Friday 10 February 2012

आजादी के जप्तशुदा तराने

मित्रों अमीर खुसरो पर जो मुझे आता है या जो सामग्री मेरे पास है वह तो फेस बुक पर /ब्लाग में भी आप के लिए जारी है /आज से एक नई सीरीज और शुरू कर रहा हूँ.... आजादी के जप्तशुदा तराने .....कुछ पुराने लेखकों /कवियों/ शायरों की ऐसी रचनाएँ जिनको नई पीढ़ी नहीं पढ़ पाई/उन्ही के लिए .अनेक भाषाओँ /जातियों और धर्मो से मिलकर बनी हमारी संमृद्ध संस्कृति में आजादी के तराने गूंजते रहे हैं ..,,
१-- असगर १९३०--.
मुर्ग दिल मत रो यहाँ आंसू बहाना है मना ,अद्लीबों को कफस में चहचहानाहै मना हाय!जल्लादी तो देखो कहरहा सैय्याद ये वक्ते-जिबह बुलबुलों को फडफडाना है मना
वक्ते -जिबह मुर्ग को भी देते है पानी पिला हजरते इन्सान को पानी पिलाना मना है
मेरे खूं से हाथ रंग कर बोले क्या अच्छा है रंग अब हमें तो उम्र भर मरहम लगाना मना है
ऐ मेरे जख्मे-जिगर !नासूर बनाना है तोबन क्या करूँ इस जख्म पर मरहम लगना मना है
खूं दिल पीते हैं"असगर"खाते हैं लख्ते-जिगर इस कफस में कैदियों को आबोदाना है मना है
ये ओ तराने है जो जब्त शुदा रहे जिनके गाने पर प्रति बन्ध था /क्रमशः जारी रहेगा ..कैसा लगता है जरूर लिखे .

No comments:

Post a Comment