Thursday 9 February 2012

अमीर खुसरो --४

अमीर खुसरो --४
कल मैं बिभिन्न बोलियों की चर्चा कर रहा था /शेख बहाउद्दीन वाजन /अबुल फजल /आईने अकबरी की चर्चा की थी आज आगे ..आधुनिक भाषा वैज्ञानिक अनुसन्धान के सन्दर्भ में यह तथ्य जान लिया गया है की उस समय हरियाना दिल्ली और पशिमी उत्तर प्रदेश में शौरसेनी अपभ्रंश की प्रधानता थी /अपभ्रंश का कोई एक ब्यवस्थित रूप नहीं होता निश्चय ही प्रत्येक अपभ्रंश में गौण प्रादेशिक बोलियाँ भी सन्निहित रही होंगी ,जिन्हों ने सम्बंधित प्रदेश की बोलियों को जन्म दिया होगा /हमें पता है की ब्रज भाषा की परम्परा अकबर से भी पहले की है और अकबर के काल में ब्रज भाषा में कृष्ण भक्तिअवधि में राम भक्ति की रचनाएँ हो रही थींतुलसी और सूर दो महँ रचना कर लिख रहे थे तो अबुल फजल के कथन में शुद्धता का अभाव दिखता है/ यही दिल्ली के आस पास की बोलियों की होगी जो आगे चल कर खड़ी बोली कहलाईं .....शेष काल ..अब कुछ मुकरियां
१६-एक नार है घेर घुमेली भीतर वाके लकड़ी मैली
फिरा करे चलने की आन उसकी इसमें बूझ आ सान /
१७ -बंद किये से निकला जाय छोड़ दिए से जावे आय
मूरख को देही नहीं सूझे ज्ञानी हो एक दम में बूझे /
१८-नर नारी में कुश्ती है कुश्ती है बे पुश्ती है
बूझ पहेली जो कोई जाये बैकुंठे में बासा पाए /
१९-जिसके पैरों वा पड़ी उसका जी घबराय ,
बहुत दुखों से कदम उठे ,रह न निबडी जाय /
२०-सागर बासा भोजन रक्त फूल रहत है क्यों
सीस छेद जबदह लिया फिर वह ज्यों की त्यों /
२१- ओ पक्षी है जगत में जो बसत भुइं से दूर
रैन को उसको बीना देखा दिन में देखा सूर /
(सान ,दम ,रूह ,बेदी ,जोंक ,चम्गादर )
आज के लिए इतना पर्याप्त है ..शेष फिर काल ..तब तक आनंद लीजिये ....

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