Monday 13 February 2012

उस रोज समझना धरती पर फिर से फागुन आने वाला है

बसंत पंचमी से होली तक का समय भारतीय परम्परा में उद्दीपन का काल है ठूंठ भी पल्लवित हो जाते हैं ,अशोक के फूल ,बौराए आम ,कोयल की पंचम ,रक्ताभ टेसू ,मद्धिम मद्धिम फगुनहट, भ्रमर की गुनगुनाहट ,,उरठ धूप,उचटा उचटा मन सचेत संजीदा आंखे फागुन के आने के संकेत हैं ..फागुन घुस गया बाग में झरन लगे मधु गंध पोर पोर गाने लगे मॉलकौस के छंद .. ऐसे में दूर से आती हुई ढोलक की थाप के साथ होली गीत के सुर ...फागुन भर बाबा देवर लागे ......हंसी ठिठोली ..जबाब नहीं इस मौसम का ..वातावरण ही रंगीन हो तो मिजाज भी रंगीन हो जाता है ...समझने में देर नहीं लगती ..मस्ती ही मस्ती ....
जिस रोज तुम्हारी गागर से सतरंगी रंग छलक जाये
उस रोज समझना धरती पर फिर से फागुन आने वाला है /.
जब कलियों की कंचुकी स्वयं हो जाय बिलग उसके तन से ,
जब चंपा जूही की कलियाँ शरमायें भृग के नर्तन से
उस रोज समझना उपवन में ऋतुराज समाने वाला है /
जब अनचाहे कगना खनके कागा बोले जब आँगन में
जब मुरझाये मनकुसुम खिले अनगिन उमंग हो जीवन में
उस रोज समझना परदेशी प्रीतम घर आने वाला है /
जब सर से घूंघट खिसक खिसक ढल जाये तेरे मुखड़े से
तुम मुह में अंगुली तनिक दबा मुस्कवो हौले हौले से
उस रोज समझना पूनम का चंदा मुस्काने वाला है /

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