Saturday 5 May 2012

काल - कलौती

उषा पीसती नेह जतन से जांत चले भिनसारे भोर लीपती रच रच आँगन पूरे चौक दुआरे .. मूसल छांटे बिपति दुपहरी ओखली धरी ओसारे साँझ झोंकती थकी जवानी चूल्हे में सिर डारे ... आधी रात बदलती करवट आँख समय बिरुआरे चेहरे पर चौरासी झुर्री मईया ठाढ़ दुआरे .... लाले लाले गोड़ कनईया आँखे सपना बुनतीं काल कलौती उज्जर धोती मंशा चुनती मोती....

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