Wednesday 9 May 2012

अब्दुल रहीम खान खाना - क्रमशः ..2..गतांक से आगे


अब्दुल रहीम खान खाना - क्रमशः ..2..गतांक से आगे रहीम को पढ़ते समय मुझे लगा की उनका पूरा जीवन -राजसी विलास का रहा हो ,.दर दर,मरे, मरे फिरने का रहा हो, युद्ध और फतह का रहा हो ,राजा, के क्रोध काल का हो ,कुचाली दोस्तों के विश्वास घातके समय का रहा हो, एक अवाँ था जो भीतर ही दहक रहा था /रहीम के बारे में एक कहानी मिलती है की तान सेन ने अकबर के दरबार में एक पद गाया, जो इस प्रकार था . जसुदा बार बार यों भाखै है कोऊ ब्रज में हितू हमारो चालत गोपालहिं राखै ... और अकबर ने अपने सभा सदों से इसका अर्थ कहने को कहा , तनसेन ने कहा --यशोदा बार बार अर्थात पुनः पुनः यह पुकार लगाती है की है कोई ऐसा हितू जो ब्रज में गोपाल को रोक ले .शेख फैजी ने अर्थ कहा ....बार बार का मतलब ..रो रो कर रट लगाती है .बीरबल ने कहा बार बार का अर्थ है द्वार द्वार जाकर यशोदा पुकार लगाती है .खाने आजम कोका ने कहा बार का अर्थ दिन है और यशोदा प्रतिदिन यही रटती रहती है .अब रहीम की बरी थी .उन्होंने अर्थ कहा ...तानसेन गायक हैं इनको एक ही पद को अलापना रहता है इस लिए उन्हों ने बार बार का अर्थ पुनुरुक्ति किया शेख फैजी फ़ारसी का शायर हैं इन्हें रोने के सिवा कोई काम नहीं .राजा बीर बल द्वार द्वार घूमने वाले ब्राम्हण हैं इसलिए इनका बार बार का अर्थ द्वार द्वार ही उचित है खाने आजम कोका नजूमी (ज्योतिषी) हैं उन्हें तिथि बार से ही वास्ता पड़ता है इसलिए बार बार का अर्थ उन्होंने दिन दिन किया ,.पर हुजूर वास्तविक अर्थ यह है की यशोदा का बाल बालअर्थात रोम रोम पुकारता है की कोई तो मिले जो मेरे गोपाल को ब्रज में रोक ले .इस ब्य्ख्या से रहीम की विद्ग्घ्ता और साहित्य की समझ का पता चलता है इस से रहीम के उस गहरे हिन्दुस्तानी रंग का पता चलता है जो रोमांच को सात्विक भाव मानता हैऔर रोम रोम में ब्रम्हांड देखता . जो शरीर के रोम जैसे अंग को भी प्राणों का सन्देश वाहक मानता है जो वनस्पति मात्र को विरत अस्तित्व का रोमांच मानता है रहीम का जीवन एक पूरा दुखांत नाटक है .जिसमे बहुत से उतर चढाव हैं .महात्मा तुलसी से उनकी प्रगाढ़ मित्रता थी .बाप बैरम खान अकबर की ही तरह तुर्किस्तान के एक बहुत बड़े कबीले के सरदार थे वे सोलह वर्ष की आयु से ही हुमायू के साथ रहे .उन्ही की कूबत थी की हुमयूनको फिर से दिल्ली की राजगद्दी पर बिठाया ,हुमायूँ के मरने पर वे ही अकबर के अभिभावक बनगए.जिस साल हुमायूँ मरे उसी साल लाहौर में रहीम का जन्म हुआ .रहीम की माँ अकबर की मौसी थीं .अकबर से दूसरा रिश्ता भी था ,बैरम खान की दूसरी शादी बाबर की नतिनी सलीमा बेगम सुल्ताना से हुई थी .बैरम खान के मरने के बाद अकबर के साथ सलीमा का पुनर्विवाह हुआ ,पर भाग्य का खिल,चुगुल खोरों ने बैरम खान और अकबर के बीच भेद की कही खोद दी बैत्रम खान ने विद्रोह किया परास्त हुए ,उन्हें हज करने जाने की सजा मिली.वे गुजरात पहुंचे थे की उनका डेरा लुट गया बैरम खान का क़त्ल हो गया बफदारों ने ओपरिवर बचाया ,चार वर्ष के रहीम बारह वर्ष की सलीमा सुल्ताना बेगम .अहमद बाद पहुंचे .जब रहीम पांच वर्ष के थे तभी अकबर ने उन्हें अपने संरक्षण में ले लिया .शिक्षा दीक्षा कराई.बड़े सरदार मिर्जा अजीज कोकलताश की बहन माह बनू बेगम से निकाह करवाया .उन्नीस वर्ष की आयु में गुजरात का युद्ध जीत कर वहा के सूबेदार बने ....

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