Saturday 21 January 2012

जंगल कटेगा ही /.(..1 )

आज एक गंभीर लोक कथा सुनाता हूँ /एक जंगल था /खूब हरा भरा /सारे जानवर पेड़ पौधे सुखी थे /कुछ बहुत पुराने पेड़ थे १०० साल के /एक दिन जंगल के छोटे पौधे बड़े पेड़ों के पास गए और बोले .दादू आज जंगल में कुछ ऐसे जंतु दिखे जो पहले हमने नहीं देखे थे /वे दो पैरों पर चल रहे थे /बड़े बुजुर्ग पेड़ों ने समझाया -ऐसे जंतु को आदमी कहते हैं ये गाँव या शहर में बस्ती बना कर रहते हैं /कभी कभी घूमने या पिकनिक करने जंगल आते हैं /जाओ कोई खास बात नहीं /६ माह बाद पौधे फिर बड़े बुजुर्गों के पास गए और बोले दादू वही शहर के जंतु फिर आये हैं /कोई खास बात बुजुर्गों ने पूछा /हाँ अबकी बार उनके हाथों में हथियार है ,बन्दूक भी है /कोई बात नहीं इनका मन जब अनाज खाते खाते ऊब जाता है तब ये शिकार करने आ जाते है कोई एक जानवर मार कर ले जायेंगे ,खायेंगे /तुम्हे डरने की कोई जरुरत नहीं /कई महीने बाद पौधे फिर बुजुर्ग पेड़ों के पास आये और बोले दादू फिर वही जंतु शहर से आये हैं अबकी उन के हाथों में कुल्हाड़ी है जिसमे बेंट भी है / अबकी बुजुर्ग चिंतित हुए और बोले सावधान अब जंगल कटेगा /जंगल लोहे की कुल्हाड़ी से तब तक नहीं कट ता जब तक कोई लकड़ी उसका बेंट न बने /जब अपनी ही बिरादरी के लोग दुश्मन की कुल्हाड़ी के बेंट बन जांय तो समझो अब जंगल कटेगा ही /

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