Monday 13 February 2012

दिन बेगाने हो जाते हैं

सुबह सबेरे सूरज आता
नून तेल के झंझट लाता
दिन बेगाने हो जाते हैं /
सपनों वाली पहचानी सी गली पुरानी
जहाँ खेलते बच्चों का स्वर
धमा चौकड़ी दे जाता है /
हर दिन दुपहर बतियाता है
छत पर बैठे नील कंठ से
दिन मन माने ढल जाता है /
मेहनत की थकान ले करके
बिखरी संध्या घर आगन में
तालाबों पर खिली कुमुदिनी
रात सयानी सो जाती है /
चढ़ी चांदनी नील गगन में
चन्दन वन की खुसबू आई
कोमल सपने उग आते हैं /

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