Friday, 4 January 2013

रोज सुबहो शाम


रोज सुबहो शाम
घर आँगन बुहारते बुहारते
न जाने कब
वह घर आँगन मे तब्दील हो गयी ..||
नित्य नियम से
आंटा गूँथते लोई बनाते बनाते
वह धीरे से अचानक रोटी मे तब्दील हो गयी ||
वह बहू बनकर आई थी
डॉली मे चढ़ कर सपने सज़ा कर
.माँ बन गयी ,सपने घर आँगन मे बदल गयी ||
,माँ रोटी का पर्याय हो गयी ,माँ
भूख का निदान हो गयी माँ
,माँ सब के ज़रूरत का समान हो गयी ||
अब वही उसकी दुनिया है वह खुस है
उसे शिकायत करना नही आता
फिरंगी की तरह नाचते रहती है ..दिन रात
सबसे पहले उठती है सबको सुला कर सोती है .||

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