Tuesday 7 February 2012

अमीर खुसरो (२)

अमीर खुसरो (२)
मित्रों कल मैंने अमीर खुसरो की चार मुकरियां पेस्ट की थीं कुछ मित्रों ने कहा हम प्रतीक्षा करेंगे / विमलेन्दु ने लिखा निकालिए अनमोल रतन /आज दूसरी कड़ी ,
मित्रों अमीर खुसरो के नाम से जो भी हिन्दी काब्य में प्रचलित है वह जन श्रुति का हिस्सा है कोई लिखित प्रमाण नहीं है /अवध के शाही पुस्तकालय में खुसरो की कुछ पांडुलिपियाँ सुरक्षित थीं /उनके हिंदी काब्य पर पहला लेख १८५२ में जर्नल ऑफ़ एसियाटिक सोसाइटी बंगाल ने प्रकाशित किया था ...इस प्रस्तुति का मूल आधार वही लेख है ...
पहेली /मुकरी ....
५)जल का उपजा देखा जल में, कांटे हैं वाके कल कल में
गीला हो तो हाट बिकाय,सूखे से कई कम आये /(सिंघाड़ा )
६)दो नर में है एक ही नार, यही रहें हैं सबके द्वार
दो नार से वह नारी जूझे, जब जानो जब चट पट बूझे/ (कुंडा /सांकल )
७)एक नारी में जब नार जाय, कला मुंह कर उलटा आय
छाती घाव अपनी सहे, मन के वचन पर आय कहे/ (दावत -कलम )
८)कला मुंह कर जग दिखलावे, भूला बिसरा याद दिलावे
रैन दिना चातर गम खाता, मूरख को लेखा नहीं आता /(खाता बही कलम )
9)मुंह से उगले मुंह से खाय ,मुंह से मुंह को लगाती जाय
ठोक बदन कहलाती है, हर दम में बन चलती है /(तुफंग अर्थात प्रक्षिप्त )
१०)बिलक बिलक भोजन करे, और कास कास में बीठ
जनवर है पर जो नहीं लेत सवारी पीठ ( ढेंकुली )
खुसरो की पहेलियों .का संग्रह खालिक बरी के नाम से प्रचलित है किन्तु इसके भाषिक तथा कलात्मक दोष के कारन कुछ लोग इसे खुसरो की कृति नहीं मानते /खुसरो प्रतिभा शाली बुद्धि मान और हिन्दवी की बोलियों ठोलियों में रचे बसे थे अरबी फ़ारसी में निष्णात थे इन्हें हिन्दवी -तथा अरबी फ़ारसी शब्दों के अलंकारिक अर्थ सम्बन्ध जोड़ने में दक्षता प्राप्त थी /क्रमशः ......

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