह होगई प्रौढ़
उस ने बदल लिए नाम
वह अब रजनी हो गई थी /
भोर कि आहट से अभी कुनमुनाई ही थी रजनी
सखी उषा ने खट खटा दिया द्वार
निकल पड़ी रजनी पनघट कि ओर
सखी उषा से मिलने धवल वस्त्रों में सकुचाई,अलसाई छुई मुई
सूरज ने उलट दिए अनुराग उसके आँचल में
अरुणिम किरणों के सिन्दूर से भर दी उसकी मांग
कम्पित थे अरुण गात/भोर हो गई ,
दोनों हाथो ढँक लिया मुह छिप गई रजनी .....

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