Tuesday 3 January 2012

(कल कलौती से)

अंचरा अंचरा फूली सरसों
भर अंकवारी धूप
फुनगी फुनगी ओस लटकती
गोंफा अन्न अनूप
अगहनी धूप खिली /
पोर पोर में चढ़ी जवानी
अरहर फूली खेत
ठटरी ठटरी जागा जीवन
गई टिटिहिरी चेत
पूष की रात जगी /
बीता बीता दिन हुए
रात हुई सैलाब
हर मुडेर गहराई ठिठुरन
जागे प्रात अलाव
माघ में ठंढ बढ़ी /
सिकुड़ी देह ठिठुरती इक्षा
धुंध छिपी पहचान
गठरी गठरी मनो कामना
परबस है दिनमान
उतरती ठंढ बढ़ी / (कल कलौती से)

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