Wednesday 18 January 2012

करम अकारथ जात

*डाली डाली निरखें जीवन
हर कोटर विश्वास
अंजुरी में सिमटी दिनचर्या
आँखों भरा आकाश //
*राई रत्ती चढ़ें पहाड़ी
मुट्ठी जीवन आस
सपना खोजें सरना सरना
काल करे उपहास //
*जंगल झाड़ी लकड़ी बीने
भूख करे उत्पात
चिरई चुनगुन करें ठिठोली
नदी बढ़ाये प्यास //
*चहरे की झुर्री सिल सिल कर
ढांके सूखा तन
परती चीरें हाड़ तोड़ कर
चैता गए मन //
*घूरे घूरे भाग सिमटता
डीह डीह ब्यापार
मढिया मढिया निष्ठा फैली
पाता पाता प्यार //
*खरही खरही बिपति मीसते
स्वाद पकाएं भात
समझ न पांएँ विधना की गति
करम अकारथ जात//

2 comments:

  1. बहुत प्यारी लयबद्ध रचना...
    बधाई.

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