Wednesday 8 February 2012

अमीर खुसरो (३)

मित्रों ,आज कल से आगे .कल तक कुल 10 मुकरियां हो चुकीं हैं
अमीर खुसरो के नाम से जिस हिंदी उर्दू या हिन्दुस्तानी काब्य को जोड़ा जाता है उसके बारे में पहला सवाल यह उठता है की उसे कौन सी संज्ञा दी जाय क्यों की हिंदी उर्दू हिन्दुस्तानी का वर्तमान भाषिक अर्थ तेरहवीं शताब्दी में नहीं था ग्रियर्सन ने पूर्वी हिंदी और पश्चिमी हिंदी का जो विभाजन और शब्दावली निर्माण बिहार से पंजाब तक के भारतीय आर्य बोलियों के वर्गीकरण के लिए किया था उसे अमीर खुसरो की भाषा पर चस्पा कर देना ठीक नहीं /क्यों की एक तो यह शब्दावली मात्र है ,इस नाम की कोई भाषा या बोली नहीं है दूसरे उसकी संकल्पना भी बहुत बाद की है ,खड़ी बोली ,ब्रज ,हरियाणवी के नाम भी बाद में ही प्रचलित हुए .उस काल की बोलियों के नाम मध्य युग श्रोतों से जो भी प्राप्त है दोष युक्त या अधूरे है ,लेखकों ने उन्ही बोलियों के नाम का उल्लेख किया है जिन्हें वे जानते थे जिनके प्रदेशों से परिचित थे ,१५ वीं शदी के अंत में शेख बहाउद्दीन वाजन की भाषा "जबान- ये -देहलवी'कहलाती थी/ १६ वीं शदी में अबुल फजल ने, आईन-ये-अकबरी में हिंदी की केवल दो भाषा देहलवी और मारवाड़ी (राजस्थानी) का उल्लेख किया है जाहिर है इनके आलावा और भी बहुत सी बोलियाँ थीं...जिनकी चर्चा बाद में करेंगे .............. ..अब कुछ मुकरियां .इसी तरह रोज थोडा विवेचन .कुछ मुकरियां ....
11-माथे वाके छेक है और चरण थूर कर यहांव
बहियन पर छाती टिकी रहे और पीठ पर वाके पांव /(चोली)
१२-सर बल जावे नारी एक छोटी ऊपर छोटी देख
सीना व का सब को भावे सभी जगत के कम में आवे/ (सोजन )
१३-भूके प्यासे आते हैं वो बुजुर्ग क्यों कहलाते हैं
फ़िक्र से उनको मुंह में रखे बैकुंठो में भोजन चखे/ (रोजा )
१४-आई थी भोजन करन भोजन हो गई आप
पिछलों से कहती गई की भोजन नहीं यह पाप /
१५-भोजन था सो जल गया और या में मीन न मेख
छेड़ छाड़ जाती रही सो कांता खटकत देख/ (१४/१५ बंसी -ओ -माही)
बस आज इतना ही .कल फिर .क्रमशः जरी रहेगा ...

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