Thursday, 17 January 2013

एक नन्हा बच्चा


एक नन्हा बच्चा  
दिखता था मुझे रोज  
अपनी मां अंधी के साथ  
उस परिचित चौराहे के पास ...| 
कहता था 
रोटी दो  
दाना दो ,खाना दो ..| 
उसकी अबोध आँखो मे  
नही झाँकते थे सपने . 
दिखता था भूख का दर्द 
मिली हुई झिड़कियाँ  
गंदी गालियाँ  
घृणा तिरस्कार  
आदमी होने का पुरस्कार | 
एक दिन सुना गया  
देश ख़तरे मे है  
निकल पड़े सड़कों पर  
हाथों मे लेकर के डंडे  
केजरी रामदेव संघ और अन्ना के समर्थक  
देश भक्त और राजनीति के पंडे  
फिर क्या था पुलिस ने भी अपने निकल लिए डंडे | 
शुरू हुवा आगज़नी और पथराव  
मेरा छोटा सा शहर  
कई दिन कई रात भोगता ही रहा तनाव | 
आठवें दिन जब हुड दंग कम हुवा  
लोग निकले सड़कों पर  
चौराहों पर  
पार्टी कार्यालयों मे लिखा जा रहा था  
उपलब्धि का इतिहास  
इसी वर्ष निर्वाचन हो जाता काश | 
पर नही दिखा मुझे वह नन्हा बच्चा  
अपनी मा आँधी के साथ  
उस परिचित चौराहे के पास| 
किसी ने बताया की होटल के पिछवाड़े  
एक बुढ़िया की लाश जूठन की कर रही है तलाश | 
तभी -तमाश बीनो की भीड़ को चीर कर  
एक अध नंगे बच्चे ने  
लाश की छाती पर पैर रख कर  
लिया एक हलफ़नामा | 
और वे हाथ जो माँगते थे भात  
उठ गये व्यवस्था के विरोध मे एक साथ .||| 
 

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