Saturday 19 May 2012

पानी बीच बताशा भैया तन का यही तमाशा है

पानी बीच बताशा भैया तन का यही तमाशा है क्या ले आया क्या ले जायगा क्या बैठा पछताता है मुट्ठी बांधे आया बन्दे हाथ पसारे जाता है किसकी नारी कौन पुरुष है कहाँ से लगता नाता है बड़े बिहाल खबर न तन की बिरही लहर बुझाता है एक दिन जीना, दस दिन जीना ,जीना बरस पचासा है अंत काल बीसा सो जीना फिर मरने की आशा है ज्यों ज्यों पांव धरो धरती मेंत्यों त्यों यम नियराता है कहै कबीर सुनो भाई संतो गाफिल गोता खाता है

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