Sunday 6 May 2012

.जगंनजासुनवभतयचापमग्रा..


आज मेरे मन में एक हास्य कहानी आ रही है .बहुत गूढ़ अर्थ है .पूर्वांचल के लोग इसे जल्दी समझेंगे ,खास कर चन्द्र शेखर जी वगैरह ...आप पहले सुनिए यह सत्य कथा है . बहुत पहले शादियों में बारातदो रत एक दिन ठहराई जाती थी ,पहले दिन शाम को आती थी ,दूसरे दिन, दिन भर रहती थी .तीसरे दिन सुबह बिदा होती थी ,बीच वाले दूसरे दिन को मरजाद रहना कहते थे इसी दिन शाम को बार पक्ष और बधू पक्ष के सभी लोग एकत्रित होते थे ,कुछ अछे विचारों का आदान प्रदान होता था ,दोनों पक्ष के पंडित शास्त्रार्थ करते थे, गुलाब जल, इतर का छिड़काव होता था.मेवा बनते जाते थे .इसी में मंगल उच्चारण और शास्त्रार्थ में दोनोंपक्ष के पंडितो की लड़ाई भी हो जाती थी .एक जीतता था एक हार जाता था ,मेरे गाँव में एक बारात बनारस से आयी थी ,उसमे संस्कृत विश्व विद्यालय के दो आचार्य थे ,गाँव में हल्ला होगया की अबकी बार गाँव का पंडित जरूर हारे गा ,दोनों आचार्य विद्वान् हैं उनके आगे यह गवईहा पंडित नहीं टिकेगा ,बात पंडित को भी बताई गयी,पंडित की इज्जत का सवाल था ,वह चिंतित भी था ,सभी लड़के दृष्टि लगाये थे पंडित हारे और उसका मजाक उड़ायें ,बहार हाल,शिष्टाचार का समय आया ,दोनों पक्ष इकट्ठा हुए .पारम्पर के अनुसार गाँव के पंडित ने वर पक्ष के स्वागत में मंगल पढ़ा .और बहुत विनम्रता से बोला हे मित्रो आप के बारात में काशी के दो पंडित हैं .मैदोनों को प्रणाम करता हूँ .मै जनता हूँ दोनों ब्याकरण के आचार्य हैं .मैंने पाडिनीकी अष्टाध्यायी पढी एक श्लोक समझ में नहीं आया .मै उच्चरित करता हूँ कृपया अर्थ स्पष्ट करें .और पढ़ा ..... "जगंनजासुनवभतयचापमग्रा "..इस सूत्र का अर्थ बताइए .बारात के दोनों विद्वान् सचमुच आचार्य थे ,शिक्षक भी थे दोनों ने आँख बंद करके पूरी अष्टाध्याई दुआहरा गए पर सूत्र उन्हें नहीं मिला दोनों ने चर्चा की फिर सहज भाव से बोले की हमने पूरी अष्टाध्याई दुहराई पर यह सूत्र पकड़ में नहीं आरहा है .बस क्या था तालियाँ बजा गयीं ,हल्ला हो गया की गाँव के पंडित ने काशी के विद्द्वानो को पराजित करदिया .मेवा बाँट दिया गया ,सभी जाने लगे .कुछ मन चले युवकों ने गाँव के पंडित को पकड़ा और धमका कर राज पूछा ,थोडा आना कानी के बाद पंडित ने कहा ...की यहाँ आते तक मै भी परेशान ही थापर यहीं आकर मेरी समाश्या हाल हो गयी.कहकर उसने बारात घर के बोर्ड की तरफ इशारा करते हुए बोला मैंने इसका उल्टा कर दिया .जब अष्टाध्यायी में था ही नहीं तो वे क्या बताते ,उन्हें हराना था ही .बारात घर के बोर्ड पर लिखा था ..."ग्राम पंचायत भवन सुजान गंज "पंडित ने बस उसे उलटा कर के पढ़ दिया . ...जगंनजासुनवभतयचापमग्रा....और जीत गया /कैसी लगी /सत्य कथा ..इसका अर्थ क्या है ..आप बताइए /

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