Sunday 22 January 2012

गणतंत्र दिवस फिर आया

मित्रों गणतंत्र दिवस की शुभ कामनाएँ;आप के लिए एक चित्र आप के हमारे प्यारे देश का ,इसे एक बार समय निकल कर पढ़िए गा अवश्य
गणतंत्र दिवस फिर आया
गणतंत्र दिवस आया लेकिन पहले जैसी कोई बात नही,
आपस में ही हम लड़ते हैं कोई प्यार नहीं सद्भाव नहीं /
पहले तो मुल्ला और पंडित मजहब से मजहब लड़ता था
अब प्रांत प्रान्त का दुश्मन है भाषा के नाम झगड़ता है /
हम जन गन के गाने वाले जन से जन को लड़वाते है ,
उत्कल बंगा गाने वाले हर रोज राज्य बंटवाते हैं /
मैं बंगाली तुम पंजाबी हम मलयाली तुम यूपी के ,
सड़कों पर बकते रहते हैं गंदे नारे नित पी पी के /
हर जाति जाति से झगड़ रही माता बहने नित नुचती हैं ,
कुर्सी और सत्ता की खातिर निर्मम हत्याएं होती हैं /
हर दिशा उगलती है शोला हर मन में पनपती कुंठा है /
हर भाई है भय भीत यंहा यह कैसी बिकट समस्या है /
घन घोर अँधेरे में बैठे गणतंत्र दिवस हम मना रहे .
आजादी मुश्किल से पायी उसको रखेल हम बना रहे /
एक नई सुबह होने को है कुछ नया हमें करना होगा ,
आने वाली पीढी को हमें एक राष्ट्र बोध देना होगा /
अब बहुत हो चुकी मन मानी थोडा तो जागृत हो जाओ ,
अन्दर झांको मन को समझो नैतिक मर्यादा अपनाओ /
मैकाले की शिक्षा पद्धति का ढूंढ नहीं पाए विकल्प ,
आधी शताब्दी गुजर गई बुनते रह गए सपने संकल्प /
एक भीड़ नाकारा कड़ी किये कुंठित अभद्रता लिए हुए ,
आधुनिकता का आवरण ओढ़ घर बहार सब विद्ध्वंश किये /
उत्तर दायित्व हीन नेता करते हैं केवल बर्बादी ,
फिर से भरना होगा जूनून जिसने दिलवाई आजादी /
कुछ गांधी सुभाष से नायक फिर से पैदा करना होगा,
संसद सरकस के अभिनेता इनको संयम करना होगा /
अधि करों के साथ नया कर्तब्य बोध भरना होगा ,
आजादी का यह स्वर्ण पर्व हे दोस्त तभी सार्थक होगा /
उत्तर आधुनिक नई पीढ़ी रिश्तों के शव पर खडी हुई ,
मन के कोमल अनुबंधों को झटके दे दे कर तोड़ रही /
जड़ता का एक साम्राज्य बढापरिचय के हम मोहताज हुए ,
सारा अपनापन गायब है दृढ़ता संशय में बदल रही /
बस बढा रहे हैं अधाधुंध सब कुछ खरीदने की क्षमता ,
यह अंधी दौड़ विध्वंसक है फी भी जनता यह दौड़ रही /
कैसे समझाएं कौन कहे पीड़ा दाई यह स्थिति है ,
परिवार टूटता खंड खंड यह कैसी विकत परिस्थिति है /
थोड़ी सी लापरवाही से घर आँगन है बाजार बना ,
विज्ञापन और प्रदर्शन ने बेशर्मी का संसार बुना /
पिस्ता है मध्य वर्ग कुंठित हर शक्ति नाकारा अड़ी हुई ,
हर जाति धर्म भस्मासुर है हर वर्ग यंहा असुरक्षित है /
कोई आशा की किरण नहीं हर नेता करता लफ्फाजी ,
एक अंधी हवस में डूबे हैं नेता मुल्ला पंडित काजी /
पूरी पीढ़ी गम राह हुई है राष्ट्र की निष्ठा कंही नहीं
सम्पूर्ण देश हलकान हुवा हल कोई दीखता कंही नहीं /
कुर्सी मिल जाये किसी तरह कपडे की तरह बदलते दल
आया और गया राम मिलकर नत नया मचाते हैं दंगल /
नेता कहलाते थे सुभाष एक सुचिता भरा समर्पण था
नेता कहलाते थे गांधी अस्तित्व राष्ट्र को अर्पण था /
नेता का अर्थ बदल डाला अपनी गंदी करतूतों से
नेता गली सा लगता है ज्यों पिटते लातों और जूतों से /
पर्याय बना बेशर्मी का यह नेता शब्द घिनौना है
नेता निकृष्टता की परिसीमा पर देश उन्ही का खिलौना है /
चोरी दस्तूरी घूस लूट सामूहिक हत्या बलात्कार ,
ये सब इनके दल नायक हैं देखो इनके नित चमत्कार /
असुरक्षा मंहगाई भूख मरी पीड़ा कुंठा सब कुछ सह लो
पर वोट जरूर इही को दो बदले में चाहे कुछ ले लो /
स्वतंत्रता अराजकता में बदल गई गणतंत्र हमारा पंगु हुआ
यह पर्व मानना ब्यर्थ ही है यदि मन से देश बेईमान हुआ /
संयम अनुशासन सहिष्णुता मर्यादाएं सब ख़तम किये
अन्ना और रामदेव मिलकर जो था वह भी बर्बाद किये /
कुछ चमत्कार हो जाय तभी इस देश का हो कल्याण प्रभू
यह देश तुम्हार सेवक है तुम ही इसके करतार प्रभू /
जय गणतंत्र ,जय जनतंत्र , जय भय तंत्र ,

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